नई दिल्ली: किसान एक तरफ पिछले 50 दिनों से ज्यादा समय से दिल्ली के अलग-अलग बॉर्डर पर बैठकर सरकार से कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग के खिलाफ विरोध जता रहे हैं और कृषि कानूनों को रद्द करने की मांग कर रहे हैं. वहीं दिल्ली में खेती करने वाले किसान कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग से जुड़े हुए हैं और जो पिछले कुछ सालों से कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग से जुड़कर कृषि का लाभ उठा रहे हैं.
वे कृषि कानून और कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग को किसानों के लिए अच्छा बता रहे हैं. अब दूसरे नए किसान भी कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग से जुड़ने की बात कर रहे हैं. ईटीवी भारत ने बख्तावरपुर इलाके में जाकर कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग से पहले से ही जुड़े और नए जुड़ने वाले किसानों से खास बातचीत की.
'पहले मंडी में माल बेचने की नहीं थी कोई गारंटी'
किसानों ने ईटीवी भारत को बताया कि कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग किसानों के लिए अच्छी है और इसका फायदा किसानों को मिल रहा है. कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग के माध्यम से खेती करने वाले किसान खुशी-खुशी अपनी फसल (सब्जियां) कंपनियों को बेचते हैं और उनका पैसा सीधे अकाउंट में आ रहा है. अब कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग से इलाके के कई और भी किसान जुड़ने वाले हैं, कई कंपनियां गांव के किसानों के संपर्क में हैं. किसान पहले से ही अलग-अलग कंपनियों से जुड़कर कंपनियों के अनुरूप (मांग के अनुसार) खेती कर रहे हैं.
कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग से जुड़े एक किसान राजकुमार ने बताया कि वह पिछले करीब 3 सालों से कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग कर रहे हैं. वो महिंद्रा एंड महिंद्रा कंपनी को अपना माल बेच रहे हैं, जिसका मुनाफा उन्हें समय से पहले मिल रहा है और पैसा सीधे अकाउंट में आ रहा है. अब कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग के माध्यम से किसानों और कंपनी के बीच में कोई दूसरा व्यक्ति नहीं है.
साथ ही उन्होंने बताया कि गांव के कुछ और किसान भी अब उनसे कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग के माध्यम से जुड़कर खेती करने की बात कर रहे हैं. इन किसानों में गांव के युवा किसान भी हैं. कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग से जुड़ने वाले नए किसान बता रहे हैं कि वो पहले अपनी फसल (सब्जियां) मंडियों में भेजते थे और मंडी में माल बेचने की कोई गारंटी नहीं थी, क्योंकि मंडी के आढ़ती और बिचौलिए अपने हिसाब से माल का पैसा तय करते थे. उसमें भी गारंटी नहीं थी कि पूरा माल बिक जाएगा. जिस तरीके से कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग के बारे में दूसरे लोग बता रहे हैं, उसमें मुनाफा है और किसानों के सामने दो रास्ते खुल जाते हैं. पहला अपना माल कंपनी को बेचें, दूसरा अगर माल में कुछ खराबी है तो वह अपना माल मंडी में भी बेच सकते हैं.
'किसानों के हित में है कृषि कानून'
एक अन्य किसान पप्पन सिंह गहलोत ने ईटीवी भारत से बातचीत में कहा कि वो भी पिछले कई सालों से मशरूम की खेती कर रहे हैं और सीधा अपना माल अलग-अलग कंपनियों को बेचते हैं. कंपनियां उनके खेत में ही आकर बीज और अन्य जरूरी कीटनाशक दवाएं देती हैं. किसानों को अपनी फसल से संबंधित दूसरा सामान खरीदने के लिए बाजार में नहीं जाना पड़ता है. कंपनियां जिस तरह की फसल चाहती हैं, वैसा ही सामान किसानों के पास भिजवा देती हैं.
पप्पन सिंह ने आगे कहा कि इस वजह से किसान कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग को अच्छा बता रहे हैं और जिस किसान कानून को रद्द करने की मांग को लेकर दिल्ली के बॉर्डर पर किसानों के नाम पर दूसरे लोग बैठे हुए हैं. वह सरकार पर कृषि कानून को रद्द करने का दबाव बना रहे हैं. कृषि कानून किसानों के हित में है और किसानों को इसका फायदा भविष्य में मिलेगा.
उन्होंने आगे कहा कि सरकार और किसानों के बीच लगातार कई दौर की वार्ता हो चुकी है, लेकिन किसानों का कहना है कि अभी तक सरकार ने किसानों के हित के लिए कोई बात नहीं की है. लगातार बातचीत के लिए हर बार नई तारीख निकल कर सामने आ रही है, लेकिन अभी तक किसानों और सरकार के बीच में कोई समझौता नहीं हो सका है.