नई दिल्ली: देश की नदियों की साफ-सफाई को लेकर सरकार की तरफ से कई तरह के प्लान चल रहे हैं. नदियों को साफ करने की व्यवस्था में करोड़ों रुपए अब तक खर्च किए जा चुके हैं, लेकिन सकारात्मक नतीजा निकल कर सामने नहीं आया है. यमुना की दुर्दशा भी उन्हीं नदियों में से एक है. DPCC यानी दिल्ली प्रदूषण कंट्रोल कमेटी की 2021 दिसंबर में पेश रिपोर्ट में यह निकल कर सामने आया है कि युमना 14 प्रतिशत अधिक प्रदूषित हो गई है.
अपनी रिपोर्ट में डीपीसीसी ने कहा था कि दिल्ली के 20 प्रतिशत एरिया में अब तक नाला ही नहीं बन सका है. 80 प्रतिशत सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट में कोई स्टैंडर्ड तय नहीं है. ऐसे में एक सवाल यह बनता है कि आखिर क्यों इस तरह के पानी को बिना ट्रीट किए ही नदी में छोड़ा जाता है. यमुना नदी पर छह बांध बने हुए हैं, जिनमें तीन तो शहर में ही हैं. ऐसे में नदी कैसे खुद को साफ कर सकती है.
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गंगा हो या यमुना दोनों नदियों की दुर्दशा की कहानी एक जैसी है. दोनों ही नदिया सभ्यताओं को सींचती थीं. लेकिन अफसोस जितनी इन को लेकर सियासत हुई, उतनी ही इनकी दशा खराब हुई. गंगा के नाम पर गंगा एक्शन प्लान बनाकर हजारों करोड़ करप्शन की धारा में बहाए गए. नमामि गंगे के नाम पर वही कहानी दोहराई जा रही है. यही हाल यमुना को लेकर है. यमुना ने भी सभ्यताओं को सींचा, लेकिन आज खुद ही कराह रही है.
यमुना की दशा सुधारने के लिए 1993 में यमुना एक्शन प्लान बनाया गया था. इस योजना के तहत 25 वर्षों के दौरान 1514 करोड़ रुपए से ज्यादा खर्च किए जा चुके हैं. दिल्ली में यमुना की सफाई के लिए 2018 से 2021 के बीच करीब 200 करोड़ रुपए आवंटित किए गए, लेकिन नतीजा ढाक के वही तीन पात. ऐसा इसलिए है, क्योंकि नदियां आस्था का केंद्र हैं, जिन्हें वक्त-बेवक्त सत्ता और सियासत के काले मंसूबे काली कमाई का जरिया बनाते हैं. वरना क्यों ये सदा नीरा इंसानी लिप्सा से सूखतीं और क्यों ये नदियां मानवीय जहर से कराहतीं.
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