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उम्मीद की किरण! जब प्लाज्मा ही है विकल्प तो कोपल-19 करेगा मदद - AIIMS

एम्स के न्यूरो सर्जरी डिपार्टमेंट के एक स्टूडेंट का आइडिया और आईआईटी दिल्ली के कंप्यूटर साइंस की तीसरे साल की स्टूडेंट के तकनीकी ज्ञान ने कोपल 19 ऐप को जन्म दिया है. जो कोविड पेशेंट को पॉसिबल प्लाज्मा डोनर से कनेक्ट करता है.

AIIMS Neuro Surgery Department Student and IIT student invented copal-19 application
जब प्लाज्मा ही है विकल्प तो कोपल-19 करेगा मदद
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Published : Jul 2, 2020, 9:28 PM IST

नई दिल्ली: दिल्ली में कोरोना का कहर थमने का नाम नहीं ले रहा है. वहीं प्लाज्मा थेरेपी के रूप में एक उम्मीद की किरण तो दिखी है, लेकिन डोनर की समस्या इसे दुर्लभ बना रही है. समस्या को लेकर अपने-अपने क्षेत्र में देश के दो दिग्गज संस्थानों के बेस्ट ब्रेन ने इस समस्या का समाधान ढूंढ निकाला है.

एम्स के न्यूरो सर्जरी डिपार्टमेंट के एक स्टूडेंट का आइडिया और आईआईटी दिल्ली के कंप्यूटर साइंस की तीसरे साल की स्टूडेंट के तकनीकी ज्ञान ने कोपल 19 ऐप को जन्म दिया जो कोविड पेशेंट को पॉसिबल प्लाज्मा डोनर से कनेक्ट करता है.

कोपल-19 ऐप का हुआ अविष्कार

आईआईटी दिल्ली में कंप्यूटर साइंस की थर्ड ईयर की स्टूडेंट काशिका प्रजापत ने एम्स के न्यूरो सर्जरी विभाग के डॉक्टर अभिनव के साथ मिलकर कोविड मरीजों के लिए एक ऐप बनाया है. आईआईटी दिल्ली की कंप्यूटर साइंस की थर्ड ईयर की स्टूडेंट काशिका प्रजापत ने बताया कि कोविड-19 एक महामारी का रूप ले चुका है. कुछ पेशेंट को कोविड-19 के ट्रीटमेंट के लिए प्लाजमा थेरेपी की जरूरत पड़ती है लेकिन उनके लिए सबसे बड़ी दिक्कत है प्लाज्मा डोनर तक पहुंचना.

इस प्रॉब्लम को सॉल्व करने के लिए हमने एक ऐप बनाया है. इसका नाम कोपल 19 ऐप रखा है. यह अभी सिर्फ दिल्ली एम्स में ही उपलब्ध है. जिन पेशेंट को प्लाज्मा की जरूरत होती है वह अपनी डिटेल के साथ इस ऐप में साइन इन कर सकते हैं. उनको हम दोनों से कनेक्ट करवा देंगे. सही मायने में यह मरीज और डोनर के बीच एक ब्रिज की तरह काम करता है.

फिलहाल यह सुविधा एम्स दिल्ली के लिए ही उपलब्ध है. जो लोग दिल्ली के एम्स में कोविड-19 का ट्रीटमेंट करवा कर स्वस्थ होकर लौट चुके हैं. उनको कॉल करके उनसे पूछ रहे हैं कि क्या वह अपना प्लाज्मा डोनेट करना चाहेंगे. आगे चलकर हम उम्मीद करते हैं कि लोग खुद ब खुद इस ऐप के जरिए अपने आप को रजिस्टर्ड करेंगे और जरूरतमंद लोगों की मदद करेंगे.


कैसे काम करता है ऐप

काशिका ने बताया कि एक बार जब हमारे पास डोनर की लिस्ट आ जाती है तब हम उसे ऐप पर डाल देते हैं. यहां पर सारे डोनर्स की पहचान वेरीफाई की जाती है. जब मरीज को इस पर लॉग इन करना होता है तब हम मरीजों से उनका नाम, पता, फोन नंबर डॉक्टर के डाक्यूमेंट्स, उनका प्रिसक्रिप्शन जिसमें उन्होंने पेशेंट को प्लाज्मा थेरेपी के लिए एडवाइस किया है. उनके आधार कार्ड यह सब कुछ मांगते हैं. ऐसा वेरिफिकेशन के लिए किया जाता है ताकि इसमें किसी तरह का फ्रॉड ना हो सके. इस तरह से यह एप पेशेंट को डोनर से कनेक्ट करता है.


सोशल मीडिया के जरिए दी जाएगी जानकारी

काशिका बताती हैं कि इस ऐप के माध्यम से बहुत सारी जानें बचाई जा सकती है. हम उम्मीद करते हैं कि आने वाले दिनों में इसे पूरे देश में लागू किया जाएगा. ऐप का बेसिक वर्जन फेसबुक पर डालने के लिए अप्लाई कर दिया है. उम्मीद है दो-तीन दिन में हो जाएगा. उसके बाद हम अपने कोपल 19 ऐप को सोशल मीडिया के जरिए लोगों तक पहुंचाएंगे.


ऐप की आर्टिफिशल इंटेलिजेंट बढ़ाएंगे

काशिका ने बताया कि आगे चलकर इस ऐप में और भी सारे फीचर जोड़ें जाएंगे. साथ ही इसमें और आर्टिफिशल इंटेलिजेंट जोड़े जाएंगे. रियल टाइम में किसी के लिए कोई डोनर बिल्कुल तैयार मिलेगा या नहीं, इसका पता लगाया जा सकता है.


ऐप का इस्तेमाल करना आसान

एम्स के न्यूरो सर्जरी डिपार्टमेंट के डॉक्टर अभिनव बताते हैं कि अभी डॉक्टर्स डे पर कोपल 19 ऐप लॉन्च किया है. इस ऐप का इस्तेमाल करना बहुत ही आसान है. इसका इस्तेमाल सिर्फ दो लोग कर सकते हैं. एक पेशेंट और दूसरा डोनर. डोनर वह हैं जो कोविड-19 इन्फेक्शन से पूरी तरह से ठीक हो चुके हैं और साथ ही 28 दिन की आवश्यक एकांतवास पूरा कर चुके हैं. ये लोग स्वास्थ्य और दूसरे लोगों की जान बचाने में मदद कर सकते हैं.


हर 14 दिन पर कर सकते हैं प्लाज्मा डोनेट


डॉ. अभिनव बताते हैं कि कोविड 19 को हराकर ठीक हुए मरीज हर 14 दिन में अपना प्लाज्मा डोनेट कर सकते हैं. यानी कि 14 दिन बाद दो और जान बचा सकते हैं. यह तो हो गए डोनर. पेशेंट वे लोग हैं जो किसी हॉस्पिटल के किसी वार्ड में कोविड-19 का इलाज करा रहे हैं या आईसीयू में है और ऑक्सीजन सपोर्ट पर हैं. जो गंभीर कोविड-19 इन्फेक्शन के शिकार हैं. जो डॉक्टर इन मरीजों का इलाज करते हैं वहीं प्लाज्मा थेरेपी के लिए एडवाइस कर सकते हैं ताकि उनकी जान बचाई जा सके.


बेड ट्रैकर ऐप बना चुकी है ये टीम

उन्होंने बताया कि इस ऐप को बनाने में आईआईटी दिल्ली के कुछ स्टूडेंट ने हमारी मदद की है. हमने उन्हें अपना आइडिया और डाटा शेयर किए और उन्होंने अपने तकनीकी ज्ञान का इस्तेमाल किया. इस ऐप को बनाने वाले आईआईटी दिल्ली के वही स्टूडेंट हैं जिन्होंने अभी हाल ही में दिल्ली सरकार के लिए भी बेड ट्रैकिंग ऐप बनाया है.

नई दिल्ली: दिल्ली में कोरोना का कहर थमने का नाम नहीं ले रहा है. वहीं प्लाज्मा थेरेपी के रूप में एक उम्मीद की किरण तो दिखी है, लेकिन डोनर की समस्या इसे दुर्लभ बना रही है. समस्या को लेकर अपने-अपने क्षेत्र में देश के दो दिग्गज संस्थानों के बेस्ट ब्रेन ने इस समस्या का समाधान ढूंढ निकाला है.

एम्स के न्यूरो सर्जरी डिपार्टमेंट के एक स्टूडेंट का आइडिया और आईआईटी दिल्ली के कंप्यूटर साइंस की तीसरे साल की स्टूडेंट के तकनीकी ज्ञान ने कोपल 19 ऐप को जन्म दिया जो कोविड पेशेंट को पॉसिबल प्लाज्मा डोनर से कनेक्ट करता है.

कोपल-19 ऐप का हुआ अविष्कार

आईआईटी दिल्ली में कंप्यूटर साइंस की थर्ड ईयर की स्टूडेंट काशिका प्रजापत ने एम्स के न्यूरो सर्जरी विभाग के डॉक्टर अभिनव के साथ मिलकर कोविड मरीजों के लिए एक ऐप बनाया है. आईआईटी दिल्ली की कंप्यूटर साइंस की थर्ड ईयर की स्टूडेंट काशिका प्रजापत ने बताया कि कोविड-19 एक महामारी का रूप ले चुका है. कुछ पेशेंट को कोविड-19 के ट्रीटमेंट के लिए प्लाजमा थेरेपी की जरूरत पड़ती है लेकिन उनके लिए सबसे बड़ी दिक्कत है प्लाज्मा डोनर तक पहुंचना.

इस प्रॉब्लम को सॉल्व करने के लिए हमने एक ऐप बनाया है. इसका नाम कोपल 19 ऐप रखा है. यह अभी सिर्फ दिल्ली एम्स में ही उपलब्ध है. जिन पेशेंट को प्लाज्मा की जरूरत होती है वह अपनी डिटेल के साथ इस ऐप में साइन इन कर सकते हैं. उनको हम दोनों से कनेक्ट करवा देंगे. सही मायने में यह मरीज और डोनर के बीच एक ब्रिज की तरह काम करता है.

फिलहाल यह सुविधा एम्स दिल्ली के लिए ही उपलब्ध है. जो लोग दिल्ली के एम्स में कोविड-19 का ट्रीटमेंट करवा कर स्वस्थ होकर लौट चुके हैं. उनको कॉल करके उनसे पूछ रहे हैं कि क्या वह अपना प्लाज्मा डोनेट करना चाहेंगे. आगे चलकर हम उम्मीद करते हैं कि लोग खुद ब खुद इस ऐप के जरिए अपने आप को रजिस्टर्ड करेंगे और जरूरतमंद लोगों की मदद करेंगे.


कैसे काम करता है ऐप

काशिका ने बताया कि एक बार जब हमारे पास डोनर की लिस्ट आ जाती है तब हम उसे ऐप पर डाल देते हैं. यहां पर सारे डोनर्स की पहचान वेरीफाई की जाती है. जब मरीज को इस पर लॉग इन करना होता है तब हम मरीजों से उनका नाम, पता, फोन नंबर डॉक्टर के डाक्यूमेंट्स, उनका प्रिसक्रिप्शन जिसमें उन्होंने पेशेंट को प्लाज्मा थेरेपी के लिए एडवाइस किया है. उनके आधार कार्ड यह सब कुछ मांगते हैं. ऐसा वेरिफिकेशन के लिए किया जाता है ताकि इसमें किसी तरह का फ्रॉड ना हो सके. इस तरह से यह एप पेशेंट को डोनर से कनेक्ट करता है.


सोशल मीडिया के जरिए दी जाएगी जानकारी

काशिका बताती हैं कि इस ऐप के माध्यम से बहुत सारी जानें बचाई जा सकती है. हम उम्मीद करते हैं कि आने वाले दिनों में इसे पूरे देश में लागू किया जाएगा. ऐप का बेसिक वर्जन फेसबुक पर डालने के लिए अप्लाई कर दिया है. उम्मीद है दो-तीन दिन में हो जाएगा. उसके बाद हम अपने कोपल 19 ऐप को सोशल मीडिया के जरिए लोगों तक पहुंचाएंगे.


ऐप की आर्टिफिशल इंटेलिजेंट बढ़ाएंगे

काशिका ने बताया कि आगे चलकर इस ऐप में और भी सारे फीचर जोड़ें जाएंगे. साथ ही इसमें और आर्टिफिशल इंटेलिजेंट जोड़े जाएंगे. रियल टाइम में किसी के लिए कोई डोनर बिल्कुल तैयार मिलेगा या नहीं, इसका पता लगाया जा सकता है.


ऐप का इस्तेमाल करना आसान

एम्स के न्यूरो सर्जरी डिपार्टमेंट के डॉक्टर अभिनव बताते हैं कि अभी डॉक्टर्स डे पर कोपल 19 ऐप लॉन्च किया है. इस ऐप का इस्तेमाल करना बहुत ही आसान है. इसका इस्तेमाल सिर्फ दो लोग कर सकते हैं. एक पेशेंट और दूसरा डोनर. डोनर वह हैं जो कोविड-19 इन्फेक्शन से पूरी तरह से ठीक हो चुके हैं और साथ ही 28 दिन की आवश्यक एकांतवास पूरा कर चुके हैं. ये लोग स्वास्थ्य और दूसरे लोगों की जान बचाने में मदद कर सकते हैं.


हर 14 दिन पर कर सकते हैं प्लाज्मा डोनेट


डॉ. अभिनव बताते हैं कि कोविड 19 को हराकर ठीक हुए मरीज हर 14 दिन में अपना प्लाज्मा डोनेट कर सकते हैं. यानी कि 14 दिन बाद दो और जान बचा सकते हैं. यह तो हो गए डोनर. पेशेंट वे लोग हैं जो किसी हॉस्पिटल के किसी वार्ड में कोविड-19 का इलाज करा रहे हैं या आईसीयू में है और ऑक्सीजन सपोर्ट पर हैं. जो गंभीर कोविड-19 इन्फेक्शन के शिकार हैं. जो डॉक्टर इन मरीजों का इलाज करते हैं वहीं प्लाज्मा थेरेपी के लिए एडवाइस कर सकते हैं ताकि उनकी जान बचाई जा सके.


बेड ट्रैकर ऐप बना चुकी है ये टीम

उन्होंने बताया कि इस ऐप को बनाने में आईआईटी दिल्ली के कुछ स्टूडेंट ने हमारी मदद की है. हमने उन्हें अपना आइडिया और डाटा शेयर किए और उन्होंने अपने तकनीकी ज्ञान का इस्तेमाल किया. इस ऐप को बनाने वाले आईआईटी दिल्ली के वही स्टूडेंट हैं जिन्होंने अभी हाल ही में दिल्ली सरकार के लिए भी बेड ट्रैकिंग ऐप बनाया है.

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