ETV Bharat / city

आज के दिन ही लागू हुई थीं मंडल आयोग की सिफारिशें, जानें क्या आए बदलाव

आज यानी 7 अगस्त को आज़ादी के जश्न से महज 8 दिन पहले मंडल आयोग की सिफारिशों को लागू किया गया था. मंडल कमीशन का गठन साल 1979 में मोरारजी देसाई की सरकार द्वारा किया गया था.

मंडल आयोग
मंडल आयोग
author img

By

Published : Aug 7, 2021, 7:16 PM IST

Updated : Aug 7, 2021, 7:27 PM IST

नई दिल्ली: आज यानी 7 अगस्त को आज़ादी के जश्न से महज 8 दिन पहले मंडल आयोग की सिफारिशों को लागू किया गया था. समाज में बराबरी लाने की एवज में साल 1990 में तत्कालीन प्रधानमंत्री वीपी सिंह की अगुवाई वाली केंद्र सरकार ने इसे लागू करने की अधिसूचना जारी की थी. इसी के बाद से देशभर में इसे लेकर विरोध भी हुए लेकिन आज 31 साल बाद जबकि ये सिफ़ारिशें लागू हैं, समाज में कितना बदलाव आया है. ये चर्चा का विषय ज़रूर है लेकिन इससे पहले आइए जानते हैं क्या था मंडल आयोग और क्या थे उसके सुझाव...


दरअसल, मंडल कमीशन का गठन साल 1979 में मोरारजी देसाई की सरकार द्वारा किया गया था. इसकी अगुवाई बिहार के साथ में मुख्यमंत्री बिंदेश्वरी नारायण मंडल कर रहे थे. कहां जाता है कि मंडल आयोग ने समाज में अलग-अलग जातियों के लोगों को आरक्षण के सूत्र में बांधने के लिए साल 1931 की जनगणना को आधार बनाया. इसमें अलग-अलग वर्ग के लोगों को उनकी संख्या के आधार पर मेजॉरिटी और माइनॉरिटी में रख आरक्षण की नींव रखी.

आज के दिन ही लागू हुई थीं मंडल आयोग की सिफारिशें,
साल 1980 में मंडल आयोग ने तत्कालीन गृहमंत्री ज्ञानी जैल सिंह को रिपोर्ट सौंपी थी इसमें अन्य पिछड़े वर्गों को 27 फ़ीसदी आरक्षण दिए जाने की सिफारिश की गई थी. वहीं साल 1982 में आरक्षण पर मंडल कमीशन की रिपोर्ट को संसद में पेश किया गया था. अनुसूचित जाति जनजाति को पहले ही 22.5% आरक्षण हासिल था और इस 27 फ़ीसदी आरक्षण के बाद देश में लगभग 49.5 फ़ीसदी सरकारी नौकरियां आरक्षित वर्ग के कोटे में चली जानी थी. बस यही बात देश में लोगों को गवारा नहीं थी. साल 1990 में वीपी सिंह की अगुवाई वाली सरकार ने जब इस आयोग की सिफारिशों को लागू किया तो विरोध की लपटें कुछ ऐसी उठी कि देश में कई जगहों पर लोगों ने अपनी जान गवाई. दिल्ली के संसद मार्ग पर राजीव गोस्वामी नाम के एक छात्र ने खुद को आग लगा ली थी. उसी दौरान एक और छात्र सुरेंद्र सिंह चौहान ने आत्महत्या कर ली थी. देश के अन्य हिस्सों से भी छात्रों के विरोध के स्वर तेज हुए लेकिन सरकार ने अपना फैसला नहीं बदला. साल 1991 में नरसिंह राव सरकार ने सामाजिक और शैक्षणिक रूप से पिछड़े वर्गों की पहचान की आरक्षण की सीमा बढ़ाकर 59.5% करने का फैसला किया गया जिसमें ऊंची जातियों के अति पिछड़ों को भी आरक्षण देने का प्रावधान किया गया. साल 1992 में सुप्रीम कोर्ट ने ऐतिहासिक फैसले में मंडल आयोग की सिफारिशों को लागू करने के फैसले को वैध ठहराया, साथ ही आरक्षण की अधिकतम सीमा 50% रखने और पिछड़ी जातियों के उच्च तबके को इस सुविधा से अलग रखने का निर्देश दिया.आज जबकि मंडल आयोग की सिफारिशों को लागू हुए 31 साल का समय हो गया है तब आरक्षण के मापदंडों पर सवाल उठते रहते हैं. एक धड़े में अब भी आरक्षण को लेकर नाराज़गी है. ऐसे में ये चर्चा होने ज़रूरी है कि मंडल आयोग की सिफारिशों के बाद आरक्षण से क्या समाज में पिछडो की दशा बदल रही है. बराबरी का मुकाम हासिल करने में हम समाज के तौर पर कितना आगे आ गए हैं.

नई दिल्ली: आज यानी 7 अगस्त को आज़ादी के जश्न से महज 8 दिन पहले मंडल आयोग की सिफारिशों को लागू किया गया था. समाज में बराबरी लाने की एवज में साल 1990 में तत्कालीन प्रधानमंत्री वीपी सिंह की अगुवाई वाली केंद्र सरकार ने इसे लागू करने की अधिसूचना जारी की थी. इसी के बाद से देशभर में इसे लेकर विरोध भी हुए लेकिन आज 31 साल बाद जबकि ये सिफ़ारिशें लागू हैं, समाज में कितना बदलाव आया है. ये चर्चा का विषय ज़रूर है लेकिन इससे पहले आइए जानते हैं क्या था मंडल आयोग और क्या थे उसके सुझाव...


दरअसल, मंडल कमीशन का गठन साल 1979 में मोरारजी देसाई की सरकार द्वारा किया गया था. इसकी अगुवाई बिहार के साथ में मुख्यमंत्री बिंदेश्वरी नारायण मंडल कर रहे थे. कहां जाता है कि मंडल आयोग ने समाज में अलग-अलग जातियों के लोगों को आरक्षण के सूत्र में बांधने के लिए साल 1931 की जनगणना को आधार बनाया. इसमें अलग-अलग वर्ग के लोगों को उनकी संख्या के आधार पर मेजॉरिटी और माइनॉरिटी में रख आरक्षण की नींव रखी.

आज के दिन ही लागू हुई थीं मंडल आयोग की सिफारिशें,
साल 1980 में मंडल आयोग ने तत्कालीन गृहमंत्री ज्ञानी जैल सिंह को रिपोर्ट सौंपी थी इसमें अन्य पिछड़े वर्गों को 27 फ़ीसदी आरक्षण दिए जाने की सिफारिश की गई थी. वहीं साल 1982 में आरक्षण पर मंडल कमीशन की रिपोर्ट को संसद में पेश किया गया था. अनुसूचित जाति जनजाति को पहले ही 22.5% आरक्षण हासिल था और इस 27 फ़ीसदी आरक्षण के बाद देश में लगभग 49.5 फ़ीसदी सरकारी नौकरियां आरक्षित वर्ग के कोटे में चली जानी थी. बस यही बात देश में लोगों को गवारा नहीं थी. साल 1990 में वीपी सिंह की अगुवाई वाली सरकार ने जब इस आयोग की सिफारिशों को लागू किया तो विरोध की लपटें कुछ ऐसी उठी कि देश में कई जगहों पर लोगों ने अपनी जान गवाई. दिल्ली के संसद मार्ग पर राजीव गोस्वामी नाम के एक छात्र ने खुद को आग लगा ली थी. उसी दौरान एक और छात्र सुरेंद्र सिंह चौहान ने आत्महत्या कर ली थी. देश के अन्य हिस्सों से भी छात्रों के विरोध के स्वर तेज हुए लेकिन सरकार ने अपना फैसला नहीं बदला. साल 1991 में नरसिंह राव सरकार ने सामाजिक और शैक्षणिक रूप से पिछड़े वर्गों की पहचान की आरक्षण की सीमा बढ़ाकर 59.5% करने का फैसला किया गया जिसमें ऊंची जातियों के अति पिछड़ों को भी आरक्षण देने का प्रावधान किया गया. साल 1992 में सुप्रीम कोर्ट ने ऐतिहासिक फैसले में मंडल आयोग की सिफारिशों को लागू करने के फैसले को वैध ठहराया, साथ ही आरक्षण की अधिकतम सीमा 50% रखने और पिछड़ी जातियों के उच्च तबके को इस सुविधा से अलग रखने का निर्देश दिया.आज जबकि मंडल आयोग की सिफारिशों को लागू हुए 31 साल का समय हो गया है तब आरक्षण के मापदंडों पर सवाल उठते रहते हैं. एक धड़े में अब भी आरक्षण को लेकर नाराज़गी है. ऐसे में ये चर्चा होने ज़रूरी है कि मंडल आयोग की सिफारिशों के बाद आरक्षण से क्या समाज में पिछडो की दशा बदल रही है. बराबरी का मुकाम हासिल करने में हम समाज के तौर पर कितना आगे आ गए हैं.
Last Updated : Aug 7, 2021, 7:27 PM IST
ETV Bharat Logo

Copyright © 2024 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.