नई दिल्ली : रूस और यूक्रेन के बीच युद्ध छिड़े एक साल से भी ज्यादा का समय हो गया है. युद्ध शुरू होने के साथ ही जहां ज्यादातर देशों ने रूस से व्यापार नाता तोड़ लिया था तो वहीं, भारत रूस से क्रूड ऑयल आयात करने लगा. ओपेक देशों की तुलना में रूस भारत को सस्ते में कच्चा तेल बेच रहा था. आलम यह है कि यह जून माह में अपने सबसे नीचले स्तर पर आ गया है. ओपेक, 14 प्रमुख तेल उत्पादक देशों का एक अंतर-सरकारी संगठन है जो एक साथ दुनिया के कच्चे तेल का लगभग 40 प्रतिशत उत्पादन करता है.
भारत के वाणिज्य और उद्योग मंत्रालय के नवीनतम आंकड़ों के अनुसार, माल ढुलाई लागत सहित प्रत्येक बैरल की कीमत $68.17 (भारतीय करेंसी अनुसार 5,640.87) है, जो मई में $70.17 (भारतीय करेंसी अनुसार 5,806.36) और एक साल पहले $100.48 (8,315.28 रुपये) से कम है. हालांकि यह पश्चिमी देशों द्वारा मॉस्को पर लगाई गई $60 (4,965.34 रुपये) की सीमा से अधिक है, लेकिन इस सीमा में शिपिंग शामिल नहीं है.
रसिया-यूक्रेन वॉर के दौरान चीन समेत दुनिया के कई देश रूस से सस्ते में कच्चा तेल आयात कर रहे हैं. भारत भी इन देशों में से एक बन गया है. लेकिन हालिया समय में केप्लर के डेटा से पता चलता है कि पिछले दो महीनों में भारतीय आयात में गिरावट आई है. जिसके अगस्त माह में और गिरावट आने की उम्मीद है. क्योंकि ओपेक+ निर्माता निर्यात में कटौती करने का प्लान बना रहे हैं. हालांकि, एनालिटिक्स फर्म के अनुसार फिर से अक्टूबर माह में दक्षिण एशियाई देशों के शिपमेंट में तेजी बढ़ेगी.
सरकारी आंकड़ों के मुताबिक, जून में इराक से आयात औसतन 67.10 डॉलर प्रति बैरल था, जबकि सऊदी अरब से आयात इससे कहीं अधिक 81.78 डॉलर प्रति बैरल था. भारत अपनी 88 फीसदी तेल मांग की जरूरतों को पूरा करने के लिए आयात पर निर्भर है. भारत के तेल मंत्री हरदीप सिंह पुरी ने शुक्रवार को रूसी कच्चे तेल आयात पर ज्यादा विस्तार ने न कहते हुए सिर्फ इतना ही कहा कि रूस ने कच्चे तेल के आयात पर छूट कम कर दी है. वहीं, दूसरी तरफ जब से रूस और सऊदी अरब से निर्यात पर अंकुश लगाने की घोषणा की है तब से वैश्विक स्तर पर कच्चे तेल की कीमतों में इजाफा देखा जा रहा है.