ETV Bharat / business

Foreign Investors ने FY23 में भारतीय शेयर बाजार से निकाले करोड़ों रुपये, जानें क्या रही वजह

एफपीआई का भारतीय शेयर बाजार से निकासी लगातार दो साल से जारी है. पिछले वित्त वर्ष भी FPI ने 37,631 करोड़ रुपये निकाले. इस निकासी का क्या कारण रहा और मार्केट एक्सपर्ट्स चालू वित्त वर्ष के लिए क्या अनुमान लगा रहे हैं, जानने के लिए पढ़ें पूरी खबर...

Foreign Investors
भारतीय शेयर बाजार से एफपीआई निकासी
author img

By

Published : Apr 9, 2023, 4:11 PM IST

नई दिल्ली : विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों (एफपीआई) का भारतीय शेयर बाजार से निकासी का सिलसिला बीते वित्त वर्ष (2022-23) में भी जारी रहा. वैश्विक स्तर पर केंद्रीय बैंकों द्वारा ब्याज दरों में आक्रामक तरीके से बढ़ोतरी के बीच बीते वित्त वर्ष में एफपीआई ने 37,631 करोड़ रुपये की शुद्ध बिकवाली की. इससे पहले 2021-22 में एफपीआई ने भारतीय शेयर बाजार से रिकॉर्ड निकासी की थी. शेयरों के अलावा एफपीआई ने बीते वित्त वर्ष में ऋण या बॉन्ड बाजार से भी 8,938 करोड़ रुपये निकाले. इससे पहले 2021-22 में उन्होंने बॉन्ड बाजार में 1,628 करोड़ रुपये डाले थे.

चालू वित्त वर्ष के लिए उम्मीद अच्छी : जियोजीत फाइनेंशियल सर्विसेज के मुख्य निवेश रणनीतिकार वी के विजयकुमार ने कहा कि चालू वित्त वर्ष में एफपीआई का निकासी का रुख पलटने की उम्मीद है, क्योंकि भारत में 2023-24 में वृद्धि की सबसे अच्छी संभावना है. बाजार विश्लेषकों का मानना ​​है कि चालू वित्त वर्ष में एफपीआई प्रवाह कई कारकों मसलन अमेरिकी फेडरल रिजर्व के नीतिगत रुख, तेल की कीमतों में उतार-चढ़ाव और भू-राजनीतिक घटनाक्रमों पर निर्भर करेगा.

1993 से एफपीआई निवेश शुरू : विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों ने 1993 में भारतीय शेयर बाजार में निवेश करना शुरू किया था. उसके बाद से यह पहला मौका है जबकि एफपीआई लगातार दो वित्त वर्षों के दौरान शुद्ध बिकवाल रहे हैं. वित्त वर्ष 2021-22 में उन्होंने 1.4 लाख करोड़ रुपये के शेयर बेचे थे. डिपॉजिटरी के आंकड़ों के अनुसार, वित्त वर्ष 2022-23 में उनकी निकासी की रफ्तार धीमी होकर 37,632 करोड़ रुपये रही है. इससे पहले 2020-21 में एफपीआई ने शेयरों में रिकॉर्ड 2.7 लाख करोड़ रुपये का निवेश किया था. 2019-20 में उनका निवेश 6,152 करोड़ रुपये रहा था.

ब्याज दर में बढ़ोत्तरी से निकासी शुरू : वित्त वर्ष 2022-23 में ज्यादातर प्रमुख केंद्रीय बैंकों ने ब्याज दर में बढ़ोतरी का सिलसिला शुरू कर दिया, जिससे भारत और अन्य उभरते बाजारों से पैसा निकलना शुरू हुआ. इसके चलते ज्यादातर अर्थव्यवस्थाओं में मुद्रास्फीति में अभूतपूर्व वृद्धि हुई. वैश्विक स्तर पर मौद्रिक रुख में सख्ती, कच्चे तेल की कीमतों में उतार-चढ़ाव, जिंसों के ऊंचे दाम और रूस-यूक्रेन संघर्ष के कारण विदेशी पूंजी की निकासी हुई.

एफपीआई निकासी के अन्य कारक : मॉर्निंगस्टार इंडिया के एसोसिएट निदेशक-प्रबंधक शोध हिमांशु श्रीवास्तव ने कहा कि घरेलू मोर्चे पर भी परिदृश्य उत्साहजनक नहीं है. बढ़ती महंगाई चिंता का कारण बनी हुई है और इसे काबू में करने के लिए रिजर्व बैंक ने भी दरों में बढ़ोतरी की है, जिससे घरेलू अर्थव्यवस्था की वृद्धि की संभावनाएं प्रभावित होंगी. उन्होंने कहा कि एक अन्य महत्वपूर्ण पहलू जिसके कारण घरेलू शेयर बाजारों से निकासी हुई, वह अन्य संबंधित बाजारों की तुलना में इसका ऊंचा मूल्यांकन है.
(पीटीआई- भाषा)

पढ़ें : Economic Survey 2023 : वैश्विक आर्थिक कारकों, विकसित देशों में मंदी की आशंका से एफपीआई ने बिकवाली की

नई दिल्ली : विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों (एफपीआई) का भारतीय शेयर बाजार से निकासी का सिलसिला बीते वित्त वर्ष (2022-23) में भी जारी रहा. वैश्विक स्तर पर केंद्रीय बैंकों द्वारा ब्याज दरों में आक्रामक तरीके से बढ़ोतरी के बीच बीते वित्त वर्ष में एफपीआई ने 37,631 करोड़ रुपये की शुद्ध बिकवाली की. इससे पहले 2021-22 में एफपीआई ने भारतीय शेयर बाजार से रिकॉर्ड निकासी की थी. शेयरों के अलावा एफपीआई ने बीते वित्त वर्ष में ऋण या बॉन्ड बाजार से भी 8,938 करोड़ रुपये निकाले. इससे पहले 2021-22 में उन्होंने बॉन्ड बाजार में 1,628 करोड़ रुपये डाले थे.

चालू वित्त वर्ष के लिए उम्मीद अच्छी : जियोजीत फाइनेंशियल सर्विसेज के मुख्य निवेश रणनीतिकार वी के विजयकुमार ने कहा कि चालू वित्त वर्ष में एफपीआई का निकासी का रुख पलटने की उम्मीद है, क्योंकि भारत में 2023-24 में वृद्धि की सबसे अच्छी संभावना है. बाजार विश्लेषकों का मानना ​​है कि चालू वित्त वर्ष में एफपीआई प्रवाह कई कारकों मसलन अमेरिकी फेडरल रिजर्व के नीतिगत रुख, तेल की कीमतों में उतार-चढ़ाव और भू-राजनीतिक घटनाक्रमों पर निर्भर करेगा.

1993 से एफपीआई निवेश शुरू : विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों ने 1993 में भारतीय शेयर बाजार में निवेश करना शुरू किया था. उसके बाद से यह पहला मौका है जबकि एफपीआई लगातार दो वित्त वर्षों के दौरान शुद्ध बिकवाल रहे हैं. वित्त वर्ष 2021-22 में उन्होंने 1.4 लाख करोड़ रुपये के शेयर बेचे थे. डिपॉजिटरी के आंकड़ों के अनुसार, वित्त वर्ष 2022-23 में उनकी निकासी की रफ्तार धीमी होकर 37,632 करोड़ रुपये रही है. इससे पहले 2020-21 में एफपीआई ने शेयरों में रिकॉर्ड 2.7 लाख करोड़ रुपये का निवेश किया था. 2019-20 में उनका निवेश 6,152 करोड़ रुपये रहा था.

ब्याज दर में बढ़ोत्तरी से निकासी शुरू : वित्त वर्ष 2022-23 में ज्यादातर प्रमुख केंद्रीय बैंकों ने ब्याज दर में बढ़ोतरी का सिलसिला शुरू कर दिया, जिससे भारत और अन्य उभरते बाजारों से पैसा निकलना शुरू हुआ. इसके चलते ज्यादातर अर्थव्यवस्थाओं में मुद्रास्फीति में अभूतपूर्व वृद्धि हुई. वैश्विक स्तर पर मौद्रिक रुख में सख्ती, कच्चे तेल की कीमतों में उतार-चढ़ाव, जिंसों के ऊंचे दाम और रूस-यूक्रेन संघर्ष के कारण विदेशी पूंजी की निकासी हुई.

एफपीआई निकासी के अन्य कारक : मॉर्निंगस्टार इंडिया के एसोसिएट निदेशक-प्रबंधक शोध हिमांशु श्रीवास्तव ने कहा कि घरेलू मोर्चे पर भी परिदृश्य उत्साहजनक नहीं है. बढ़ती महंगाई चिंता का कारण बनी हुई है और इसे काबू में करने के लिए रिजर्व बैंक ने भी दरों में बढ़ोतरी की है, जिससे घरेलू अर्थव्यवस्था की वृद्धि की संभावनाएं प्रभावित होंगी. उन्होंने कहा कि एक अन्य महत्वपूर्ण पहलू जिसके कारण घरेलू शेयर बाजारों से निकासी हुई, वह अन्य संबंधित बाजारों की तुलना में इसका ऊंचा मूल्यांकन है.
(पीटीआई- भाषा)

पढ़ें : Economic Survey 2023 : वैश्विक आर्थिक कारकों, विकसित देशों में मंदी की आशंका से एफपीआई ने बिकवाली की

ETV Bharat Logo

Copyright © 2024 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.