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बैंकों का जीएनपीए मार्च 2022 तक 10 लाख करोड़ के पार, आईबीसी में सुधार की गुंजाइश

एसोचैम-क्रिसिल के संयुक्त अध्ययन में कहा गया है कि मार्च 2022 तक बैंकों की सकल गैर-निष्पादित संपत्ति (जीएनपीए) 10 लाख करोड़ रुपये को पार करने की उम्मीद है. एसोसिएटेड चैंबर्स ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्री ऑफ इंडिया (एसोचैम) द्वारा संयुक्त रूप से किए गए अध्ययन के अनुसार कुछ पुनर्रचित संपत्तियों के अलावा खुदरा, सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम (एमएसएमई) खातों में फिसलन है.

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Published : Sep 14, 2021, 3:48 PM IST

नई दिल्ली : इनसॉल्वेंसी एंड बैंकरप्सी कोड (IBC) की प्रभावशीलता का परीक्षण NPA में संभावित स्पाइक द्वारा मार्च 2021 में समाप्त एक वर्ष के लिए नए इन्सॉल्वेंसी मामलों की शुरुआत पर ठहराव के रूप में किया जाएगा और अधिकांश महामारी-प्रेरित नीतियों या उपायों की संभावना नहीं है.

अध्ययन में कहा गया है कि इस वित्तीय वर्ष में बैंकों और गैर-बैंकों दोनों के जीएनपीए में अपेक्षित वृद्धि महामारी के कारण विभिन्न मार्गों के माध्यम से समाधान के लिए संपत्ति बाजार के खिलाड़ियों के लिए एक अवसर प्रदान करेगी. इसमें कहा गया है कि बैंकों के जीएनपीए मार्च 2018 में देखे गए शिखर से कम हो गए हैं और मार्च 2021 की तुलना में मार्च 2020 तक कम थे. जिसमें छह- मासिक ऋण अधिस्थगन, आपातकालीन क्रेडिट लाइन गारंटी योजना (ईसीएलजीएस) ऋण और पुनर्गठन उपाय शामिल थे.

वहीं रिजर्व बैंक के गवर्नर शक्तिकांत दास ने कहा कि बैंकों की दबाव वाली संपत्तियों की स्थिति अब प्रबंधन के दायरे में दिख रही है. उन्होंने कहा कि महामारी की दूसरी लहर के बावजूद सकल गैर-निष्पादित आस्तियों (एनपीए) की स्थिति स्थिर रही है. दास ने एक सम्मेलन को संबोधित करते हुए कहा कि बैंकिंग प्रणाली का सकल एनपीए (जीएनपीए) 7.5 प्रतिशत पर है. वहीं गैर-बैंक ऋणदाताओं के मामले में यह और कम है.

मार्च तक बैंकिंग तंत्र का जीएनपीए 7.48 प्रतिशत पर था. यह किस्तों के भुगतान पर रोक की अवधि के बाद बैंकों के लिए पहली तिमाही थी. दास ने कहा कि अभी तक हमारे पास जो आंकड़े हैं उसके हिसाब से एनपीए का स्तर प्रबंधन के दायरे में है. आखिरी आंकड़ा जून के अंत में आया है. बैंकिंग क्षेत्र के लिए एनपीए 7.5 प्रतिशत है जबकि गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों (एनबीएफसी) के लिए यह और कम है.

उन्होंने कहा कि बैंकों का पूंजी बफर 16 प्रतिशत से अधिक है. वहीं एनबीएफसी के लिए यह 25 प्रतिशत है. यह नियामकीय जरूरत से कहीं अधिक है. इससे दबाव से निपटने में मदद मिलेगी. इस बीच, दिवाला एवं ऋणशोधन अक्षमता संहिता (आईबीसी) के तहत समाधान में ऋणदाताओं को हो रहे ऊंचे नुकसान पर गवर्नर ने कहा कि आईबीसी प्रक्रिया में कुछ सुधार की गुंजाइश है.

यह भी पढ़ें-अगस्त में थोक मूल्य सूचकांक मुद्रास्फीति बढ़कर 11.39 प्रतिशत पर पहुंची, खाद्य कीमतों में नरमी

इसमें कुछ विधायी बदलाव भी शामिल हैं. उन्होंने कहा कि मैं इस बात से सहमत हूं कि आईबीसी के कामकाज में सुधार की गुंजाइश है. संभवत: कुछ विधायी संशोधनों की जरूरत है.

नई दिल्ली : इनसॉल्वेंसी एंड बैंकरप्सी कोड (IBC) की प्रभावशीलता का परीक्षण NPA में संभावित स्पाइक द्वारा मार्च 2021 में समाप्त एक वर्ष के लिए नए इन्सॉल्वेंसी मामलों की शुरुआत पर ठहराव के रूप में किया जाएगा और अधिकांश महामारी-प्रेरित नीतियों या उपायों की संभावना नहीं है.

अध्ययन में कहा गया है कि इस वित्तीय वर्ष में बैंकों और गैर-बैंकों दोनों के जीएनपीए में अपेक्षित वृद्धि महामारी के कारण विभिन्न मार्गों के माध्यम से समाधान के लिए संपत्ति बाजार के खिलाड़ियों के लिए एक अवसर प्रदान करेगी. इसमें कहा गया है कि बैंकों के जीएनपीए मार्च 2018 में देखे गए शिखर से कम हो गए हैं और मार्च 2021 की तुलना में मार्च 2020 तक कम थे. जिसमें छह- मासिक ऋण अधिस्थगन, आपातकालीन क्रेडिट लाइन गारंटी योजना (ईसीएलजीएस) ऋण और पुनर्गठन उपाय शामिल थे.

वहीं रिजर्व बैंक के गवर्नर शक्तिकांत दास ने कहा कि बैंकों की दबाव वाली संपत्तियों की स्थिति अब प्रबंधन के दायरे में दिख रही है. उन्होंने कहा कि महामारी की दूसरी लहर के बावजूद सकल गैर-निष्पादित आस्तियों (एनपीए) की स्थिति स्थिर रही है. दास ने एक सम्मेलन को संबोधित करते हुए कहा कि बैंकिंग प्रणाली का सकल एनपीए (जीएनपीए) 7.5 प्रतिशत पर है. वहीं गैर-बैंक ऋणदाताओं के मामले में यह और कम है.

मार्च तक बैंकिंग तंत्र का जीएनपीए 7.48 प्रतिशत पर था. यह किस्तों के भुगतान पर रोक की अवधि के बाद बैंकों के लिए पहली तिमाही थी. दास ने कहा कि अभी तक हमारे पास जो आंकड़े हैं उसके हिसाब से एनपीए का स्तर प्रबंधन के दायरे में है. आखिरी आंकड़ा जून के अंत में आया है. बैंकिंग क्षेत्र के लिए एनपीए 7.5 प्रतिशत है जबकि गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों (एनबीएफसी) के लिए यह और कम है.

उन्होंने कहा कि बैंकों का पूंजी बफर 16 प्रतिशत से अधिक है. वहीं एनबीएफसी के लिए यह 25 प्रतिशत है. यह नियामकीय जरूरत से कहीं अधिक है. इससे दबाव से निपटने में मदद मिलेगी. इस बीच, दिवाला एवं ऋणशोधन अक्षमता संहिता (आईबीसी) के तहत समाधान में ऋणदाताओं को हो रहे ऊंचे नुकसान पर गवर्नर ने कहा कि आईबीसी प्रक्रिया में कुछ सुधार की गुंजाइश है.

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इसमें कुछ विधायी बदलाव भी शामिल हैं. उन्होंने कहा कि मैं इस बात से सहमत हूं कि आईबीसी के कामकाज में सुधार की गुंजाइश है. संभवत: कुछ विधायी संशोधनों की जरूरत है.

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