नई दिल्ली: देश में ई-कचरा क्षेत्र में 2025 तक 4,50,000 प्रत्यक्ष रोजगार पैदा करने की क्षमता है. वहीं इससे जुड़े विनिर्माण और परिवहन क्षेत्र में 1,80,000 रोजगार निर्मित होने की संभावना है.
अंतरराष्ट्रीय वित्त निगम (आईएफसी) ने बुधवार को यह जानकारी दी. आईएफसी विश्वबैंक समूह का सदस्य है. वर्ष 2012 से ई-कचरा क्षेत्र में कार्य कर रहे आईएफसी ने कहा कि उसने 2017 में 'इंडिया ई-वेस्ट' कार्यक्रम की शुरुआत की. यह कार्यक्रम जिम्मेदार ई-कचरा प्रबंधन के लिए पारिस्थितिकी तंत्र विकसित करने पर केंद्रित है.
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इसके तहत नागरिकों और निगमों से 4,000 टन से अधिक ई-कचरा एकत्रित किया गया और जिम्मेदारी से उसका पुनर्चक्रण किया गया है. कार्यक्रम पूरा होने और ई-कचरा के प्रबंधन के समाधान पर चर्चा करने के लिए, आईएफसी ने बुधवार को दिल्ली में 'भारत में ई-कचरा प्रबंधन : भविष्य का रास्ता' विषय पर सम्मेलन का आयोजन किया.
इस दौरान पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय के खतरनाक पदार्थ प्रबंधन विभाग के संयुक्त निदेशक, सोनू सिंह ने कहा, "ई-कचरा क्षेत्र में देश की अर्थव्यवस्था में योगदान देने और रोजगार उत्पन्न करने की महत्वपूर्ण क्षमता है. इलेक्ट्रिकल और इलेक्ट्रॉनिक्स उद्योग सरकार के साथ सहयोग कर रही है और ई-कचरे को जिम्मेदारी से संभालने के लिए कई पहल शुरू की गयी हैं."
उन्होंने कहा, "यदि जिम्मेदारी को सरकार, उत्पादक और ई-कचरे के उपभोक्ताओं के बीच साझा किया जाता है, तो भारत में ई-कचरे का कुशल प्रबंधन सफलतापूर्वक हासिल किया जा सकता है. एक जिम्मेदार तरीके से इस क्षेत्र को विकसित करने में मदद करने के लिए आईएफसी की प्रतिबद्धता को देखकर हमें बहुत खुशी हो रही है."
भारत इलेक्ट्रॉनिक्स के लिए सबसे तेजी से बढ़ते बाजारों में से एक है और यहां मांग 2020 तक बढ़कर 400 अरब डॉलर तक पहुंचने का अनुमान है. ई-कचरा दुनिया की सबसे तेजी से बढ़ती अपशिष्ट धारा है. भारत में प्रतिवर्ष 20 लाख टन ई-कचरा पैदा होता है. इसके 2020 तक 50 लाख टन तक पहुंचने की संभावना है.