नई दिल्ली: अमेरिका का भारतीय निर्यात को उपलब्ध प्रोत्साहनों को वापस लेने का फैसला वैश्विक व्यापार नियमों का उल्लंघन है. इससे विकासशील देशों के बीच भेदभाव होगा. व्यापार विशेषज्ञों का ऐसा मानना है.
अमेरिका ने पांच जून से भारत को सामान्यीकृत तरजीही प्रणाली (जीएसपी) व्यवस्था के तहत उपलब्ध निर्यात प्रोत्साहनों को समाप्त कर दिया है. अमेरिका के इस कदम से भारत का 5.6 अरब डालर का निर्यात कारोबार प्रभावित होगा.
लक्ष्मीकुमारन एण्ड श्रीधरन के अंतरराष्ट्रीय व्यापार प्रकोष्ठ के भागीदार ध्रुव गुप्ता ने कहा कि अमेरिका के इस कदम से व्यापार पर पड़ने वाले प्रभाव को यदि अलग भी रख दिया जाये तो भी अमेरिका का भारत के खिलाफ उठाया गया यह कदम अमेरिका के विश्व व्यापार संगठन (डब्ल्यूटीओ) तहत स्वीकार दायित्वों के खिलाफ है.
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अमेरिका के इस फैसले से डब्ल्यूटीओ समझौते के उद्देश्य को झटका लगता है. समझौते में कहा गया है कि विकासशील देशों को उनके आर्थिक विकास में सहायक अंतरराष्ट्रीय व्यापार में उचित हिस्सा मिलना चाहिये. इस दिशा में सकारात्मक प्रयास किये जाने की जरूरत है.
वाणिज्य एवं उद्योग मंडल भारतीय उद्योग परिसंघ (सीआईआई) ने भी कहा है कि अमेरिका का यह फैसला जल्दबाजी में लिया गया है और इससे घरेलू निर्यातकों को नुकसान होगा. सीआईआई ने उम्मीद जताई है कि अमेरिका और भारत दोनों ही इस मुद्दे पर बातचीत करेंगे और इसका सौहार्दपूर्ण समाधान निकालेंगे.
निर्यातकों के महासंघ फियो ने भी इस मामले में कहा है कि जिन उत्पादों के निर्यात में जीएसपी का लाभ तीन प्रतिशत अथवा इससे अधिक है वहां निर्यातकों को जीएसपी के नुकसान को खपाना मुश्किल होगा.
सामान्यीकृत तरजीही व्यापार व्यवस्था के तहत भारत के रसायन और इंजीनियरिंग क्षेत्र के 1,900 के करीब भारतीय उत्पादों को अमेरिकी बाजारों में शुल्क मुक्त पहुंच का लाभ उपलब्ध था. यह व्यवस्था 1976 में शुरू हुई थी.
अमेरिका का आरोप है कि भारत उसके उत्पादों को अपने बाजारों में बराबर की पहुंच उपलब्ध नहीं करा रहा है. अमेरिका ने कुछ चिकित्सा उपकरणों के दाम की सीमा तय किये जाने को लेकर भी गंभीर चिंता जताई थी. अमेरिका अपने डेयरी उत्पादों के लिये भी भारतीय बाजारों को खोले जाने पर जोर देता रहा है.
भारत को आयात शुल्क रियायत बंद करने का अमेरिका का निर्णय डब्ल्यूटीओ नियम के खिलाफ: विशेषज्ञ
अमेरिका के इस फैसले से डब्ल्यूटीओ समझौते के उद्देश्य को झटका लगता है. समझौते में कहा गया है कि विकासशील देशों को उनके आर्थिक विकास में सहायक अंतरराष्ट्रीय व्यापार में उचित हिस्सा मिलना चाहिये. इस दिशा में सकारात्मक प्रयास किये जाने की जरूरत है.
नई दिल्ली: अमेरिका का भारतीय निर्यात को उपलब्ध प्रोत्साहनों को वापस लेने का फैसला वैश्विक व्यापार नियमों का उल्लंघन है. इससे विकासशील देशों के बीच भेदभाव होगा. व्यापार विशेषज्ञों का ऐसा मानना है.
अमेरिका ने पांच जून से भारत को सामान्यीकृत तरजीही प्रणाली (जीएसपी) व्यवस्था के तहत उपलब्ध निर्यात प्रोत्साहनों को समाप्त कर दिया है. अमेरिका के इस कदम से भारत का 5.6 अरब डालर का निर्यात कारोबार प्रभावित होगा.
लक्ष्मीकुमारन एण्ड श्रीधरन के अंतरराष्ट्रीय व्यापार प्रकोष्ठ के भागीदार ध्रुव गुप्ता ने कहा कि अमेरिका के इस कदम से व्यापार पर पड़ने वाले प्रभाव को यदि अलग भी रख दिया जाये तो भी अमेरिका का भारत के खिलाफ उठाया गया यह कदम अमेरिका के विश्व व्यापार संगठन (डब्ल्यूटीओ) तहत स्वीकार दायित्वों के खिलाफ है.
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अमेरिका के इस फैसले से डब्ल्यूटीओ समझौते के उद्देश्य को झटका लगता है. समझौते में कहा गया है कि विकासशील देशों को उनके आर्थिक विकास में सहायक अंतरराष्ट्रीय व्यापार में उचित हिस्सा मिलना चाहिये. इस दिशा में सकारात्मक प्रयास किये जाने की जरूरत है.
वाणिज्य एवं उद्योग मंडल भारतीय उद्योग परिसंघ (सीआईआई) ने भी कहा है कि अमेरिका का यह फैसला जल्दबाजी में लिया गया है और इससे घरेलू निर्यातकों को नुकसान होगा. सीआईआई ने उम्मीद जताई है कि अमेरिका और भारत दोनों ही इस मुद्दे पर बातचीत करेंगे और इसका सौहार्दपूर्ण समाधान निकालेंगे.
निर्यातकों के महासंघ फियो ने भी इस मामले में कहा है कि जिन उत्पादों के निर्यात में जीएसपी का लाभ तीन प्रतिशत अथवा इससे अधिक है वहां निर्यातकों को जीएसपी के नुकसान को खपाना मुश्किल होगा.
सामान्यीकृत तरजीही व्यापार व्यवस्था के तहत भारत के रसायन और इंजीनियरिंग क्षेत्र के 1,900 के करीब भारतीय उत्पादों को अमेरिकी बाजारों में शुल्क मुक्त पहुंच का लाभ उपलब्ध था. यह व्यवस्था 1976 में शुरू हुई थी.
अमेरिका का आरोप है कि भारत उसके उत्पादों को अपने बाजारों में बराबर की पहुंच उपलब्ध नहीं करा रहा है. अमेरिका ने कुछ चिकित्सा उपकरणों के दाम की सीमा तय किये जाने को लेकर भी गंभीर चिंता जताई थी. अमेरिका अपने डेयरी उत्पादों के लिये भी भारतीय बाजारों को खोले जाने पर जोर देता रहा है.
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नई दिल्ली: अमेरिका का भारतीय निर्यात को उपलब्ध प्रोत्साहनों को वापस लेने का फैसला वैश्विक व्यापार नियमों का उल्लंघन है. इससे विकासशील देशों के बीच भेदभाव होगा. व्यापार विशेषज्ञों का ऐसा मानना है.
अमेरिका ने पांच जून से भारत को सामान्यीकृत तरजीही प्रणाली (जीएसपी) व्यवस्था के तहत उपलब्ध निर्यात प्रोत्साहनों को समाप्त कर दिया है. अमेरिका के इस कदम से भारत का 5.6 अरब डालर का निर्यात कारोबार प्रभावित होगा.
लक्ष्मीकुमारन एण्ड श्रीधरन के अंतरराष्ट्रीय व्यापार प्रकोष्ठ के भागीदार ध्रुव गुप्ता ने कहा कि अमेरिका के इस कदम से व्यापार पर पड़ने वाले प्रभाव को यदि अलग भी रख दिया जाये तो भी अमेरिका का भारत के खिलाफ उठाया गया यह कदम अमेरिका के विश्व व्यापार संगठन (डब्ल्यूटीओ) तहत स्वीकार दायित्वों के खिलाफ है.
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अमेरिका के इस फैसले से डब्ल्यूटीओ समझौते के उद्देश्य को झटका लगता है. समझौते में कहा गया है कि विकासशील देशों को उनके आर्थिक विकास में सहायक अंतरराष्ट्रीय व्यापार में उचित हिस्सा मिलना चाहिये. इस दिशा में सकारात्मक प्रयास किये जाने की जरूरत है.
वाणिज्य एवं उद्योग मंडल भारतीय उद्योग परिसंघ (सीआईआई) ने भी कहा है कि अमेरिका का यह फैसला जल्दबाजी में लिया गया है और इससे घरेलू निर्यातकों को नुकसान होगा. सीआईआई ने उम्मीद जताई है कि अमेरिका और भारत दोनों ही इस मुद्दे पर बातचीत करेंगे और इसका सौहार्दपूर्ण समाधान निकालेंगे.
निर्यातकों के महासंघ फियो ने भी इस मामले में कहा है कि जिन उत्पादों के निर्यात में जीएसपी का लाभ तीन प्रतिशत अथवा इससे अधिक है वहां निर्यातकों को जीएसपी के नुकसान को खपाना मुश्किल होगा.
सामान्यीकृत तरजीही व्यापार व्यवस्था के तहत भारत के रसायन और इंजीनियरिंग क्षेत्र के 1,900 के करीब भारतीय उत्पादों को अमेरिकी बाजारों में शुल्क मुक्त पहुंच का लाभ उपलब्ध था. यह व्यवस्था 1976 में शुरू हुई थी.
अमेरिका का आरोप है कि भारत उसके उत्पादों को अपने बाजारों में बराबर की पहुंच उपलब्ध नहीं करा रहा है. अमेरिका ने कुछ चिकित्सा उपकरणों के दाम की सीमा तय किये जाने को लेकर भी गंभीर चिंता जताई थी. अमेरिका अपने डेयरी उत्पादों के लिये भी भारतीय बाजारों को खोले जाने पर जोर देता रहा है.
Conclusion: