नई दिल्ली: बैंकिंग उद्योग के लोगों का कहना है कि वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण और अन्य वरिष्ठ वित्त मंत्रालय के अधिकारियों द्वारा बताया गया दूसरा आर्थिक प्रोत्साहन पैकेज वास्तव में जरुरी है. प्रोत्साहन पैकेज जीडीपी के कम से कम एक प्रतिशत के बराबर होना चाहिए.
इस महीने की शुरुआत में वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने त्योहारी सीजन से पहले खपत को बढ़ावा देने के लिए कई उपायों की घोषणा की. इन योजनाओं में एलटीसी के बजाय नकद वाउचर और सरकारी कर्मचारियों के लिए प्रीपेड क्रेडिट कार्ड शामिल थे ताकि वे त्योहारी सीजन के दौरान पैसा खर्च कर सकें, जिससे मांग को बढ़ाने में मदद मिले.
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निजी क्षेत्र के शीर्ष बैंकर ने कहा, "हम वैसे भी उम्मीद कर रहे थे कि त्योहारी सीजन के आसपास एक प्रोत्साहन पैकेज आएगा लेकिन अभी तक जो कुछ हुआ है वह शायद पर्याप्त नहीं है."
बैंकर ने ईटीवी भारत से बात करते हुए कहा, "अभी तक केवल 50-60 हजार करोड़ रुपये के प्रोत्साहन की घोषणा की गई है और वह भी प्रत्यक्ष प्रोत्साहन की तरह नहीं है. यह सरकारी कर्मचारियों के खर्च पर निर्भर करता है, वे पैसा खर्च करते हैं."
एक और प्रोत्साहन पैकेज की आवश्यकता के बारे में बात करते हुए बैंकर ने ईटीवी भारत को बताया कि जीडीपी का कम से कम एक प्रतिशत प्रोत्साहन देने की आवश्यकता है.
बैंकर ने कहा, "मुझे लगता है कि निश्चित रूप से एक और प्रोत्साहन पैकेज की आवश्यकता है, हमने वित्त मंत्री से भी सुना है कि वे एक और प्रोत्साहन की घोषणा कर सकते हैं."
उद्योग मंडल सीआईआई द्वारा आयोजित एक कार्यक्रम को संबोधित करते हुए आर्थिक मामलों के सचिव तरुण बजाज ने भी एक और प्रोत्साहन पैकेज के संकेत दिए थे.
बैंक के साथ काम करने वाले एक वरिष्ठ अर्थशास्त्री ने ईटीवी भारत को बताया कि दूसरे प्रोत्साहन पैकेज का मूल्य देश के सकल घरेलू उत्पाद का एक प्रतिशत होना चाहिए ताकि अर्थव्यवस्था पर सकारात्मक प्रभाव पड़े.
बैंक के साथ काम करने वाले एक अर्थशास्त्री ने ईटीवी भारत को बताया, "हम एक लाख करोड़ या एक लाख करोड़ से अधिक या जीडीपी के एक प्रतिशत के करीब प्रोत्साहन की उम्मीद कर रहें हैं, जो करीब 1.7 लाख करोड़ रुपये से 1.8 लाख करोड़ रुपये के आसपास हो."
आत्मनिर्भर भारत पैकेज
इस साल मई में प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने पहले से ही धीमी अर्थव्यवस्था को संभालने के लिए 20 लाख करोड़ रुपये के प्रोत्साहन पैकेज की घोषणा की थी.
सरकार द्वारा घोषित आंकड़े देश के सकल घरेलू उत्पाद के 10 प्रतिशत के करीब थे लेकिन विपक्षी दलों और अर्थशास्त्रियों द्वारा इसकी आलोचना की गई क्योंकि उनका मानना था कि यह उतना नहीं है जितना सरकार दावा कर रही है.
अर्थशास्त्रीयों ने इस बात की भी आलोचना की कि अधिकांश योजनाओं का लक्ष्य कोरोना संकट के दौरान नकदी संकट का सामना करने वाले व्यवसायों को आसान लोन प्रदान करना था.
(कृष्णानन्द त्रिपाठी, वरिष्ट पत्रकार)