नई दिल्ली : रीयल एस्टेट कंपनियां इनपुट टैक्स क्रेडिट के साथ अपने आप को जीएसटी के पुराने ढांचे के तहत अपने को बनाए रखने के बारे में 10 मई तक संबंधित अधिकारियों को सूचना दे सकती हैं. अगर वे ऐसा नहीं करती हैं तो यह मान लिया जाएगा कि उन्होंने इस क्षेत्र के लिए संशोधित जीएसटी ढांचे को अपना लिया है.
जीएसटी परिषद ने रीयल एस्टेट कंपनियों को इनपुट टैक्स क्रेडिट (आईटीसी) के साथ पुरानी 12 प्रतिशत (सामान्य रिहायशी मकान) और 8 प्रतिशत (सस्ते मकान) की दर या फिर बिना इनपुट टैक्स क्रेडिट के रिहायशी मकानों के लिये 5 प्रतिशत तथा सस्ता मकानों के लिये 1.0 प्रतिशत की दर से जीएसटी अपनाने का विकल्प दिया है.
केंद्रीय अप्रत्यक्ष कर एवं सीमा शुल्क बोर्ड (सीबीआईसी) ने अधिसूचना जारी किया है और रीयल एस्टेट कंपनियों को इन दोनों कर ढांचों में से किसी एक को चुनने का मौका एक बार ही मिलेगा.
सीबीआईसी ने कहा, "मौजूदा परियोजनाओं मामले में पंजीकृत इकाई अपार्टमेंट के निर्माण पर निर्धारित दर के हिसाब से केंद्रीय कर के भुगतान को लेकर एक बार विकल्प अपनाएगी. यह विकल्प वह 10 मई 2019 तक अपना सकता है."
अगर रीयल्टी कंपनियां इस विकल्प को नहीं अपनाती हैं, वे एक अप्रैल 2019 से 5 प्रतिशत और 1.0 प्रतिशत की न्यूनतम कर की दर के अंतर्गत आएंगी तथा उन्हें इनपुट टैक्स क्रेडिट नहीं मिलेगा.
इस बीच, एक अलग अधिसूचना में सीबीआईसी ने नई दर अपनाने वाली रीयल एस्टेट कंपनियों से अपने बही-खातों को आईटीसी के संदर्भ में तैयार करने को कहा है. कंपनियों ने जरूरत से ज्यादा क्रेडिट का उपयोग करने की स्थिति में 24 किस्तों में भुगतान करने को कहा है.
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