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क्षेत्रीय व्यापक आर्थिक भागीदारी समझौता कर सकता है भारत की निर्यात प्रतिस्पर्धा को प्रभावित

टीपीसीआई ने कहा कि प्रस्तावित आरसीईपी एक वृहद मुक्त व्यापार समझौता है और इससे भारतीय बाजार में सदस्य देशों से आने वाली वस्तुओं की बाढ़ आ जाएगी. इसको देखते हुए भारतीय वार्ताकारों को सतर्क रुख के साथ आगे बढ़ने की जरूरत है.

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Published : May 21, 2019, 4:41 PM IST

क्षेत्रीय व्यापक आर्थिक भागीदारी समझौता कर सकता है भारत की निर्यात प्रतिस्पर्धा को प्रभावित

नई दिल्ली: व्यापार संतुलन के पहले से प्रतिकूल बने रहने के चलते प्रस्तावित क्षेत्रीय व्यापक आर्थिक भागीदारी (आरसीईपी) समझौता देश की निर्यात प्रतिस्पर्धा क्षमता को प्रभावित कर सकता है. भारतीय व्यापार संवर्द्धन परिषद (टीपीसीआई) ने मंगलवार को यह बात कही.

टीपीसीआई ने कहा कि प्रस्तावित आरसीईपी एक वृहद मुक्त व्यापार समझौता है और इससे भारतीय बाजार में सदस्य देशों से आने वाली वस्तुओं की बाढ़ आ जाएगी. इसको देखते हुए भारतीय वार्ताकारों को सतर्क रुख के साथ आगे बढ़ने की जरूरत है.

ये भी पढ़ें: प्रमुख बंदरगाहों पर सामानों को उतारने-चढ़ाने में अप्रैल में छह प्रतिशत का इजाफा

आरसीईपी में दक्षिण पूर्व एशियाई देशों (आसियान) के 10 सदस्य देश (ब्रुनेई, कंबोडिया, इंडोनेशिया, मलेशिया, म्यांमा, सिंगापुर, थाईलैंड, फिलीपीन, लाओस तथा वियतनाम) तथा उनके छह एफटीए भागीदार-भारत, चीन, जापान, दक्षिण कोरिया, आस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड हैं.

टीपीसीआई ने एक बयान में कहा, "ऐसी आशंका है कि आरसीईपी समझौता भारत की निर्यात प्रतिस्पर्धा को प्रभावित करेगा क्योंकि व्यापार संतुलन पहले से प्रतिकूल है और इससे भारतीय बाजार में आयातित वस्तुओं की बाढ़ आ जाएगी जबकि निर्यात मोर्चे पर लाभ अपेक्षाकृत कम होगा."

परिषद के चेयरमैन मोहित सिंगला ने कहा कि भारत को इस वृहद व्यापार समझौते पर उम्मीद तथा सतर्कता के साथ आगे बढ़ने की जरूरत है.

उन्होंने कहा, "भारत के शुल्क दर (आयात शुल्क) का मुद्दा उतना ही अहम है जितना बातचीत के अन्य मुद्दे. इसका मुख्य कारण यह है कि भारत का आरसीईपी में शामिल सभी देशों के साथ व्यापार समझौता प्रभाव में नहीं है."

सिंगला ने कहा कि उदाहरण के लिये भारत का चीन के साथ व्यापार समझौता नहीं है और आस्ट्रेलिया तथा न्यूजीलैंड के साथ बातचीत प्रभाव में नहीं आयी है. उन्होंने कहा कि आरसीईपी का इस्पात, औषधि, ई-वाणिज्य तथा खाद्य प्रसंस्करण जैसे क्षेत्रों पर नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है.

नई दिल्ली: व्यापार संतुलन के पहले से प्रतिकूल बने रहने के चलते प्रस्तावित क्षेत्रीय व्यापक आर्थिक भागीदारी (आरसीईपी) समझौता देश की निर्यात प्रतिस्पर्धा क्षमता को प्रभावित कर सकता है. भारतीय व्यापार संवर्द्धन परिषद (टीपीसीआई) ने मंगलवार को यह बात कही.

टीपीसीआई ने कहा कि प्रस्तावित आरसीईपी एक वृहद मुक्त व्यापार समझौता है और इससे भारतीय बाजार में सदस्य देशों से आने वाली वस्तुओं की बाढ़ आ जाएगी. इसको देखते हुए भारतीय वार्ताकारों को सतर्क रुख के साथ आगे बढ़ने की जरूरत है.

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आरसीईपी में दक्षिण पूर्व एशियाई देशों (आसियान) के 10 सदस्य देश (ब्रुनेई, कंबोडिया, इंडोनेशिया, मलेशिया, म्यांमा, सिंगापुर, थाईलैंड, फिलीपीन, लाओस तथा वियतनाम) तथा उनके छह एफटीए भागीदार-भारत, चीन, जापान, दक्षिण कोरिया, आस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड हैं.

टीपीसीआई ने एक बयान में कहा, "ऐसी आशंका है कि आरसीईपी समझौता भारत की निर्यात प्रतिस्पर्धा को प्रभावित करेगा क्योंकि व्यापार संतुलन पहले से प्रतिकूल है और इससे भारतीय बाजार में आयातित वस्तुओं की बाढ़ आ जाएगी जबकि निर्यात मोर्चे पर लाभ अपेक्षाकृत कम होगा."

परिषद के चेयरमैन मोहित सिंगला ने कहा कि भारत को इस वृहद व्यापार समझौते पर उम्मीद तथा सतर्कता के साथ आगे बढ़ने की जरूरत है.

उन्होंने कहा, "भारत के शुल्क दर (आयात शुल्क) का मुद्दा उतना ही अहम है जितना बातचीत के अन्य मुद्दे. इसका मुख्य कारण यह है कि भारत का आरसीईपी में शामिल सभी देशों के साथ व्यापार समझौता प्रभाव में नहीं है."

सिंगला ने कहा कि उदाहरण के लिये भारत का चीन के साथ व्यापार समझौता नहीं है और आस्ट्रेलिया तथा न्यूजीलैंड के साथ बातचीत प्रभाव में नहीं आयी है. उन्होंने कहा कि आरसीईपी का इस्पात, औषधि, ई-वाणिज्य तथा खाद्य प्रसंस्करण जैसे क्षेत्रों पर नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है.

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नई दिल्ली: व्यापार संतुलन के पहले से प्रतिकूल बने रहने के चलते प्रस्तावित क्षेत्रीय व्यापक आर्थिक भागीदारी (आरसीईपी) समझौता देश की निर्यात प्रतिस्पर्धा क्षमता को प्रभावित कर सकता है. भारतीय व्यापार संवर्द्धन परिषद (टीपीसीआई) ने मंगलवार को यह बात कही.

टीपीसीआई ने कहा कि प्रस्तावित आरसीईपी एक वृहद मुक्त व्यापार समझौता है और इससे भारतीय बाजार में सदस्य देशों से आने वाली वस्तुओं की बाढ़ आ जाएगी. इसको देखते हुए भारतीय वार्ताकारों को सतर्क रुख के साथ आगे बढ़ने की जरूरत है.

आरसीईपी में दक्षिण पूर्व एशियाई देशों (आसियान) के 10 सदस्य देश (ब्रुनेई, कंबोडिया, इंडोनेशिया, मलेशिया, म्यांमा, सिंगापुर, थाईलैंड, फिलीपीन, लाओस तथा वियतनाम) तथा उनके छह एफटीए भागीदार-भारत, चीन, जापान, दक्षिण कोरिया, आस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड हैं.

टीपीसीआई ने एक बयान में कहा, "ऐसी आशंका है कि आरसीईपी समझौता भारत की निर्यात प्रतिस्पर्धा को प्रभावित करेगा क्योंकि व्यापार संतुलन पहले से प्रतिकूल है और इससे भारतीय बाजार में आयातित वस्तुओं की बाढ़ आ जाएगी जबकि निर्यात मोर्चे पर लाभ अपेक्षाकृत कम होगा."

परिषद के चेयरमैन मोहित सिंगला ने कहा कि भारत को इस वृहद व्यापार समझौते पर उम्मीद तथा सतर्कता के साथ आगे बढ़ने की जरूरत है.

उन्होंने कहा, "भारत के शुल्क दर (आयात शुल्क) का मुद्दा उतना ही अहम है जितना बातचीत के अन्य मुद्दे. इसका मुख्य कारण यह है कि भारत का आरसीईपी में शामिल सभी देशों के साथ व्यापार समझौता प्रभाव में नहीं है."

सिंगला ने कहा कि उदाहरण के लिये भारत का चीन के साथ व्यापार समझौता नहीं है और आस्ट्रेलिया तथा न्यूजीलैंड के साथ बातचीत प्रभाव में नहीं आयी है. उन्होंने कहा कि आरसीईपी का इस्पात, औषधि, ई-वाणिज्य तथा खाद्य प्रसंस्करण जैसे क्षेत्रों पर नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है.

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