नई दिल्ली: रिजर्व बैंक द्वारा चालू वित्त वर्ष की दूसरी द्विमासिक मौद्रिक नीति समीक्षा में दरों में कटौती से निकट भविष्य में मांग बढ़ने की ज्यादा उम्मीद नहीं लगती. इसकी वजह वित्तीय बाजार में दर कटौती की त्वरित प्रतिक्रिया का अभाव है. इंडिया रेटिंग ने एक रिपोर्ट में यह आशंका जताई है.
व्यापक स्तर पर यह माना जा रहा है कि केन्द्रीय बैंक बृहस्पतिवार को जारी होने वाली मौद्रिक नीति की समीक्षा में नीतिगत दर में कटौती करेगा. रिजर्व बैंक आर्थिक वृद्धि दर में तेजी लाने के लिये यह कदम उठा सकता है.
ये भी पढ़ें- जीएसपी का दर्जा छिनने के बाद, नए बाजारों और सब्सिडी से घटेगा व्यापार घाटा
समाप्त वित्त वर्ष 2018- 19 में आर्थिक वृद्धि दर पांच साल के निम्न स्तर 6.8 प्रतिशत पर पहुंच गई. रेटिंग एजेंसी ने कहा है कि आरबीआई ने चालू वित्त वर्ष में अब तक नीतिगत दर में 0.50 प्रतिशत की कटौती की है लेकिन बैंकों ने इस कटौती का लाभ ग्राहकों तक नहीं पहुंचाया है.
बैंकों ने अपने रिण और जमा की दरों में इसके बाद कोई खास बदलाव नहीं किया. इसके उलट कई बैंकों ने अपनी जमा दरों को बढ़ाया है ताकि अधिक से अधिक जमा राशि जुटाई जा सके. इंडिया रेटिंग के मुताबिक आरबीआई की दर में कटौती के कदम और बैंकों द्वारा इसका लाभ आगे अपने ग्राहकों तक नहीं पहुंचा पाने के मूल में परिवारों की बचत धीमी पड़ना है.
एजेंसी का कहना है, "सरकार की तरफ से अधिक उधार लेना और लघु बचत योजनाओं में ऊंची दर होने की वजह से बैंकों और एनबीएफसी के लिये धन जुटाना महंगा हो गया है. इसके साथ ही भारत में जो खपत की मांग है उसमें कर्ज लेकर खपत करने की ज्यादा भूमिका नहीं है." एजेंसी ने कहा है कि दर में कटौती के बजाय कटौती का प्रभाव अर्थव्यवस्था में पहुंचना बड़ी चुनौती बन गया है.
रेपो रेट में कटौती से निकट भविष्य में आर्थिक वृद्धि को बढ़ावा मिलने की उम्मीद कम: इंडिया रेटिंग
व्यापक स्तर पर यह माना जा रहा है कि केन्द्रीय बैंक बृहस्पतिवार को जारी होने वाली मौद्रिक नीति की समीक्षा में नीतिगत दर में कटौती करेगा. रिजर्व बैंक आर्थिक वृद्धि दर में तेजी लाने के लिये यह कदम उठा सकता है.
नई दिल्ली: रिजर्व बैंक द्वारा चालू वित्त वर्ष की दूसरी द्विमासिक मौद्रिक नीति समीक्षा में दरों में कटौती से निकट भविष्य में मांग बढ़ने की ज्यादा उम्मीद नहीं लगती. इसकी वजह वित्तीय बाजार में दर कटौती की त्वरित प्रतिक्रिया का अभाव है. इंडिया रेटिंग ने एक रिपोर्ट में यह आशंका जताई है.
व्यापक स्तर पर यह माना जा रहा है कि केन्द्रीय बैंक बृहस्पतिवार को जारी होने वाली मौद्रिक नीति की समीक्षा में नीतिगत दर में कटौती करेगा. रिजर्व बैंक आर्थिक वृद्धि दर में तेजी लाने के लिये यह कदम उठा सकता है.
ये भी पढ़ें- जीएसपी का दर्जा छिनने के बाद, नए बाजारों और सब्सिडी से घटेगा व्यापार घाटा
समाप्त वित्त वर्ष 2018- 19 में आर्थिक वृद्धि दर पांच साल के निम्न स्तर 6.8 प्रतिशत पर पहुंच गई. रेटिंग एजेंसी ने कहा है कि आरबीआई ने चालू वित्त वर्ष में अब तक नीतिगत दर में 0.50 प्रतिशत की कटौती की है लेकिन बैंकों ने इस कटौती का लाभ ग्राहकों तक नहीं पहुंचाया है.
बैंकों ने अपने रिण और जमा की दरों में इसके बाद कोई खास बदलाव नहीं किया. इसके उलट कई बैंकों ने अपनी जमा दरों को बढ़ाया है ताकि अधिक से अधिक जमा राशि जुटाई जा सके. इंडिया रेटिंग के मुताबिक आरबीआई की दर में कटौती के कदम और बैंकों द्वारा इसका लाभ आगे अपने ग्राहकों तक नहीं पहुंचा पाने के मूल में परिवारों की बचत धीमी पड़ना है.
एजेंसी का कहना है, "सरकार की तरफ से अधिक उधार लेना और लघु बचत योजनाओं में ऊंची दर होने की वजह से बैंकों और एनबीएफसी के लिये धन जुटाना महंगा हो गया है. इसके साथ ही भारत में जो खपत की मांग है उसमें कर्ज लेकर खपत करने की ज्यादा भूमिका नहीं है." एजेंसी ने कहा है कि दर में कटौती के बजाय कटौती का प्रभाव अर्थव्यवस्था में पहुंचना बड़ी चुनौती बन गया है.
दर कटौती से निकट भविष्य में आर्थिक वृद्धि को बढ़ावा मिलने की उम्मीद कम: इंडिया रेटिंग
नई दिल्ली: रिजर्व बैंक द्वारा चालू वित्त वर्ष की दूसरी द्विमासिक मौद्रिक नीति समीक्षा में दरों में कटौती से निकट भविष्य में मांग बढ़ने की ज्यादा उम्मीद नहीं लगती. इसकी वजह वित्तीय बाजार में दर कटौती की त्वरित प्रतिक्रिया का अभाव है. इंडिया रेटिंग ने एक रिपोर्ट में यह आशंका जताई है.
व्यापक स्तर पर यह माना जा रहा है कि केन्द्रीय बैंक बृहस्पतिवार को जारी होने वाली मौद्रिक नीति की समीक्षा में नीतिगत दर में कटौती करेगा. रिजर्व बैंक आर्थिक वृद्धि दर में तेजी लाने के लिये यह कदम उठा सकता है.
ये भी पढ़ें-
समाप्त वित्त वर्ष 2018- 19 में आर्थिक वृद्धि दर पांच साल के निम्न स्तर 6.8 प्रतिशत पर पहुंच गई. रेटिंग एजेंसी ने कहा है कि आरबीआई ने चालू वित्त वर्ष में अब तक नीतिगत दर में 0.50 प्रतिशत की कटौती की है लेकिन बैंकों ने इस कटौती का लाभ ग्राहकों तक नहीं पहुंचाया है.
बैंकों ने अपने रिण और जमा की दरों में इसके बाद कोई खास बदलाव नहीं किया. इसके उलट कई बैंकों ने अपनी जमा दरों को बढ़ाया है ताकि अधिक से अधिक जमा राशि जुटाई जा सके. इंडिया रेटिंग के मुताबिक आरबीआई की दर में कटौती के कदम और बैंकों द्वारा इसका लाभ आगे अपने ग्राहकों तक नहीं पहुंचा पाने के मूल में परिवारों की बचत धीमी पड़ना है.
एजेंसी का कहना है, "सरकार की तरफ से अधिक उधार लेना और लघु बचत योजनाओं में ऊंची दर होने की वजह से बैंकों और एनबीएफसी के लिये धन जुटाना महंगा हो गया है. इसके साथ ही भारत में जो खपत की मांग है उसमें कर्ज लेकर खपत करने की ज्यादा भूमिका नहीं है." एजेंसी ने कहा है कि दर में कटौती के बजाय कटौती का प्रभाव अर्थव्यवस्था में पहुंचना बड़ी चुनौती बन गया है.
Conclusion: