नई दिल्ली: उद्योग मंडल भारतीय उद्योग परिसंघ ने कहा है कि राज्यों के पास न्यूनतम वेतन तय करने का अधिकार होना चाहिए क्योंकि राष्ट्रीय न्यूनतम वेतन की अवधारणा से रोजगार सृजन प्रभावित होगा.
सूत्रों के अनुसार श्रम मंत्रालय अगले सप्ताह वेतन संहिता विधेयक पर कैबिनेट की मंजूरी लेगा. मंत्रालय इस विधेयक को संसद के मौजूदा सत्र में ही पारित करना चाहता है.
सीआईआई ने कहा कि राज्यों द्वारा न्यूनतम वेतन तीन मानदंडों. भौगोलिक गंतव्य, कौशल और पेशे के आधार पर तय किया जाना चाहिए. हालांकि, राज्य केंद्र द्वारा तय न्यूनतम वेतन को कम नहीं कर सकते.
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सीआईआई ने कहा, "राष्ट्रीय न्यूनतम वेतन की अवधारणा से रोजगार सृजन प्रभावित होगा. ऐसे में जरूरी है कि राज्यों को अपना न्यूनतम वेतन तय करने का अधिकार दिया जाए."
उद्योग मंडल ने सुझाव दिया है कि सरकार को अकुशल श्रमिकों का वेतन तय करना चाहिए. हालांकि, कुशल और अर्द्धकुशल श्रमबल का वेतन बाजार के आधार पर तय होना चाहिए.
वेतन संहिता विधेयक में प्रावधान किया गया है कि केंद्र सरकार रेलवे और खनन समेत कुछ क्षेत्रों के लिए न्यूनतम मजदूरी तय करेगी जबकि राज्य अन्य श्रेणी के रोजगारों के लिए न्यूनतम वेतन निर्धारित करने के लिए स्वतंत्र होंगे. विधेयक के मसौदे में कहा गया है कि न्यूनतम मजदूरी में हर पांच साल में संशोधन किया जाएगा. केन्द्र सरकार विभिन्न क्षेत्रों और राज्यों के लिये न्यूनतम वेतन तय कर सकती है.
इसके अलावा सीआईआई ने देश में रोजगार सृजन के लिए वृहद राष्ट्रीय रोजगार मिशन का आह्वान किया है. साथ ही उद्योग मंडल ने अंतर मंत्रालयी और सभी राज्यों का राष्ट्रीय रोजगार बोर्ड बनाने का भी सुझाव दिया है.
चैंबर ने सुझाव दिया है कि सरकार को राष्ट्रीय रोजगार बोर्ड की स्थापना करनी चाहिए. इस बोर्ड में महत्वपूर्ण मंत्रालयों, राज्य सरकारों के प्रतिनिधियों, उद्योग विशेषज्ञों तथा ट्रेड यूनियनों के लोगों के अलावा अन्य अंशधारकों को शामिल किया जाना चाहिए.
सीआईआई ने कहा है कि श्रमबल में अधिक से अधिक महिलाओं को शामिल करने के लिए मातृत्व लाभ संशोधन कानून के तहत बच्चों की देखभाल और मातृत्व लाभ सब्सिडी उपलब्ध कराई जानी चाहिए.