ETV Bharat / business

ऋण अधिस्थगन अवधि को बढ़ाया नहीं जा सकता: सुप्रीम कोर्ट से आरबीआई

ऋण स्थगन मामले में शीर्ष अदालत में दायर एक हलफनामे में, आरबीआई ने कहा है कि एक लंबी अधिस्थगन अवधि उधारकर्ताओं के क्रेडिट व्यवहार को प्रभावित कर सकती है और विलंबित भुगतानों के जोखिम को बढ़ा सकती है जो अनुसूचित भुगतानों को फिर से शुरू करना है.

ऋण अधिस्थगन अवधि को बढ़ाया नहीं जा सकता: सुप्रीम कोर्ट से आरबीआई
ऋण अधिस्थगन अवधि को बढ़ाया नहीं जा सकता: सुप्रीम कोर्ट से आरबीआई
author img

By

Published : Oct 10, 2020, 1:13 PM IST

Updated : Oct 10, 2020, 6:22 PM IST

नई दिल्ली: केंद्र ने उच्चतम न्यायालय के समक्ष ताजा हलफनामें में कहा है कि कोरोना वायरस महामारी के मद्देनजर अब तक घोषित किए जा चुके राजकोषीय राहत उपायों से आगे बढ़कर किसी भी घोषणा से अर्थव्यवस्था को "नुकसान" पहुंच सकता है और हो सकता है कि बैंक इन "अपरिहार्य वित्तीय बाधाओं" का सामना न कर सकें.

गौरतलब है कि केंद्र सरकार पहले ही ऋण की किस्त स्थगन सुविधा लेने वाले दो करोड़ रुपये तक के कर्जदारों के चक्रवृद्धि ब्याज को माफ करने का फैसला कर चुकी है. केंद्रीय वित्त मंत्रालय ने अतिरिक्त सचिव पंकज जैन के माध्यम से शीर्ष न्यायालय के पांच अक्टूबर के निर्देशों का पालन करते हुए हलफनामा दायर किया है.

न्यायालय ने केंद्र सरकार और भारतीय रिजर्व बैंक को निर्देश दिया था कि वे कोविड-19 की वजह से विभिन्न क्षेत्रों पर पड़े दबाव के मद्देनजर कर्ज पुनर्गठन के बारे में के वी कामत समिति की सिफारिशों और कर्ज की किस्त स्थगन के मुद्दे पर उनके द्वारा जारी अधिसूचनाएं और परिपत्र उसके समक्ष प्रस्तुत करें.

इससे पहले केंद्र सरकार ने न्यायालय से कहा था कि कोविड-19 महामारी के दौरान घोषित किए गए किस्त स्थगन के तहत दो करोड़ रुपये तक के कर्ज के ब्याज पर ब्याज छह महीने के लिए नहीं लिया जाएगा. सरकार इन ऋणों को आठ श्रेणियों में बांटा है, जिनमें एमएसएमई (सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्योग), शिक्षा ऋण, आवास ऋण, उपभोक्ता टिकाऊ वस्तुएं, क्रेडिट कार्ड बकाया, ऑटो ऋण, व्यक्तिगत ऋण और उपभोग आधारित ऋण शामिल हैं.

न्यायालय ने पांच अक्टूबर की सुनवाई में कहा था कि केंद्र के हलफनामे में कई आवश्यक विवरण नहीं हैं और केंद्र तथा आरबीआई को नए सिरे से हलफनामा दायर करने के लिए कहा गया था.

ये भी पढ़ें: रोजगार की स्थिति जानने के लिये श्रम ब्यूरो करेगा तीन सर्वेक्षण

केंद्र ने ताजा हलफनामे में अपने विभिन्न राजकोषीय नीतिगत निर्णयों और भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा उठाए गए कदमों का उल्लेख किया और विभिन्न क्षेत्रों को अब तक दी गई राहत के दायरे को बढ़ाने में असमर्थता जताई.

केंद्र ने कहा, "यह... बताया जाता है कि... गरीब कल्याण और आत्म निर्भर पैकेज के तहत पहले लिए गए राजकोषीय नीतिगत निर्णयों, जिसका वित्तीय बोझ काफी अधिक था, को पूरा करने के लिए सरकार ने राजकोषीय प्रभाव को युक्तिसंगत बनाया है. अब तक जो फैसले किए गए हैं, और जिन्हें माननीय न्यायालय के समक्ष प्रस्तुत किया गया है, उससे आगे बढ़ना समग्र आर्थिक परिदृश्य के लिए हानिकारक हो सकता है, और हो सकता है कि राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था या बैंकिंग क्षेत्र अपरिहार्य वित्तीय बाधाओं का सामना करने में सक्षम न हो सकें."

अधिकारी ने कहा कि ऋण की कुछ श्रेणियों में चक्रवृद्धि ब्याज से छूट के संबंध में फैसला महामारी के मद्देनजर व्यापक सार्वजनिक हित में लिया गया था. इससे पहले दिन में आरबीआई ने हलफनामा दायर कर कहा कि छह महीने की अवधि से आगे किस्त स्थगन को बढ़ाने से "समग्र ऋण अनुशासन के खत्म होने" की स्थिति बन सकती है, जिसके चलते अर्थव्यवस्था में ऋण निर्माण की प्रक्रिया पर विपरीत प्रभाव पड़ेगा.

(पीटीआई-भाषा)

नई दिल्ली: केंद्र ने उच्चतम न्यायालय के समक्ष ताजा हलफनामें में कहा है कि कोरोना वायरस महामारी के मद्देनजर अब तक घोषित किए जा चुके राजकोषीय राहत उपायों से आगे बढ़कर किसी भी घोषणा से अर्थव्यवस्था को "नुकसान" पहुंच सकता है और हो सकता है कि बैंक इन "अपरिहार्य वित्तीय बाधाओं" का सामना न कर सकें.

गौरतलब है कि केंद्र सरकार पहले ही ऋण की किस्त स्थगन सुविधा लेने वाले दो करोड़ रुपये तक के कर्जदारों के चक्रवृद्धि ब्याज को माफ करने का फैसला कर चुकी है. केंद्रीय वित्त मंत्रालय ने अतिरिक्त सचिव पंकज जैन के माध्यम से शीर्ष न्यायालय के पांच अक्टूबर के निर्देशों का पालन करते हुए हलफनामा दायर किया है.

न्यायालय ने केंद्र सरकार और भारतीय रिजर्व बैंक को निर्देश दिया था कि वे कोविड-19 की वजह से विभिन्न क्षेत्रों पर पड़े दबाव के मद्देनजर कर्ज पुनर्गठन के बारे में के वी कामत समिति की सिफारिशों और कर्ज की किस्त स्थगन के मुद्दे पर उनके द्वारा जारी अधिसूचनाएं और परिपत्र उसके समक्ष प्रस्तुत करें.

इससे पहले केंद्र सरकार ने न्यायालय से कहा था कि कोविड-19 महामारी के दौरान घोषित किए गए किस्त स्थगन के तहत दो करोड़ रुपये तक के कर्ज के ब्याज पर ब्याज छह महीने के लिए नहीं लिया जाएगा. सरकार इन ऋणों को आठ श्रेणियों में बांटा है, जिनमें एमएसएमई (सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्योग), शिक्षा ऋण, आवास ऋण, उपभोक्ता टिकाऊ वस्तुएं, क्रेडिट कार्ड बकाया, ऑटो ऋण, व्यक्तिगत ऋण और उपभोग आधारित ऋण शामिल हैं.

न्यायालय ने पांच अक्टूबर की सुनवाई में कहा था कि केंद्र के हलफनामे में कई आवश्यक विवरण नहीं हैं और केंद्र तथा आरबीआई को नए सिरे से हलफनामा दायर करने के लिए कहा गया था.

ये भी पढ़ें: रोजगार की स्थिति जानने के लिये श्रम ब्यूरो करेगा तीन सर्वेक्षण

केंद्र ने ताजा हलफनामे में अपने विभिन्न राजकोषीय नीतिगत निर्णयों और भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा उठाए गए कदमों का उल्लेख किया और विभिन्न क्षेत्रों को अब तक दी गई राहत के दायरे को बढ़ाने में असमर्थता जताई.

केंद्र ने कहा, "यह... बताया जाता है कि... गरीब कल्याण और आत्म निर्भर पैकेज के तहत पहले लिए गए राजकोषीय नीतिगत निर्णयों, जिसका वित्तीय बोझ काफी अधिक था, को पूरा करने के लिए सरकार ने राजकोषीय प्रभाव को युक्तिसंगत बनाया है. अब तक जो फैसले किए गए हैं, और जिन्हें माननीय न्यायालय के समक्ष प्रस्तुत किया गया है, उससे आगे बढ़ना समग्र आर्थिक परिदृश्य के लिए हानिकारक हो सकता है, और हो सकता है कि राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था या बैंकिंग क्षेत्र अपरिहार्य वित्तीय बाधाओं का सामना करने में सक्षम न हो सकें."

अधिकारी ने कहा कि ऋण की कुछ श्रेणियों में चक्रवृद्धि ब्याज से छूट के संबंध में फैसला महामारी के मद्देनजर व्यापक सार्वजनिक हित में लिया गया था. इससे पहले दिन में आरबीआई ने हलफनामा दायर कर कहा कि छह महीने की अवधि से आगे किस्त स्थगन को बढ़ाने से "समग्र ऋण अनुशासन के खत्म होने" की स्थिति बन सकती है, जिसके चलते अर्थव्यवस्था में ऋण निर्माण की प्रक्रिया पर विपरीत प्रभाव पड़ेगा.

(पीटीआई-भाषा)

Last Updated : Oct 10, 2020, 6:22 PM IST

For All Latest Updates

TAGGED:

ETV Bharat Logo

Copyright © 2024 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.