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भारत का अगस्त आर्थिक डेटा दे रहा है मिश्रित संकेत

एसबीआई की एक शोध रिपोर्ट अगस्त में प्रमुख आर्थिक संकेतकों में रिकवरी को दर्शाती है जैसे गतिशीलता सूचकांक, ऑटो बिक्री और डिजिटल लेनदेन. साथ ही यह श्रम भागीदारी दर में गिरावट और बिजली की खपत और साप्ताहिक खाद्य आगमन पर भी प्रकाश डालती है.

भारत का अगस्त आर्थिक डेटा दे रहा है मिश्रित संकेत
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Published : Sep 4, 2020, 5:19 PM IST

बिजनेस डेस्क, ईटीवी भारत: भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए निकट-अवधि का दृष्टिकोण अत्यधिक अनिश्चित है क्योंकि अगस्त के आर्थिक आंकड़ों ने रिकवरी की सीमा पर मिश्रित संकेत ही दिया है.

भारतीय स्टेट बैंक (एसबीआई) द्वारा गुरुवार को जारी थ्री मंथ्स आफ्टर अनलॉक शीर्षक से एक शोध रिपोर्ट बताती है कि हालांकि दैनिक संकेतक अर्थव्यवस्था में उच्च गतिशीलता और गतिविधि को प्रकट करते हैं लेकिन कुछ प्रमुख संकेतकों ने अगस्त में गति खो दी है.

ये भी पढ़ें- भारतीय ऑटो उद्योग इतिहास में सबसे कठिन दौर से गुजर रहा है, सरकारी मदद की जरूरत

एसबीआई व्यापार व्यवधान सूचकांक अगस्त में पिछले महीने की तुलना में अगस्त में पिक-अप के बाद एक पिक-अप दिखाता है, जो 'अनलॉक' प्रक्रिया शुरू होने के बाद आर्थिक गतिविधियों में फिर से शुरू होने का संकेत देता है.

गूगल गतिशीलता सूचकांक भी जुलाई से सभी श्रेणियों में सुधार हुआ है. महीने के दौरान रेल भाड़ा आय में वृद्धि हुई, जबकि ऑटो बिक्री के आंकड़ों में एक महीने पहले की तुलना में अधिक वृद्धि देखी गई.

अगस्त में प्री-कोविड के स्तर को पार करते हुए मूल्य और मात्रा दोनों ही स्थितियों में डिजिटल भुगतान में वृद्धि हुई है.

हालांकि, श्रम भागीदारी दर, आरटीओ (क्षेत्रीय परिवहन कार्यालय) लेनदेन, साप्ताहिक खाद्य आगमन जुलाई की तुलना में अगस्त में सभी गिरावट आई है.

रिपोर्ट में कहा गया है, "श्रम बल की भागीदारी में गिरावट चिंता का विषय है क्योंकि यह इंगित करता है कि श्रम का एक बड़ा प्रतिशत अभी भी महामारी के प्रसार को देखते हुए काम पर लौटने से कतरा रहा है."

अगस्त में उनके प्री-लॉकडाउन मूल्यों की तुलना में खुदरा खाद्य कीमतों में भी वृद्धि जारी है. अगस्त में मंडियों में भोजन का सप्ताह आगमन राज्यों में आपूर्ति की ओर रुकावट का संकेत देता है जो मूल्य वृद्धि में प्रकट होता है. अगस्त में खाद्य कीमतों में बढ़ोतरी देखी जा सकती है.

ग्रामीण अर्थव्यवस्था विशेष रूप से उच्च बेरोजगारी और मनरेगा के तहत मिलने वाली मजदूरी में गिरावट के संकेत देने लगी है.

आर्थिक थिंक टैंक सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकोनॉमी (सीएमआईई) के आंकड़ों से पता चला कि ग्रामीण बेरोजगारी दर अगस्त में बढ़कर 7.65% हो गई जो जुलाई में 6.66% थी.

इसके अलावा इस योजना के तहत बनाए गए रोजगार के व्यक्ति-दिवस जून और जुलाई दोनों में 100% से अधिक वर्ष बढ़ने के बाद एक साल पहले की तुलना में अगस्त में 14% की वृद्धि हुई.

विश्लेषकों का मानना है कि प्रमुख संकेतकों के इस तरह के विभिन्न आंदोलन अर्थव्यवस्था के लिए लंबे समय तक रिकवरी का संकेत देते हैं. इस सप्ताह के प्रारंभ में भारत के आधिकारिक आंकड़ों से पता चला कि सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) अप्रैल-जून तिमाही में -23.9% की वृद्धि हुई है.

एसबीआई जीडीपी के आंकड़ों के मुताबिक वित्त वर्ष 2015 के लिए वास्तविक जीडीपी में 10.9% की गिरावट की उम्मीद है. इससे पहले चालू वित्त वर्ष के लिए वास्तविक सकल घरेलू उत्पाद की वृद्धि दर -6.8% थी.

बिजनेस डेस्क, ईटीवी भारत: भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए निकट-अवधि का दृष्टिकोण अत्यधिक अनिश्चित है क्योंकि अगस्त के आर्थिक आंकड़ों ने रिकवरी की सीमा पर मिश्रित संकेत ही दिया है.

भारतीय स्टेट बैंक (एसबीआई) द्वारा गुरुवार को जारी थ्री मंथ्स आफ्टर अनलॉक शीर्षक से एक शोध रिपोर्ट बताती है कि हालांकि दैनिक संकेतक अर्थव्यवस्था में उच्च गतिशीलता और गतिविधि को प्रकट करते हैं लेकिन कुछ प्रमुख संकेतकों ने अगस्त में गति खो दी है.

ये भी पढ़ें- भारतीय ऑटो उद्योग इतिहास में सबसे कठिन दौर से गुजर रहा है, सरकारी मदद की जरूरत

एसबीआई व्यापार व्यवधान सूचकांक अगस्त में पिछले महीने की तुलना में अगस्त में पिक-अप के बाद एक पिक-अप दिखाता है, जो 'अनलॉक' प्रक्रिया शुरू होने के बाद आर्थिक गतिविधियों में फिर से शुरू होने का संकेत देता है.

गूगल गतिशीलता सूचकांक भी जुलाई से सभी श्रेणियों में सुधार हुआ है. महीने के दौरान रेल भाड़ा आय में वृद्धि हुई, जबकि ऑटो बिक्री के आंकड़ों में एक महीने पहले की तुलना में अधिक वृद्धि देखी गई.

अगस्त में प्री-कोविड के स्तर को पार करते हुए मूल्य और मात्रा दोनों ही स्थितियों में डिजिटल भुगतान में वृद्धि हुई है.

हालांकि, श्रम भागीदारी दर, आरटीओ (क्षेत्रीय परिवहन कार्यालय) लेनदेन, साप्ताहिक खाद्य आगमन जुलाई की तुलना में अगस्त में सभी गिरावट आई है.

रिपोर्ट में कहा गया है, "श्रम बल की भागीदारी में गिरावट चिंता का विषय है क्योंकि यह इंगित करता है कि श्रम का एक बड़ा प्रतिशत अभी भी महामारी के प्रसार को देखते हुए काम पर लौटने से कतरा रहा है."

अगस्त में उनके प्री-लॉकडाउन मूल्यों की तुलना में खुदरा खाद्य कीमतों में भी वृद्धि जारी है. अगस्त में मंडियों में भोजन का सप्ताह आगमन राज्यों में आपूर्ति की ओर रुकावट का संकेत देता है जो मूल्य वृद्धि में प्रकट होता है. अगस्त में खाद्य कीमतों में बढ़ोतरी देखी जा सकती है.

ग्रामीण अर्थव्यवस्था विशेष रूप से उच्च बेरोजगारी और मनरेगा के तहत मिलने वाली मजदूरी में गिरावट के संकेत देने लगी है.

आर्थिक थिंक टैंक सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकोनॉमी (सीएमआईई) के आंकड़ों से पता चला कि ग्रामीण बेरोजगारी दर अगस्त में बढ़कर 7.65% हो गई जो जुलाई में 6.66% थी.

इसके अलावा इस योजना के तहत बनाए गए रोजगार के व्यक्ति-दिवस जून और जुलाई दोनों में 100% से अधिक वर्ष बढ़ने के बाद एक साल पहले की तुलना में अगस्त में 14% की वृद्धि हुई.

विश्लेषकों का मानना है कि प्रमुख संकेतकों के इस तरह के विभिन्न आंदोलन अर्थव्यवस्था के लिए लंबे समय तक रिकवरी का संकेत देते हैं. इस सप्ताह के प्रारंभ में भारत के आधिकारिक आंकड़ों से पता चला कि सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) अप्रैल-जून तिमाही में -23.9% की वृद्धि हुई है.

एसबीआई जीडीपी के आंकड़ों के मुताबिक वित्त वर्ष 2015 के लिए वास्तविक जीडीपी में 10.9% की गिरावट की उम्मीद है. इससे पहले चालू वित्त वर्ष के लिए वास्तविक सकल घरेलू उत्पाद की वृद्धि दर -6.8% थी.

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