वाशिंगटन: भले ही कोडिंग और एम्युलेटिंग जैसे साधनों का विकास पश्चिमी देशों में हुआ है, इनमें सिद्धहस्त होकर भारतीय स्टार्टअप अब ऐसे दौर में पहुंच गये हैं जहां वे सफलतापूर्वक दुनिया भर के लिये उत्पाद तैयार कर रहे हैं और पश्चिमी देशों से पैसे भी कमा रहे हैं. अमेरिका के भारत केंद्रित एक परामर्श संगठन ने यह बात कही है.
यूएस-इंडिया स्ट्रेटजिक एंड पार्टनरशिप फोरम के अध्यक्ष मुकेश अघी ने पीटीआई भाषा से कहा, "मुझे लगता है कि भारतीय स्टार्टअप तीसरे चरण में पहुंच रहे हैं."
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अघी ने कहा कि भारतीय आईटी उद्योग में 2000 के बाद तेजी आयी. इस दौर में कोडिंग पर जोर दिया गया. दूसरे चरण में भारतीय कंपनियां एम्युलेटिंग पर जोर देने लगीं. इस दौर में अमेरिका में खोजे गये विचारों का अनुसरण हुआ और उबर की तर्ज पर ओला तथा अमेजॉन की तर्ज पर फ्लिपकार्ट जैसी कंपनियां सामने आयीं. स्वास्थ्य एवं चिकित्सा के क्षेत्र में भी यह देखने को मिला.
उन्होंने कहा कि एक हद तक यह भारत में सफल भी हुआ. हालांकि दूसरा चरण निर्यात बाजारों पर केंद्रित नहीं था, इसमें घरेलू बाजार में दक्षता लाने पर अधिक जोर दिया गया.
अघी ने भारत में स्टार्टअप के लिये माहौल के बारे में पूछे जाने पर कहा, "तीसरे चरण में हम देख रहे हैं कि अब ऐसी उत्पाद कंपनियां सामने आ रही हैं जिन्हें दुनिया भर के लिये विकसित किया गया है." इन उत्पादों की श्रेणियों में आवाज की पहचान से लेकर साइबर सुरक्षा और हेल्थकेयर क्षेत्र तक शामिल है.
उन्होंने कहा, "मुझे लगता है कि वे अब सफलता के लक्षण दिखाने लगे हैं. आप इसे हैदराबाद के टी-हब जैसे इनक्युबेटर्स में देख सकते हैं."
इसका एक उदाहरण चेन्नई की कंपनी जोहो है जिसका हम बिक्री एवं विपणन के लिये इस्तेमाल करते हैं. यह कंपनी हर साल अमेरिका में हजारों उपभोक्ता जोड़ रही है.