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गरीबों के खातों में सीधे नकदी भेज बढ़ाई जा सकती है मांग - financial year

कोरोना महामारी और लॉकडाउन के असर से झटके खाती भारतीय अर्थव्यवस्था का चालू वित्त वर्ष में उबरना मुश्किल दिख रहा है. देश के सबसे बड़े बैंक ने एक रिपोर्ट में बताया कि पहली तिमाही की जीडीपी विकास दर में आई रिकॉर्ड गिरावट आगे भी जारी रह सकती है.

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भारतीय अर्थव्यवस्था
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Published : Dec 29, 2020, 7:53 AM IST

हैदराबाद : कोविड-19 ने विश्व अर्थव्यवस्था को पूरी तरह परास्त कर दिया है. महामारी को काबू में रखने के लिए लंबे समय तक चले लॉकडाउन के परिणामस्वरूप भारतीय अर्थव्यवस्था को बहुत नुकसान हुआ है. लाखों लोगों ने अपनी नौकरी गंवा दी, सरकार की आमदनी कम हो गई. परिणाम यह निकला कि वर्ष 2020-21 में अर्थव्यवस्था के विकास की दर नकारात्मक हो गई. भारती रिजर्व बैंक के नवीनतम अनुमान के अनुसार यह करीब -7.5 फीसद रह सकती है. इन परिस्थितियों में केंद्र सरकार ने अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने के लिए आत्मनिर्भर भारत के तहत आर्थिक प्रोत्साहन के उपाय शुरू किए हैं. अब तक घोषित कुल प्रोत्साहन राशि 29 लाख 87 हजार 647 करोड़ रुपए की है. यह जीडीपी का 15 फीसद है, जिनमें से केंद्र सरकार का हिस्सा नौ फीसद है.

शेष घोषणा आरबीआई ने विभिन्न रूपों में की थी. पहले पैकेज का लक्ष्य आर्थिक रूप से कमजोर लोगों की सहायता करना था. इसने 'क्रेडिट गारंटी' योजना के रूप में विशेष रूप से छोटे व्यवसायों के लिए प्रोत्साहन दिया. दूसरे पैकेज के माध्यम से निजी खपत बढ़ाने का प्रयास किया गया. मुख्य ध्यान अर्थव्यवस्था में आपूर्ति के साधनों पर था. हालांकि, कुछ वर्षों से देश की आर्थिक वृद्धि में उपभोक्ता की मांग महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही है, यह कुछ समय के लिए बहुत कम हो गई थी. निजी क्षेत्र के उपभोक्ता खर्च में वृद्धि दर गिर कर 3.1 फीसद तक रह गई, जो 18 तिमाहियों में सबसे कम है. इसने सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) में सात तिमाही में सबसे अधिक 57.7 फीसद की गिरावट भी दर्ज की. ऐसी कठिन परिस्थिति में आर्थिक विकास को प्रोत्साहित करने के लिए, मांग को बढ़ाने वाले कारक अर्थव्यवस्था में आपूर्ति कारकों से अधिक महत्वपूर्ण हैं. सरकार ने इसे स्वीकार किया है और प्रोत्साहन के तीसरे उपायों में ऐसी नीतियों को प्राथमिकता दी है, जो आर्थिक विकास को प्रोत्साहित करती हैं. इसने श्रम बाजार, तनावपूर्ण क्षेत्र, सामाजिक कल्याण, विनिर्माण, आवास, बुनियादी ढांचे, निर्यात और कृषि आदि कई क्षेत्रों पर ध्यान केंद्रित किया. मुख्य उद्देश्य विशेष तौर पर आवास क्षेत्र को बढ़ावा देकर तंत्र में मांग को प्रोत्साहित करना है.

मांग का नहीं बढ़ना
सामाजिक और आर्थिक संरचना (पिरामिड) के शीर्ष पर विराजमान सिर्फ 10 करोड़ लोगों की ओर से विभिन्न वस्तुओं और सेवाओं के उपयोग के लिए हुई मांग मुख्य रूप से देश के विकास को अब तक प्रभावित कर रही है. उनकी खपत की मांग रुक गई है क्योंकि उनकी जरूरतें पूरी हो गई हैं. यही कारण है कि इन दिनों वाहनों और घरों सहित देश में उपभोक्ता वस्तुओं की मांग अपेक्षाकृत कम है. वास्तव में इस मोड़ पर कोविड के रूप में तबाही ने देश की अर्थव्यवस्था को घेर लिया और बहुत अधिक नुकसान हुआ. इस स्थिति में केंद्र ने अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने के लिए इसे प्रोत्साहन देने वाले के रूप में आवास क्षेत्र को चुना है.

इस साल सितंबर के अंत तक सात प्रमुख शहरों में निर्माण के विभिन्न चरणों के तहत घरों की 4.5 लाख से अधिक इकाइयां नहीं बिक पाने वाली सूची में थीं. इन इकाइयों में आवास बनाने वालों (रियल्टर्स) का लगभग 3.7 लाख करोड़ रुपये का निवेश अटका हुआ था. इन प्रोत्साहनों की वजह से रियल एस्टेट डीलरों के लिए घर खरीदने वालों को बगैर किन्हीं अतिरिक्त करों के किफायती आवास देना संभव बना दिया है, जिससे उन्हें मांग के बिना इसी तरह पड़े अपने घरों को बेचने का अवसर मिला है. अगर आधे-अधूरे ढांचे को पूरा करने के लिए भवन निर्माताओं को सहायता दी जाती है तो यह उन श्रमिकों को शहरी आवास के कामों में वापस लाने में प्रमुख भूमिका निभाएगा, जिन्होंने कोरोना संकट को देखते हुए शहरों को छोड़ दिया था. यह रियल एस्टेट उद्योग के लिए अच्छा है. यह कई क्षेत्रों पर सकारात्मक प्रभाव डालेगा और अर्थव्यवस्था को पुनर्जीवित करेगा.

राजकोषीय घाटे की चिंता गैरजरूरी
अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) के अनुसार, भारत के सकल मूल्य संवर्धन (जीवीए) में इस वित्त वर्ष में 10.3 फीसद कमी आने की संभावना है. भारत एक मांग आधारित अर्थव्यवस्था है. लोगों की क्रय शक्ति बढ़ाकर अर्थव्यवस्था को आगे बढ़ाया जा सकता है. आर्थिक प्रोत्साहन का लक्ष्य उपभोक्ता की मांग को बढ़ाना है. पहले और दूसरे चरण के आर्थिक प्रोत्साहन के बड़े सरकारी खर्च नजर नहीं आते है. हालांकि, तीसरा प्रोत्साहन घाटे को कुछ कम कर सकता है, लेकिन किस हद तक अभी इसकी सीमा का अनुमान लगाना कठिन है. सरकारी राजस्व में कमी और इसके परिणामस्वरूप घाटे में बढ़ोतरी ने भी सरकार की अधिक खर्च करने की अनिच्छा में योगदान दिया है. केंद्र और राज्यों के बीच संयुक्त राजकोषीय घाटा सकल घरेलू उत्पाद का 8.2 प्रतिशत से 13.1 प्रतिशत तक बढ़ने का अनुमान है. सरकार के लिए यह सही समय नहीं है कि वह राजकोषीय घाटा अधिक बढ़ने की चिंता में खर्च में कटौती करे. गरीबों के खातों में सीधे नकदी भेजकर मांग को बढ़ाया जा सकता है. सरकारी खर्च में ऐसे क्षेत्रों में बढ़ोतरी होनी चाहिए, जिन बुनियादी ढांचा परियोजनाओं में बड़ी संख्या में मजदूर काम करते हैं और जो भारी उत्पादक उपकरणों का उपयोग करते हैं.

उत्पाद-लिंक्ड प्रोत्साहन (पीएलआई) की घोषणा दस क्षेत्रों के लिए की जाती है. नौकरी अनुदान योजना केवल संगठित क्षेत्र के कर्मचारियों पर केंद्रित है, जो प्रति माह 15 हजार रुपए से कम कमाते हैं. रोजाना के कामों में तय समय के अलावा इसे केवल उत्पादक कार्यों और परिसंपत्तियों के निर्माण से जोड़ा जाना चाहिए. इसके परिणामस्वरूप रोजगार गारंटी योजना से कृषि क्षेत्र में मजदूरी पर दबाव कम हो सकता है. यह गांवों में संतुलित उपभोक्ता मांग को पैदा करने में योगदान देता है. इसके अलावा, यदि प्रधानमंत्री गरीब कल्याण रोजगार योजना और ग्रामीण बुनियादी ढांचे के निर्माण को लागू किया जा सकता है. तो 'आय पिरामिड' के निचले भाग पर रहने वाले लोगों की खपत में तेजी से बढ़ोतरी हो सकती है.

आवास क्षेत्र को समर्थन
रियल एस्टेट सेक्टर कृषि क्षेत्र के बाद देश का दूसरा सबसे बड़ा नियोक्ता है. इसमें 2022 तक छह करोड़ 70 लाख लोगों को रोजगार देने और 2025 तक सकल घरेलू उत्पाद का 13 प्रतिशत रहने की उम्मीद है. इसलिए केंद्र ने प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत घर खरीदने और बेचने वालों के लिए 18 हजार करोड़ रुपये की बजट सहायता की घोषणा की गई है. यह वर्ष 2020 के बजट में घोषित आठ हजार करोड़ रुपए के अलावा है. केंद्र ने प्रदर्शन सुरक्षा जमा राशि को पांच से घटाकर तीन फीसद कर दिया है. इसने आवास की बिक्री और खरीद पर आयकर नियमों में भी छूट दी है और कर प्रोत्साहन की घोषणा की है.

- डॉ. कल्लुरु शिवारेड्डी (पुणे स्थित गोखले इंस्टीट्यूट ऑफ पॉलिटिक्स एंड इकोनॉमिक्स में प्रोफेसर)

हैदराबाद : कोविड-19 ने विश्व अर्थव्यवस्था को पूरी तरह परास्त कर दिया है. महामारी को काबू में रखने के लिए लंबे समय तक चले लॉकडाउन के परिणामस्वरूप भारतीय अर्थव्यवस्था को बहुत नुकसान हुआ है. लाखों लोगों ने अपनी नौकरी गंवा दी, सरकार की आमदनी कम हो गई. परिणाम यह निकला कि वर्ष 2020-21 में अर्थव्यवस्था के विकास की दर नकारात्मक हो गई. भारती रिजर्व बैंक के नवीनतम अनुमान के अनुसार यह करीब -7.5 फीसद रह सकती है. इन परिस्थितियों में केंद्र सरकार ने अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने के लिए आत्मनिर्भर भारत के तहत आर्थिक प्रोत्साहन के उपाय शुरू किए हैं. अब तक घोषित कुल प्रोत्साहन राशि 29 लाख 87 हजार 647 करोड़ रुपए की है. यह जीडीपी का 15 फीसद है, जिनमें से केंद्र सरकार का हिस्सा नौ फीसद है.

शेष घोषणा आरबीआई ने विभिन्न रूपों में की थी. पहले पैकेज का लक्ष्य आर्थिक रूप से कमजोर लोगों की सहायता करना था. इसने 'क्रेडिट गारंटी' योजना के रूप में विशेष रूप से छोटे व्यवसायों के लिए प्रोत्साहन दिया. दूसरे पैकेज के माध्यम से निजी खपत बढ़ाने का प्रयास किया गया. मुख्य ध्यान अर्थव्यवस्था में आपूर्ति के साधनों पर था. हालांकि, कुछ वर्षों से देश की आर्थिक वृद्धि में उपभोक्ता की मांग महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही है, यह कुछ समय के लिए बहुत कम हो गई थी. निजी क्षेत्र के उपभोक्ता खर्च में वृद्धि दर गिर कर 3.1 फीसद तक रह गई, जो 18 तिमाहियों में सबसे कम है. इसने सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) में सात तिमाही में सबसे अधिक 57.7 फीसद की गिरावट भी दर्ज की. ऐसी कठिन परिस्थिति में आर्थिक विकास को प्रोत्साहित करने के लिए, मांग को बढ़ाने वाले कारक अर्थव्यवस्था में आपूर्ति कारकों से अधिक महत्वपूर्ण हैं. सरकार ने इसे स्वीकार किया है और प्रोत्साहन के तीसरे उपायों में ऐसी नीतियों को प्राथमिकता दी है, जो आर्थिक विकास को प्रोत्साहित करती हैं. इसने श्रम बाजार, तनावपूर्ण क्षेत्र, सामाजिक कल्याण, विनिर्माण, आवास, बुनियादी ढांचे, निर्यात और कृषि आदि कई क्षेत्रों पर ध्यान केंद्रित किया. मुख्य उद्देश्य विशेष तौर पर आवास क्षेत्र को बढ़ावा देकर तंत्र में मांग को प्रोत्साहित करना है.

मांग का नहीं बढ़ना
सामाजिक और आर्थिक संरचना (पिरामिड) के शीर्ष पर विराजमान सिर्फ 10 करोड़ लोगों की ओर से विभिन्न वस्तुओं और सेवाओं के उपयोग के लिए हुई मांग मुख्य रूप से देश के विकास को अब तक प्रभावित कर रही है. उनकी खपत की मांग रुक गई है क्योंकि उनकी जरूरतें पूरी हो गई हैं. यही कारण है कि इन दिनों वाहनों और घरों सहित देश में उपभोक्ता वस्तुओं की मांग अपेक्षाकृत कम है. वास्तव में इस मोड़ पर कोविड के रूप में तबाही ने देश की अर्थव्यवस्था को घेर लिया और बहुत अधिक नुकसान हुआ. इस स्थिति में केंद्र ने अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने के लिए इसे प्रोत्साहन देने वाले के रूप में आवास क्षेत्र को चुना है.

इस साल सितंबर के अंत तक सात प्रमुख शहरों में निर्माण के विभिन्न चरणों के तहत घरों की 4.5 लाख से अधिक इकाइयां नहीं बिक पाने वाली सूची में थीं. इन इकाइयों में आवास बनाने वालों (रियल्टर्स) का लगभग 3.7 लाख करोड़ रुपये का निवेश अटका हुआ था. इन प्रोत्साहनों की वजह से रियल एस्टेट डीलरों के लिए घर खरीदने वालों को बगैर किन्हीं अतिरिक्त करों के किफायती आवास देना संभव बना दिया है, जिससे उन्हें मांग के बिना इसी तरह पड़े अपने घरों को बेचने का अवसर मिला है. अगर आधे-अधूरे ढांचे को पूरा करने के लिए भवन निर्माताओं को सहायता दी जाती है तो यह उन श्रमिकों को शहरी आवास के कामों में वापस लाने में प्रमुख भूमिका निभाएगा, जिन्होंने कोरोना संकट को देखते हुए शहरों को छोड़ दिया था. यह रियल एस्टेट उद्योग के लिए अच्छा है. यह कई क्षेत्रों पर सकारात्मक प्रभाव डालेगा और अर्थव्यवस्था को पुनर्जीवित करेगा.

राजकोषीय घाटे की चिंता गैरजरूरी
अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) के अनुसार, भारत के सकल मूल्य संवर्धन (जीवीए) में इस वित्त वर्ष में 10.3 फीसद कमी आने की संभावना है. भारत एक मांग आधारित अर्थव्यवस्था है. लोगों की क्रय शक्ति बढ़ाकर अर्थव्यवस्था को आगे बढ़ाया जा सकता है. आर्थिक प्रोत्साहन का लक्ष्य उपभोक्ता की मांग को बढ़ाना है. पहले और दूसरे चरण के आर्थिक प्रोत्साहन के बड़े सरकारी खर्च नजर नहीं आते है. हालांकि, तीसरा प्रोत्साहन घाटे को कुछ कम कर सकता है, लेकिन किस हद तक अभी इसकी सीमा का अनुमान लगाना कठिन है. सरकारी राजस्व में कमी और इसके परिणामस्वरूप घाटे में बढ़ोतरी ने भी सरकार की अधिक खर्च करने की अनिच्छा में योगदान दिया है. केंद्र और राज्यों के बीच संयुक्त राजकोषीय घाटा सकल घरेलू उत्पाद का 8.2 प्रतिशत से 13.1 प्रतिशत तक बढ़ने का अनुमान है. सरकार के लिए यह सही समय नहीं है कि वह राजकोषीय घाटा अधिक बढ़ने की चिंता में खर्च में कटौती करे. गरीबों के खातों में सीधे नकदी भेजकर मांग को बढ़ाया जा सकता है. सरकारी खर्च में ऐसे क्षेत्रों में बढ़ोतरी होनी चाहिए, जिन बुनियादी ढांचा परियोजनाओं में बड़ी संख्या में मजदूर काम करते हैं और जो भारी उत्पादक उपकरणों का उपयोग करते हैं.

उत्पाद-लिंक्ड प्रोत्साहन (पीएलआई) की घोषणा दस क्षेत्रों के लिए की जाती है. नौकरी अनुदान योजना केवल संगठित क्षेत्र के कर्मचारियों पर केंद्रित है, जो प्रति माह 15 हजार रुपए से कम कमाते हैं. रोजाना के कामों में तय समय के अलावा इसे केवल उत्पादक कार्यों और परिसंपत्तियों के निर्माण से जोड़ा जाना चाहिए. इसके परिणामस्वरूप रोजगार गारंटी योजना से कृषि क्षेत्र में मजदूरी पर दबाव कम हो सकता है. यह गांवों में संतुलित उपभोक्ता मांग को पैदा करने में योगदान देता है. इसके अलावा, यदि प्रधानमंत्री गरीब कल्याण रोजगार योजना और ग्रामीण बुनियादी ढांचे के निर्माण को लागू किया जा सकता है. तो 'आय पिरामिड' के निचले भाग पर रहने वाले लोगों की खपत में तेजी से बढ़ोतरी हो सकती है.

आवास क्षेत्र को समर्थन
रियल एस्टेट सेक्टर कृषि क्षेत्र के बाद देश का दूसरा सबसे बड़ा नियोक्ता है. इसमें 2022 तक छह करोड़ 70 लाख लोगों को रोजगार देने और 2025 तक सकल घरेलू उत्पाद का 13 प्रतिशत रहने की उम्मीद है. इसलिए केंद्र ने प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत घर खरीदने और बेचने वालों के लिए 18 हजार करोड़ रुपये की बजट सहायता की घोषणा की गई है. यह वर्ष 2020 के बजट में घोषित आठ हजार करोड़ रुपए के अलावा है. केंद्र ने प्रदर्शन सुरक्षा जमा राशि को पांच से घटाकर तीन फीसद कर दिया है. इसने आवास की बिक्री और खरीद पर आयकर नियमों में भी छूट दी है और कर प्रोत्साहन की घोषणा की है.

- डॉ. कल्लुरु शिवारेड्डी (पुणे स्थित गोखले इंस्टीट्यूट ऑफ पॉलिटिक्स एंड इकोनॉमिक्स में प्रोफेसर)

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