नई दिल्ली : प्रसिद्ध अर्थशास्त्री आशिमा गोयल ने रविवार को कहा कि महामारी के गंभीर झटके के बावजूद भारत की वृहद अर्थव्यवस्था ज्यादा स्वस्थ है और तेजी से वृद्धि के लिए तैयार है. उन्होंने साथ ही कहा कि महामारी की पहली और दूसरी लहर से उबरने की रफ्तार का उम्मीद से बेहतर होना अर्थव्यवस्था की आंतरिक मजबूती को दर्शाता है.
आशिमा ने एक साक्षात्कार में कहा कि पहले से ही उन क्षेत्रों में निजी निवेश में वृद्धि के संकेत मिल रहे हैं जहां क्षमता से जुड़ी बाधाएं दिखायी दी हैं.
उन्होंने कहा, 'कोविड-19 के गंभीर झटके के बावजूद, भारत की व्यापक अर्थव्यवस्था ज्यादा स्वस्थ है और लंबे समय में तेज वृद्धि के लिए तैयार है. पहली और दूसरी लहर दोनों से उबरने की रफ्तार का उम्मीद से बेहतर होना अर्थव्यवस्था की आंतरिक मजबूती को दर्शाता है.'
भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) ने चालू वित्त वर्ष के लिए देश की वृद्धि दर के अनुमान को पहले के 10.5 प्रतिशत से घटाकर 9.5 प्रतिशत कर दिया है, जबकि विश्वबैंक ने 2021 में भारत की अर्थव्यवस्था के 8.3 प्रतिशत की दर से बढ़ने का अनुमान लगाया है. आशिमा रिजर्व बैंक की मौद्रिक नीति समिति (एमपीसी) की भी सदस्य हैं.
उन्होंने कहा, हालांकि कई भारतीय स्टार्ट-अप अच्छा कर रहे हैं, लेकिन 'हमें 2000 के दशक में निजी बुनियादी ढांचे में निवेश में जो उछाल आया था, उस तरह की उम्मीद नहीं करनी चाहिए.'
प्रसिद्ध अर्थशास्त्री ने कहा, 'भारत में पोर्टफोलियो का प्रवाह न केवल अमीर देशों के केंद्रीय बैंकों की मात्रात्मक सहजता के कारण होता है, बल्कि वे भारत की वृद्धि संभावनाओं से भी आकर्षित होते हैं. सभी उभरते बाजारों में इस तरह का प्रवाह नहीं होता है.'
उन्होंने कहा कि सरकार बुनियादी ढांचे में निवेश का नेतृत्व कर रही है और हालिया पूंजी प्रवाह में ज्यादा स्थिर प्रत्यक्ष विदेशी निवेश का बड़ा हिस्सा है. आशिमा ने कहा, 'इसके अलावा, भारत के पास घरेलू नीति चक्र के अनुरूप ब्याज दरों को सुनिश्चित करते हुए किसी भी अस्थिरता से निपटने के लिए पर्याप्त भंडार हैं.'
उन्होंने आर्थिक वृद्धि के धीमे पड़ने के बीच शेयर बाजार में आए उछाल को लेकर कहा कि शेयर बाजार आगे की ओर देख रहे हैं, इसलिए आमतौर पर वे वास्तविक अर्थव्यवस्था से आगे चलते हैं.
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उन्होंने कहा, 'कम ब्याज दरें भविष्य की कमाई के वर्तमान रियायती मूल्य को भी बढ़ाती हैं और सावधि जमा के आकर्षण को कम करती हैं. भारत की जनता के एक व्यापक हिस्से ने शेयर बाजारों में भाग लेना शुरू कर दिया है, जिससे उन्हें संपत्ति का ज्यादा विविध पोर्टफोलियो मिल रहा है.'