नई दिल्ली: दिवाला प्रक्रिया से गुजर रही कर्जदार कंपनी को परिसमाप्त किए जाने की स्थिति में उसकी परिसंपत्ति को उसके बैंक और कानूनी तौर पर सुरक्षित अन्य कर्जदाता किसी ऐसी इकाई को नहीं बेच सकते हैं, जो उस समाधान प्रकिया में भाग लेने की पात्र ही न हो. भारतीय दिवाला एवं ऋण शोधन अक्षमता बोर्ड (आईबीबीआई) ने परिसमापन प्रक्रिया के नियमों में संशोधन कर यह पाबंदी लागू की है.
एक आधिकारिक विज्ञप्ति में मंगलवार को कहा गया कि सिक्योर (सुरक्षित) कर्जदाता को दिवाला समाधान और परिसमापन प्रक्रिया की लागत में अपने हिस्से का योगदान तथा कर्मचारियों के बकाये का भुगतान परिसमापन शुरू होने की तारीख से 90 दिन के भीतर देना होगा.
दिवाला एवं ऋणशोधन अक्षमता सहिंता (आईबीसी) में ऋण संकट में फंसी कंपनियों के लिए समाधान प्रक्रिया के नियम तय हैं. यदि समाधान प्रक्रिया परवान नहीं चढ़ पाती है तो उस स्थिति में कंपनी का परिसमापन किया जाता है. विज्ञप्ति में कहा गया है कि आईबीबीआई ने छह जनवरी से परिसमापन प्रक्रिया के नियमों में बदलावों को अधिसूचित किया है.
इसमें कहा गया है, "कोई ऐसा व्यक्ति, जो कर्जदार कंपनी के लिए दिवाला समाधान के लिए प्रस्ताव रखने की पात्र नहीं है, उससे कंपनी अधिनियम 2013 की धारा 230 के तहत कर्जदार कंपनी के साथ समझौते या व्यवस्था में किसी भी तरह से पक्ष नहीं बनाया जाएगा. सुरक्षित कर्जदाता को परिसंपत्ति के लिए दावे से ज्यादा वसूली होने की स्थिति में बढ़ी हुई राशि का भुगतान परिसमापन शुरू होने की तारीख से 180 दिन के भीतर करना होगा.
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