मुंबई: सरकार द्वारा स्थानीय विनिर्माण को प्रोत्साहन देने के लिए कुछ उत्पादों पर आयात शुल्क बढ़ाने के बीच सोमवार को जारी एक रिपोर्ट में इस तरह के शुल्कों को कम करने की वकालत की गई.
रिपोर्ट में कहा गया है कि ऊंचे शुल्कों से प्रतिस्पर्धी विनिर्माण को प्रोत्साहन नहीं मिलता, बल्कि इससे दक्षता घटती है. वर्ष 2000 से ही विभिन्न सरकारें 2025 तक सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) में विनिर्माण क्षेत्र का हिस्सा 25 प्रतिशत करने का लक्ष्य लेकर चल रही हैं, लेकिन वास्तव में इस दिशा में कुछ खास नहीं हुआ है.
एसबीआई रिसर्च की रिपोर्ट में कहा गया है कि 2004 से 2007 के दौरान वैश्वि विनिर्माण के बढ़े हुए हिस्स में भारत की हिस्सेदारी डेढ़ से तीन प्रतिशत के बीच रही वहीं इस दौरान चीन में 18 प्रतिशत की बड़ी हिस्सेदारी हासिल की है.
रिपोर्ट कहती है कि इतने मामूली लाभ के बावजूद भारत दुनिया की छठी सबसे बड़ी विनिर्माण अर्थव्यवस्था है. वैश्विक उत्पादन में भारत का हिस्सा तीन प्रतिशत है.
रिपोर्ट में कहा गया है, "यदि हमें आत्मनिर्भर बनना है, तो शुल्क वृद्धि इसका तरीका नहीं है. इसके बजाय हमें सही बुनियादी ढांचा बनाने पर ध्यान देना चाहिए, जिससे हमारा विनिर्माण अधिक दक्ष बन सके और हम अपने निर्यात को प्रतिस्पर्धी बना सकें. इसके अलावा सरकार को कंपनियों के लिए प्रक्रियाओं को सुगम करना चाहिए जिससे वे आसानी से कामकाम कर सकें."
रिपोर्ट कहती है, "स्थानीय विनिर्माण को प्रोत्साहन देने के लिए हम आयात शुल्क को कम करना चाहिए. दुनिया में विनिर्माण में हम सबसे ऊंचे भारित औसत शुल्क वाला देश हैं. ऊंचे शुल्क से उत्पादकता नहीं सुधरती है, बल्कि इसे दक्षता तथा गुणवत्ता को नजरअंदाज करने का आसान रास्ता समझा जाता है."
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रिपोर्ट में कहा गया है कि आयात शुल्क में मात्र एक प्रतिशत की वृद्धि से आयात में औसतन दो अरब डॉलर की गिरावट आती है.
रिपोर्ट में कहा गया है कि कई अन्य देश ऐसे हैं जिनका शुल्क ढांचा नीचे है, लेकिन उन्होंने मजबूत विनिर्माण क्षमता निर्माण किया है, जिससे उनके निर्यात में भी मदद मिली है. रिपोर्ट कहती है कि ऊंचे शुल्कों की वजह से वैश्विक मूल्य श्रृंखला में भी देश की स्थिति प्रभावित हो रही है.
रिपोर्ट के अनुसार 2005 से 2008 तक तीन वर्षों को छोड़कर विनिर्माण उद्योग में हमारी वृद्धि दर कभी 10 प्रतिशत से अधिक नहीं रही. इस वजह से पिछले कुछ साल से कुल जीडीपी में विनिर्माण क्षेत्र का हिस्सा 15 से 18 प्रतिशत पर ही टिका हुआ है.
(पीटीआई-भाषा)