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राज्य सरकारों के घाटे को काफी कम नहीं कर पायेगी जीएसटी: रिपोर्ट - येफरन फुआ

एसएंडपी ग्लोबल रेटिंग्स के अनुसार, भारतीय राज्यों के लिए संस्थागत ढांचे का विकास हो रहा है, लेकिन लगातार बढ़ रहे राजस्व व्यय के कारण संरचनात्मक घाटा हो रहा है.

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Published : May 7, 2019, 2:19 PM IST

सिंगापुर : सामाजिक क्षेत्र के साथ-साथ बढ़ते पूंजीगत व्यय के बीच, वस्तु और सेवा कर (जीएसटी) के राज्य सरकारों के घाटों को कम करने की संभावना नहीं है. एक रिपोर्ट में यह बात कही गई.

एसएंडपी ग्लोबल रेटिंग्स के अनुसार, भारतीय राज्यों के लिए संस्थागत ढांचे का विकास हो रहा है, लेकिन लगातार बढ़ रहे राजस्व व्यय के कारण संरचनात्मक घाटा हो रहा है.

"सार्वजनिक वित्त प्रणाली अवलोकन: भारतीय राज्य" शीर्षक की रिपोर्ट में एसएंडपी ग्लोबल रेटिंग्स क्रेडिट विश्लेषक येफरन फुआ ने कहा कि 2017 में जीएसटी बिल का पारित होने से टैक्स संरचना का एक प्रमुख कायापलट हुआ. इससे टैक्स बेस को विस्तृत करने और राज्य के राजस्व में सुधारने में मदद मिलेगा.

ये भी पढ़ें : पूर्व आकलन वर्षों के रिटर्न शामिल होने की वजह से 2018-19 में घटा आयकर रिटर्न का आंकड़ा

फुआ ने कहा कि हालांकि, राज्य बड़े घाटे को जारी रखेंगे क्योंकि इस असंतुलन का एक महत्वपूर्ण हिस्सा व्यय पक्ष से है. राज्य इन व्ययों में कटौती करने में भी असमर्थ हैं, क्योंकि इसका बड़ा हिस्सा सामाजिक क्षेत्र और पूंजीगत व्यय से आता है. इसलिए यह राजस्व व्यय का अंतर बना रहेगा.

हाल के वर्षों में एक और महत्वपूर्ण विकास संशोधित राजकोषीय उत्तरदायित्व प्रबंधन (एफआरबीएम) अधिनियम को अपनाना रहा है, जो मार्च 2018 में राजकोषीय रूपरेखा बनाता है.

संशोधित एफआरबीएम अधिनियम के तहत, सरकार केंद्र सरकार और राज्यों के लिए 40:20 के बंटवारे के साथ 60 प्रतिशत के ऋण-से-जीडीपी अनुपात को लक्षित करेगी.

इसके अलावा, सरकार राजकोषीय घाटे को प्रमुख परिचालन लक्ष्य के रूप में उपयोग करेगी. रिपोर्ट में कहा गया है कि एफआरबीएम समिति को अपनी मूल सिफारिशों को पूरा करने के अधिकार का अभाव है.

सिंगापुर : सामाजिक क्षेत्र के साथ-साथ बढ़ते पूंजीगत व्यय के बीच, वस्तु और सेवा कर (जीएसटी) के राज्य सरकारों के घाटों को कम करने की संभावना नहीं है. एक रिपोर्ट में यह बात कही गई.

एसएंडपी ग्लोबल रेटिंग्स के अनुसार, भारतीय राज्यों के लिए संस्थागत ढांचे का विकास हो रहा है, लेकिन लगातार बढ़ रहे राजस्व व्यय के कारण संरचनात्मक घाटा हो रहा है.

"सार्वजनिक वित्त प्रणाली अवलोकन: भारतीय राज्य" शीर्षक की रिपोर्ट में एसएंडपी ग्लोबल रेटिंग्स क्रेडिट विश्लेषक येफरन फुआ ने कहा कि 2017 में जीएसटी बिल का पारित होने से टैक्स संरचना का एक प्रमुख कायापलट हुआ. इससे टैक्स बेस को विस्तृत करने और राज्य के राजस्व में सुधारने में मदद मिलेगा.

ये भी पढ़ें : पूर्व आकलन वर्षों के रिटर्न शामिल होने की वजह से 2018-19 में घटा आयकर रिटर्न का आंकड़ा

फुआ ने कहा कि हालांकि, राज्य बड़े घाटे को जारी रखेंगे क्योंकि इस असंतुलन का एक महत्वपूर्ण हिस्सा व्यय पक्ष से है. राज्य इन व्ययों में कटौती करने में भी असमर्थ हैं, क्योंकि इसका बड़ा हिस्सा सामाजिक क्षेत्र और पूंजीगत व्यय से आता है. इसलिए यह राजस्व व्यय का अंतर बना रहेगा.

हाल के वर्षों में एक और महत्वपूर्ण विकास संशोधित राजकोषीय उत्तरदायित्व प्रबंधन (एफआरबीएम) अधिनियम को अपनाना रहा है, जो मार्च 2018 में राजकोषीय रूपरेखा बनाता है.

संशोधित एफआरबीएम अधिनियम के तहत, सरकार केंद्र सरकार और राज्यों के लिए 40:20 के बंटवारे के साथ 60 प्रतिशत के ऋण-से-जीडीपी अनुपात को लक्षित करेगी.

इसके अलावा, सरकार राजकोषीय घाटे को प्रमुख परिचालन लक्ष्य के रूप में उपयोग करेगी. रिपोर्ट में कहा गया है कि एफआरबीएम समिति को अपनी मूल सिफारिशों को पूरा करने के अधिकार का अभाव है.

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सिंगापुर : सामाजिक क्षेत्र के साथ-साथ बढ़ते पूंजीगत व्यय के बीच, वस्तु और सेवा कर (जीएसटी) के राज्य सरकारों के घाटों को कम करने की संभावना नहीं है. एक रिपोर्ट में यह बात कही गई.

एसएंडपी ग्लोबल रेटिंग्स के अनुसार, भारतीय राज्यों के लिए संस्थागत ढांचे का विकास हो रहा है, लेकिन लगातार बढ़ रहे राजस्व व्यय के कारण संरचनात्मक घाटा हो रहा है.

"सार्वजनिक वित्त प्रणाली अवलोकन: भारतीय राज्य" शीर्षक की रिपोर्ट में एसएंडपी ग्लोबल रेटिंग्स क्रेडिट विश्लेषक येफरन फुआ ने कहा कि 2017 में जीएसटी बिल का पारित होने से टैक्स संरचना का एक प्रमुख कायापलट हुआ. इससे टैक्स बेस को विस्तृत करने और राज्य के राजस्व में सुधारने में मदद मिलेगा.

फुआ ने कहा कि हालांकि, राज्य बड़े घाटे को जारी रखेंगे क्योंकि इस असंतुलन का एक महत्वपूर्ण हिस्सा व्यय पक्ष से है. राज्य इन व्ययों में कटौती करने में भी असमर्थ हैं, क्योंकि इसका बड़ा हिस्सा सामाजिक क्षेत्र और पूंजीगत व्यय से आता है. इसलिए यह राजस्व व्यय का अंतर बना रहेगा.

हाल के वर्षों में एक और महत्वपूर्ण विकास संशोधित राजकोषीय उत्तरदायित्व प्रबंधन (एफआरबीएम) अधिनियम को अपनाना रहा है, जो मार्च 2018 में राजकोषीय रूपरेखा बनाता है.

संशोधित एफआरबीएम अधिनियम के तहत, सरकार केंद्र सरकार और राज्यों के लिए 40:20 के बंटवारे के साथ 60 प्रतिशत के ऋण-से-जीडीपी अनुपात को लक्षित करेगी.

इसके अलावा, सरकार राजकोषीय घाटे को प्रमुख परिचालन लक्ष्य के रूप में उपयोग करेगी. रिपोर्ट में कहा गया है कि एफआरबीएम समिति को अपनी मूल सिफारिशों को पूरा करने के अधिकार का अभाव है.


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