नई दिल्ली: वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने शनिवार कहा कि सरकार जल्द ही सार्वजनिक क्षेत्र की एक नयी उद्यम नीति लायेगी, जो रणनीतिक क्षेत्रों को परिभाषित करेगी. सरकार घोषणा कर चुकी है कि किसी भी रणनीतिक क्षेत्र में चार से अधिक सार्वजनिक उपक्रम नहीं होंगे.
सीतारमण ने कोरोना वायरस महामारी से अर्थव्यवस्था को उबारने के लिये मई में घोषित 'आत्मनिर्भर भारत' राहत पैकेज में कहा था कि रणनीतिक क्षेत्र की नयी परिभाषा के तहत इस दायरे में सार्वजनिक क्षेत्र की अधिकतम चार कंपनियां होंगी. रणनीतिक क्षेत्रों में चार से अतिरिक्त सरकारी कंपनियों का अंततः निजीकरण किया जायेगा.
उन्होंने पत्रकारों के साथ बातचीत में रणनीतिक क्षेत्रों की सूची के बारे में पूछे जाने पर कहा, "हम इस पर काम कर रहे हैं ... इसे जल्द ही मंत्रिमंडल के पास भेजा जाना चाहिये."
उन्होंने कहा कि रणनीतिक क्षेत्र के अंतर्गत आने वाले क्षेत्रों में अधिकतम चार सार्वजनिक उपक्रम तय करने के विभिन्न मॉडल हो सकते हैं. या तो उनका आपस में विलय कर दिया जायेगा, या उन्हें इस तरह से एक साथ लाया जायेगा कि हर क्षेत्र में केवल चार या उससे कम सरकारी कंपनियां हों.
रणनीतिक क्षेत्रों की सूची अधिसूचित की जायेगी. इनमें निजी कंपनियों के अलावा सार्वजनिक क्षेत्र के कम से कम एक और अधिकतम चार सार्वजनिक उद्यम होंगे. अन्य क्षेत्रों में, व्यवहार्यता के आधार पर सार्वजनिक क्षेत्र के केंद्रीय उद्यमों (सीपीएसई) का निजीकरण किया जायेगा.
वित्त मंत्री ने पैकेज की घोषणा करते हुए कहा था, "हम एक पीएसई नीति की घोषणा करना चाहते हैं, जैसा कि एक आत्मनिर्भर भारत को एक सुसंगत नीति की आवश्यकता है. सभी क्षेत्रों को निजी क्षेत्रों के लिये भी खोला जायेगा."
उन्होंने कहा, "पीएसई परिभाषित क्षेत्रों में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाते रहेंगे. हमें एक सुसंगत नीति की आवश्यकता है, क्योंकि कभी-कभी आप कुछ क्षेत्रों को टुकड़ों में खोलते हैं ... अब हम उन क्षेत्रों को परिभाषित करेंगे ... जहां उनकी उपस्थिति प्रभावपूर्ण रूप से महसूस होगी."
अगले हफ्ते रिजर्व बैंक की मौद्रिक नीति समिति की बैठक से अपेक्षाओं के बारे में पूछे जाने पर वित्त मंत्री ने कहा कि इस बारे में निर्णय आरबीआई को लेना है. अर्थव्यवस्था की स्थिति के बारे में बोलते हुए, उन्होंने कहा कि यह निश्चित रूप से कठिनाई से बाहर आने की कोशिश कर रहा है, लेकिन महामारी से जुड़ी अनिश्चितता के कारण इस समय पूरी तस्वीर खींचना मुश्किल होगा.
ये भी पढ़ें: पीसीए के दायरे से बाहर आने को तैयार है यूको बैंक: अधिकारी
देश के कई हिस्सों में महामारी के कारण मूल्य श्रृंखलाएं बाधित हैं. उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री विभिन्न हितधारकों के साथ नियमित रूप से बात कर रहे हैं.
उन्होंने कहा कि सरकार अर्थव्यवस्था को समर्थन देने के लिये सभी विकल्प खुले रखे है. उन्होंने कहा कि सरकार मापदंडों को लेकर सतर्क है, लेकिन अर्थव्यवस्था को एक ऐसे स्तर पर लाने की कोशिश की जा रही है, जहां हर क्षेत्र महामारी को फैलने से रोकने और उबरने का प्रयास करे.
सीतारमण ने कहा, "उम्मीद है कि यह भावना अर्थव्यवस्था को पुनर्जीवित करने में मदद करेगी, ... आरबीआई उद्योग जगत को तरलता मुहैया करा रहा है, और महंगाई की निगरानी के अलावा उसने आर्थिक वृद्धि को भी ध्यान में रखा है. अर्थव्यवस्था को इससे फायदा होगा."
बैंकों के निजीकरण के बारे में पूछे जाने पर उन्होंने कहा कि सरकार ने केवल आईडीबीआई बैंक के निजीकरण के प्रस्ताव को मंजूरी दी है. सरकार के पास अभी आईडीबीआई बैंक की 46.5 प्रतिशत हिस्सेदारी है.
जनवरी 2019 में, भारतीय जीवन बीमा निगम (एलआईसी) ने बैंक में 51 प्रतिशत नियंत्रण हिस्सेदारी का अधिग्रहण पूरा किया. एलआईसी ने बैंक में 21,624 करोड़ रुपये का निवेश किया.
मुआवजे पर अटॉर्नी जनरल की राय को लेकर जीएसटी परिषद की बैठक में होगी चर्चा : सीतारमण
वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने कहा है कि राज्यों के साथ विचार-विमर्श के बाद ही माल एवं सेवा कर (जीएसटी) मुआवजे पर अटॉर्नी जनरल (एजी) के विचार मांगे गए थे.
उन्होंने कहा कि जीएसटी परिषद की बैठक में इस कानूनी राय पर चर्चा की जाएगी. कुछ राज्यों ने जीएसटी मुआवजे पर अटॉर्नी जनरल की राय को लेकर आपत्ति जताई है. इस बारे में पूछे जाने पर सीतारमण ने शनिवार को कहा कि जीएसटी परिषद की बैठक में इसपर चर्चा की जाएगी.
वित्त मंत्री ने यहां संवाददाताओं से कहा, "जीएसटी परिषद की पिछली बैठक में इस मुद्दे पर विचार-विमर्श हुआ था. सदस्यों ने इस मामले में अपने विचार रखे थे. उसके बाद इसपर अटॉर्नी जनरल से कानूनी राय लेने पर विचार किया गया."
केंद्रीय वित्त मंत्री की अध्यक्षता वाली जीएसटी परिषद ने मार्च में परिषद द्वारा बाजार से कर्ज लेने की वैधता पर सरकार के मुख्य विधि अधिकारी अटॉर्नी जनरल की राय लेने का फैसला किया। था.
मुआवजा के लिए धन की कमी की भरपाई के लिए बाजार से कर्ज जुटाने की चर्चा हो रही है. परिषद में राज्यों के वित्त मंत्री भी शामिल हैं. सीतारमण ने कहा कि अटॉर्नी जनरल की राय मिल गई है.
"हम के मुआवजे के मुद्दे पर ही जीएसटी परिषद की बैठक करेंगे."
उन्होंने कहा कि बैठक की तारीख पर जल्द फैसला लिया जाएगा. सूत्रों ने बताया कि अटॉर्नी जनरल की राय है कि केंद्र सरकार राज्यों को देय जीएसटी मुआवजे के धन की कमी का भुगतान करने को बाध्य नहीं है. मुआवजा कोष में कमी की भरपाई का तरीका जीएसटी परिषद को ढूंढना है.
अगस्त, 2019 से उपकर से प्राप्त राजस्व में कमी आने के बाद राज्यों को जीएसटी मुआवजे का भुगतान मुद्दा बना हुआ है. केंद्र को 2017-18 और 2018-19 में जुटाए गए अधिशेष उपकर को मुआवजे पर खर्च करना पड़ा.
जीएसटी कानून के तहत जीएसटी के एक जुलाई, 2017 से क्रियान्वयन के बाद राज्यों को पहले पांच साल तक राजस्व नुकसान की भरपाई द्विमासिक आधार पर की जाती है. राजस्व नुकसान की कमी की गणना 2015-16 को आधार वर्ष के हिसाब से जीएसटी संग्रह में सालाना 14 प्रतिशत की वृद्धि के अनुमान के आधार पर की जाती है.
जीएसटी के ढांचे के तहत कर के चार स्लैब पांच प्रतिशत, 12 प्रतिशत, 18 प्रतिशत और 28 प्रतिशत हैं. सबसे ऊंचे कर स्लैब में विलासिता वाली या अहितकर वस्तुओं पर उपकर लगता है. इस उपकर का इस्तेमाल राज्यों को राजस्व नुकसान की भरपाई के लिए किया जाता है.
केंद्र ने 2019-20 में 1.65 लाख करोड़ रुपये का जीएसटी मुआवजा जारी किया था. हालांकि, 2019-20 में उपकर से जुटाई गई राशि कम यानी 95,444 करोड़ रुपये रही थी. 2018-19 में मुआवजे का भुगतान 69,275 करोड़ रुपये और 2017-18 में 41,146 करोड़ रुपये रहा था.
(पीटीआई-भाषा)