मुंबई : छोटे एवं मझोले उद्योगों को प्रोत्साहित करने के लिए मुद्रा एवं 59 मिनट में ऋण जैसी कई योजनाएं लाये जाने के बावजूद एमएसएमई क्षेत्र को दिये गए कर्ज में सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों की हिस्सेदारी इस साल दिसंबर में घटकर 39 प्रतिशत पर आ गयी. पांच साल पहले यह आंकड़ा 58 प्रतिशत पर था. एक रिपोर्ट में यह दावा किया गया है.
भारतीय लघु उद्योग विकास बैंक (सिडबी) एवं ऋण से जुड़ी जानकारी उपलब्ध कराने वाली कंपनी सिबिल ट्रांसयूनियन की एक रिपोर्ट के मुताबिक सरकारी स्वामित्व वाले बैंकों की संपत्ति की गुणवत्ता में कमी आने से ऋण वितरण में उसकी हिस्सेदारी घटी है.
हालांकि, इसी दौरान कर्ज वितरण में निजी क्षेत्र के बैंकों और गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों की हिस्सेदारी दिसंबर, 2018 में बढ़कर 33 प्रतिशत पर पहुंच गयी. दिसंबर, 2013 में यह आंकड़ा 22 प्रतिशत पर था. रिपोर्ट में कर्ज का आंकड़ा नहीं दिया गया है.
इस रिपोर्ट में कहा गया है कि सरकार मुद्रा और अन्य योजनाओं के जरिए एमएसएमई श्रेणी पर बहुत अधिक जोर देती रही है. रिपोर्ट में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी द्वारा पिछले साल शुरू की गयी 59 मिनट में ऋण योजना का भी उल्लेख है. लघु उद्योगों के कर्ज में सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों की हिस्सेदारी में भारी कमी उल्लेखनीय है क्योंकि सरकारी योजनाएं अब तक सरकारी बैंकों के दम पर ही चलती रही हैं.
रिपोर्ट में कहा गया है, "आगे हमें उम्मीद है कि सार्वजनिक क्षेत्र के बैंक अपने खोई हिस्सेदारी के कुछ हिस्से की भरपाई करने में कामयाब रहेंगे, क्योंकि कई बैंक रिजर्व बैंक की त्वरित सुधार कार्रवाई (पीएसए) के दायरे से बाहर आ गए हैं."
पीएसए एक विशेष प्रावधान है, जिसके तहत रिजर्व बैंक उच्च गैर-निष्पादित परिसंपत्तियों (एनपीए) सहित विभिन्न कारणों को लेकर बैंक की कुछ खास गतिविधियों पर रोक लगा देता है. एनपीए के लिहाज से देखें तो एमएसएमई क्षेत्र का प्रदर्शन दिसंबर, 2018 की तिमाही में बेहतर हुआ है.
सिडबी के चेयरमैन और प्रबंध निदेशक मोहम्मद मुस्तफा एनपीए परिदृश्य के बेहतर होने और कर्ज में वृद्धि को सकारात्मक संकेतक के रूप में देखते हैं.
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