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प्रतिस्पर्धात्मक कैशलेस प्रणाली !! - अली पे

भारत में अभी भी 72% उपभोक्ता, भुगतान कैश में करते हैं. ये चतीन की तुलना में दोगुना है. छोटे शहरों और गांवों में इंटरनेट की बेहतर सुविधाऐं न होने से रीटेलर अभी भी डिजिटल तरीको से परहेज करते हैं. इसलिए भारत में प्रति व्यक्ति डिजिटल भुगतान अभी भी अपने शुरुआती दौर मे है.

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प्रतिस्पर्धात्मक कैशलेस प्रणाली !!
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Published : Dec 20, 2019, 2:57 PM IST

हैदराबाद: अमरीका ने क्रेडिट और डेबिट कार्ड के जरिये केशलेस पेमेंट को दुनिया में प्रचलित कर दिया है. फिर चाहे वो ऑनलाइन खरीददारी हो, दुकानों में शॉपिंग हो या रेसटोरेंट में खाना खाना. चीन में भी लोग भुगतान के लिये डिजिटल वॉलेट और क्यूआर कोड का प्रयोग कर रहे हैं. अब तक करीब 83 मिलियन लोगों ने पेमेंट करने के लिये अपने स्मार्ट फोन और मोबाइल एप्प का इस्तेमाल करना शुरू कर दिया है.

चीन में डिडिटल पेंमेंट के विकास का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि चीन में भिखारी भी भीख मांगने के लिये क्यूआर कोड का इस्तेमाल कर रहे हैं. मीडिया से जुड़ी बड़ी कंपनियां, जैसे कि अलीबाबा (चीन का अमेजन) और टेंसेंट (चीन का फेसबुक) पेंमेंट गेटवे के क्षेत्र में बैंको की भूमिका में आ रहे हैं.

जहां क्रेडिट या डेबिट कार्ड से पेंमंट लेने पर, दुकानदार बैंक को 0.5%-0.6% प्रोसेसिंग फीस देते हैं, वहीं मोबाइल वॉलेट के जरिये पेमेंट लेने में ये फीस केवल 0.1% है. यही कारण है कि पिछले साल अली-पे (अलीबाबा) और वी चैट पे (टेंनेसेंट) के जरिये $12.8 ट्रिलियन का भुगतान हुआ है. दुनिया में होने वाली तमाम डिजिटल पेमेंट में से आधी चीन में होती हैं.

अफ्रीका के लिये फायदे का सौदा

कैशलेस ऑनलाइन पेमेंट का जो दौर चीन ने शुरू किया वो अब तेजी से अफ्रीका में, जहां बैंकिंग सुविधाऐं अच्छी नही हैं वहां अपने पांव फैला रहा है. चीन द्वारा अफ्रीका में अपनी तकनीक और निवेश लाने के कारण आज वहां, 4जी नेटवर्क, स्मार्ट फोन और मोबाइल पेमेंट की संख्या तेजी से बढ़ती जा रही हैं.

भारत में इस साल अक्टूबर में पहली बार ऐसा हुआ कि, बाजार में यूपीआई की तुलना में कार्ड के जरिये कम पेमेंट की गई. देश के कई शहरों में, गूगल पे, फोन-पे, भीम एप्प आदि से पेमेंट करने के मामले में बैंगलोर (38.10%) सबसे आगे रहा. इसके बाद, हैदराबाद (12.50%) और दिल्ली(10.22%) का नंबर रहा. ये आंकड़े बैंगलोर की पेमेंट गोटवे कंपनी रेजर-पे ने जारी किये हैं.

हांलाकि अलीबाबा और वी चैट के पेमेंट एप्प बैंकिंग सेवाओं की जगह ले रहे हैं, लेकिन ये दोनो ही फिलहाल बैंक खातों से लिंक हैं और उसी के समन्व्य में काम करते है. अमरीकी कंपनी फेसबुक, अपनी खुद की डिजिटल क्रिप्टो करेंसी "लिब्रा" को 2020 में लांच करने की तैयारी मे है. लिब्रा की ही तर्ज पर चीन भी अपने केंद्रीय बैंत के जरिये अपनी खुद की क्रिप्टो करेंसी शुरू करने की तैयारियों में है. इसका लांच 2020 के मध्य में होने की संभावना है.

बाजार भाव में विश्व के सबसे बड़े बैंक, जेपी मॉर्गन एंड चेस ने भी इसी साल के शुरुआत में अपनी खुद की क्रिप्टो करेंसी "कॉइन" लांच की है. ये करेंसी ब्लॉक चेन तकनीक पर आधारित है, जिसमे खाताधारक तेज रफ्तार से पैसे ट्रांस्फर कर सकता है.

कैसे काम करती है "लिब्रा"?

वहीं फेसबुक, लिब्रा को विश्वव्यापी डिजिटल करेंसी बनाने के लिये काम कर रही है. लेकिन अगर चीन भी क्रिप्टो करेंसी के बाजार में कदम जमाता है तो ऐसे में लिब्रा को अमरीका और युरोप के बैंकिंग क्षेत्र और नियामक संस्थाओं से खासी मुखालफत का सामना करना पड़ सकता है.

लिब्रा एक क्रिप्टो करेंसी है। सभी क्रिप्टो करेंसी डिजिटल करेंसी होती हैं, लेकिन सभी डिजिटल करेंसी क्रिप्टो करेंसी नही हो सकती हैं. लिब्रा को दुनिया के किसी भी कोने से, बिना किसी शुल्क के, सुरक्षा और तेजी से ट्रांस्फर किया जा सकता है. लिब्रा की वैल्यू, बिटकॉइन की तरह उपर नीचे नही होती है. इसका गिरना डॉलर, येन और यूरो के ऊपर निर्रभर करता है.

जब कोई लिब्रा खरीददता है तो, उसके बराबर की रकम डॉलर, यूरो या येन के रूप में बैंक में जमा कराई जाती है. इन डिपोसिट पर ब्याज भी मिलता है. लिब्रा को वापस डॉलर या यूरो में बदलने के लिये, फेसबुक की एप्प "लिब्रा" एक्सचेंज रेट का भुगतान करेगी.

लिब्रा स्विटजर्लैंड के एक नॉन प्रॉफिट संस्थान के अंतर्गत काम करती है. जब लिब्रा कि शुरुआत हो जायेगी तो कोई भी कंपनी इस डिजिटल करेंसी से वॉलेट बना सकेगी. फेसबुक, फेसबुक मैसेंजर और व्हॉट्सएप्प के मिलाकर दुनियाभर में 270 मिलियन उपभोक्ता हैं. वो सभी ये चाहते हैं कि लिब्रा एक ऐसी डिजिटल करेंसी बने जो उन्हे भुगतान, निवेश और डिजिटल उधार देने में मदद करे. फेसबुक-पे, सबसे पहले एक पेमेंट सर्विसेज प्लेटफॉर्म की तरह शुरू हुआ था.

फेसबुक की सहायक कंपनियां, जैसे की व्हॉट्सएप्प, मैसेंजर और इंस्टाग्राम के जरिये भी पेमेंट कि जा सकती हैं. वहॉट्सएप्प ने हाल ही मे, भारत में डिजिटल पेमेंट के क्षेत्र में एक प्रयोग किया है। 100 बैंको और वित्तीय संस्थानों को लिब्रा समुदाय से जोड़ा गया है. पश्चिमी दुनिये के सबसे बड़े बैंक, जेपी मॉर्गन के भी इस समुदाय से जुड़ने के कयास लग रहे हैं, लेकिन जेपी मॉर्गन ने हाल ही जेपी कॉइन के नाम से अपनी खुद की डिजिटल करेंसी शुरू की है.

लिब्रा करेंसी से दूर रहना, मास्टर कार्ड, वीसा, पे पाल और ई-बे के लिये नुकसानदायक साबित हो रहा है. ऊबर और स्पॉटिफाई केवल लिब्रा करेंसी ही स्वीकार करती हैं. इस बात का भी संदेह है कि लिब्रा का इस्तेमाल नशे की तस्करी और गैरकानूनी धन के आदान प्रदान में हो सकता है. इसके साथ ही उपभोक्ता अधिकारों और आर्थिक मजबूती को लेकर भी कई सवाल खड़े हैं.

इन्ही चिंताओँ के कारण फ्रांस औऱ जर्मनी, लिब्रा को युरोप में दाखिल नही होने दे रहे हैं. ये देश, निजि करेंसी लिब्रा के स्थान पर सरकारी क्रिप्टो करेंसी को शुरू करने पर जोर दे रहे हैं. ऐसे माहौल में नही लगता कि जून 2020 में लिब्रा की शुरुआत हो सकेगी.

डॉलर के प्रभुत्व पर रोक

वहीं चीन अपने केंद्रीय बैंक के जरिये, अपनी खुद की क्रिप्टो करेंसी शुरू करने की तैयारी मे है. अगर ऐसा होता है तो, विश्व में रिजर्व करेंसी के तौर पर डॉलर के प्रभुत्व को झटका लग सकता है. खासतौर पर एशिया, अफ्रीका और लैटिन अमरीका के विकासशील देश डॉलर का साथ छोड़कर चीन की करेंसी का दामन थाम सकते हैं.

अमरीका और चीन के बीच पहले से ही, व्यापार, 5जी सेवाओं, और अन्य क्षेत्रों में व्यापारिक तनातनी चल रही है, और अब ये मुकाबला डिजिटल करेंसी क्षेत्र में भी फैलेगा. बैंक ऑफ इंग्लैंड ने भी ये चेतावनी दी है कि, चीन की डिजिटल करेंसी के अंतंराष्ट्रीय करेंसी बनने की संमभावना है, जिसके कारण आज तक डॉलर में होने वाला सारा व्यापार इस करेंसी में होने लग सकता है.

अगर अमरीका और युरोप में लिब्रा को इजाजत नहीं मिलती है तो, फेसबुक इसे अफ्रीका, लैटिन अमरीका और एशिया में शुरू कर सकता है.

भारत में अभी भी 72% उपभोक्ता, भुगतान कैश में करते हैं. ये चतीन की तुलना में दोगुना है. छोटे शहरों और गांवों में इंटरनेट की बेहतर सुविधाऐं न होने से रीटेलर अभी भी डिजिटल तरीको से परहेज करते हैं. इस लिये भारत में प्रति व्यक्ति डिजिटल भुगतान अभी भी अपने शुरुआती दौर मे है.

चीन ने अपने यहां 2017 में 96.7% की दर से प्रति व्यक्ति डिजिटल भुगतान दर्ज किया था. वहीं 2015 में भारत में यह दर 22.4% ही थी.

हांलाकि नरेंद्र मोदी सरकार ने कैश भुगतानों को रोकने और डिजिटल पेमेंट को बढ़ावा देने के लिये 2016 में बड़े बैंक नोटों पर रोक लगाई थी, लेकिन दो सालों में भारत में कैश के इस्तेमाल में कोई खास कमी नही आई है. मौजूदा समय में 10 मिलियन भारतीय डिजिटल पेमेंट के लिये यूपीआई का इस्तेमाल कर रहे हैं.

हांलाकि, यूपीआई के मुख्य कार्यकारी अधिकारी, दिलीप अस्बे का कहना है कि अगले पांच सालों में 50 मिलियन लोगों को इससे जोड़ने का लक्ष्य है. जहां पेटीएम पहले ही अलीबाबा से साझेदारी कर चुका है, और इसे बड़े पैमाने पर देश में इस्तेमाल किया जाता है, वहीं, फेसबुक व्हाट्सएप् के जरिये पेमेंट के क्षेत्र में अपने पैर फैलाने की कोशिश कर रहा है. रतन टाटा ने भी निजी तौर पर पेटीएम में निवेश किया है.

चीन, फेसबुक, और अन्य कंपनियां भीम जैसे भारतीय घरेलू एप्प से मुकाबला कर रही हैं. देश की 130 करोड़ जनसंख्या को कैशलेस व्यवस्था से जोड़ने के लिये, जरूरी है कि भारत इस क्षेत्र में कड़े मुकाबले के लिये तैयार रहे और इस मैदान में बाजी मार ले. भारत दुनियाभर में हो रहे डिजिटल पेमेंट बदलावों में पीछे नही रह सकता है.

इस आभास से भारत भीम एप्प के जरिये अंतर्राष्ट्रीय सेवाऐं मुहैया कराने की तरफ काम कर रहा है. हाल ही मे, सिंगापुर के फिंटेक फेस्टिवल में इस बाबत एक प्रयोगात्मक भुगतान भी किया गया था.

भारत भी तेज रफ्तार से बड़ रहा है

भारत भी तेजी से कैशलेस डिजिटल अर्थव्यवस्था की तरफ कदम बड़ा रहा है. अली पे और वीचैट पे चीन के बाजार के दो प्रमुख पैमेंट एप्प हैं, वहीं भारत में ऐसे करीब 87 एप्प मौजूद हैं. इनमे गूगल पे, अमाजन पे और पेटीएम जैसी कंपनियां शामिल हैं. चीन के उलट, भारत में आर्थिक सेवाऐं देने वाली स्टार्टअप कंपनियों के लिये ज्यादा मौके मौजूद हैं.

2015 से अबतक भारत में डिजिटल पैमेंट में पांच गुना का इजाफा हुआ है. नेशनल पेमेंट एजेंसी ऑफ इंडिया के नियमों के तहत चलने वाले यूपीआई से तुरंत मोबाइल पेमेंट किये जा सकती हैं. यूपीआई ने विभिन्न बैंक खातों को पेमेंट एप्पस से जोड़कर डिजिटल पंमेंट को और सुगम किया है.

हांलाकि अगर भारत अंतर्राष्ट्रीय कैशलेस बाजार में अपनी छाप छोड़ना चाहता है तो अभी भी, भारत के लिये कैशलेस पेमेंट के लिहाज से सफर लंबा है.
ये भी पढ़ें: कंपनी अधिनियम के तहत प्रावधानों को आपराधिक कार्रवाई से मुक्त करने का काम जारी: मोदी

हैदराबाद: अमरीका ने क्रेडिट और डेबिट कार्ड के जरिये केशलेस पेमेंट को दुनिया में प्रचलित कर दिया है. फिर चाहे वो ऑनलाइन खरीददारी हो, दुकानों में शॉपिंग हो या रेसटोरेंट में खाना खाना. चीन में भी लोग भुगतान के लिये डिजिटल वॉलेट और क्यूआर कोड का प्रयोग कर रहे हैं. अब तक करीब 83 मिलियन लोगों ने पेमेंट करने के लिये अपने स्मार्ट फोन और मोबाइल एप्प का इस्तेमाल करना शुरू कर दिया है.

चीन में डिडिटल पेंमेंट के विकास का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि चीन में भिखारी भी भीख मांगने के लिये क्यूआर कोड का इस्तेमाल कर रहे हैं. मीडिया से जुड़ी बड़ी कंपनियां, जैसे कि अलीबाबा (चीन का अमेजन) और टेंसेंट (चीन का फेसबुक) पेंमेंट गेटवे के क्षेत्र में बैंको की भूमिका में आ रहे हैं.

जहां क्रेडिट या डेबिट कार्ड से पेंमंट लेने पर, दुकानदार बैंक को 0.5%-0.6% प्रोसेसिंग फीस देते हैं, वहीं मोबाइल वॉलेट के जरिये पेमेंट लेने में ये फीस केवल 0.1% है. यही कारण है कि पिछले साल अली-पे (अलीबाबा) और वी चैट पे (टेंनेसेंट) के जरिये $12.8 ट्रिलियन का भुगतान हुआ है. दुनिया में होने वाली तमाम डिजिटल पेमेंट में से आधी चीन में होती हैं.

अफ्रीका के लिये फायदे का सौदा

कैशलेस ऑनलाइन पेमेंट का जो दौर चीन ने शुरू किया वो अब तेजी से अफ्रीका में, जहां बैंकिंग सुविधाऐं अच्छी नही हैं वहां अपने पांव फैला रहा है. चीन द्वारा अफ्रीका में अपनी तकनीक और निवेश लाने के कारण आज वहां, 4जी नेटवर्क, स्मार्ट फोन और मोबाइल पेमेंट की संख्या तेजी से बढ़ती जा रही हैं.

भारत में इस साल अक्टूबर में पहली बार ऐसा हुआ कि, बाजार में यूपीआई की तुलना में कार्ड के जरिये कम पेमेंट की गई. देश के कई शहरों में, गूगल पे, फोन-पे, भीम एप्प आदि से पेमेंट करने के मामले में बैंगलोर (38.10%) सबसे आगे रहा. इसके बाद, हैदराबाद (12.50%) और दिल्ली(10.22%) का नंबर रहा. ये आंकड़े बैंगलोर की पेमेंट गोटवे कंपनी रेजर-पे ने जारी किये हैं.

हांलाकि अलीबाबा और वी चैट के पेमेंट एप्प बैंकिंग सेवाओं की जगह ले रहे हैं, लेकिन ये दोनो ही फिलहाल बैंक खातों से लिंक हैं और उसी के समन्व्य में काम करते है. अमरीकी कंपनी फेसबुक, अपनी खुद की डिजिटल क्रिप्टो करेंसी "लिब्रा" को 2020 में लांच करने की तैयारी मे है. लिब्रा की ही तर्ज पर चीन भी अपने केंद्रीय बैंत के जरिये अपनी खुद की क्रिप्टो करेंसी शुरू करने की तैयारियों में है. इसका लांच 2020 के मध्य में होने की संभावना है.

बाजार भाव में विश्व के सबसे बड़े बैंक, जेपी मॉर्गन एंड चेस ने भी इसी साल के शुरुआत में अपनी खुद की क्रिप्टो करेंसी "कॉइन" लांच की है. ये करेंसी ब्लॉक चेन तकनीक पर आधारित है, जिसमे खाताधारक तेज रफ्तार से पैसे ट्रांस्फर कर सकता है.

कैसे काम करती है "लिब्रा"?

वहीं फेसबुक, लिब्रा को विश्वव्यापी डिजिटल करेंसी बनाने के लिये काम कर रही है. लेकिन अगर चीन भी क्रिप्टो करेंसी के बाजार में कदम जमाता है तो ऐसे में लिब्रा को अमरीका और युरोप के बैंकिंग क्षेत्र और नियामक संस्थाओं से खासी मुखालफत का सामना करना पड़ सकता है.

लिब्रा एक क्रिप्टो करेंसी है। सभी क्रिप्टो करेंसी डिजिटल करेंसी होती हैं, लेकिन सभी डिजिटल करेंसी क्रिप्टो करेंसी नही हो सकती हैं. लिब्रा को दुनिया के किसी भी कोने से, बिना किसी शुल्क के, सुरक्षा और तेजी से ट्रांस्फर किया जा सकता है. लिब्रा की वैल्यू, बिटकॉइन की तरह उपर नीचे नही होती है. इसका गिरना डॉलर, येन और यूरो के ऊपर निर्रभर करता है.

जब कोई लिब्रा खरीददता है तो, उसके बराबर की रकम डॉलर, यूरो या येन के रूप में बैंक में जमा कराई जाती है. इन डिपोसिट पर ब्याज भी मिलता है. लिब्रा को वापस डॉलर या यूरो में बदलने के लिये, फेसबुक की एप्प "लिब्रा" एक्सचेंज रेट का भुगतान करेगी.

लिब्रा स्विटजर्लैंड के एक नॉन प्रॉफिट संस्थान के अंतर्गत काम करती है. जब लिब्रा कि शुरुआत हो जायेगी तो कोई भी कंपनी इस डिजिटल करेंसी से वॉलेट बना सकेगी. फेसबुक, फेसबुक मैसेंजर और व्हॉट्सएप्प के मिलाकर दुनियाभर में 270 मिलियन उपभोक्ता हैं. वो सभी ये चाहते हैं कि लिब्रा एक ऐसी डिजिटल करेंसी बने जो उन्हे भुगतान, निवेश और डिजिटल उधार देने में मदद करे. फेसबुक-पे, सबसे पहले एक पेमेंट सर्विसेज प्लेटफॉर्म की तरह शुरू हुआ था.

फेसबुक की सहायक कंपनियां, जैसे की व्हॉट्सएप्प, मैसेंजर और इंस्टाग्राम के जरिये भी पेमेंट कि जा सकती हैं. वहॉट्सएप्प ने हाल ही मे, भारत में डिजिटल पेमेंट के क्षेत्र में एक प्रयोग किया है। 100 बैंको और वित्तीय संस्थानों को लिब्रा समुदाय से जोड़ा गया है. पश्चिमी दुनिये के सबसे बड़े बैंक, जेपी मॉर्गन के भी इस समुदाय से जुड़ने के कयास लग रहे हैं, लेकिन जेपी मॉर्गन ने हाल ही जेपी कॉइन के नाम से अपनी खुद की डिजिटल करेंसी शुरू की है.

लिब्रा करेंसी से दूर रहना, मास्टर कार्ड, वीसा, पे पाल और ई-बे के लिये नुकसानदायक साबित हो रहा है. ऊबर और स्पॉटिफाई केवल लिब्रा करेंसी ही स्वीकार करती हैं. इस बात का भी संदेह है कि लिब्रा का इस्तेमाल नशे की तस्करी और गैरकानूनी धन के आदान प्रदान में हो सकता है. इसके साथ ही उपभोक्ता अधिकारों और आर्थिक मजबूती को लेकर भी कई सवाल खड़े हैं.

इन्ही चिंताओँ के कारण फ्रांस औऱ जर्मनी, लिब्रा को युरोप में दाखिल नही होने दे रहे हैं. ये देश, निजि करेंसी लिब्रा के स्थान पर सरकारी क्रिप्टो करेंसी को शुरू करने पर जोर दे रहे हैं. ऐसे माहौल में नही लगता कि जून 2020 में लिब्रा की शुरुआत हो सकेगी.

डॉलर के प्रभुत्व पर रोक

वहीं चीन अपने केंद्रीय बैंक के जरिये, अपनी खुद की क्रिप्टो करेंसी शुरू करने की तैयारी मे है. अगर ऐसा होता है तो, विश्व में रिजर्व करेंसी के तौर पर डॉलर के प्रभुत्व को झटका लग सकता है. खासतौर पर एशिया, अफ्रीका और लैटिन अमरीका के विकासशील देश डॉलर का साथ छोड़कर चीन की करेंसी का दामन थाम सकते हैं.

अमरीका और चीन के बीच पहले से ही, व्यापार, 5जी सेवाओं, और अन्य क्षेत्रों में व्यापारिक तनातनी चल रही है, और अब ये मुकाबला डिजिटल करेंसी क्षेत्र में भी फैलेगा. बैंक ऑफ इंग्लैंड ने भी ये चेतावनी दी है कि, चीन की डिजिटल करेंसी के अंतंराष्ट्रीय करेंसी बनने की संमभावना है, जिसके कारण आज तक डॉलर में होने वाला सारा व्यापार इस करेंसी में होने लग सकता है.

अगर अमरीका और युरोप में लिब्रा को इजाजत नहीं मिलती है तो, फेसबुक इसे अफ्रीका, लैटिन अमरीका और एशिया में शुरू कर सकता है.

भारत में अभी भी 72% उपभोक्ता, भुगतान कैश में करते हैं. ये चतीन की तुलना में दोगुना है. छोटे शहरों और गांवों में इंटरनेट की बेहतर सुविधाऐं न होने से रीटेलर अभी भी डिजिटल तरीको से परहेज करते हैं. इस लिये भारत में प्रति व्यक्ति डिजिटल भुगतान अभी भी अपने शुरुआती दौर मे है.

चीन ने अपने यहां 2017 में 96.7% की दर से प्रति व्यक्ति डिजिटल भुगतान दर्ज किया था. वहीं 2015 में भारत में यह दर 22.4% ही थी.

हांलाकि नरेंद्र मोदी सरकार ने कैश भुगतानों को रोकने और डिजिटल पेमेंट को बढ़ावा देने के लिये 2016 में बड़े बैंक नोटों पर रोक लगाई थी, लेकिन दो सालों में भारत में कैश के इस्तेमाल में कोई खास कमी नही आई है. मौजूदा समय में 10 मिलियन भारतीय डिजिटल पेमेंट के लिये यूपीआई का इस्तेमाल कर रहे हैं.

हांलाकि, यूपीआई के मुख्य कार्यकारी अधिकारी, दिलीप अस्बे का कहना है कि अगले पांच सालों में 50 मिलियन लोगों को इससे जोड़ने का लक्ष्य है. जहां पेटीएम पहले ही अलीबाबा से साझेदारी कर चुका है, और इसे बड़े पैमाने पर देश में इस्तेमाल किया जाता है, वहीं, फेसबुक व्हाट्सएप् के जरिये पेमेंट के क्षेत्र में अपने पैर फैलाने की कोशिश कर रहा है. रतन टाटा ने भी निजी तौर पर पेटीएम में निवेश किया है.

चीन, फेसबुक, और अन्य कंपनियां भीम जैसे भारतीय घरेलू एप्प से मुकाबला कर रही हैं. देश की 130 करोड़ जनसंख्या को कैशलेस व्यवस्था से जोड़ने के लिये, जरूरी है कि भारत इस क्षेत्र में कड़े मुकाबले के लिये तैयार रहे और इस मैदान में बाजी मार ले. भारत दुनियाभर में हो रहे डिजिटल पेमेंट बदलावों में पीछे नही रह सकता है.

इस आभास से भारत भीम एप्प के जरिये अंतर्राष्ट्रीय सेवाऐं मुहैया कराने की तरफ काम कर रहा है. हाल ही मे, सिंगापुर के फिंटेक फेस्टिवल में इस बाबत एक प्रयोगात्मक भुगतान भी किया गया था.

भारत भी तेज रफ्तार से बड़ रहा है

भारत भी तेजी से कैशलेस डिजिटल अर्थव्यवस्था की तरफ कदम बड़ा रहा है. अली पे और वीचैट पे चीन के बाजार के दो प्रमुख पैमेंट एप्प हैं, वहीं भारत में ऐसे करीब 87 एप्प मौजूद हैं. इनमे गूगल पे, अमाजन पे और पेटीएम जैसी कंपनियां शामिल हैं. चीन के उलट, भारत में आर्थिक सेवाऐं देने वाली स्टार्टअप कंपनियों के लिये ज्यादा मौके मौजूद हैं.

2015 से अबतक भारत में डिजिटल पैमेंट में पांच गुना का इजाफा हुआ है. नेशनल पेमेंट एजेंसी ऑफ इंडिया के नियमों के तहत चलने वाले यूपीआई से तुरंत मोबाइल पेमेंट किये जा सकती हैं. यूपीआई ने विभिन्न बैंक खातों को पेमेंट एप्पस से जोड़कर डिजिटल पंमेंट को और सुगम किया है.

हांलाकि अगर भारत अंतर्राष्ट्रीय कैशलेस बाजार में अपनी छाप छोड़ना चाहता है तो अभी भी, भारत के लिये कैशलेस पेमेंट के लिहाज से सफर लंबा है.
ये भी पढ़ें: कंपनी अधिनियम के तहत प्रावधानों को आपराधिक कार्रवाई से मुक्त करने का काम जारी: मोदी

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हैदराबाद: अमरीका ने क्रेडिट और डेबिट कार्ड के जरिये केशलेस पेमेंट को दुनिया में प्रचलित कर दिया है. फिर चाहे वो ऑनलाइन खरीददारी हो, दुकानों में शॉपिंग हो या रेसटोरेंट में खाना खाना. चीन में भी लोग भुगतान के लिये डिजिटल वॉलेट और क्यूआर कोड का प्रयोग कर रहे हैं. अब तक करीब 83 मिलियन लोगों ने पेमेंट करने के लिये अपने स्मार्ट फोन और मोबाइल एप्प का इस्तेमाल करना शुरू कर दिया है.

चीन में डिडिटल पेंमेंट के विकास का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि चीन में भिखारी भी भीख मांगने के लिये क्यूआर कोड का इस्तेमाल कर रहे हैं. मीडिया से जुड़ी बड़ी कंपनियां, जैसे कि अलीबाबा (चीन का अमेजन) और टेंसेंट (चीन का फेसबुक) पेंमेंट गेटवे के क्षेत्र में बैंको की भूमिका में आ रहे हैं.

जहां क्रेडिट या डेबिट कार्ड से पेंमंट लेने पर, दुकानदार बैंक को 0.5%-0.6% प्रोसेसिंग फीस देते हैं, वहीं मोबाइल वॉलेट के जरिये पेमेंट लेने में ये फीस केवल 0.1% है. यही कारण है कि पिछले साल अली-पे (अलीबाबा) और वी चैट पे (टेंनेसेंट) के जरिये $12.8 ट्रिलियन का भुगतान हुआ है. दुनिया में होने वाली तमाम डिजिटल पेमेंट में से आधी चीन में होती हैं.



अफ्रीका के लिये फायदे का सौदा



कैशलेस ऑनलाइन पेमेंट का जो दौर चीन ने शुरू किया वो अब तेजी से अफ्रीका में, जहां बैंकिंग सुविधाऐं अच्छी नही हैं वहां अपने पांव फैला रहा है. चीन द्वारा अफ्रीका में अपनी तकनीक और निवेश लाने के कारण आज वहां, 4जी नेटवर्क, स्मार्ट फोन और मोबाइल पेमेंट की संख्या तेजी से बढ़ती जा रही हैं.

भारत में इस साल अक्टूबर में पहली बार ऐसा हुआ कि, बाजार में यूपीआई की तुलना में कार्ड के जरिये कम पेमेंट की गई. देश के कई शहरों में, गूगल पे, फोन-पे, भीम एप्प आदि से पेमेंट करने के मामले में बैंगलोर (38.10%) सबसे आगे रहा. इसके बाद, हैदराबाद (12.50%) और दिल्ली(10.22%) का नंबर रहा. ये आंकड़े बैंगलोर की पेमेंट गोटवे कंपनी रेजर-पे ने जारी किये हैं.

हांलाकि अलीबाबा और वी चैट के पेमेंट एप्प बैंकिंग सेवाओं की जगह ले रहे हैं, लेकिन ये दोनो ही फिलहाल बैंक खातों से लिंक हैं और उसी के समन्व्य में काम करते है. अमरीकी कंपनी फेसबुक, अपनी खुद की डिजिटल क्रिप्टो करेंसी "लिब्रा" को 2020 में लांच करने की तैयारी मे है. लिब्रा की ही तर्ज पर चीन भी अपने केंद्रीय बैंत के जरिये अपनी खुद की क्रिप्टो करेंसी शुरू करने की तैयारियों में है. इसका लांच 2020 के मध्य में होने की संभावना है.

बाजार भाव में विश्व के सबसे बड़े बैंक, जेपी मॉर्गन एंड चेस ने भी इसी साल के शुरुआत में अपनी खुद की क्रिप्टो करेंसी "कॉइन" लांच की है. ये करेंसी ब्लॉक चेन तकनीक पर आधारित है, जिसमे खाताधारक तेज रफ्तार से पैसे ट्रांस्फर कर सकता है.  



कैसे काम करती है "लिब्रा"?

वहीं फेसबुक, लिब्रा को विश्वव्यापी डिजिटल करेंसी बनाने के लिये काम कर रही है. लेकिन अगर चीन भी क्रिप्टो करेंसी के बाजार में कदम जमाता है तो ऐसे में लिब्रा को अमरीका और युरोप के बैंकिंग क्षेत्र और नियामक संस्थाओं से खासी मुखालफत का सामना करना पड़ सकता है.

लिब्रा एक क्रिप्टो करेंसी है। सभी क्रिप्टो करेंसी डिजिटल करेंसी होती हैं, लेकिन सभी डिजिटल करेंसी क्रिप्टो करेंसी नही हो सकती हैं. लिब्रा को दुनिया के किसी भी कोने से, बिना किसी शुल्क के, सुरक्षा और तेजी से ट्रांस्फर किया जा सकता है. लिब्रा की वैल्यू, बिटकॉइन की तरह उपर नीचे नही होती है. इसका गिरना डॉलर, येन और यूरो के ऊपर निर्रभर करता है.

जब कोई लिब्रा खरीददता है तो, उसके बराबर की रकम डॉलर, यूरो या येन के रूप में बैंक में जमा कराई जाती है. इन डिपोसिट पर ब्याज भी मिलता है. लिब्रा को वापस डॉलर या यूरो में बदलने के लिये, फेसबुक की एप्प "लिब्रा" एक्सचेंज रेट का भुगतान करेगी.



लिब्रा स्विटजर्लैंड के एक नॉन प्रॉफिट संस्थान के अंतर्गत काम करती है. जब लिब्रा कि शुरुआत हो जायेगी तो कोई भी कंपनी इस डिजिटल करेंसी से वॉलेट बना सकेगी. फेसबुक, फेसबुक मैसेंजर और व्हॉट्सएप्प के मिलाकर दुनियाभर में 270 मिलियन उपभोक्ता हैं. वो सभी ये चाहते हैं कि लिब्रा एक ऐसी डिजिटल करेंसी बने जो उन्हे भुगतान, निवेश और डिजिटल उधार देने में मदद करे. फेसबुक-पे, सबसे पहले एक पेमेंट सर्विसेज प्लेटफॉर्म की तरह शुरू हुआ था.

फेसबुक की सहायक कंपनियां, जैसे की व्हॉट्सएप्प, मैसेंजर और इंस्टाग्राम के जरिये भी पेमेंट कि जा सकती हैं. वहॉट्सएप्प ने हाल ही मे, भारत में डिजिटल पेमेंट के क्षेत्र में एक प्रयोग किया है। 100 बैंको और वित्तीय संस्थानों को लिब्रा समुदाय से जोड़ा गया है. पश्चिमी दुनिये के सबसे बड़े बैंक, जेपी मॉर्गन के भी इस समुदाय से जुड़ने के कयास लग रहे हैं, लेकिन जेपी मॉर्गन ने हाल ही जेपी कॉइन के नाम से अपनी खुद की डिजिटल करेंसी शुरू की है.

लिब्रा करेंसी से दूर रहना, मास्टर कार्ड, वीसा, पे पाल और ई-बे के लिये नुकसानदायक साबित हो रहा है. ऊबर और स्पॉटिफाई केवल लिब्रा करेंसी ही स्वीकार करती हैं. इस बात का भी संदेह है कि लिब्रा का इस्तेमाल नशे की तस्करी और गैरकानूनी धन के आदान प्रदान में हो सकता है. इसके साथ ही उपभोक्ता अधिकारों और आर्थिक मजबूती को लेकर भी कई सवाल खड़े हैं.

इन्ही चिंताओँ के कारण फ्रांस औऱ जर्मनी, लिब्रा को युरोप में दाखिल नही होने दे रहे हैं. ये देश, निजि करेंसी लिब्रा के स्थान पर सरकारी क्रिप्टो करेंसी को शुरू करने पर जोर दे रहे हैं. ऐसे माहौल में नही लगता कि जून 2020 में लिब्रा की शुरुआत हो सकेगी.



डॉलर के प्रभुत्व पर रोक

वहीं चीन अपने केंद्रीय बैंक के जरिये, अपनी खुद की क्रिप्टो करेंसी शुरू करने की तैयारी मे है. अगर ऐसा होता है तो, विश्व में रिजर्व करेंसी के तौर पर डॉलर के प्रभुत्व को झटका लग सकता है. खासतौर पर एशिया, अफ्रीका और लैटिन अमरीका के विकासशील देश डॉलर का साथ छोड़कर चीन की करेंसी का दामन थाम सकते हैं.

अमरीका और चीन के बीच पहले से ही, व्यापार, 5जी सेवाओं, और अन्य क्षेत्रों में व्यापारिक तनातनी चल रही है, और अब ये मुकाबला डिजिटल करेंसी क्षेत्र में भी फैलेगा. बैंक ऑफ इंग्लैंड ने भी ये चेतावनी दी है कि, चीन की डिजिटल करेंसी के अंतंराष्ट्रीय करेंसी बनने की संमभावना है, जिसके कारण आज तक डॉलर में होने वाला सारा व्यापार इस करेंसी में होने लग सकता है.

अगर अमरीका और युरोप में लिब्रा को इजाजत नहीं मिलती है तो, फेसबुक इसे अफ्रीका, लैटिन अमरीका और एशिया में शुरू कर सकता है.

भारत में अभी भी 72% उपभोक्ता, भुगतान कैश में करते हैं. ये चतीन की तुलना में दोगुना है. छोटे शहरों और गांवों में इंटरनेट की बेहतर सुविधाऐं न होने से रीटेलर अभी भी डिजिटल तरीको से परहेज करते हैं. इस लिये भारत में प्रति व्यक्ति डिजिटल भुगतान अभी भी अपने शुरुआती दौर मे है.

चीन ने अपने यहां 2017 में 96.7% की दर से प्रति व्यक्ति डिजिटल भुगतान दर्ज किया था. वहीं 2015 में भारत में यह दर 22.4% ही थी.



हांलाकि नरेंद्र मोदी सरकार ने कैश भुगतानों को रोकने और डिजिटल पेमेंट को बढ़ावा देने के लिये 2016 में बड़े बैंक नोटों पर रोक लगाई थी, लेकिन दो सालों में भारत में कैश के इस्तेमाल में कोई खास कमी नही आई है. मौजूदा समय में 10 मिलियन भारतीय डिजिटल पेमेंट के लिये यूपीआई का इस्तेमाल कर रहे हैं.

हांलाकि, यूपीआई के मुख्य कार्यकारी अधिकारी, दिलीप अस्बे का कहना है कि अगले पांच सालों में 50 मिलियन लोगों को इससे जोड़ने का लक्ष्य है. जहां पेटीएम पहले ही अलीबाबा से साझेदारी कर चुका है, और इसे बड़े पैमाने पर देश में इस्तेमाल किया जाता है, वहीं, फेसबुक व्हाट्सएप् के जरिये पेमेंट के क्षेत्र में अपने पैर फैलाने की कोशिश कर रहा है. रतन टाटा ने भी निजी तौर पर पेटीएम में निवेश किया है.

चीन, फेसबुक, और अन्य कंपनियां भीम जैसे भारतीय घरेलू एप्प से मुकाबला कर रही हैं. देश की 130 करोड़ जनसंख्या को कैशलेस व्यवस्था से जोड़ने के लिये, जरूरी है कि भारत इस क्षेत्र में कड़े मुकाबले के लिये तैयार रहे और इस मैदान में बाजी मार ले. भारत दुनियाभर में हो रहे डिजिटल पेमेंट बदलावों में पीछे नही रह सकता है.

इस आभास से भारत भीम एप्प के जरिये अंतर्राष्ट्रीय सेवाऐं मुहैया कराने की तरफ काम कर रहा है. हाल ही मे, सिंगापुर के फिंटेक फेस्टिवल में इस बाबत एक प्रयोगात्मक भुगतान भी किया गया था.



भारत भी तेज रफ्तार से बड़ रहा है



भारत भी तेजी से कैशलेस डिजिटल अर्थव्यवस्था की तरफ कदम बड़ा रहा है. अली पे और वीचैट पे चीन के बाजार के दो प्रमुख पैमेंट एप्प हैं, वहीं भारत में ऐसे करीब 87 एप्प मौजूद हैं. इनमे गूगल पे, अमाजन पे और पेटीएम जैसी कंपनियां शामिल हैं. चीन के उलट, भारत में आर्थिक सेवाऐं देने वाली स्टार्टअप कंपनियों के लिये ज्यादा मौके मौजूद हैं.

2015 से अबतक भारत में डिजिटल पैमेंट में पांच गुना का इजाफा हुआ है. नेशनल पेमेंट एजेंसी ऑफ इंडिया के नियमों के तहत चलने वाले यूपीआई से तुरंत मोबाइल पेमेंट किये जा सकती हैं. यूपीआई ने विभिन्न बैंक खातों को पेमेंट एप्पस से जोड़कर डिजिटल पंमेंट को और सुगम किया है.

हांलाकि अगर भारत अंतर्राष्ट्रीय कैशलेस बाजार में अपनी छाप छोड़ना चाहता है तो अभी भी, भारत के लिये कैशलेस पेमेंट के लिहाज से सफर लंबा है.

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Conclusion:
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