हैदराबाद: चालू वित्त वर्ष में राज्यों और केंद्र सरकार का संयुक्त राजकोषीय घाटा बढ़ कर छह प्रतिशत के तय स्तर के मुकाबले 14 प्रतिशत तक पहुंच सकता है. भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) के पूर्व गवर्नर सी रंगराजन ने बृहस्पतिवार को यह कहा. रंगराजन प्रधानमंत्री की आर्थिक सलाहकार परिषद (ईएसी) के चेयरमैन भी रह चुके हैं.
उन्होंने आईसीएफएआई बिजनेस स्कूल द्वारा यहां आयोजित एक कार्यक्रम में कहा कि बैंकों को उधार देते समय न तो डरना चाहिये और न ही दुस्साहस दिखाना चाहिये, क्योंकि आज के कर्ज को कल गैर निष्पादित संपत्ति (एनपीए) नहीं बनना चाहिये.
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उन्होंने कहा, "इसलिये हम अनिवार्य रूप से राज्यों और केंद्र के समग्र राजकोषीय घाटे के सकल घरेलू उत्पाद के 13.8 प्रतिशत या 14 प्रतिशत पर पहुंच जाने के बारे में बात कर रहे हैं. यह स्पष्ट है कि यह तय स्तर का दो गुना है. केंद्र और राज्यों के लिये राजकोषीय घाटे का तय स्तर जीडीपी का छह प्रतिशत है. यह (14 प्रतिशत) अनुमानित आंकड़े का दो गुना या उससे भी अधिक है."
उन्होंने कहा कि यदि माल एवं सेवा कर (जीएसटी) की कमी की क्षतिपूर्ति के लिये सरकार अतिरिक्त कर्ज लेने का निर्णय लेती है तो राजकोषीय घाटा और बढ़ सकता है.
रंगराजन ने कहा कि आरबीआई की मौद्रिक नीति मौजूदा परिस्थितियों में "सुसंगत" है और इसके परिणामस्वरूप बैंकों के पास अधिक उधार देने के लिये पर्याप्त तरलता है.
उन्होंने कहा कि जब अर्थव्यवस्था में मंदी है तो सरकारों को अधिक खर्च करने की आवश्यकता है और अर्थव्यवस्था को गति देने के लिये स्वास्थ्य सेवा, राहत व पुनर्वास तथा प्रोत्साहन पर खर्च करना आवश्यक है.
(पीटीआई-भाषा)