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शहद उत्पादन में चीन सबसे आगे, भारत आठवें स्थान पर

अंतराष्‍ट्रीय खाद्य एंव कृषि संगठन-फाओ के 2017-18 के आंकडों के अनुसार शहद उत्‍पादन के मामले में भारत 64.9 हजार टन शहद उत्‍पादन के साथ दुनिया में आठवें स्‍थान पर रहा जबकि चीन 551 हजार टन शहद उत्‍पादन के साथ पहले स्‍थान पर रहा.

शहद उत्पादन में चीन सबसे आगे, भारत आठवें स्थान पर
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Published : Jun 26, 2019, 6:14 PM IST

नई दिल्ली: प्रधानमंत्री की आर्थिक सलाहकार परिषद के तहत गठित मधुमक्‍खी पालन विकास समिति ने आज अपनी रिपोर्ट जारी की है. इस समिति का गठन प्रो. देबरॉय की अध्‍यक्षता में किया गया है.

बीडीसी का गठन भारत में मधुमक्खी पालन को बढ़ावा देने के नए तौर तरीकों की पहचान करने के उद्देश्य से किया गया है ताकि इसके जरिए कृषि उत्पादकता, रोजगार सृजन और पोषण सुरक्षा बढ़ाने तथा जैव विविधता को संक्षित रखने में मदद मिल सके. इसके अलावा, 2022 तक किसानों की आय दोगुना करने के लक्ष्‍य को प्राप्‍त करने में भी मधुमक्खी पालन महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है.

ये भी पढ़ें- अमेजन की विशेष प्राइम डे सेल 15-16 जुलाई को

अंतराष्‍ट्रीय खाद्य एवं कृषि संगठन-फाओ के 2017-18 के आंकडों के अनुसार शहद उत्‍पादन के मामले में भारत 64.9 हजार टन शहद उत्‍पादन के साथ दुनिया में आठवें स्‍थान पर रहा जबकि चीन 551 हजार टन शहद उत्‍पादन के साथ पहले स्‍थान पर रहा.

बीडीसी की रिपोर्ट के अनुसार मधुमक्‍खी पालन को केवल शहद और मोम उत्‍पादन तक सीमित रखे जाने की बजाए इसे परागणों, मधुमक्‍खी द्वारा छत्‍ते में इकठ्ठा किए जाने वाले पौध रसायन, रॉयल जेली और मधुमक्‍खी के डंक में युक्‍त विष को उत्‍पाद के रूप में बेचने के लिए भी इस्‍तेमाल किया जा सकता है जिससे भारतीय किसान काफी लाभान्वित हो सकते हैं.

खेती और फसलों के क्षेत्र के आधार पर, भारत में लगभग 200 मिलियन मधुमक्खी आवास क्षेत्र की क्षमता है, जबकि इस समय देश में ऐसे 3.4 मिलियन मधुमक्खी आवास क्षेत्र हैं. मधुमक्ख्यिों के आवास क्षेत्र का दायरा बढ़ने से बढ़ने से न केवल मधुमक्खी से संबंधित उत्पादों की संख्‍या बढ़ेगी बल्कि समग्र कृषि और बागवानी उत्पादकता को भी बढ़ावा मिलेगा.

देश में मधुमक्‍खी पालन को बढ़ावा देने के लिए सरकार द्वारा हाल में किये गये प्रयासों के कारण 2014-15 और 2017-18 के दौरान शहद का निर्यात (कृषि और किसान कल्‍याण मंत्रालय के राष्‍ट्रीय मधुमक्‍खी पालन बोर्ड के आंकडों के अनुसार) 29.6 हजार टन से बढ़कर 51.5 हजार टन पर पहुंच गया. हालांकि इस क्षेत्र में अभी भी काफी चुनौतियां मौजूद है पर इसके साथ ही इस उद्योग को प्रोत्‍साहित करने के लिए काफी संभावनाएं भी है.

देश में मधुमक्‍खी पालन के उद्योग को बढ़ावा देने के लिए बीडीसी की रिपोर्ट में निम्‍नलिखित सुझाव दिये गये हैं :-

  • मधुमक्‍खियों को कृषि उत्‍पाद के रूप में देखना तथा भूमिहीन मधुमक्‍खी पालकों को किसान का दर्जा देना.
  • मधुमक्खियों के पंसद वाले पौधे सही स्‍थानों पर लगाना तथा महिला स्‍व: सहायता समूहों को ऐसे बागानों का प्रबंधन सौंपना.
  • राष्‍ट्रीय मधुमक्‍खी बोर्ड को संसथागत रूप देना तथा कृषि और किसान कल्‍याण मंत्रालय के तहत इसे शहद और परागण बोर्ड का नाम देना. ऐसा निकाय कई तंत्रों के माध्यम से मधुमक्खी पालन को बढ़ावा देने में मदद करेगा.
  • भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के तत्वावधान में उन्नत अनुसंधान के लिए एक विषय के रूप में मधुमक्‍खी पालन को मान्यता.
  • मधुमक्‍खी पालकों का राज्‍य सरकारों द्वारा प्रशिक्षण और विकास.
  • शहद सहित मधुमक्खियों से जुड़े अन्‍य उत्‍पादों के संग्रहण, प्रसंस्‍करण और विपणन के लिए राष्‍ट्रीय और क्षेत्रीय स्‍तर पर अवसंरचनाओं का विकास.
  • शहद और अन्य मधुमक्खी उत्पादों के निर्यात को आसान बनाने के लिए प्रक्रियाओं को सरल बनाना और स्पष्ट मानकों को निर्दिष्ट करना.
  • बीडीसी की यह रिपोर्ट प्रधानमंत्री को सौंपी गई है और साथ ही जनसाधारण के लिए सार्वजनिक रूप से (पब्लिक डोमेन) पर भी उपलब्‍ध करायी गई है.

नई दिल्ली: प्रधानमंत्री की आर्थिक सलाहकार परिषद के तहत गठित मधुमक्‍खी पालन विकास समिति ने आज अपनी रिपोर्ट जारी की है. इस समिति का गठन प्रो. देबरॉय की अध्‍यक्षता में किया गया है.

बीडीसी का गठन भारत में मधुमक्खी पालन को बढ़ावा देने के नए तौर तरीकों की पहचान करने के उद्देश्य से किया गया है ताकि इसके जरिए कृषि उत्पादकता, रोजगार सृजन और पोषण सुरक्षा बढ़ाने तथा जैव विविधता को संक्षित रखने में मदद मिल सके. इसके अलावा, 2022 तक किसानों की आय दोगुना करने के लक्ष्‍य को प्राप्‍त करने में भी मधुमक्खी पालन महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है.

ये भी पढ़ें- अमेजन की विशेष प्राइम डे सेल 15-16 जुलाई को

अंतराष्‍ट्रीय खाद्य एवं कृषि संगठन-फाओ के 2017-18 के आंकडों के अनुसार शहद उत्‍पादन के मामले में भारत 64.9 हजार टन शहद उत्‍पादन के साथ दुनिया में आठवें स्‍थान पर रहा जबकि चीन 551 हजार टन शहद उत्‍पादन के साथ पहले स्‍थान पर रहा.

बीडीसी की रिपोर्ट के अनुसार मधुमक्‍खी पालन को केवल शहद और मोम उत्‍पादन तक सीमित रखे जाने की बजाए इसे परागणों, मधुमक्‍खी द्वारा छत्‍ते में इकठ्ठा किए जाने वाले पौध रसायन, रॉयल जेली और मधुमक्‍खी के डंक में युक्‍त विष को उत्‍पाद के रूप में बेचने के लिए भी इस्‍तेमाल किया जा सकता है जिससे भारतीय किसान काफी लाभान्वित हो सकते हैं.

खेती और फसलों के क्षेत्र के आधार पर, भारत में लगभग 200 मिलियन मधुमक्खी आवास क्षेत्र की क्षमता है, जबकि इस समय देश में ऐसे 3.4 मिलियन मधुमक्खी आवास क्षेत्र हैं. मधुमक्ख्यिों के आवास क्षेत्र का दायरा बढ़ने से बढ़ने से न केवल मधुमक्खी से संबंधित उत्पादों की संख्‍या बढ़ेगी बल्कि समग्र कृषि और बागवानी उत्पादकता को भी बढ़ावा मिलेगा.

देश में मधुमक्‍खी पालन को बढ़ावा देने के लिए सरकार द्वारा हाल में किये गये प्रयासों के कारण 2014-15 और 2017-18 के दौरान शहद का निर्यात (कृषि और किसान कल्‍याण मंत्रालय के राष्‍ट्रीय मधुमक्‍खी पालन बोर्ड के आंकडों के अनुसार) 29.6 हजार टन से बढ़कर 51.5 हजार टन पर पहुंच गया. हालांकि इस क्षेत्र में अभी भी काफी चुनौतियां मौजूद है पर इसके साथ ही इस उद्योग को प्रोत्‍साहित करने के लिए काफी संभावनाएं भी है.

देश में मधुमक्‍खी पालन के उद्योग को बढ़ावा देने के लिए बीडीसी की रिपोर्ट में निम्‍नलिखित सुझाव दिये गये हैं :-

  • मधुमक्‍खियों को कृषि उत्‍पाद के रूप में देखना तथा भूमिहीन मधुमक्‍खी पालकों को किसान का दर्जा देना.
  • मधुमक्खियों के पंसद वाले पौधे सही स्‍थानों पर लगाना तथा महिला स्‍व: सहायता समूहों को ऐसे बागानों का प्रबंधन सौंपना.
  • राष्‍ट्रीय मधुमक्‍खी बोर्ड को संसथागत रूप देना तथा कृषि और किसान कल्‍याण मंत्रालय के तहत इसे शहद और परागण बोर्ड का नाम देना. ऐसा निकाय कई तंत्रों के माध्यम से मधुमक्खी पालन को बढ़ावा देने में मदद करेगा.
  • भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के तत्वावधान में उन्नत अनुसंधान के लिए एक विषय के रूप में मधुमक्‍खी पालन को मान्यता.
  • मधुमक्‍खी पालकों का राज्‍य सरकारों द्वारा प्रशिक्षण और विकास.
  • शहद सहित मधुमक्खियों से जुड़े अन्‍य उत्‍पादों के संग्रहण, प्रसंस्‍करण और विपणन के लिए राष्‍ट्रीय और क्षेत्रीय स्‍तर पर अवसंरचनाओं का विकास.
  • शहद और अन्य मधुमक्खी उत्पादों के निर्यात को आसान बनाने के लिए प्रक्रियाओं को सरल बनाना और स्पष्ट मानकों को निर्दिष्ट करना.
  • बीडीसी की यह रिपोर्ट प्रधानमंत्री को सौंपी गई है और साथ ही जनसाधारण के लिए सार्वजनिक रूप से (पब्लिक डोमेन) पर भी उपलब्‍ध करायी गई है.
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बीडीसी रिपोर्ट: शहद उत्पादन में चीन सबसे आगे, भारत आठवें स्थान पर  

नई दिल्ली: प्रधानमंत्री की आर्थिक सलाहकार परिषद के तहत गठित मधुमक्‍खी पालन विकास समिति ने आज अपनी रिपोर्ट जारी की है. इस समिति का गठन प्रो. देबरॉय की अध्‍यक्षता में किया गया है. 

बीडीसी का गठन भारत में मधुमक्खी पालन को बढ़ावा देने के नए तौर तरीकों की पहचान करने के उद्देश्य से किया गया है ताकि इसके जरिए  कृषि उत्पादकता, रोजगार सृजन और पोषण सुरक्षा बढ़ाने तथा जैव विविधता को संक्षित रखने में मदद मिल सके. इसके अलावा, 2022 तक किसानों की आय दोगुना करने के लक्ष्‍य को प्राप्‍त करने में भी मधुमक्खी पालन महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है.

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अंतराष्‍ट्रीय खाद्य एंव कृषि संगठन-फाओ के 2017-18 के आंकडों के अनुसार शहद उत्‍पादन के मामले में भारत 64.9 हजार टन शहद उत्‍पादन के साथ दुनिया में आठवें स्‍थान पर रहा जबकि चीन 551 हजार टन शहद उत्‍पादन के साथ पहले स्‍थान पर रहा. 

बीडीसी की रिपोर्ट के अनुसार मधुमक्‍खी पालन को केवल शहद और मोम उत्‍पादन तक सीमित रखे जाने की बजाए इसे परागणों, मधुमक्‍खी द्वारा छत्‍ते में इकठ्ठा किए जाने वाले पौध रसायन, रॉयल जेली और मधुमक्‍खी के डंक में युक्‍त विष को उत्‍पाद के रूप में बेचने के लिए भी इस्‍तेमाल किया जा सकता है जिससे भारतीय किसान काफी लाभान्वित हो सकते हैं. 

खेती और फसलों के क्षेत्र के आधार पर,  भारत में लगभग 200 मिलियन मधुमक्खी आवास क्षेत्र की क्षमता है, जबकि इस समय देश में  ऐसे 3.4 मिलियन मधुमक्खी आवास क्षेत्र हैं. मधुमक्ख्यिों के आवास क्षेत्र का दायरा बढ़ने से बढ़ने से न केवल मधुमक्खी से संबंधित उत्पादों की संख्‍या बढ़ेगी बल्कि समग्र कृषि और बागवानी उत्पादकता को भी बढ़ावा मिलेगा.



देश में मधुमक्‍खी पालन को बढ़ावा देने के लिए सरकार द्वारा हाल में किये गये प्रयासों के कारण 2014-15 और 2017-18 के दौरान शहद का निर्यात (कृषि और किसान कल्‍याण मंत्रालय के राष्‍ट्रीय मधुमक्‍खी पालन बोर्ड के आंकडों के अनुसार) 29.6 हजार टन से बढ़कर 51.5 हजार टन पर पहुंच गया. हालांकि इस क्षेत्र में अभी भी काफी चुनौतियां मौजूद है पर इसके साथ ही इस उद्योग को प्रोत्‍साहित करने के लिए काफी संभावनाएं भी है.



देश में मधुमक्‍खी पालन के उद्योग को बढ़ावा देने के लिए बीडीसी की रिपोर्ट में निम्‍नलिखित सुझाव दिये गये हैं :-



मधुमक्‍खियों को कृषि उत्‍पाद के रूप में देखना तथा भूमिहीन मधुमक्‍खी पालकों को किसान का दर्जा देना.

मधुमक्खियों के पंसद वाले पौधे सही स्‍थानों पर लगाना तथा महिला स्‍व: सहायता समूहों को ऐसे बागानों का प्रबंधन सौंपना.

राष्‍ट्रीय मधुमक्‍खी बोर्ड को संसथागत रूप देना तथा कृषि और किसान कल्‍याण मंत्रालय के तहत इसे शहद और परागण बोर्ड का नाम देना. ऐसा निकाय कई तंत्रों के माध्यम से मधुमक्खी पालन को बढ़ावा देने में मदद करेगा. इसमें नए एकीकृत मधुमक्खी विकास केंद्रों की स्थापना, उद्योग से जुड़े लोगों को और ज्‍यादा प्रशिक्षित करना , शहद की कीमतों को स्थिर बनाए रखने के लिए एक कोष का गठन तथा मधुमक्‍खी पालन के महत्वपूर्ण पहलुओं पर डेटा संग्रह जैसी बातें शामिल होंगी.

भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के तत्वावधान में उन्नत अनुसंधान के लिए एक विषय के रूप में मधुमक्‍खी पालन को मान्यता.

मधुमक्‍खी पालकों का राज्‍य सरकारों द्वारा प्रशिक्षण और विकास.

शहद सहित मधुमक्खियों से जुड़े अन्‍य उत्‍पादों के संग्रहण, प्रसंस्‍करण और विपणन के लिए राष्‍ट्रीय और क्षेत्रीय स्‍तर पर अवसंरचनाओं का विकास.

शहद और अन्य मधुमक्खी उत्पादों के निर्यात को आसान बनाने के लिए प्रक्रियाओं को सरल बनाना और स्पष्ट मानकों को निर्दिष्ट करना.

बीडीसी की यह रिपोर्ट प्रधानमंत्री को सौंपी गई है और साथ ही जनसाधारण के लिए सार्वजनिक रूप से (पब्लिक डोमेन) पर भी उपलब्‍ध करायी गई है.  


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