नई दिल्ली : रेटिंग एजेंसी इंडिया रेटिंग्स एंड रिसर्च (इंड रा) ने चालू वित्त वर्ष में जीडीपी वृद्धि के अपने अनुमान को संशोधित कर 9.4 प्रतिशत कर दिया है. एजेंसी ने कोविड की दूसरी लहर, बढ़ता निर्यात और पर्याप्त वर्षा के बीच आश्चर्यजनक रूप से आर्थिक गतिविधियों में तेजी को देखते हुए अपने अनुमान को संशोधित किया है.
इंड रा ने इससे पहले दिसंबर 2021 तक ज्यादातर युवाओं का टीकाकरण होने की स्थिति में 9.6 प्रतिशत और मार्च 2022 तक टीकाकरण होने पर अर्थव्यवस्था में 9.1 प्रतिशत की वृद्धि का अनुमान जताया था.
इंड रा ने कहा कि सरकार दिसंबर 2021 तक सभी युवाओं का टीकाकरण नहीं कर पाएगी. टीकाकरण के मार्च तक ही पूरा होने की संभावना है, बहरहाल एजेंसी ने इसके बावजूद अर्थव्यवस्था में वृद्धि के अपने पहले के अनुमान को बढ़ाया है.
एजेंसी के प्रमुख अर्थशास्त्री और सार्वजनिक वित्त निदेशक सुनील कुमार सिन्हा ने बताया कि महामारी की दूसरी लहर के प्रभाव के बाद जून और जुलाई में आर्थिक गतिविधियां आश्चर्यजनक रूप से तेज रही है.
उन्होंने कहा कि वैश्विक बाजार भी अच्छा कर रहे हैं क्योंकि भारत में कोविड का खतरा बढ़ने की आशंका से निर्यात बढ़ रहा है. वही दक्षिण पश्चिम मानसून पुनर्जीवित हो गया है,जो ग्रामीण अर्थव्यवस्था के वृद्धि की संभावनाओं को बढ़ाता है.
वही भारतीय रिज़र्व बैंक ने वित्त वर्ष 2021-22 के दौरान अर्थव्यवस्था में 9.5 प्रतिशत की वृद्धि के अपने अनुमान को बनाए रखा है जबकि अन्य विश्लेषकों का अनुमान 7.9 प्रतिशत से दोहरे अंकों के बीच में है.
इंडिया रेटिंग्स का अनुमान है कि देश को इस साल के अंत तक 88 फीसदी वयस्क आबादी का वैक्सीन लगाने के लिए हर दिन 5.2 मिलियन खुराक लगाने की जरूरत है. और अगले साल मार्च तक शेष वयस्क आबादी को कम से कम एक डोज लगाने की जरूरत है.
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जीडीपी विकास दर को क्या धीमा कर रहा है?
रिपोर्ट में कहा गया है कि कोरोना की दूसरी लहर से अप्रैल और मई महीने में देश में भारी तबाही हुई. जिसने एक बार फिर निजी अंतिम उपभोग व्यय (पीएफसीई) को पीछे धकेल दिया गया है.
अर्थशास्त्रियों ने कहा कि इंडिया रेटिंग्स को उम्मीद है कि वित्त वर्ष 2022 में पीएफसीई की वृद्धि 10.4% होगी, जो पहले 10.8 फीसदी अनुमानित थी.
रिपोर्ट में इस तथ्य पर भी प्रकाश डाला गया है कि महामारी के आने से पहले, पिछले साल मार्च में भारतीय अर्थव्यवस्था में खपत में कमी देखी जा रही थी. निजी खपत में वार्षिक वृद्धि, जो वित्त वर्ष 2016-17 में 8.1% थी, वह वित्त वर्ष 2019-20 में घटकर केवल 5.5% रह गई थी.
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बता दें कि नवंबर 2016, में भारत सरकार ने 500 और 1000 रुपये के नोटों को बंद करने की घोषणा की थी.
रिपोर्ट में कहा गया है कि अगर तिमाही के आधार पर विश्लेषण किया जाए तो निजी खपत में गिरावट और भी तेज थी. वित्त वर्ष 2019-20 की चौथी तिमाही में पीएफसीई घटकर सिर्फ 2% रह गई, जबकि वित्त वर्ष 2016-17 की तीसरी तिमाही में यह 11.2 फीसदी थी.
अर्थशास्त्रियों ने कहा कि वित्त वर्ष 2020-21 में कोरोना के चलते लगे लॉकडाउन ने इसे केवल नौकरियों, आजीविका और घरेलू बजट के रूप में बढ़ा दिया.
जीडीपी में निजी खपत सबसे बड़ा घटक
निजी खपत में गिरावट नीति निर्माताओं के लिए चिंताजनक है, क्योंकि पीएफसीई देश के सकल घरेलू उत्पाद के मांग साइड ड्राइवर (side drivers) में सबसे बड़ा घटक है.
पिछले वित्त वर्ष के सकल घरेलू उत्पाद में पीएफसीई की हिस्सेदारी 58.6% थी, इसके बाद तीन अन्य drivers, सकल अचल पूंजी निर्माण (GFCF) 27.1%, निर्यात 18.1% और सार्वजनिक व्यय, जिसे सरकार के अंतिम उपभोग व्यय (GFCE) के रूप में 12.5% माना गया.
इस अवधि के दौरान तीन अन्य मांग drivers, निजी खपत, सकल अचल पूंजी निर्माण और निर्यात में क्रमशः 1.3%, 1.5% और 1.5% की औसत वृद्धि दर्ज की गई.