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विशेष लेख: एक जिम्मेदार बजट लेकिन यह मंदी निपटने में कारगर नहीं

जाने-माने लेखक गुरुचरण दास कहते हैं कि वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण को स्वीकार करना चाहिए था कि भारतीय अर्थव्यवस्था संकट में थी और फिर उन्हें इससे बाहर निकालने की योजना के बारे में के बताना चाहिए था.

विशेष लेख: एक जिम्मेदार बजट लेकिन यह मंदी निपटने में कारगर नहीं
विशेष लेख: एक जिम्मेदार बजट लेकिन यह मंदी निपटने में कारगर नहीं
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Published : Feb 7, 2020, 8:20 PM IST

Updated : Feb 29, 2020, 1:42 PM IST

हैदराबाद: वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण को स्वीकार करना चाहिए था कि भारतीय अर्थव्यवस्था संकट में थी, और फिर उन्होंने बताया कि किस तरह उन्होंने हमें इससे बाहर निकालने की योजना बनाई.

आर्थिक मंदी से निपटने के केवल दो तरीके हो सकते हैं. एक खपत के माध्यम से है और दूसरा निवेश के माध्यम से है. इस बजट ने दूसरा तरीका अपनाया और मेरे विचार में यह सही तरीका था.

खपत का पहला तरीका बैंक हस्तांतरण के माध्यम से लोगों के हाथों में पैसा देना. जिससे वे पैसा खर्च करेंगे वस्तुओं का उपभोग करेंगे और बढ़ी हुई मांग से कारखानों को चल पड़ेंगे. इससे अधिक नौकरियों आएंगी फिर अधिक खर्च होगा और अर्थव्यवस्था का पहिया चल पड़ेगा.

ये भी पढ़ें- विशेष: उत्तर प्रदेश में 2022 तक तैयार होगी इजराइल की एकीकृत जल प्रबंधन परियोजना

दूसरा तरीका है निवेश. निवेश रोजगार लाता है. रोजगार आने से लोगों के हाथों में पैसा आएगा. वे सामान खरीदने के लिए पैसा खर्च करेंगे इससे फिर मांग बढ़ेगी और फैक्ट्रियां चल पड़ेंगी. जिससे रोजगार मिलेगा और यही चक्र हमें धीरे-धीरे अर्थव्यवस्था के धीमेपन से बाहर निकाल लेगा. मैं दूसरा तरीका पसंद करता हूं क्योंकि यह संपत्ति बनाता है. इस बजट में सड़क, जलमार्ग, पेयजल के लिए पाइपलाइन, आवास, अस्पतालों आदि में निवेश करने का वादा किया गया है. वहीं, बुनियादी ढांचे में कुल 103 लाख करोड़ रुपये का निवेश करने की योजना है.

एक मौका बर्बाद हुआ
वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने आखिर माना कि अर्थव्यवस्था संकट में है. फिर वित्तमंत्री ने यह समझाया कि उन्होंने इससे बाहर निकालने की योजना कैसे बनाई.

हालांकि बजट सुधारों की घोषणा करने का एकमात्र अवसर नहीं है. सीतारमण ने एक बड़े अवसर को बर्बाद कर दिया. जब कोई संकट आता है तो सुधार ठीक ढंग से होते हैं. जनता अल्पकालिक दर्द को स्वीकार करती है जिससे सुधार आता है. उदाहरण के लिए वित्तमंत्री ने हमें एक बड़े कृषि सुधार की याद दिलाई, जो किसान की भूमि के दीर्घकालिक पट्टे के माध्यम से उत्पादकता को नाटकीय रूप से बढ़ाएगा.

केंद्र कुछ समय से इसकी वकालत कर रहा है, लेकिन राज्यों की प्रतिक्रिया धीमी रही है. हम इसके बारे में सुनने के लिए इंतजार कर रहे थे. अगर वह कुछ ऐसे सुविख्यात सुधारों की घोषणा करतीं, जिन्हें भाजपा भूमि और श्रम के रूप में मानती है, तो यह देश को उत्साह से भर देता था.

मेरी सबसे बड़ी निराशा
बजट के साथ मेरी सबसे बड़ी निराशा यह है कि इसने संरक्षणवाद को उलटने और निर्यात को बढ़ाने जैसी कोई घोषणा नहीं की. आर्थिक सर्वेक्षण ने निर्यात नेतृत्व वाले बजट की काफी उम्मीदें जगाई थीं. इसने भारत के महत्व को वैश्विक मूल्य श्रृंखलाओं के साथ जोड़ने के लिए लगातार सुझाव दिया था. वित्तमंत्री ने बजट में मेक इन इंडिया के बाद एसेंबल इन इंडिया को नया आयाम दिया. अर्थव्यवस्था के लिए इस तरह के घोषणाएं जरुरी हैं और यही सही समय है क्योंकि चीन की समस्याओं को देखते हुए वैश्विक श्रृंखलाओं को रीसेट किया जा रहा है.

इस बजट में टैरिफ में कमी आने की उम्मीद थी लेकिन इसके बजाय टैरिफ में बढ़ोतरी की गई. कोई भी देश अपने घरेलू बाजार पर भरोसा करके इतिहास में समृद्ध नहीं हुआ है. निर्यात इस सरकार की सबसे बड़ी आर्थिक विफलता हो सकती है और यह आंशिक रूप से रोजगार सृजन में खराब प्रदर्शन के लिए जिम्मेदार है. भारत का निर्यात पिछले सात वर्षों से वियतनाम की तुलना में स्थिर है, जिसका निर्यात उसी अवधि में 300% बढ़ा है.

एक यथार्थवादी बजट
बजट 2020 एक त्वरित वसूली को उत्प्रेरित नहीं करेगा. हालांकि, यह एक विवेकपूर्ण और यथार्थवादी बजट है. बड़ी प्रोत्साहन देने के लिए शायद ही कोई राजकोषीय स्थान था. वित्तमंत्री समझदार थी कि जोखिम न लें क्योंकि 2008 के वैश्विक वित्तीय संकट के बाद जिस तरह के जोखिमों को हमने प्रोत्साहन दिया था उसके कुछ बुरे प्रभाव भी थे.

अंत में इस बजट में मुझे क्या अच्छा लगा पसंदीदा है उसे मैं बताना चाहुंगा. पहला यह कि सिर पर मैला ढोने के मुद्दे पर सीतारमण ने कहा कि सरकार हाथों से सीवर सफाई या सैप्टिक टैंक की सफाई की प्रथा खत्म करने के लिए प्रतिबद्ध है. दूसरा यह कि कई नागरिक अपराधों को कम करने के लिए कंपनी अधिनियम में संशोधन किया जाना और तीसरा करदाता का चार्टर जो कानूनी तौर पर राज्य को करदाता को परेशान न करने के लिए प्रतिबद्ध करता है. अगर मोदी सरकार इन्हें हासिल कर सकती है, तो यह कोई किसी बड़ी जीत से कम नहीं होगी.

हैदराबाद: वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण को स्वीकार करना चाहिए था कि भारतीय अर्थव्यवस्था संकट में थी, और फिर उन्होंने बताया कि किस तरह उन्होंने हमें इससे बाहर निकालने की योजना बनाई.

आर्थिक मंदी से निपटने के केवल दो तरीके हो सकते हैं. एक खपत के माध्यम से है और दूसरा निवेश के माध्यम से है. इस बजट ने दूसरा तरीका अपनाया और मेरे विचार में यह सही तरीका था.

खपत का पहला तरीका बैंक हस्तांतरण के माध्यम से लोगों के हाथों में पैसा देना. जिससे वे पैसा खर्च करेंगे वस्तुओं का उपभोग करेंगे और बढ़ी हुई मांग से कारखानों को चल पड़ेंगे. इससे अधिक नौकरियों आएंगी फिर अधिक खर्च होगा और अर्थव्यवस्था का पहिया चल पड़ेगा.

ये भी पढ़ें- विशेष: उत्तर प्रदेश में 2022 तक तैयार होगी इजराइल की एकीकृत जल प्रबंधन परियोजना

दूसरा तरीका है निवेश. निवेश रोजगार लाता है. रोजगार आने से लोगों के हाथों में पैसा आएगा. वे सामान खरीदने के लिए पैसा खर्च करेंगे इससे फिर मांग बढ़ेगी और फैक्ट्रियां चल पड़ेंगी. जिससे रोजगार मिलेगा और यही चक्र हमें धीरे-धीरे अर्थव्यवस्था के धीमेपन से बाहर निकाल लेगा. मैं दूसरा तरीका पसंद करता हूं क्योंकि यह संपत्ति बनाता है. इस बजट में सड़क, जलमार्ग, पेयजल के लिए पाइपलाइन, आवास, अस्पतालों आदि में निवेश करने का वादा किया गया है. वहीं, बुनियादी ढांचे में कुल 103 लाख करोड़ रुपये का निवेश करने की योजना है.

एक मौका बर्बाद हुआ
वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने आखिर माना कि अर्थव्यवस्था संकट में है. फिर वित्तमंत्री ने यह समझाया कि उन्होंने इससे बाहर निकालने की योजना कैसे बनाई.

हालांकि बजट सुधारों की घोषणा करने का एकमात्र अवसर नहीं है. सीतारमण ने एक बड़े अवसर को बर्बाद कर दिया. जब कोई संकट आता है तो सुधार ठीक ढंग से होते हैं. जनता अल्पकालिक दर्द को स्वीकार करती है जिससे सुधार आता है. उदाहरण के लिए वित्तमंत्री ने हमें एक बड़े कृषि सुधार की याद दिलाई, जो किसान की भूमि के दीर्घकालिक पट्टे के माध्यम से उत्पादकता को नाटकीय रूप से बढ़ाएगा.

केंद्र कुछ समय से इसकी वकालत कर रहा है, लेकिन राज्यों की प्रतिक्रिया धीमी रही है. हम इसके बारे में सुनने के लिए इंतजार कर रहे थे. अगर वह कुछ ऐसे सुविख्यात सुधारों की घोषणा करतीं, जिन्हें भाजपा भूमि और श्रम के रूप में मानती है, तो यह देश को उत्साह से भर देता था.

मेरी सबसे बड़ी निराशा
बजट के साथ मेरी सबसे बड़ी निराशा यह है कि इसने संरक्षणवाद को उलटने और निर्यात को बढ़ाने जैसी कोई घोषणा नहीं की. आर्थिक सर्वेक्षण ने निर्यात नेतृत्व वाले बजट की काफी उम्मीदें जगाई थीं. इसने भारत के महत्व को वैश्विक मूल्य श्रृंखलाओं के साथ जोड़ने के लिए लगातार सुझाव दिया था. वित्तमंत्री ने बजट में मेक इन इंडिया के बाद एसेंबल इन इंडिया को नया आयाम दिया. अर्थव्यवस्था के लिए इस तरह के घोषणाएं जरुरी हैं और यही सही समय है क्योंकि चीन की समस्याओं को देखते हुए वैश्विक श्रृंखलाओं को रीसेट किया जा रहा है.

इस बजट में टैरिफ में कमी आने की उम्मीद थी लेकिन इसके बजाय टैरिफ में बढ़ोतरी की गई. कोई भी देश अपने घरेलू बाजार पर भरोसा करके इतिहास में समृद्ध नहीं हुआ है. निर्यात इस सरकार की सबसे बड़ी आर्थिक विफलता हो सकती है और यह आंशिक रूप से रोजगार सृजन में खराब प्रदर्शन के लिए जिम्मेदार है. भारत का निर्यात पिछले सात वर्षों से वियतनाम की तुलना में स्थिर है, जिसका निर्यात उसी अवधि में 300% बढ़ा है.

एक यथार्थवादी बजट
बजट 2020 एक त्वरित वसूली को उत्प्रेरित नहीं करेगा. हालांकि, यह एक विवेकपूर्ण और यथार्थवादी बजट है. बड़ी प्रोत्साहन देने के लिए शायद ही कोई राजकोषीय स्थान था. वित्तमंत्री समझदार थी कि जोखिम न लें क्योंकि 2008 के वैश्विक वित्तीय संकट के बाद जिस तरह के जोखिमों को हमने प्रोत्साहन दिया था उसके कुछ बुरे प्रभाव भी थे.

अंत में इस बजट में मुझे क्या अच्छा लगा पसंदीदा है उसे मैं बताना चाहुंगा. पहला यह कि सिर पर मैला ढोने के मुद्दे पर सीतारमण ने कहा कि सरकार हाथों से सीवर सफाई या सैप्टिक टैंक की सफाई की प्रथा खत्म करने के लिए प्रतिबद्ध है. दूसरा यह कि कई नागरिक अपराधों को कम करने के लिए कंपनी अधिनियम में संशोधन किया जाना और तीसरा करदाता का चार्टर जो कानूनी तौर पर राज्य को करदाता को परेशान न करने के लिए प्रतिबद्ध करता है. अगर मोदी सरकार इन्हें हासिल कर सकती है, तो यह कोई किसी बड़ी जीत से कम नहीं होगी.

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जाने-माने लेखक गुरुचरण दास कहते हैं कि वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण को स्वीकार करना चाहिए था कि भारतीय अर्थव्यवस्था संकट में थी और फिर उन्हें इससे बाहर निकालने की योजना के बारे में के बताना चाहिए था. 

विशेष लेख: एक जिम्मेदार बजट लेकिन यह मंदी निपटने में कारगर नहीं 

हैदराबाद: वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण को स्वीकार करना चाहिए था कि भारतीय अर्थव्यवस्था संकट में थी, और फिर उन्होंने बताया कि किस तरह उन्होंने हमें इससे बाहर निकालने की योजना बनाई.

आर्थिक मंदी से निपटने के केवल दो तरीके हो सकते हैं. एक खपत के माध्यम से है और दूसरा निवेश के माध्यम से है. इस बजट ने दूसरा तरीका अपनाया और मेरे विचार में यह सही तरीका था.

खपत का पहला तरीका बैंक हस्तांतरण के माध्यम से लोगों के हाथों में पैसा देना. जिससे वे पैसा खर्च करेंगे वस्तुओं का उपभोग करेंगे और बढ़ी हुई मांग से कारखानों को चल पड़ेंगे. इससे अधिक नौकरियों आएंगी फिर अधिक खर्च होगा और अर्थव्यवस्था का पहिया चल पड़ेगा. 

दूसरा तरीका है निवेश. निवेश रोजगार लाता है. रोजगार आने से लोगों के हाथों में पैसा आएगा. वे सामान खरीदने के लिए पैसा खर्च करेंगे इससे फिर मांग बढ़ेगी और फैक्ट्रियां चल पड़ेंगी. जिससे रोजगार मिलेगा और यही चक्र हमें धीरे-धीरे अर्थव्यवस्था के धीमेपन से बाहर निकाल लेगा. मैं दूसरा तरीका पसंद करता हूं क्योंकि यह संपत्ति बनाता है. इस बजट में सड़क, जलमार्ग, पेयजल के लिए पाइपलाइन, आवास, अस्पतालों आदि में निवेश करने का वादा किया गया है. वहीं, बुनियादी ढांचे में कुल 103 लाख करोड़ रुपये का निवेश करने की योजना है. 



एक मौका बर्बाद हुआ

वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने आखिर माना कि अर्थव्यवस्था संकट में है. फिर वित्तमंत्री ने यह समझाया कि उन्होंने इससे बाहर निकालने की योजना कैसे बनाई. 

हालांकि बजट सुधारों की घोषणा करने का एकमात्र अवसर नहीं है. सीतारमण ने एक बड़े अवसर को बर्बाद कर दिया. जब कोई संकट आता है तो सुधार ठीक ढंग से होते हैं. जनता अल्पकालिक दर्द को स्वीकार करती है जिससे सुधार आता है. उदाहरण के लिए वित्तमंत्री ने हमें एक बड़े कृषि सुधार की याद दिलाई, जो किसान की भूमि के दीर्घकालिक पट्टे के माध्यम से उत्पादकता को नाटकीय रूप से बढ़ाएगा.

केंद्र कुछ समय से इसकी वकालत कर रहा है, लेकिन राज्यों की प्रतिक्रिया धीमी रही है. हम इसके बारे में सुनने के लिए इंतजार कर रहे थे. अगर वह कुछ ऐसे सुविख्यात सुधारों की घोषणा करतीं, जिन्हें भाजपा भूमि और श्रम के रूप में मानती है, तो यह देश को उत्साह से भर देता था.



मेरी सबसे बड़ी निराशा

बजट के साथ मेरी सबसे बड़ी निराशा यह है कि इसने संरक्षणवाद को उलटने और निर्यात को बढ़ाने जैसी कोई घोषणा नहीं की. आर्थिक सर्वेक्षण ने निर्यात नेतृत्व वाले बजट की काफी उम्मीदें जगाई थीं. इसने भारत के महत्व को वैश्विक मूल्य श्रृंखलाओं के साथ जोड़ने के लिए लगातार सुझाव दिया था. वित्तमंत्री ने बजट में मेक इन इंडिया के बाद एसेंबल इन इंडिया को नया आयाम दिया. अर्थव्यवस्था के लिए  इस तरह के घोषणाएं जरुरी हैं और यही सही समय है क्योंकि चीन की समस्याओं को देखते हुए वैश्विक श्रृंखलाओं को रीसेट किया जा रहा है.

इस बजट में टैरिफ में कमी आने की उम्मीद थी लेकिन इसके बजाय टैरिफ में बढ़ोतरी की गई. कोई भी देश अपने घरेलू बाजार पर भरोसा करके इतिहास में समृद्ध नहीं हुआ है. निर्यात इस सरकार की सबसे बड़ी आर्थिक विफलता हो सकती है और यह आंशिक रूप से रोजगार सृजन में खराब प्रदर्शन के लिए जिम्मेदार है. भारत का निर्यात पिछले सात वर्षों से वियतनाम की तुलना में स्थिर है, जिसका निर्यात उसी अवधि में 300% बढ़ा है.



एक यथार्थवादी बजट

बजट 2020 एक त्वरित वसूली को उत्प्रेरित नहीं करेगा. हालांकि, यह एक विवेकपूर्ण और यथार्थवादी बजट है. बड़ी प्रोत्साहन देने के लिए शायद ही कोई राजकोषीय स्थान था. वित्तमंत्री समझदार थी कि जोखिम न लें क्योंकि 2008 के वैश्विक वित्तीय संकट के बाद जिस तरह के जोखिमों को हमने प्रोत्साहन दिया था उसके कुछ बुरे प्रभाव भी थे. 

अंत में इस बजट में मुझे क्या अच्छा लगा पसंदीदा है उसे मैं बताना चाहुंगा. पहला यह कि सिर पर मैला ढोने के मुद्दे पर सीतारमण ने कहा कि सरकार हाथों से सीवर सफाई या सैप्टिक टैंक की सफाई की प्रथा खत्म करने के लिए प्रतिबद्ध है. दूसरा यह कि कई नागरिक अपराधों को कम करने के लिए कंपनी अधिनियम में संशोधन किया जाना और तीसरा करदाता का चार्टर जो कानूनी तौर पर राज्य को करदाता को परेशान न करने के लिए प्रतिबद्ध करता है. अगर मोदी सरकार इन्हें हासिल कर सकती है, तो यह कोई किसी बड़ी जीत से कम नहीं होगी.

 


Conclusion:
Last Updated : Feb 29, 2020, 1:42 PM IST
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