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डेटा चोरी के कारण भारतीय कंपनियों को औसतन 14 करोड़ का नुकसान: आईबीएम

रिपोर्ट में कहा गया है कि आंकड़ों की चोरी अथवा उनमें सेंध लगाने के जितने भी हमले हुये हैं उनमें से 53 प्रतिशत दुर्भावना के साथ किये गये. वहीं सिस्टम में होने वाली गड़बड़ियों का इसमें 26 प्रतिशत और 21 प्रतिशत मानव गलती का योगदान रहा है.

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Published : Jul 29, 2020, 1:23 PM IST

डेटा चोरी के कारण भारतीय कंपनियों को औसतन 14 करोड़ का नुकसान: आईबीएम
डेटा चोरी के कारण भारतीय कंपनियों को औसतन 14 करोड़ का नुकसान: आईबीएम

नई दिल्ली: भारत में अगस्त 2019 से लेकर अप्रैल 2020 के बीच विभिन्न संगठनों के डेटा में सेंध लगने से उन्हें औसतन 14 करोड़ रुपये का नुकसान उठाना पड़ा है. आईबीएम की बुधवार को जारी रिपोर्ट में यह कहा गया है.

रिपोर्ट में कहा गया है कि आंकड़ों की चोरी अथवा उनमें सेंध लगाने के जितने भी हमले हुये हैं उनमें से 53 प्रतिशत दुर्भावना के साथ किये गये. वहीं सिस्टम में होने वाली गड़बड़ियों का इसमें 26 प्रतिशत और 21 प्रतिशत मानव गलती का योगदान रहा है.

ये भी पढ़ें- राहुल का दावा: बैंकिंग व्यवस्था को साफ-सुथरा करने के प्रयास में उर्जित पटेल को हटना पड़ा

रिपोर्ट के अनुसार, "वर्ष 2020 के अध्ययन में डेटा सेंध के मामलों में औसतन लागत 14 करोड़ रुपये रही है. यह 2019 की लागत के मुकाबले 9.4 प्रतिशत अधिक है. 2020 के अध्ययन में प्रत्येक नुकसान अथवा चोरी रिकार्ड की 5,522 रुपये लागत रही, यह 2019 के मुकाबले 10 प्रतिशत की वृद्धि दर्शाता है."

रिपोर्ट के मुताबिक डेटा चोरी की पहचान करने का औसत समय 221 दिन से बढ़कर 230 दिन और इसे नियंत्रित करने का औसत समय 77 से बढ़कर 83 दिन हो गया.

आईबीएम इंडिया एवं दक्षिण एशिया के साफ्टवेयर सुरक्षा लीडर प्रशांत भटकल ने एक वक्तव्य में कहा, "भारत में साइबर- अपराध के तौर तरीकों में बदलाव देखा जा रहा है. यह अब पूरी तरह से संगठित और गठबंधन बनाकर हो रहा है कि भारत में नकल अथवा धोखे में डालकर, सोशल इंजीनिरिंग के जरिये कई तरह से हमले किये जा रहे हैं."

डेटा में सेंध लगाने की घटनाओं से भारतीय कंपनियों को 2019 में 12.8 करोड़ रुपये की अतिरिक्त लागत भी वहन करनी पड़ी. भटकल ने कहा है कि कंपनियां साइबर सुरक्षा के प्रति जागरूक हुई हैं और इसके समाधान की महत्ता को समझती हैं लेकिन हमें पिछले साल के मुकाबले डेटा चोरी अथवा इसमें सेंध लगाने के मामले में लागत 9.4 प्रतिशत बढ़ने का अनुमान है.

इसके साथ ही जिन्होंने सुरक्षा आटोमेशन की व्यवस्था की है वह सेंध के मामलों का उनके मुकाबले जिनकी कोई सुरक्षा व्यवस्था नहीं है 27 प्रतिशत तेजी के साथ पता लगाकर उसे नियंत्रित कर सकेंगे.

(पीटीआई-भाषा)

नई दिल्ली: भारत में अगस्त 2019 से लेकर अप्रैल 2020 के बीच विभिन्न संगठनों के डेटा में सेंध लगने से उन्हें औसतन 14 करोड़ रुपये का नुकसान उठाना पड़ा है. आईबीएम की बुधवार को जारी रिपोर्ट में यह कहा गया है.

रिपोर्ट में कहा गया है कि आंकड़ों की चोरी अथवा उनमें सेंध लगाने के जितने भी हमले हुये हैं उनमें से 53 प्रतिशत दुर्भावना के साथ किये गये. वहीं सिस्टम में होने वाली गड़बड़ियों का इसमें 26 प्रतिशत और 21 प्रतिशत मानव गलती का योगदान रहा है.

ये भी पढ़ें- राहुल का दावा: बैंकिंग व्यवस्था को साफ-सुथरा करने के प्रयास में उर्जित पटेल को हटना पड़ा

रिपोर्ट के अनुसार, "वर्ष 2020 के अध्ययन में डेटा सेंध के मामलों में औसतन लागत 14 करोड़ रुपये रही है. यह 2019 की लागत के मुकाबले 9.4 प्रतिशत अधिक है. 2020 के अध्ययन में प्रत्येक नुकसान अथवा चोरी रिकार्ड की 5,522 रुपये लागत रही, यह 2019 के मुकाबले 10 प्रतिशत की वृद्धि दर्शाता है."

रिपोर्ट के मुताबिक डेटा चोरी की पहचान करने का औसत समय 221 दिन से बढ़कर 230 दिन और इसे नियंत्रित करने का औसत समय 77 से बढ़कर 83 दिन हो गया.

आईबीएम इंडिया एवं दक्षिण एशिया के साफ्टवेयर सुरक्षा लीडर प्रशांत भटकल ने एक वक्तव्य में कहा, "भारत में साइबर- अपराध के तौर तरीकों में बदलाव देखा जा रहा है. यह अब पूरी तरह से संगठित और गठबंधन बनाकर हो रहा है कि भारत में नकल अथवा धोखे में डालकर, सोशल इंजीनिरिंग के जरिये कई तरह से हमले किये जा रहे हैं."

डेटा में सेंध लगाने की घटनाओं से भारतीय कंपनियों को 2019 में 12.8 करोड़ रुपये की अतिरिक्त लागत भी वहन करनी पड़ी. भटकल ने कहा है कि कंपनियां साइबर सुरक्षा के प्रति जागरूक हुई हैं और इसके समाधान की महत्ता को समझती हैं लेकिन हमें पिछले साल के मुकाबले डेटा चोरी अथवा इसमें सेंध लगाने के मामले में लागत 9.4 प्रतिशत बढ़ने का अनुमान है.

इसके साथ ही जिन्होंने सुरक्षा आटोमेशन की व्यवस्था की है वह सेंध के मामलों का उनके मुकाबले जिनकी कोई सुरक्षा व्यवस्था नहीं है 27 प्रतिशत तेजी के साथ पता लगाकर उसे नियंत्रित कर सकेंगे.

(पीटीआई-भाषा)

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