नई दिल्ली : एक अंतरराष्ट्रीय मध्यस्थता न्यायाधिकरण ने पूर्व की तिथि से कर लगाने के मामले में ब्रिटेन की केयर्न एनर्जी के पक्ष में फैसला सुनाया है. न्यायाधिकरण ने भारत को 1.4 अरब डॉलर ब्रिटिश कंपनी को लौटाने का आदेश दिया है. भारत सरकार ने संकेत दिया है कि वह इस फैसले को चुनौती दे सकती है.
तीन सदस्यीय न्यायाधिकरण ने आम सहमति से आदेश दिया कि 2006-07 में केयर्न के अपने भारतीय व्यापार के आंतरिक पुनर्गठन करने पर भारत सरकार द्वारा पूर्व प्रभाव से कर (रेट्रोस्पेक्टिव टैक्स) के रूप में 10,247 करोड़ रुपये का दावा वैध नहीं है. प्राधिकरण के एक सदस्य को भारत सरकार ने नामित किया था.
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उसने 582 पृष्ठ के आदेश में कहा कि भारत द्विपक्षीय निवेश संरक्षण संधि के तहत दावेदारों (केयर्न एनर्जी) के निवेश को लेकर निष्पक्ष और न्यायसंगत व्यवहार करने में विफल रहा. न्यायाधिकरण ने भारत सरकार से यह भी कहा कि वह इस प्रकार की कर मांग से बचे और केयर्न को लाभांश, कर वापसी पर रोक और बकाया वसूली के लिए शेयरों की बिक्री से ली गई राशि लौटाए.
आदेश के अनुसार सरकार को केयर्न को हुए नुकसान की भरपाई ब्याज के साथ करने को कहा गया है. साथ ही मध्यस्थता कार्यवाही की लागत भी देने को कहा गया है.
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हालांकि, आदेश में उसे चुनौती देने या अपील का प्रावधान नहीं है. सरकार ने कहा है कि वह मध्यसथता आदेश का अध्ययन करेगी और विभिन्न विकल्पों पर विचार करेगी तथा उपयुक्त मंच के समक्ष कानूनी उपाय समेत आगे की कार्यवाही के बारे में निर्णय करेगी.
मामले को देख रहे लोगों के अनुसार अगर निर्णय का पालन नहीं किया जाता है तो केयर्न मध्यस्थता न्यायाधिकरण के आदेश का उपयोग कर राशि की वापसी को लेकर विदेशों में भारत की संपत्ति जब्त करने को लेकर ब्रिटेन जैसे देशों के अदालतों में जा सकती है.
इस फैसले की पुष्टि करते हुए केयर्न ने एक बयान में कहा कि न्यायाधिकरण ने भारत सरकार के खिलाफ उसके दावे के पक्ष में फैसला दिया है. इसके तहत भारत को 1. 2 अरब अमेरिकी डालर का हर्जाना के साथ ब्याज और कानूनी कार्यवाही की लागत चुकानी होगी.
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सूत्रों के अनुसार 20 करोड़ डॉलर का ब्याज और 2.2 करोड़ डॉलर का मध्यस्थता कार्यवाही का खर्च को जोड़कर भारत सरकार को कुल 1.4 अरब डॉलर (करीब 10,500 करोड़ रुपये) देने होंगे.
सरकार के लिए पिछले तीन महीने में यह दूसरा झटका है. इससे पहले सितंबर में एक अंतरराष्ट्रीय मध्यस्थता न्यायाधिकरण ने वोडाफोन समूह पर भारत द्वारा पूर्व प्रभाव से लगाए गए कर के खिलाफ फैसला सुनाया था.
हालांकि, केयर्न एकमात्र ऐसी कंपनी थी, जिसके खिलाफ सरकार ने पूर्व प्रभाव से कर वसूलने की कार्रवाई की. न्यायाधिकरण में मामला लंबित रहने के दौरान सरकार ने वेदांता लिमिटेड में केयर्न की पांच प्रतिशत हिस्सेदारी बेच दी, करीब 1,140 करोड़ रुपये का लाभांश जब्त कर लिया और करीब 1,590 करोड़ रुपये का कर रिफंड नहीं दिया.
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केयर्न एनर्जी के अलावा सरकार ने इसी तरह की कर मांग उसकी सहायक कंपनी केयर्न इंडिया (जो अब वेदांता लिमिटेड का हिस्सा है) से की. केयर्न इंडिया ने भी अलग मध्यस्थता मुकदमे के जरिए इस मांग को चुनौती दी है. वोडाफोन के मामले में सरकार ने अब तक कोई कदम नहीं उठाया है.
पूरे मामले पर वित्त मंत्रालय ने एक बयान में कहा कि सरकार फैसले का अध्ययन करेगी और इसके सभी पहलुओं पर वकीलों के साथ सलाह ली जाएगी. बयान में कहा गया कि इस परामर्श के बाद सरकार सभी विकल्पों पर विचार करेगी और आगे कार्रवाई के बारे में निर्णय लेगी, जिसमें उचित मंच पर कानूनी कार्रवाई भी शामिल है.
सूत्रों ने बताया कि सरकार ने अभी तक वोडाफोन मामले में न्यायाधिकरण के फैसले को चुनौती नहीं दी है और केयर्न मध्यस्थता फैसले के बाद इस पर जल्द कोई निर्णय किया जा सकता है.