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बॉयकॉट चीन की गूंज के बीच व्यापारी संगठन ने कहा- पड़ोसी का माल सस्ता नहीं होता

लद्दाख की गलवान घाटी में चीन की हमलावर हरकतों के बीच भारत में वहां के माल के बहिष्कार की गूंज के बीच देश के खुदरा व्यापारियों के प्रमुख संगठन कनफेडरेशन ऑफ ऑल इंडिया ट्रेडर्स (कैट) के महासचिव प्रवीण खंडेलवाल का मानना है कि यह भ्रम है कि चीन का सामान सस्ता होता है.

बॉयकॉट चीन की गूंज के बीच व्यापारी संगठन ने कहा- पड़ोसी का माल सस्ता नहीं होता
बॉयकॉट चीन की गूंज के बीच व्यापारी संगठन ने कहा- पड़ोसी का माल सस्ता नहीं होता
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Published : Jun 28, 2020, 2:44 PM IST

नई दिल्ली: लद्दाख की गलवान घाटी में सीमा पर चीन की हरकत के खिलाफ भारत में आक्रोश है. सोशल मीडिया मंचों से लेकर बाजार तक सभी जगह चीन के सामान के बहिष्कार की मांग जोर-शोर से उठ रही है. ऐसे में ये सवाल भी उठ रहे हैं कि चीनी सामान पर निर्भरता कैसे कम की जा सकती और इसका बाजार पर क्या असर होगा?

चीन के सामान का बहिष्कार करने के अभियान में अग्रणी भूमिका निभा रहे व्यापारियों के प्रमुख संगठन कन्फेडरेशन ऑफ ऑल इंडिया ट्रेडर्स (कैट) के राष्ट्रीय महासचिव प्रवीण खंडेलवाल से इन्हीं मुद्दों पर पीटीआई-भाषा से बात की.

ये भी पढ़ें- मारुति के चेयरमैन ने कहा- चीन से आयात रोकने के लिए भारतीय विनिर्माण क्षेत्र को प्रतिस्पर्धी बनना होगा

सवाल: क्या आपको लगता है कि चीन के सामान का बहिष्कार अभियान सफल हो सकेगा?

जवाब: बेशक हम इसमें सफलता हासिल कर सकते हैं. लेकिन इसके लिए सरकार, उद्योग और व्यापार को मिलकर चलना होगा. सब मिलकर काम करें, तो हम चीन पर निर्भरता को कुल मिलाकर शून्य कर सकते हैं. दुनिया में सिर्फ भारत ही है जो इस मामले में चीन को टक्कर दे सकता है. हम चाहते हैं कि हमारे उद्योग चीन से आयात पर अपनी निर्भरता घटाएं.

सरकार उद्योगों के लिए प्रत्येक जिले में कम से कम 50 एकड़ जमीन चिह्नित करे. वहां हम अपनी विनिर्माण इकाइयां लगा सकते हैं. इसके अलावा सरकार को उद्योग को सस्ता कर्ज उपलब्ध कराना चाहिए. भारत में श्रम सस्ता है, जमीन उपलब्ध है, उपभोग के लिए बड़ी आबादी है. अगर सब मिलकर चलें, तो निश्चित तौर पर हम अगले चार-पांच साल में चीन से आयात पूरी तरह समाप्त कर सकते हैं.

सवाल: क्या आपको नहीं लगता कि व्यापार और राजनीति को अलग-अलग रखा जाना चाहिए?

जवाब: देखिए इस मुद्दे पर हम राजनीति नहीं कर रहे हैं. राजनीति, कूटनीति सरकार और नेताओं पर छोड़ दीजिए. हम तो 2016 से चीन के सामान के बहिष्कार का अभियान चला रहे हैं. 2017-18 में चीन से हमारा आयात 76 अरब डॉलर था, जो 2018-19 में घटकर 70 अरब डॉलर पर आ गया है.

गलवान घाटी विवाद से पहले लॉकडाउन के दौरान ही हमने व्यापारी भाइयों के साथ वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए चीन से सामान का आयात कम करने के लिए बातचीत शुरू कर दी थी. यह अभियान अचानक शुरू नहीं हुआ है.

सवाल: चीन का सामान सस्ता होता है, क्या बहिष्कार से महंगाई नहीं बढ़ेगी?

जवाब: पहली बात तो यह धारणा ही गलत है कि चीन का सामान सस्ता होता है. तैयार माल में देखें तो 80 प्रतिशत उत्पाद ऐसे हैं, जिनमें भारत और चीन के सामान का दाम लगभग समान है. भारतीय उत्पादों की गुणवत्ता बेहतर होती है. चीन के उत्पाद यूज एंड थ्रो वाले होते हैं. हमारे उत्पादों के साथ ऐसा नहीं है.

चीन मुख्य रूप से तैयार माल, कच्चे माल, कलपुर्जों तथा प्रौद्योगिकी उत्पादों का निर्यात भारत को करता है. अभी हमने 10 जून से तैयार उत्पादों के खिलाफ अभियान छेड़ा है. यह दिसंबर, 2021 के अंत तक यानी डेढ़ साल चलेगा. उसके बाद हम आगे की रणनीति तय करेंगे. हम सिर्फ तैयार सामान का आयात रोक दें, तो चीन से आयात 20 प्रतिशत घट जाएगा.

सवाल: हमारे पास चीन का क्या विकल्प है?

जवाब: देश में किसी भी सरकार ने कभी चीन का विकल्प तलाशने की कोशिश नहीं की. ताइवान, वियतनाम, जापान, दक्षिण कोरिया, जर्मनी और यहां तक कि ऑस्ट्रेलिया से भी हम आयात बढ़ाकर चीन पर निर्भरता कम कर सकते हैं. इसके अलावा हम देश में भी काफी चीजों का उत्पादन कर सकते हैं.

कोविड-19 से पहले देश में किसी ने पीपीई किट, मास्क या वेंटिलेटर के उत्पादन के बारे में नहीं सोचा था. आज इनके उत्पादन में हम दुनिया के कई देशों से आगे निकल गए हैं. भारत के पास जैसी प्रतिभाएं हैं, वैसी दुनिया में कहीं नहीं हैं. सिर्फ सही सोच की जरूरत है. हम किसी भी चीज का उत्पादन कर सकते हैं और दूसरे देशों को उनका निर्यात भी कर सकते हैं.

सवाल: भारतीय बाजारों पर चीन का दबदबा कैसे बढ़ा?

जवाब: नब्बे के दशक के अंतिम वर्षों में चीन ने भारतीय बाजार का अध्ययन किया. उपभोक्ताओं के व्यवहार से उसने जाना कि सस्ते उत्पादों के जरिए वह भारतीय बाजार पर कब्जा कर सकता है. यहां तक कि उसने होली, दीपावली जैसे त्योहारों के लिए भी सामान डंप करना शुरू कर दिया. उसने अपने सामान के सस्ता होने का जमकर प्रचार किया.

हालांकि, आज भारतीय उपभोक्ता जागरूक हो चुका है. आप लोगों से बात करें, तो पता चलेगा कि लोग चीन के सामान के नाम से ही घृणा करने लगे हैं. यही अवसर है जबकि सरकार, उद्योग और व्यापारी मिलकर भारत को आत्म-निर्भर बनाने के लिए काम कर सकते हैं. हमने इस अभियान के लिए मुकेश अंबानी, रतन टाटा से लेकर सभी बड़े उद्योगपतियों का समर्थन मांगा है. अब हम समाज के अन्य वर्गों के लोगों के पास जा रहे हैं.

नई दिल्ली: लद्दाख की गलवान घाटी में सीमा पर चीन की हरकत के खिलाफ भारत में आक्रोश है. सोशल मीडिया मंचों से लेकर बाजार तक सभी जगह चीन के सामान के बहिष्कार की मांग जोर-शोर से उठ रही है. ऐसे में ये सवाल भी उठ रहे हैं कि चीनी सामान पर निर्भरता कैसे कम की जा सकती और इसका बाजार पर क्या असर होगा?

चीन के सामान का बहिष्कार करने के अभियान में अग्रणी भूमिका निभा रहे व्यापारियों के प्रमुख संगठन कन्फेडरेशन ऑफ ऑल इंडिया ट्रेडर्स (कैट) के राष्ट्रीय महासचिव प्रवीण खंडेलवाल से इन्हीं मुद्दों पर पीटीआई-भाषा से बात की.

ये भी पढ़ें- मारुति के चेयरमैन ने कहा- चीन से आयात रोकने के लिए भारतीय विनिर्माण क्षेत्र को प्रतिस्पर्धी बनना होगा

सवाल: क्या आपको लगता है कि चीन के सामान का बहिष्कार अभियान सफल हो सकेगा?

जवाब: बेशक हम इसमें सफलता हासिल कर सकते हैं. लेकिन इसके लिए सरकार, उद्योग और व्यापार को मिलकर चलना होगा. सब मिलकर काम करें, तो हम चीन पर निर्भरता को कुल मिलाकर शून्य कर सकते हैं. दुनिया में सिर्फ भारत ही है जो इस मामले में चीन को टक्कर दे सकता है. हम चाहते हैं कि हमारे उद्योग चीन से आयात पर अपनी निर्भरता घटाएं.

सरकार उद्योगों के लिए प्रत्येक जिले में कम से कम 50 एकड़ जमीन चिह्नित करे. वहां हम अपनी विनिर्माण इकाइयां लगा सकते हैं. इसके अलावा सरकार को उद्योग को सस्ता कर्ज उपलब्ध कराना चाहिए. भारत में श्रम सस्ता है, जमीन उपलब्ध है, उपभोग के लिए बड़ी आबादी है. अगर सब मिलकर चलें, तो निश्चित तौर पर हम अगले चार-पांच साल में चीन से आयात पूरी तरह समाप्त कर सकते हैं.

सवाल: क्या आपको नहीं लगता कि व्यापार और राजनीति को अलग-अलग रखा जाना चाहिए?

जवाब: देखिए इस मुद्दे पर हम राजनीति नहीं कर रहे हैं. राजनीति, कूटनीति सरकार और नेताओं पर छोड़ दीजिए. हम तो 2016 से चीन के सामान के बहिष्कार का अभियान चला रहे हैं. 2017-18 में चीन से हमारा आयात 76 अरब डॉलर था, जो 2018-19 में घटकर 70 अरब डॉलर पर आ गया है.

गलवान घाटी विवाद से पहले लॉकडाउन के दौरान ही हमने व्यापारी भाइयों के साथ वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए चीन से सामान का आयात कम करने के लिए बातचीत शुरू कर दी थी. यह अभियान अचानक शुरू नहीं हुआ है.

सवाल: चीन का सामान सस्ता होता है, क्या बहिष्कार से महंगाई नहीं बढ़ेगी?

जवाब: पहली बात तो यह धारणा ही गलत है कि चीन का सामान सस्ता होता है. तैयार माल में देखें तो 80 प्रतिशत उत्पाद ऐसे हैं, जिनमें भारत और चीन के सामान का दाम लगभग समान है. भारतीय उत्पादों की गुणवत्ता बेहतर होती है. चीन के उत्पाद यूज एंड थ्रो वाले होते हैं. हमारे उत्पादों के साथ ऐसा नहीं है.

चीन मुख्य रूप से तैयार माल, कच्चे माल, कलपुर्जों तथा प्रौद्योगिकी उत्पादों का निर्यात भारत को करता है. अभी हमने 10 जून से तैयार उत्पादों के खिलाफ अभियान छेड़ा है. यह दिसंबर, 2021 के अंत तक यानी डेढ़ साल चलेगा. उसके बाद हम आगे की रणनीति तय करेंगे. हम सिर्फ तैयार सामान का आयात रोक दें, तो चीन से आयात 20 प्रतिशत घट जाएगा.

सवाल: हमारे पास चीन का क्या विकल्प है?

जवाब: देश में किसी भी सरकार ने कभी चीन का विकल्प तलाशने की कोशिश नहीं की. ताइवान, वियतनाम, जापान, दक्षिण कोरिया, जर्मनी और यहां तक कि ऑस्ट्रेलिया से भी हम आयात बढ़ाकर चीन पर निर्भरता कम कर सकते हैं. इसके अलावा हम देश में भी काफी चीजों का उत्पादन कर सकते हैं.

कोविड-19 से पहले देश में किसी ने पीपीई किट, मास्क या वेंटिलेटर के उत्पादन के बारे में नहीं सोचा था. आज इनके उत्पादन में हम दुनिया के कई देशों से आगे निकल गए हैं. भारत के पास जैसी प्रतिभाएं हैं, वैसी दुनिया में कहीं नहीं हैं. सिर्फ सही सोच की जरूरत है. हम किसी भी चीज का उत्पादन कर सकते हैं और दूसरे देशों को उनका निर्यात भी कर सकते हैं.

सवाल: भारतीय बाजारों पर चीन का दबदबा कैसे बढ़ा?

जवाब: नब्बे के दशक के अंतिम वर्षों में चीन ने भारतीय बाजार का अध्ययन किया. उपभोक्ताओं के व्यवहार से उसने जाना कि सस्ते उत्पादों के जरिए वह भारतीय बाजार पर कब्जा कर सकता है. यहां तक कि उसने होली, दीपावली जैसे त्योहारों के लिए भी सामान डंप करना शुरू कर दिया. उसने अपने सामान के सस्ता होने का जमकर प्रचार किया.

हालांकि, आज भारतीय उपभोक्ता जागरूक हो चुका है. आप लोगों से बात करें, तो पता चलेगा कि लोग चीन के सामान के नाम से ही घृणा करने लगे हैं. यही अवसर है जबकि सरकार, उद्योग और व्यापारी मिलकर भारत को आत्म-निर्भर बनाने के लिए काम कर सकते हैं. हमने इस अभियान के लिए मुकेश अंबानी, रतन टाटा से लेकर सभी बड़े उद्योगपतियों का समर्थन मांगा है. अब हम समाज के अन्य वर्गों के लोगों के पास जा रहे हैं.

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