नई दिल्ली : सुप्रीम कोर्ट ने ग्रेटर नोएडा के प्रीमियम आवासीय अपार्टमेंट ला रेजिडेंशिया को आम्रपाली समूह का हिस्सा घोषित करने के 2019 के अपने फैसले पर मंगलवार को पुनर्विचार करने से इनकार कर दिया और कहा कि इस चरण में इसके विकास कार्य का जिम्मा नेशनल बिल्डिंग कंस्ट्रक्शन कॉरपोरेशन (एनबीसीसी) को सौंपना 'न्यायोचित और उचित' नहीं होगा.
शीर्ष अदालत ने आम्रपाली ला रेजिडेंशिया फ्लैट बायर्स एसोसिएशन की याचिका खारिज कर दी. याचिका के समर्थन में दलील दी गई कि आम्रपाली ग्रुप की अन्य सभी परियोजनाओं की तरह ला रेजिडेंशिया के विकास कार्य का जिम्मा भी एनबीसीसी को सौंप दिया जाए, क्योंकि यह भी इसके तहत एक सतत प्रक्रिया रही है.
अदालत ने कहा कि मामले को जब विचार के लिए अदालत के समक्ष लाया गया तब आम्रपाली ग्रुप की अन्य सभी परियोजनाओं में या तो विकास कार्य नहीं हुआ था या अगर शुरू भी हुआ था तो विकास कार्य ठप था.
न्यायमूर्ति यू यू ललित और न्यायमूर्ति अशोक भूषण की विशेष पीठ ने निर्देश दिया कि कंपनी ला-रेजिडेंशिया डेवलपर्स प्राइवेट लिमिटेड आवासीय परियोजना का निर्माण और विकास कार्य जारी रखे.
पीठ ने कहा, हमारे विचार में एसोसिएशन और याचिका का समर्थन कर रहे आवेदकों के अनुरोध पर इस चरण में विकास कार्य का जिम्मा एनबीसीसी को सौंपना उचित नहीं होगा. इसलिए हम 23 जुलाई, 2019 और 14 अक्टूबर, 2019 के अपने आदेश पर पुनर्विचार करने के इच्छुक नहीं हैं. और न ही इस मुद्दे पर फिर से विचार करना चाहते हैं कि क्या कंपनी को आम्रपाली ग्रुप ऑफ कंपनीज का हिस्सा घोषित किया जा सकता है.
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शीर्ष अदालत ने निर्देश दिया कि 23 जुलाई, 2019 और 14 अक्टूबर 2019 की तारीख वाले आदेश के संबंध में कंपनी को उन 632 फ्लैट को इच्छुक व्यक्ति या पक्ष को उचित मूल्य पर बेचने की इजाजत होगी. अदालत ने इसके साथ ही कई शर्तें भी रखीं हैं. जिसमें लेनदेन संबंधी उपयुक्त दस्तावेजों और विलेखों पर कोर्ट रिसीवर वरिष्ठ अधिवक्ता आर वेंकटरमानी अथवा उनके नामिती के हसताक्षर होने चाहिए.
(पीटीआई-भाषा)