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हरियाणा: ट्रेंच विधि से गन्ने की खेती कर कम लागत में ज्यादा मुनाफा कमा रहा है ये किसान - This farmer is earning more profit at a lower cost by cultivating sugarcane by trench method

ट्रेंच विधि में विशेष प्रकार के औजार यानी ट्रेंच ओपनर से 17 से 20 सेमी. गहरा और 30 सेमी चौड़ा गड्ढा किया जाता है, दूसरी विधियों से गन्ना बुवाई करने में चार से पांच बार गन्ना होता है. लेकिन इस विधि से गन्ना लगाने पर दस से पंद्रह बार गन्ना हो सकता है.

हरियाणा: ट्रेंच विधि से गन्ने की खेती कर कम लागत में ज्यादा मुनाफा कमा रहा है ये किसान
हरियाणा: ट्रेंच विधि से गन्ने की खेती कर कम लागत में ज्यादा मुनाफा कमा रहा है ये किसान
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Published : Dec 4, 2019, 6:18 PM IST

करनालः भारत एक कृषि प्रधान देश है, वहीं हरियाणा राज्य में भी एक बड़ी आबादी खेती पर ही निर्भर है. लेकिन किसान खेती में बढ़ती लागत और कम मुनाफा से परेशान है. युवा पीढ़ी तो खेती करना ही नहीं चाहती है. क्योंकि खेती को अब घाटे का सौदा मान लिया गया है और युवा खेती किसानी को छोड़कर नौकरी ही करना चाहता है.

ऐसे ही किसानों और युवाओं को राह दिखा रहे हैं. करनाल के कमालपुर रोड़ान गांव के किसान इंद्रजीत सिंह. इंद्रजीत सिंह साल 2006 से ट्रेंच विधि से गन्ने की खेती कर रहे हैं और खेत में गन्ने के साथ ही दूसरी फसलें उगाकर ज्यादा मुनाफा कमा रहे हैं. इंद्रजीत सिंह के पास करीब 35 एकड़ जमीन है, जिसमें उन्होंने गन्ने की खेती कर रखी है. लेकिन इनमें से करीब 12 एकड़ जमीन पर ट्रेंच विधि से खेती की गई है.

इंद्रजीत सिंह का कहना है कि पहले वो परंपरागत खेती करते थे. लेकिन बाद में गन्ना प्रजनन संस्थान करनाल में ट्रेनिंग लेकर इंद्रजीत सिंह ने ट्रेंच विधि से खेती करनी शुरू की. ट्रेंच विधि से होने वाली खेती में पौधे को खेत में ट्रांसप्लांट किया जाता है.

हरियाणा: ट्रेंच विधि से गन्ने की खेती कर कम लागत में ज्यादा मुनाफा कमा रहा है ये किसान

ट्रेंच विधि में विशेष प्रकार के औजार यानी ट्रेंच ओपनर से 17 से 20 सेमी. गहरा और 30 सेमी चौड़ा गड्ढा किया जाता है, दूसरी विधियों से गन्ना बुवाई करने में चार से पांच बार गन्ना होता है. लेकिन इस विधि से गन्ना लगाने पर दस से पंद्रह बार गन्ना हो सकता है.

ये भी पढ़ेंः- बैंकों केवल एक लाख रुपये तक की राशि की जमा की ही गारंटी

खेत में गन्ने के पौधों को किया जाता है ट्रांसप्लांट
इसके लिए गन्ने की पौध को सबसे पहले जर्मीनेट किया जाता है. पौध जब एक-डेढ़ महीने की हो जाती है, तब किसी भी ऋतु में इसको खेत में लगाया जा सकता है. इसी विधि से उगाई जाने वाली गन्ने की पौध को जुलाई महीने में भी लगाया जा सकता है. नवंबर और दिसंबर में भी गन्ने की पौध को लगा सकते हैं. केवल एक महीने जनवरी में छोड़ा रुकना पड़ता है क्योंकि ठंड तब ज्यादा होती है.

गन्ने की पौध को खेत में जाकर ट्रांसप्लांट करना है और खेत में लगने के बाद पौधा अपनी ग्रोथ लेना शुरू कर देता है. इस विधि द्वारा दो या 3 क्विंटल बीज में पौध तैयार हो जाती है. पौध तैयार करने के बाद पांच हजार से लेकर 55 सौ के करीब पौधे एक एकड़ खेत में लगते हैं. जिसमे पौधे से पौधे की दूरी 5 फुट 2 इंच होती है और उसी के साथ हम दूसरी फसल भी ली जाती है.

परंपरागत खेती की तुलना में ज्यादा पैदावार
इस विधि से गन्ना लगाने से गन्ने की ज्यादा पैदावार होती है. परंपरागत विधि से जहां गन्ने की उपज 600-800 किवंटल प्रति हेक्टेयर होती है, वहीं ट्रेंच विधि से गन्ने की उपज 1200-2400 किवंटल प्रति हेक्टेयर ली जा सकती है.

कम लागत में होती है खेती
ट्रेंच विधि से गन्ने की खेती के दौरान गन्ने के साथ ही अलग-अलग तरह की फसलें भी एक ही खेत में लगाई जा सकती हैं और उत्पादन भी काफी अच्छा मिलता है. ट्रेंच विधि से गन्ने की लम्बाई भी ज्यादा बढ़ती है. गन्ना कभी भी हवा या आंधी में नहीं गिरता, क्योंकि इस विधि से गन्ने की खेती में गन्ने की जड़ों पर मिट्टी चढ़ाई जाती है, जिससे जड़ों की मजबूती बनी रहती है और गन्ने की बधाई भी नहीं की जाती है.

इस विधि से खेती करने में पानी की बचत के साथ-साथ जो किसानों के दूसरे खर्च भी कम आते हैं. परंपरागत खेती में किसान गन्ना लगाने के बाद निराई-गुड़ाई कराता है तो उसमें भी काफी खर्च आता है. लेकिन ट्रेंच विधि की खेती में निराई-गुड़ाई की कोई जरुरत नहीं है.

करनालः भारत एक कृषि प्रधान देश है, वहीं हरियाणा राज्य में भी एक बड़ी आबादी खेती पर ही निर्भर है. लेकिन किसान खेती में बढ़ती लागत और कम मुनाफा से परेशान है. युवा पीढ़ी तो खेती करना ही नहीं चाहती है. क्योंकि खेती को अब घाटे का सौदा मान लिया गया है और युवा खेती किसानी को छोड़कर नौकरी ही करना चाहता है.

ऐसे ही किसानों और युवाओं को राह दिखा रहे हैं. करनाल के कमालपुर रोड़ान गांव के किसान इंद्रजीत सिंह. इंद्रजीत सिंह साल 2006 से ट्रेंच विधि से गन्ने की खेती कर रहे हैं और खेत में गन्ने के साथ ही दूसरी फसलें उगाकर ज्यादा मुनाफा कमा रहे हैं. इंद्रजीत सिंह के पास करीब 35 एकड़ जमीन है, जिसमें उन्होंने गन्ने की खेती कर रखी है. लेकिन इनमें से करीब 12 एकड़ जमीन पर ट्रेंच विधि से खेती की गई है.

इंद्रजीत सिंह का कहना है कि पहले वो परंपरागत खेती करते थे. लेकिन बाद में गन्ना प्रजनन संस्थान करनाल में ट्रेनिंग लेकर इंद्रजीत सिंह ने ट्रेंच विधि से खेती करनी शुरू की. ट्रेंच विधि से होने वाली खेती में पौधे को खेत में ट्रांसप्लांट किया जाता है.

हरियाणा: ट्रेंच विधि से गन्ने की खेती कर कम लागत में ज्यादा मुनाफा कमा रहा है ये किसान

ट्रेंच विधि में विशेष प्रकार के औजार यानी ट्रेंच ओपनर से 17 से 20 सेमी. गहरा और 30 सेमी चौड़ा गड्ढा किया जाता है, दूसरी विधियों से गन्ना बुवाई करने में चार से पांच बार गन्ना होता है. लेकिन इस विधि से गन्ना लगाने पर दस से पंद्रह बार गन्ना हो सकता है.

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खेत में गन्ने के पौधों को किया जाता है ट्रांसप्लांट
इसके लिए गन्ने की पौध को सबसे पहले जर्मीनेट किया जाता है. पौध जब एक-डेढ़ महीने की हो जाती है, तब किसी भी ऋतु में इसको खेत में लगाया जा सकता है. इसी विधि से उगाई जाने वाली गन्ने की पौध को जुलाई महीने में भी लगाया जा सकता है. नवंबर और दिसंबर में भी गन्ने की पौध को लगा सकते हैं. केवल एक महीने जनवरी में छोड़ा रुकना पड़ता है क्योंकि ठंड तब ज्यादा होती है.

गन्ने की पौध को खेत में जाकर ट्रांसप्लांट करना है और खेत में लगने के बाद पौधा अपनी ग्रोथ लेना शुरू कर देता है. इस विधि द्वारा दो या 3 क्विंटल बीज में पौध तैयार हो जाती है. पौध तैयार करने के बाद पांच हजार से लेकर 55 सौ के करीब पौधे एक एकड़ खेत में लगते हैं. जिसमे पौधे से पौधे की दूरी 5 फुट 2 इंच होती है और उसी के साथ हम दूसरी फसल भी ली जाती है.

परंपरागत खेती की तुलना में ज्यादा पैदावार
इस विधि से गन्ना लगाने से गन्ने की ज्यादा पैदावार होती है. परंपरागत विधि से जहां गन्ने की उपज 600-800 किवंटल प्रति हेक्टेयर होती है, वहीं ट्रेंच विधि से गन्ने की उपज 1200-2400 किवंटल प्रति हेक्टेयर ली जा सकती है.

कम लागत में होती है खेती
ट्रेंच विधि से गन्ने की खेती के दौरान गन्ने के साथ ही अलग-अलग तरह की फसलें भी एक ही खेत में लगाई जा सकती हैं और उत्पादन भी काफी अच्छा मिलता है. ट्रेंच विधि से गन्ने की लम्बाई भी ज्यादा बढ़ती है. गन्ना कभी भी हवा या आंधी में नहीं गिरता, क्योंकि इस विधि से गन्ने की खेती में गन्ने की जड़ों पर मिट्टी चढ़ाई जाती है, जिससे जड़ों की मजबूती बनी रहती है और गन्ने की बधाई भी नहीं की जाती है.

इस विधि से खेती करने में पानी की बचत के साथ-साथ जो किसानों के दूसरे खर्च भी कम आते हैं. परंपरागत खेती में किसान गन्ना लगाने के बाद निराई-गुड़ाई कराता है तो उसमें भी काफी खर्च आता है. लेकिन ट्रेंच विधि की खेती में निराई-गुड़ाई की कोई जरुरत नहीं है.

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हरियाणा: ट्रेंच विधि से गन्ने की खेती कर कम लागत में ज्यादा मुनाफा कमा रहा है ये किसान



ट्रेंच विधि में विशेष प्रकार के औजार यानी ट्रेंच ओपनर से 17 से 20 सेमी. गहरा और 30 सेमी चौड़ा गड्ढा किया जाता है, दूसरी विधियों से गन्ना बुवाई करने में चार से पांच बार गन्ना होता है. लेकिन इस विधि से गन्ना लगाने पर दस से पंद्रह बार गन्ना हो सकता है.



करनालः भारत एक कृषि प्रधान देश है, वहीं हरियाणा राज्य में भी एक बड़ी आबादी खेती पर ही निर्भर है. लेकिन किसान खेती में बढ़ती लागत और कम मुनाफा से परेशान है. युवा पीढ़ी तो खेती करना ही नहीं चाहती है. क्योंकि खेती को अब घाटे का सौदा मान लिया गया है और युवा खेती किसानी को छोड़कर नौकरी ही करना चाहता है.



ट्रेंच विधि से करें खेती

लेकिन ऐसे ही किसानों और युवाओं को राह दिखा रहे हैं. करनाल के कमालपुर रोड़ान गांव के किसान इंद्रजीत सिंह. इंद्रजीत सिंह साल 2006 से ट्रेंच विधि से गन्ने की खेती कर रहे हैं और खेत में गन्ने के साथ ही दूसरी फसलें उगाकर ज्यादा मुनाफा कमा रहे हैं. इंद्रजीत सिंह के पास करीब 35 एकड़ जमीन है, जिसमें उन्होंने गन्ने की खेती कर रखी है. लेकिन इनमें से करीब 12 एकड़ जमीन पर ट्रेंच विधि से खेती की गई है. 

इंद्रजीत सिंह का कहना है कि पहले वो परंपरागत खेती करते थे. लेकिन बाद में गन्ना प्रजनन संस्थान करनाल में ट्रेनिंग लेकर इंद्रजीत सिंह ने ट्रेंच विधि से खेती करनी शुरू की. ट्रेंच विधि से होने वाली खेती में पौधे को खेत में ट्रांसप्लांट किया जाता है. 



ट्रेंच विधि में विशेष प्रकार के औजार यानी ट्रेंच ओपनर से 17 से 20 सेमी. गहरा और 30 सेमी चौड़ा गड्ढा किया जाता है, दूसरी विधियों से गन्ना बुवाई करने में चार से पांच बार गन्ना होता है. लेकिन इस विधि से गन्ना लगाने पर दस से पंद्रह बार गन्ना हो सकता है.



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खेत में गन्ने के पौधों को किया जाता है ट्रांसप्लांट

इसके लिए गन्ने की पौध को सबसे पहले जर्मीनेट किया जाता है. पौध जब एक-डेढ़ महीने की हो जाती है, तब किसी भी ऋतु में इसको खेत में लगाया जा सकता है. इसी विधि से उगाई जाने वाली गन्ने की पौध को जुलाई महीने में भी लगाया जा सकता है. नवंबर और दिसंबर में भी गन्ने की पौध को लगा सकते हैं. केवल एक महीने जनवरी में छोड़ा रुकना पड़ता है क्योंकि ठंड तब ज्यादा होती है. 

गन्ने की पौध को खेत में जाकर ट्रांसप्लांट करना है और खेत में लगने के बाद पौधा अपनी ग्रोथ लेना शुरू कर देता है.  इस विधि द्वारा दो या 3 क्विंटल बीज में पौध तैयार हो जाती है. पौध तैयार करने के बाद पांच हजार से लेकर 55 सौ के करीब पौधे एक एकड़ खेत में लगते हैं. जिसमे पौधे से पौधे की दूरी 5 फुट 2 इंच होती है और उसी के साथ हम दूसरी फसल भी ली जाती है.



परंपरागत खेती की तुलना में ज्यादा पैदावार

इस विधि से गन्ना लगाने से गन्ने की ज्यादा पैदावार होती है. परंपरागत विधि से जहां गन्ने की उपज 600-800 किवंटल प्रति हेक्टेयर होती है, वहीं ट्रेंच विधि से गन्ने की उपज 1200-2400 किवंटल प्रति हेक्टेयर ली जा सकती है.



कम लागत में होती है खेती

ट्रेंच विधि से गन्ने की खेती के दौरान गन्ने के साथ ही अलग-अलग तरह की फसलें भी एक ही खेत में लगाई जा सकती हैं और उत्पादन भी काफी अच्छा मिलता है. ट्रेंच विधि से गन्ने की लम्बाई भी ज्यादा बढ़ती है. गन्ना कभी भी हवा या आंधी में नहीं गिरता, क्योंकि इस विधि से गन्ने की खेती में गन्ने की जड़ों पर मिट्टी चढ़ाई जाती है, जिससे जड़ों की मजबूती बनी रहती है और गन्ने की बधाई भी नहीं की जाती है.

इस विधि से खेती करने में पानी की बचत के साथ-साथ जो किसानों के दूसरे खर्च भी कम आते हैं. परंपरागत खेती में किसान गन्ना लगाने के बाद निराई-गुड़ाई कराता है तो उसमें भी काफी खर्च आता है. लेकिन ट्रेंच विधि की खेती में निराई-गुड़ाई की कोई जरुरत नहीं है. 


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