सिंगापुर: आसियान और अन्य देशों के बीच प्रस्तावित क्षेत्रीय वृहद आर्थिक साझेदारी (आरसीईपी) समझौते में शामिल होने को लेकर भारत ने सोमवार को अपनी कुछ आपत्ति जताते हुए कहा कि इस आपत्ति की बड़ी वजह चीन के साथ आपसी व्यापार में चिंताजनक 'वृहद' व्यापार घाटा है. चीन के साथ भारत का व्यापार घाटा 57 अरब डॉलर से अधिक है.
विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने यहां भारत-सिंगापुर व्यापार एवं नवोन्मेष शिखर सम्मेलन के उद्घाटन सत्र में एक संगोष्ठी चर्चा के दौरान कहा कि भारत को अभी भी चीन की 'संरक्षणवादी नीतियों' और भारतीय उत्पादों तक उसके 'अनुचित' पहुंच बनाने को लेकर चिंता है.
इसने दोनों देशों के बीच बहुत वृहद व्यापार घाटा पैदा कर दिया है. चीन के आधिकारिक आंकड़ों के अनुसार वर्ष 2018 में दोनों देशों का द्विपक्षीय व्यापार 95.54 अरब डॉलर था जबकि व्यापार घाटा 57.86 अरब डॉलर. वहीं 2017 में यह व्यापार घाटा 51.72 अरब डॉलर था. जयशंकर ने कहा कि यह निश्चित तौर पर भारत की बड़ी चिंता है. चीन के साथ भारत का व्यापार घाटा बहुत अधिक है.
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आरसीईपी, आसियान देशों और उनके छह मुक्त व्यापार साझेदारों के बीच प्रस्तावित एक मुक्त व्यापार एवं निवेश व्यवस्था है. इस वार्ता में आसियान देशों में ब्रुनेई, कंबोडिया, इंडोनेशिया, लाओस, मलेशिया, म्यांमा, फिलीपींस, सिंगापुर, थाईलैंड और वियतनाम शामिल है. उसके छह मुक्त व्यापार साझेदार ऑस्ट्रेलिया, चीन, भारत, जापान, कोरिया और न्यूजीलैंड हैं.
आरसीईपी में शामिल देशों ने रविवार को एक संयुक्त बयान जारी कर कहा कि इस साल के अंत तक सभी विवादित मुद्दों पर सहमति बना ली जाएगी और इसके लिए मिलकर काम किया जाएगा. यह संयुक्त बयान बैंकॉक में सातवीं आरसीईपी की मंत्रिस्तरीय बैठक के बाद जारी किया गया.