मुंबई : आरबीआई की समिति ने निजी बैंकों में 15 साल बाद प्रवर्तकों की न्यूनतम हिस्सेदारी (minimum holding of promoters) बढ़ाने का फैसला लिया है. निजी बैंकों में प्रवर्तकों की मौजूदा हिस्सेदारी 15 प्रतिशत से बढ़ाकर 26 प्रतिशत करने की सिफारिश की गई है.
निजी बैंकों में कॉरपोरेट ढांचा पर गठित आरबीआई की समिति ने कहा है कि प्रवर्तकों की हिस्सेदारी पर शुरू के पांच साल तक कोई सीमा लगाने की जरूरत नहीं, उसके बाद इसे 40 प्रतिशत किया जा सकता है.
आरबीआई के मौजूदा नियमों के मुताबिक, एक निजी बैंक के प्रमोटर को 10 साल के भीतर अपनी हिस्सेदारी घटाकर 20 फीसदी और 15 साल के भीतर 15 फीसदी करने की जरूरत है.
निजी क्षेत्र के बैंकों के लिए स्वामित्व दिशानिर्देशों और कॉर्पोरेट संरचना पर रिपोर्ट जारी करते हुए, रिजर्व बैंक ने शुक्रवार को बताया कि 15 वर्षों के लंबे समय में प्रमोटरों की हिस्सेदारी की सीमा को मौजूदा 15 प्रतिशत से बढ़ाकर 26 प्रतिशत किया जा सकता है.
वे पहले पांच वर्षों के लिए 40 प्रतिशत हिस्सेदारी पर मौजूदा शर्त को जारी रखने का समर्थन करते हैं और प्रमोटर समूह के नियंत्रण की विश्वसनीयता तब तक बनाए रखें जब तक कि व्यवसाय ठीक से स्थापित और स्थिर न हो जाए. जाे कि यह भी सुनिश्चित करेगा कि प्रमोटर प्रारंभिक वर्षों में बैंक के लिए प्रतिबद्ध रहे.
15 वर्षों की लंबी अवधि में प्रवर्तकों की हिस्सेदारी की सीमा को मौजूदा 15 प्रतिशत से बढ़ाकर 26 प्रतिशत किया जा सकता है. यह शर्त सभी प्रकार के प्रमोटरों के लिए एक समान होनी चाहिए और इसका मतलब यह नहीं होगा कि प्रमोटर, जिन्होंने पहले ही अपनी हिस्सेदारी को 26 प्रतिशत से कम कर दिया है, को इसे पेड-अप वोटिंग इक्विटी शेयर पूंजी के 26 प्रतिशत तक बढ़ाने की अनुमति नहीं दी जाएगी.
अगर प्रमोटर चाहें तो पांच साल की लॉक-इन अवधि के बाद किसी भी समय होल्डिंग को 26 फीसदी से भी कम करने का विकल्प चुन सकते हैं.
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(पीटीआई-भाषा)