नई दिल्ली: उत्तर भारत के बड़े पर्वों में से एक रक्षाबंधन के त्योहार को सिर्फ तीन दिन बचे हैं लेकिन कोरोना वायरस संक्रमण के चलते राखी की दुकानों पर सन्नाटा पसरा है और खरीदारी नहीं होने से दुकानदार परेशान हैं.
उत्तर प्रदेश के गाजियाबाद में सड़क के किनारे ऐसी ही एक दुकान लगाई है राजबाला ने. हर गुजरने वाले से खरीदारी की आस लगाए राजबाला कहती हैं कि उनकी अभी तक एक भी राखी नहीं बिकी है.
उन्होंने कहा, "कुछ करने के लिए है ही नहीं. अभी तक कोई खरीदारी करने नहीं आया है."
देश में तेजी से बढ़ते संक्रमण के मामलों को देखते हुए इस बार परिवारों में किसी बड़े आयोजन के होने की संभावना कम ही हैं जहां भाई बहन इकट्ठा हो कर रक्षा बंधन का त्योहार मनाएं.
पिछले 15 वर्षों से राखी बेंचने का काम कर रही राजबाला ने पीटीआई-भाषा से कहा, "पहले महिलाएं शाम को घरों से घूमने निकलतीं थी और दुकानों पर रुक कर राखियां खरीदती थीं. इस महामारी ने हमें पूरी तरह से बर्बाद कर दिया."
गाजियाबाद की ही रहने वाली छाया सिंह कहती हैं, "मैंने अपने भाई से मेरी तरफ से रोली लगाने और राखी बांधने को कह दिया है. इस बार हम एक दूसरे को खतरे में नहीं डालेंगे."
उन्होंने कहा, "हमें ऑनलाइन शॉपिंग पर भी विश्वास नहीं है. क्योंकि पता नहीं राखी को कितने लोगों ने छुआ होगा. मुझे नहीं लगता कि यह सुरक्षित है."
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गुरुग्राम की आईटी पेशेवर अमृता मेहता कहती हैं कि वह हर साल भाई को राखी बांधने जयपुर जाती थीं लेकिन इस बार नहीं जाएंगी. संक्रमण के भय से लोगों के नहीं निकलने से राखी के कारोबार पर बुरा असर पड़ा है.
पुनर्चक्रण कागज उत्पाद कंपनी पेपा को आमतौर पर उसकी रोपण योग्य 'राखी' (बीज के साथ) के लिए 15,000 ऑर्डर मिलते थे लेकिन इस साल यह संख्या घटकर 5,000 से भी कम रह गई है.
कोयम्बटूर की उद्यमी दिव्या शेट्टी ने 'पीटीआई-भाषा' से फोन पर कहा, "हर साल त्योहार के बाद देश भर में करीब आठ लाख राखियां बेकार हो जातीं हैं. लेकिन रोपण योग्य राखी में निवेश करके आप पर्यावरण के पक्ष में काम कर सकते हैं."
रोपण योग्य राखियां ऐसी राखियां होतीं हैं जो मिट्टी और अनेक प्रकार के बीज से मिला कर तैयार की जाती हैं और बाद में इन्हें गमले में डाल दिया जाता है जिससे पौधा तैयार होता है.
शेट्टी कहती हैं कि इस बार बिक्री नहीं होने से वह और उनके जैसे तमाम कारोबारी परेशान हैं.
(पीटीआई-भाषा)