बिजनेस डेस्क, ईटीवी भारत : पेट्रोलियम उत्पादों को वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) व्यवस्था के तहत शामिल करने को लेकर केंद्र सरकार को अभी तक किसी भी राज्य की तरफ से कोई पहल नहीं प्राप्त हुई है.
लोकसभा में सोमवार को प्रश्नकाल के दौरान जदयू सांसद राजीव रंजन सिंह द्वारा उठाए गए एक सवाल का जवाब देते हुए, वित्त और कॉर्पोरेट मामलों के राज्य मंत्री ने कहा, 'जीएसटी परिषद की बैठक का एजेंडा विभिन्न राज्यों द्वारा दिए गए सुझावों के आधार पर तैयार किया जाता है. अब तक, एक भी राज्य ने हमें इस विषय (जीएसटी में पेट्रोलियम उत्पादों को शामिल करने) को एजेंडे में शामिल करने का सुझाव नहीं दिया.'
मंत्री ने आगे स्पष्ट किया कि केंद्र जीएसटी परिषद की अगली बैठक में इस विषय को लेने के लिए तैयार है.
पेट्रोल और डीजल जैसे पेट्रोलियम उत्पादों को जीएसटी ढांचे के तहत लाने का मुद्दा एक लंबे समय से लंबित है. हाल ही में ऑटो ईंधन की बढ़ती कीमतों के कारण इसने फिर से ध्यान आकर्षित किया.
विशेषज्ञों के साथ-साथ विपक्षी दलों ने भी कहा कि पेट्रोल और डीजल को जीएसटी के तहत लाने से करों के व्यापक प्रभाव से बचा जा सकता है और इसके परिणामस्वरूप, इन उत्पादों को काफी सस्ती कीमत पर बेचा जा सकता है.
वर्तमान में इन उत्पादों पर, केंद्रीय उत्पाद शुल्क, अतिरिक्त उत्पाद शुल्क और कृषि और डीजल पर एग्री इंफ्रास्ट्रक्चर विकास उपकर लगाता है, जबकि राज्य इन वस्तुओं पर मूल्य वर्धित कर और बिक्री कर लगाते हैं.
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एक अनुमान के अनुसार, पेट्रोल की खुदरा कीमत का 60 प्रतिशत केंद्र और राज्यों के करों से बनता है. जबकि, खुदरा डीजल की कीमत में लगभग 56 प्रतिशत कर लगता है.
पिछले फरवरी से तेल विपणन कंपनियों ने पेट्रोल की कीमत में 4.22 रुपये प्रति लीटर की बढ़ोतरी की है और डीजल के खुदरा मूल्य में 4.34 रुपये प्रति लीटर की वृद्धि हुई है.
परिणामस्वरूप, राजस्थान, मध्य प्रदेश और महाराष्ट्र के कुछ हिस्सों में पेट्रोल पहले ही 100 रुपये प्रति लीटर के स्तर को पार कर चुका है, जबकि देश के अधिकांश हिस्सों में यह 90 रुपये प्रति लीटर के निशान से ऊपर है.
इसी तरह, डीजल की कीमत भी बढ़ रही है और सभी प्रमुख महानगरों में 90 रुपये प्रति लीटर के स्तर को छुआ है.