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बैंको को कोई राहत नहीं मिलेगी भले ही सरकार ब्याज माफी का खर्च वहन कर लें - बैंको को कोई राहत नहीं मिलेगी भले ही सरकार ब्याज माफी का खर्च वहन कर लें

सर्वोच्च न्यायालय ने केंद्र को एक हलफनामा देने के लिए कहा कि 2 करोड़ रुपये तक के कर्ज पर ब्याज माफ किया जाएगा और सरकार इसका बोझ उठाएगी लेकिन बैंकिंग उद्योग के सूत्रों का कहना है कि सरकार से पैसा मिलना मुश्किल है.

बैंको को कोई राहत नहीं मिलेगी भले ही सरकार ब्याज माफी का खर्च वहन कर लें
बैंको को कोई राहत नहीं मिलेगी भले ही सरकार ब्याज माफी का खर्च वहन कर लें
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Published : Oct 15, 2020, 1:13 PM IST

नई दिल्ली: ब्याज माफी का बोझ उठाने का केंद्र सरकार का फैसला बैंकों के लिए तत्काल राहत नहीं ला सकता है क्योंकि सरकारी खजाने से सरकारी बैंकों से पैसा ट्रांसफर करने में समय लग जाएगा.

उच्चतम न्यायालय ने बुधवार को केंद्र को निर्देश दिया कि वह उन ऋण खातों के ब्याज पर ब्याज को माफ करने के अपने फैसले को तुरंत लागू करे जो कोरोना महामारी के कारण कठिनाई का सामना कर रहे हैं और इस वर्ष मार्च में रिजर्व बैंक द्वारा घोषित ऋण रोक का लाभ उठाया है.

शीर्ष अदालत ने अपनी इच्छा व्यक्त करते हुए अगली सुनवाई के लिए 2 नवंबर की तारीख तय की है. सरकार तब तक अपना फैसला लागू कर देगी. केंद्र ने पहले ही शीर्ष अदालत को सूचित कर दिया है कि वह चक्रवृद्धि ब्याज (ब्याज पर ब्याज) की माफी का खर्च वहन करेगा जो कि लगभग 6,500 करोड़ रुपये आंकी गई है.

ये भी पढ़ें- भारत निर्यात बढ़ाने पर ध्यान दे, घरेलू बाजार को लेकर भ्रम से बचे: अरविंद सुब्रमणियम

बैंकों को सरकार से देरी से भुगतान का सामना करना पड़ रहा है

एक अनुसूचित वाणिज्यिक बैंक के पूर्व एमडी और सीईओ ने कहा, "अगर ब्याज पर ब्याज माफ किया जाता है, तो मुझे लगता है कि भारत सरकार संबंधित बैंकों की प्रतिपूर्ति करेगी, इसलिए यह समस्या नहीं होनी चाहिए."

पूर्व बैंकर ने ईटीवी भारत को बताया, "इस मामले में समस्या यह है कि अगर सरकार बोझ उठाती है तो भी एक समय बहुत लग सकता है."

इस साल मार्च में रिजर्व बैंक ने बैंकों और एनबीएफसी को अपने ग्राहकों को ऋण चुकाने पर तीन महीने की मोहलत देने की अनुमति दी थी जो कोरोना के कारण नकदी संकट का सामना कर रहे थे. बाद में आरबीआई ने ऋण स्थगन को एक और तीन महीने बढ़ा दिया जो इस साल अगस्त के अंत में समाप्त हो गया.

हालांकि, एक यूपी निवासी गजेंद्र शर्मा ने ऋण अधिस्थगन के नियमों और शर्तों को चुनौती दी क्योंकि बैंक अधिस्थगन अवधि के लिए ब्याज पर ब्याज लगा रहे थे. सर्वोच्च न्यायालय ने केंद्र को एक हलफनामा देने के लिए कहा कि 2 करोड़ रुपये तक के कर्ज पर ब्याज माफ किया जाएगा और सरकार इसका बोझ उठाएगी.

बैंकिंग उद्योग के सूत्रों का कहना है कि सरकार से पैसा मिलना मुश्किल है.

सुप्रीम कोर्ट के फैसले के आधार पर बैंकों को अपने संबंधित ग्राहकों को इसे वापस करना होगा. हालांकि, सरकार से पैसा वापस पाना बहुत मुश्किल है क्योंकि सरकार के पास खुद इस तरह की फंडिंग उपलब्ध नहीं है.

कोरोना ने केंद्र सरकार के वित्त को कमजोर किया

केंद्र को कोरोना वैश्विक महामारी के प्रकोप के कारण अभूतपूर्व नकदी संकट का सामना करना पड़ रहा है. कोरोना के कारण भारत में एक लाख से ज्यादा और दुनियाभर में दस लाख से ज्यादा लोगों ने अपनी जान गंवा दी है.

कोरोना वायरस ने भारत की जीडीपी को भी पीछे धकेल दिया है. आरबीआई के के अनुसार, वार्षिक संकुचन 10% के करीब हो सकता है. इसने इस वर्ष के बजट में वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण द्वारा किए गए राजस्व संग्रह अनुमानों को बुरी तरह प्रभावित किया है.

नई दिल्ली: ब्याज माफी का बोझ उठाने का केंद्र सरकार का फैसला बैंकों के लिए तत्काल राहत नहीं ला सकता है क्योंकि सरकारी खजाने से सरकारी बैंकों से पैसा ट्रांसफर करने में समय लग जाएगा.

उच्चतम न्यायालय ने बुधवार को केंद्र को निर्देश दिया कि वह उन ऋण खातों के ब्याज पर ब्याज को माफ करने के अपने फैसले को तुरंत लागू करे जो कोरोना महामारी के कारण कठिनाई का सामना कर रहे हैं और इस वर्ष मार्च में रिजर्व बैंक द्वारा घोषित ऋण रोक का लाभ उठाया है.

शीर्ष अदालत ने अपनी इच्छा व्यक्त करते हुए अगली सुनवाई के लिए 2 नवंबर की तारीख तय की है. सरकार तब तक अपना फैसला लागू कर देगी. केंद्र ने पहले ही शीर्ष अदालत को सूचित कर दिया है कि वह चक्रवृद्धि ब्याज (ब्याज पर ब्याज) की माफी का खर्च वहन करेगा जो कि लगभग 6,500 करोड़ रुपये आंकी गई है.

ये भी पढ़ें- भारत निर्यात बढ़ाने पर ध्यान दे, घरेलू बाजार को लेकर भ्रम से बचे: अरविंद सुब्रमणियम

बैंकों को सरकार से देरी से भुगतान का सामना करना पड़ रहा है

एक अनुसूचित वाणिज्यिक बैंक के पूर्व एमडी और सीईओ ने कहा, "अगर ब्याज पर ब्याज माफ किया जाता है, तो मुझे लगता है कि भारत सरकार संबंधित बैंकों की प्रतिपूर्ति करेगी, इसलिए यह समस्या नहीं होनी चाहिए."

पूर्व बैंकर ने ईटीवी भारत को बताया, "इस मामले में समस्या यह है कि अगर सरकार बोझ उठाती है तो भी एक समय बहुत लग सकता है."

इस साल मार्च में रिजर्व बैंक ने बैंकों और एनबीएफसी को अपने ग्राहकों को ऋण चुकाने पर तीन महीने की मोहलत देने की अनुमति दी थी जो कोरोना के कारण नकदी संकट का सामना कर रहे थे. बाद में आरबीआई ने ऋण स्थगन को एक और तीन महीने बढ़ा दिया जो इस साल अगस्त के अंत में समाप्त हो गया.

हालांकि, एक यूपी निवासी गजेंद्र शर्मा ने ऋण अधिस्थगन के नियमों और शर्तों को चुनौती दी क्योंकि बैंक अधिस्थगन अवधि के लिए ब्याज पर ब्याज लगा रहे थे. सर्वोच्च न्यायालय ने केंद्र को एक हलफनामा देने के लिए कहा कि 2 करोड़ रुपये तक के कर्ज पर ब्याज माफ किया जाएगा और सरकार इसका बोझ उठाएगी.

बैंकिंग उद्योग के सूत्रों का कहना है कि सरकार से पैसा मिलना मुश्किल है.

सुप्रीम कोर्ट के फैसले के आधार पर बैंकों को अपने संबंधित ग्राहकों को इसे वापस करना होगा. हालांकि, सरकार से पैसा वापस पाना बहुत मुश्किल है क्योंकि सरकार के पास खुद इस तरह की फंडिंग उपलब्ध नहीं है.

कोरोना ने केंद्र सरकार के वित्त को कमजोर किया

केंद्र को कोरोना वैश्विक महामारी के प्रकोप के कारण अभूतपूर्व नकदी संकट का सामना करना पड़ रहा है. कोरोना के कारण भारत में एक लाख से ज्यादा और दुनियाभर में दस लाख से ज्यादा लोगों ने अपनी जान गंवा दी है.

कोरोना वायरस ने भारत की जीडीपी को भी पीछे धकेल दिया है. आरबीआई के के अनुसार, वार्षिक संकुचन 10% के करीब हो सकता है. इसने इस वर्ष के बजट में वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण द्वारा किए गए राजस्व संग्रह अनुमानों को बुरी तरह प्रभावित किया है.

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