आधिकारिक सूत्रों ने कहा, "हमने इन बैंकों से ब्याज मार्जिन (एआईएम्स), सीएएसए (करेंट एकाउंट सेविंग्स एकाउंट), आरडब्ल्यूए (रिस्क वेटेड एसेट्स), एनपीए मान्यता, विचलन (कर्ज पहचान में असमानता), परिचालन मुनाफा और गैर-कोर परिसंपत्तियों की बिक्री में सुधार करने के लिए कहा है, ताकि पीसीए से बाहर निकलने के लिए वे हमारा समर्थन प्राप्त कर सकें."
इससे पहले एक वित्त मंत्रालय के अधिकारी ने कहा था कि अगली दो तिमाहियों में या जून तक सभी छह बैंकों के पीसीए से बाहर निकलने की उम्मीद है.
पिछले साल कुल 11 बैंकों को पीसीए के अंदर रखा गया था, जिसमें से तीन बैंक पहले ही इससे बाहर आ चुके हैं, जबकि दो बैंकों को एक मजबूत बैंक के साथ विलय कर दिया गया है. इसके बाद इस सूची में छह कमजोर बैंक बचे हैं, जिनको कर्ज देने में भी रोक का सामना करना पड़ रहा है.
सरकार द्वारा हाल में की गई पुर्नपूजीकरण से बैंकों के टीयर-1 कोर पूंजीगत जरूरतों को पूरा किया गया था. बासेल-3 नियमों के तहत सभी बैंकों को 4.5 फीसदी की जोखिम-आधारित कैपिटल मिनियम कॉम इक्विटी टीयर 1 (सीईटी1) जरूरत और 7 फीसदी की टार्गेट लेवल सीईटी1 जरूरत को पूरा करना होता है.
सरकार ने इन बैंकों में पूंजी डाली थी, ताकि वे उसका प्रयोग प्रावधान बढ़ाने (फंसे कर्ज की भरपाई करने) और शुद्ध एनपीए अनुपात को कम करने में कर सकें, ताकि आरबीआई (भारतीय रिजर्व बैंक) इन तीन बैकों -बैंक ऑफ महाराष्ट्र, बैंक ऑफ इंडिया और ओरिएंटल बैंक ऑफ कॉमर्स से प्रतिबंधों को हटा सकें.
इन बैंकों पर प्रतिबंध लगाने का मुख्य कारण शुद्ध एनपीए अनुपात को 6 फीसदी रखने की शर्त को पूरा नहीं करना है. पीसीए के तहत बैंकों पर तुरंत प्रभाव यह पड़ता है कि उनकी कर्ज की वृद्धि दर प्रभावित होती है, क्योंकि वे एएए रेटिंग से कम वाले कॉर्पोरेट्स को कर्ज नहीं दे सकते हैं.
पीसीए के तहत फिलहाल इलाहाबाद बैंक, यूनाइटेड बैंक ऑफ इंडिया, कॉर्पोरेशन बैंक, यूको बैंक, सेंट्रल बैंक ऑफ इंडिया और इंडियन ओवरसीज बैंक शामिल हैं.
पीसीए के तहत इन बैंकों को लाभांश वितरण और मुनाफे में छूट देने पर रोक लगी है. इसके अलावा इन बैंकों को अपनी शाखाओं का विस्तार करने से रोक दिया गया है और उन्हें उच्च प्रावधान करने की जरूरत होती है. प्रबंधन को दिया जाने वाला मुआवजा और निदेशकों की फीस पर भी सीमा लगा दी गई है.
इन बैकों द्वारा प्रस्तुत रिकवरी योजना में लागत में कटौती, शाखाओं का आकार घटाना, विदेशी शाखाओं को बंद करना, कॉर्पोरेट लोन बुक का आकार घटाने के साथ ही जोखिम वाली परिसंपत्तियों की अन्य कर्जदाताओं को बिक्री शामिल है.
(आईएएनएस)
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