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क्या गेम चेंजर साबित होगा इज ऑफ डूइंग एग्रीबिजनेस इंडेक्स ?

यह सूचकांक कृषि व्यवसायियों के लिए एक स्वस्थ वातावरण बनाने के लिए राज्यों के बीच एक स्वस्थ प्रतिस्पर्धा विकसित करेगा जो अधिक निवेश, नवाचार कौशल, बौद्धिक संपदा सुरक्षा उपायों आदि को प्रोत्साहित करेगा. यह कृषि को मुख्यधारा में भी लाएगा और अंततः किसानों की आय के साथ-साथ ग्रामीण अर्थव्यवस्था को भी प्रभावित करेगा.

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Published : Feb 15, 2019, 10:26 PM IST

Updated : Mar 21, 2019, 1:21 PM IST

हैदराबाद: सरकार ने कृषि व्यवसाय करने में आसानी के आधार पर राज्यों को रैंक करने के लिए इज ऑफ डूइंग एग्रीबिजनेस इंडेक्स का अनावरण किया है. ऐसे देश में, जहां कृषि को बहुसंख्यक किसानों द्वारा गैर-पारिश्रमिक आर्थिक गतिविधि के रूप में देखा जाता है. वहीं, ईज ऑफ डूइंग एग्रीबिजनेस इंडेक्स आश्चर्य की स्थिति पैदा करती है.

कैसे मापा जाता है इज ऑफ डूइंग एग्रीबिजनेस इंडेक्स ?
नेशनल थिंक टैंक, नेशनल इंस्टीट्यूशन फॉर ट्रांसफॉर्मिंग इंडिया (नीति आयोग) ने राज्यों को रैंक करने के लिए निम्नलिखित छह प्रमुख मापदंडों को विकसित किया है.

Business News, Agricultural Business, Is of Doing Agribusiness Index, Policy Commission, Agro-Climate Status, बिजनेस न्यूज, कृषि व्यवसाय, इज ऑफ डूइंग एग्रीबिजनेस इंडेक्स, नीति आयोग, कृषि-जलवायु स्थिति
इज ऑफ डूइंग एग्रीबिजनेस इंडेक्स

सूचकांक के क्या लाभ हैं?
इस तरह के सूचकांक की शुरूआत संबंधित राज्यों में कृषि व्यवसाय क्षेत्र में एक पारस्परिक पारिस्थितिकी तंत्र विकसित करेगी. यह कृषि व्यवसायियों के लिए एक स्वस्थ वातावरण बनाने के लिए राज्यों के बीच एक स्वस्थ प्रतिस्पर्धा विकसित करेगा जो अधिक निवेश, नवाचार कौशल, बौद्धिक संपदा सुरक्षा उपायों आदि को प्रोत्साहित करेगा. यह कृषि को मुख्यधारा में भी लाएगा और अंततः किसानों की आय के साथ-साथ ग्रामीण अर्थव्यवस्था को भी प्रभावित करेगा.

आगे की चुनौतियां
किसी दिए गए पैरामीटर में सभी राज्यों की तुलना करना मुश्किल है, उदाहरण के लिए महाराष्ट्र, तेलंगाना जैसे राज्य हैं जो पहले से ही निवेश, प्रसंस्करण उद्योग और सिंचाई आदि के मामले में कृषि में प्रगति कर रहे हैं. जबकि बिहार जैसे राज्यों में एक अलग स्थिति है.

दूसरे हर राज्यों में अलग-अलग कृषि-जलवायु स्थिति, स्थलाकृति, फसल पद्धति, बुनियादी ढांचे के विकास और इसलिए इन मापदंडों को सार्वभौमिक और समान रूप से लागू नहीं किया जा सकता है.

तीसरा, विशेषज्ञों का दृढ़ता से मानना है कि कृषि व्यवसाय करने में आसानी के आकलन के लिए सरकार को कुछ और मापदंडों के साथ आना चाहिए जैसे कि किसानों और युवा उद्यमियों को प्रशिक्षण, सूक्ष्म वित्तीय प्रबंधन पर जागरूकता सृजन करना आदि.

इन कमियों के बावजूद यह कदम भारत जैसे देश में एक स्वागत योग्य कदम है. जहां अधिकांश आबादी कृषि पर निर्भर है. कृषि व्यवसाय के विकास के बिना भारतीय कृषि अर्थव्यवस्था अपनी क्षमता तक नहीं पहुंच पाएगी.
पढ़ें : जेट एयरवेज के संकट ने विमानन क्षेत्र में कॉरपोरेट गवर्नेंस के मानदंडों पर उठाए सवाल

हैदराबाद: सरकार ने कृषि व्यवसाय करने में आसानी के आधार पर राज्यों को रैंक करने के लिए इज ऑफ डूइंग एग्रीबिजनेस इंडेक्स का अनावरण किया है. ऐसे देश में, जहां कृषि को बहुसंख्यक किसानों द्वारा गैर-पारिश्रमिक आर्थिक गतिविधि के रूप में देखा जाता है. वहीं, ईज ऑफ डूइंग एग्रीबिजनेस इंडेक्स आश्चर्य की स्थिति पैदा करती है.

कैसे मापा जाता है इज ऑफ डूइंग एग्रीबिजनेस इंडेक्स ?
नेशनल थिंक टैंक, नेशनल इंस्टीट्यूशन फॉर ट्रांसफॉर्मिंग इंडिया (नीति आयोग) ने राज्यों को रैंक करने के लिए निम्नलिखित छह प्रमुख मापदंडों को विकसित किया है.

Business News, Agricultural Business, Is of Doing Agribusiness Index, Policy Commission, Agro-Climate Status, बिजनेस न्यूज, कृषि व्यवसाय, इज ऑफ डूइंग एग्रीबिजनेस इंडेक्स, नीति आयोग, कृषि-जलवायु स्थिति
इज ऑफ डूइंग एग्रीबिजनेस इंडेक्स

सूचकांक के क्या लाभ हैं?
इस तरह के सूचकांक की शुरूआत संबंधित राज्यों में कृषि व्यवसाय क्षेत्र में एक पारस्परिक पारिस्थितिकी तंत्र विकसित करेगी. यह कृषि व्यवसायियों के लिए एक स्वस्थ वातावरण बनाने के लिए राज्यों के बीच एक स्वस्थ प्रतिस्पर्धा विकसित करेगा जो अधिक निवेश, नवाचार कौशल, बौद्धिक संपदा सुरक्षा उपायों आदि को प्रोत्साहित करेगा. यह कृषि को मुख्यधारा में भी लाएगा और अंततः किसानों की आय के साथ-साथ ग्रामीण अर्थव्यवस्था को भी प्रभावित करेगा.

आगे की चुनौतियां
किसी दिए गए पैरामीटर में सभी राज्यों की तुलना करना मुश्किल है, उदाहरण के लिए महाराष्ट्र, तेलंगाना जैसे राज्य हैं जो पहले से ही निवेश, प्रसंस्करण उद्योग और सिंचाई आदि के मामले में कृषि में प्रगति कर रहे हैं. जबकि बिहार जैसे राज्यों में एक अलग स्थिति है.

दूसरे हर राज्यों में अलग-अलग कृषि-जलवायु स्थिति, स्थलाकृति, फसल पद्धति, बुनियादी ढांचे के विकास और इसलिए इन मापदंडों को सार्वभौमिक और समान रूप से लागू नहीं किया जा सकता है.

तीसरा, विशेषज्ञों का दृढ़ता से मानना है कि कृषि व्यवसाय करने में आसानी के आकलन के लिए सरकार को कुछ और मापदंडों के साथ आना चाहिए जैसे कि किसानों और युवा उद्यमियों को प्रशिक्षण, सूक्ष्म वित्तीय प्रबंधन पर जागरूकता सृजन करना आदि.

इन कमियों के बावजूद यह कदम भारत जैसे देश में एक स्वागत योग्य कदम है. जहां अधिकांश आबादी कृषि पर निर्भर है. कृषि व्यवसाय के विकास के बिना भारतीय कृषि अर्थव्यवस्था अपनी क्षमता तक नहीं पहुंच पाएगी.
पढ़ें : जेट एयरवेज के संकट ने विमानन क्षेत्र में कॉरपोरेट गवर्नेंस के मानदंडों पर उठाए सवाल

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क्या गेम चेंजर साबित होगा इज ऑफ डूइंग एग्रीबिजनेस इंडेक्स ?

हैदराबाद: सरकार ने कृषि व्यवसाय करने में आसानी के आधार पर राज्यों को रैंक करने के लिए इज ऑफ डूइंग एग्रीबिजनेस इंडेक्स का अनावरण किया है. ऐसे देश में, जहां कृषि को बहुसंख्यक किसानों द्वारा गैर-पारिश्रमिक आर्थिक गतिविधि के रूप में देखा जाता है. वहीं, ईज ऑफ डूइंग एग्रीबिजनेस इंडेक्स आश्चर्य की स्थिती पैदा करती है.



कैसे मापा जाता है इज ऑफ डूइंग एग्रीबिजनेस इंडेक्स ?

नेशनल थिंक टैंक, नेशनल इंस्टीट्यूशन फॉर ट्रांसफॉर्मिंग इंडिया (नीति आयोग) ने राज्यों को रैंक करने के लिए निम्नलिखित छह प्रमुख मापदंडों को विकसित किया है.



सूचकांक के क्या लाभ हैं?

इस तरह के सूचकांक की शुरूआत संबंधित राज्यों में कृषि व्यवसाय क्षेत्र में एक पारस्परिक पारिस्थितिकी तंत्र विकसित करेगी. यह कृषि व्यवसायियों के लिए एक स्वस्थ वातावरण बनाने के लिए राज्यों के बीच एक स्वस्थ प्रतिस्पर्धा विकसित करेगा जो अधिक निवेश, नवाचार कौशल, बौद्धिक संपदा सुरक्षा उपायों आदि को प्रोत्साहित करेगा. यह कृषि को मुख्यधारा में भी लाएगा और अंततः किसानों की आय के साथ-साथ ग्रामीण अर्थव्यवस्था को भी प्रभावित करेगा.



आगे की चुनौतियां

किसी दिए गए पैरामीटर में सभी राज्यों की तुलना करना मुश्किल है, उदाहरण के लिए महाराष्ट्र, तेलंगाना जैसे राज्य हैं जो पहले से ही निवेश, प्रसंस्करण उद्योग और सिंचाई आदि के मामले में कृषि में प्रगति कर रहे हैं. जबकि बिहार जैसे राज्यों में एक अलग स्थिति है.

दूसरे हर राज्यों में अलग-अलग कृषि-जलवायु स्थिति, स्थलाकृति, फसल पद्धति, बुनियादी ढांचे के विकास और इसलिए इन मापदंडों को सार्वभौमिक और समान रूप से लागू नहीं किया जा सकता है.

तीसरा, विशेषज्ञों का दृढ़ता से मानना है कि कृषि व्यवसाय करने में आसानी के आकलन के लिए सरकार को कुछ और मापदंडों के साथ आना चाहिए जैसे कि किसानों और युवा उद्यमियों को प्रशिक्षण, सूक्ष्म वित्तीय प्रबंधन पर जागरूकता सृजन करना आदि.



इन कमियों के बावजूद यह कदम भारत जैसे देश में एक स्वागत योग्य कदम है. जहां अधिकांश आबादी कृषि पर निर्भर है. कृषि व्यवसाय के विकास के बिना भारतीय कृषि अर्थव्यवस्था अपनी क्षमता तक नहीं पहुंच पाएगी.


Conclusion:
Last Updated : Mar 21, 2019, 1:21 PM IST
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