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कोविड-19: विकासशील दुनिया में खाद्य असुरक्षा, कुपोषण, गरीबी बढ़ सकती है: आईएफपीआरआई

आईएफपीआरआई ने मंगलवार को जारी वर्ष 2020 की 'ग्लोबल फूड सिस्टम रिपोर्ट' में कहा है कि नीति निर्माताओं को एक अधिक मजबूत, परिस्थितिकी अनुकूल , समावेशी और स्वस्थ भोजन प्रणाली विकसित करने पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए जो लोगों को इस प्रकार के झटकों का सामना करने में मदद कर सके.

कोविड-19: विकासशील दुनिया में खाद्य असुरक्षा, कुपोषण, गरीबी बढ़ सकती है: आईएफपीआरआई
कोविड-19: विकासशील दुनिया में खाद्य असुरक्षा, कुपोषण, गरीबी बढ़ सकती है: आईएफपीआरआई
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Published : Apr 7, 2020, 10:32 PM IST

नई दिल्ली: अंतर्राष्ट्रीय खाद्य नीति अनुसंधान संस्थान (आईएफपीआरआई) की एक नवीनतम रिपोर्ट में कहा गया गया है कि कोरोना वायरस के तेजी से फैलने के कारण विशेष रूप से विकासशील दुनिया में हाशिये के लोगों के बीच खाद्य असुरक्षा, कुपोषण और गरीबी बढ़ सकती है.

आईएफपीआरआई ने मंगलवार को जारी वर्ष 2020 की 'ग्लोबल फूड सिस्टम रिपोर्ट' में कहा है कि नीति निर्माताओं को एक अधिक मजबूत, परिस्थितिकी अनुकूल , समावेशी और स्वस्थ भोजन प्रणाली विकसित करने पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए जो लोगों को इस प्रकार के झटकों का सामना करने में मदद कर सके.

पिछले साल दिसंबर में चीन में इसके फैलने के बाद से दुनिया भर में 13 लाख से अधिक लोग कोरोनावायरस से संक्रमित हुए हैं. यूरोप में 50,000 से अधिक और अमेरिका में 10,000 से अधिक लोगों की मौत सहित इस संक्रमण से 70,000 से अधिक लोगों की मौत हो चुकी है. भारत में अब तक इस संक्रमण के पुष्ट मामलों की संख्या 4,421 है जिसमें अभी तक 114 लोगों की मौत हो चुकी है.

आईएफपीआरआई के महानिदेशक जोहान स्वाइनन ने कहा, "कोविड ​​-19 के प्रसार ने हमें यह दिखाया है कि वैश्विक झटकों से हमें कितना नुकसान हो सकता है."

उन्होंने कहा कि खाद्य प्रणाली हमें खाद्य और पोषण सुरक्षा में सुधार लाने, आय सृजित करने और समावेशी आर्थिक विकास करने के अवसर प्रदान करती है, लेकिन समृद्ध समय में भी कई लोग इन लाभों से वंचित हैं. ऐसी किसी समस्या या कोई अन्य समस्या के लिए खाद्य प्रणाली का व्यापक रूप से समावेशी होना कोई रामबाण उपाय नहीं है, बल्कि हमारे प्रतिरोधी क्षमता को मजबूत करने का यह महत्वपूर्ण अंग है.

ये भी पढ़ें: विश्व आर्थिक मंच ने दिया जवाब, आपूर्ति-श्रृंखला व्यवधान से कैसे निपटें

उन्होंने कहा, "संकट का समय, हमें बदलाव लाने का अवसर साथ लाता है और यह आवश्यक है कि हम अभी से इस दिशा में काम करें ताकि हर कोई, विशेष रूप से सबसे कमजोर तबके के लोग, कोविड-19 के झटके से उबर सके और भविष्य में ऐसे किसी झटके को भी झेलने की स्थिति में हों."

रिपोर्ट में केंद्रीय भूमिका पर प्रकाश डाला गया है जो समावेशी खाद्य प्रणालियाँ- गरीबी, भुखमरी, कुपोषण को समाप्त करने के वैश्विक लक्ष्यों को पूरा करने की दिशा में निभाती हैं तथा छोटे किसानों, महिलाओं, युवाओं और आंतरिक संघर्षो से प्रभावित समूहों के लिए खाद्य प्रणालियों को अधिक समावेशी बनाने की सिफारिशें देती हैं.

सीजीआईएआर के पोरूाण एवं स्वास्थ्य के लिए कृषि पर शोध कार्यक्रम के निदेशक जॉन मैकडरमोट ने कहा, "खाद्य प्रणाली के प्रति हमारा दृष्टिकोण, देश विशिष्ट के हिसाब से होना चाहिए, क्योंकि प्रत्येक देश की खाद्य प्रणाली अलग अलग है."

रिपोर्ट में कहा गया है कि सरकार- बुनियादी ढांचा प्रदान कर, उपयुक्त बाजार सहायता बनाकर, समावेशी कृषि व्यवसाय मॉडल निर्मित कर तथा डिजिटल प्रौद्योगिकी की संभावनाओं का लाभ देने वाले कानून, नीतियां और नियमों को लागू कर इस समावेशी खाद्य प्रणाली को बना सकती है.

(पीटीआई-भाषा)

नई दिल्ली: अंतर्राष्ट्रीय खाद्य नीति अनुसंधान संस्थान (आईएफपीआरआई) की एक नवीनतम रिपोर्ट में कहा गया गया है कि कोरोना वायरस के तेजी से फैलने के कारण विशेष रूप से विकासशील दुनिया में हाशिये के लोगों के बीच खाद्य असुरक्षा, कुपोषण और गरीबी बढ़ सकती है.

आईएफपीआरआई ने मंगलवार को जारी वर्ष 2020 की 'ग्लोबल फूड सिस्टम रिपोर्ट' में कहा है कि नीति निर्माताओं को एक अधिक मजबूत, परिस्थितिकी अनुकूल , समावेशी और स्वस्थ भोजन प्रणाली विकसित करने पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए जो लोगों को इस प्रकार के झटकों का सामना करने में मदद कर सके.

पिछले साल दिसंबर में चीन में इसके फैलने के बाद से दुनिया भर में 13 लाख से अधिक लोग कोरोनावायरस से संक्रमित हुए हैं. यूरोप में 50,000 से अधिक और अमेरिका में 10,000 से अधिक लोगों की मौत सहित इस संक्रमण से 70,000 से अधिक लोगों की मौत हो चुकी है. भारत में अब तक इस संक्रमण के पुष्ट मामलों की संख्या 4,421 है जिसमें अभी तक 114 लोगों की मौत हो चुकी है.

आईएफपीआरआई के महानिदेशक जोहान स्वाइनन ने कहा, "कोविड ​​-19 के प्रसार ने हमें यह दिखाया है कि वैश्विक झटकों से हमें कितना नुकसान हो सकता है."

उन्होंने कहा कि खाद्य प्रणाली हमें खाद्य और पोषण सुरक्षा में सुधार लाने, आय सृजित करने और समावेशी आर्थिक विकास करने के अवसर प्रदान करती है, लेकिन समृद्ध समय में भी कई लोग इन लाभों से वंचित हैं. ऐसी किसी समस्या या कोई अन्य समस्या के लिए खाद्य प्रणाली का व्यापक रूप से समावेशी होना कोई रामबाण उपाय नहीं है, बल्कि हमारे प्रतिरोधी क्षमता को मजबूत करने का यह महत्वपूर्ण अंग है.

ये भी पढ़ें: विश्व आर्थिक मंच ने दिया जवाब, आपूर्ति-श्रृंखला व्यवधान से कैसे निपटें

उन्होंने कहा, "संकट का समय, हमें बदलाव लाने का अवसर साथ लाता है और यह आवश्यक है कि हम अभी से इस दिशा में काम करें ताकि हर कोई, विशेष रूप से सबसे कमजोर तबके के लोग, कोविड-19 के झटके से उबर सके और भविष्य में ऐसे किसी झटके को भी झेलने की स्थिति में हों."

रिपोर्ट में केंद्रीय भूमिका पर प्रकाश डाला गया है जो समावेशी खाद्य प्रणालियाँ- गरीबी, भुखमरी, कुपोषण को समाप्त करने के वैश्विक लक्ष्यों को पूरा करने की दिशा में निभाती हैं तथा छोटे किसानों, महिलाओं, युवाओं और आंतरिक संघर्षो से प्रभावित समूहों के लिए खाद्य प्रणालियों को अधिक समावेशी बनाने की सिफारिशें देती हैं.

सीजीआईएआर के पोरूाण एवं स्वास्थ्य के लिए कृषि पर शोध कार्यक्रम के निदेशक जॉन मैकडरमोट ने कहा, "खाद्य प्रणाली के प्रति हमारा दृष्टिकोण, देश विशिष्ट के हिसाब से होना चाहिए, क्योंकि प्रत्येक देश की खाद्य प्रणाली अलग अलग है."

रिपोर्ट में कहा गया है कि सरकार- बुनियादी ढांचा प्रदान कर, उपयुक्त बाजार सहायता बनाकर, समावेशी कृषि व्यवसाय मॉडल निर्मित कर तथा डिजिटल प्रौद्योगिकी की संभावनाओं का लाभ देने वाले कानून, नीतियां और नियमों को लागू कर इस समावेशी खाद्य प्रणाली को बना सकती है.

(पीटीआई-भाषा)

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