नई दिल्ली: दिल्ली हाईकोर्ट ने अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) को निर्देश दिया है कि वो 14 साल की एक रेप पीड़िता के 22 हफ्ते के भ्रूण की जांच कर बताए कि क्या उसे हटाया जा सकता है. जस्टिस अनु मल्होत्रा की वेकेशन बेंच ने एम्स को निर्देश दिया कि वो एक मेडिकल बोर्ड गठित कर इसकी रिपोर्ट दाखिल करे. कोर्ट ने एम्स को 17 जून तक जवाब दाखिल करने का निर्देश दिया है.
खटखटाया हाई कोर्ट का दरवाजा
रेप पीड़िता ने कोर्ट से अपने 22 हफ्ते के भ्रूण को हटाने की अनुमति देने के लिए हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया है. याचिका में कहा गया है कि पीड़िता के चेक अप के दौरान एम्स के एक डॉक्टर ने बताया एक दिन की देरी भी पीड़िता के लिए खतरा पैदा कर सकती है क्योंकि उसकी उम्र काफी कम है. लेकिन इसके लिए कोर्ट से अनुमति लेनी होगी क्योंकि भ्रूण 22 हफ्ते का है. सुनवाई के दौरान दिल्ली सरकार के वकील राजेश महाजन ने पीड़िता की याचिका का कोई विरोध नहीं किया.
मां को 2 जून को पता चला कि बेटी के साथ हुआ दुष्कर्म
याचिका में कहा गया है कि पिछले 2 जून को पीड़िता की मां को पता चला कि वो गर्भवती है और उसका रेप हुआ है. इसके बाद पीड़िता और उसके परिजन मदद के लिए बाल कल्याण आयोग पहुंचे. आयोग ने उन्हें भ्रूण हटाने के लिए कोर्ट जाने की सलाह दी. उसके बाद पीड़िता ने हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया.
दरअसल, एमटीपी एक्ट के तहत 20 हफ्ते से ज्यादा का भ्रूण नहीं हटाया जा सकता है. इसके लिए कोर्ट से अनुमति लेनी होती है. जिस पर हाईकोर्ट ने एम्स प्रशासन से जवाब मांगा है.