हैदराबाद : 28 सितंबर 2022 को केंद्र सरकार ने बड़ा कदम उठाते हुए पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया (पीएफआई) पर प्रतिबंध लगा दिया. भारत सरकार ने विवादित संगठन पॉपुलर फ्रंट ऑफ़ इंडिया (PFI) पर ये कार्रवाई आतंकवादी समूहों के साथ कथित रूप से संबंध रखने, देशविरोधी गतिविधियों में शामिल होने के कारण की. सरकार ने संगठन की गतिविधियों को देश की शांति और सुरक्षा के लिए खतरा करार दिया. इसके तहत इसकी संपत्तियों को जब्त करना, बैंक खातों को फ्रीज करना और इसकी सामान्य गतिविधियों पर पूर्ण प्रतिबंध लगाना शामिल है. (PFI ban know how any organization is declared illegal). बैन लगने के बाद कई राज्यों में हिंसा की भी खबरें सामने आई थीं.
बैन नोटिफिकेशन में क्या ? गृह मंत्रालय (एमएचए) द्वारा जारी अधिसूचना के मुताबिक गैरकानूनी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम (यूएपीए) 1967 के तहत पांच साल के लिए पीएफआई और उसके सहयोगी संगठनों पर प्रतिबंध लगा दिया गया. जिन संगठनों पर बैन लगा उनमें रिहैब इंडिया फाउंडेशन (आरआईएफ) और कैंपस फ्रंट ऑफ इंडिया शामिल हैं.
अधिसूचना में बैन लगाने के कई कारण बताए गए हैं. इसमें कहा गया है कि 'पीएफआई और उसके सहयोगी संगठन सामाजिक-आर्थिक, शैक्षिक और राजनीतिक संगठन के रूप में खुले तौर पर काम करते हैं, लेकिन वे समाज के एक विशेष वर्ग को कट्टरपंथी बनाने के लिए गुप्त एजेंडे का पालन कर रहे हैं. उनका ऐसा करना लोकतंत्र की अवधारणा को कम आंकना और संवैधानिक सत्ता और देश की संवैधानिक व्यवस्था के प्रति घोर अनादर है.'
नोटिफिकेशन में कहा गया है कहा कि 'पीएफआई और उसके सहयोगी संगठन गैरकानूनी गतिविधियों में लिप्त रहे हैं, जो देश की अखंडता, संप्रभुता और सुरक्षा के लिए हानिकारक हैं. ये देश की सार्वजनिक शांति और सांप्रदायिक सद्भाव को बिगाड़ने और समर्थन करने की क्षमता रखते हैं. देश में आतंकवाद फैलाते हैं. इसलिए केंद्र सरकार ने 'तत्काल प्रभाव' से 'गैरकानूनी संगठन' घोषित करने का निर्णय लिया.'
2006 में हुई थी पीएफआई की स्थापना
- 2006 में स्थापित पॉपुलर फ्रंट ऑफ़ इंडिया (PFI) खुद को एक गैर-सरकारी सामाजिक संगठन बताता है. उसका दावा है कि संगठन का उद्देश्य देश में गरीब और वंचित लोगों के लिए काम करना और उत्पीड़न और शोषण का विरोध करना है.
- पीएफआई का गठन तीन मुस्लिम संगठनों नेशनल डेमोक्रेट्स फ्रंट ऑफ केरल, कर्नाटक फोरम फॉर डिग्निटी और तमिलनाडु में मनिथा नीति पसाराई के विलय के बाद किया गया था. यानी पीएफआई का पहले का अवतार पीएफआई एनडीएफ है.
- 1992 में अयोध्या में विवादित ढांचा गिराए जाने के कुछ साल बाद केरल में स्थापित विवादास्पद संगठन का दक्षिण के दो अन्य संगठनों के साथ विलय कर दिया गया. अगले कुछ वर्षों में इसने व्यापक आधार विकसित किया. पूरे भारत में कई संगठन इसमें शामिल हो गए. जिस समय बैन लगाया गया पीएफआई की केरल और कर्नाटक में मजबूत उपस्थिति देखी जा रही थी. यही नहीं ये संगठन 20 से अधिक राज्यों में जड़ें जमा चुका था, और इसके हजारों सदस्य सक्रिय थे.
पीएफआई पहली बार 2010 में केरल में एक कॉलेज प्रोफेसर पर हमले के बाद सुर्खियों में आया था. यह हमला तब हुआ था जब कई मुस्लिम समूहों ने उन पर एक परीक्षा में पैगंबर मुहम्मद के बारे में अपमानजनक सवाल पूछने का आरोप लगाया. हालांकि अदालत ने हमले के लिए उनके कुछ सदस्यों को दोषी ठहराया, पीएफआई का कहना था कि उनका हमलावरों से कोई लेनादेना नहीं है.
हालांकि माना ये जाता है कि ये प्रतिबंधित संगठन सिमी का ही बदला रूप था. नाम बदलकर उसी की तरह गतिविधियों को अंजाम दिया जा रहा था. सिमी को 2001 में सरकार ने प्रतिबंधित कर दिया था. पीएफआई को एक अन्य प्रतिबंधित उग्रवादी समूह इंडियन मुजाहिदीन से भी जोड़ा गया है.
PFI पर 'बैन' का मतलब क्या? किस अधिनियम के तहत लगाया जाता है बैन :गैरकानूनी गतिविधि रोकथाम अधिनियम (यूएपीए) आतंकवाद और आतंकवादी गतिविधियों के खिलाफ भारत का मुख्य कानून है. ये सरकार को किसी संगठन को 'गैरकानूनी' या 'आतंकवादी संगठन' घोषित करने की अनुमति देता है, जिसे अक्सर बोलचाल की भाषा में संगठनों पर 'प्रतिबंध' कहा जाता है. यूएपीए अधिनियम की धारा 3 के तहत, सरकार के पास किसी संगठन को गैरकानूनी घोषित करने की शक्तियां हैं. एक गजट अधिसूचना के अलावा, सरकार को उस कार्यालयों पर एक प्रति चिपकाकर या 'मुनादी या लाउडस्पीकर के माध्यम से घोषणा करके, उस क्षेत्र में अधिसूचना की सामग्री की घोषणा करके ऐसा किया जा सकता है.
क्या होता है जब किसी संगठन को गैरकानूनी घोषित किया जाता है? : किसी संगठन को गैर-कानूनी संगठन घोषित करने के बाद उसकी एक निश्चित समय अवधि तक सदस्यता खत्म करने के साथ ही संपत्तियां भी जब्त की जाती हैं. यूएपीए की धारा 7 के तहत सरकार के पास किसी गैरकानूनी संगठन के धन के उपयोग पर रोक लगाने की शक्ति है. धारा 8 के तहत ये अधिकार है कि गैर-कानूनी संगठन जिन जगहों का इस्तेमाल कर रहा है, उन्हें जब्त किया जा सकता है. हालांकि जिस व्यक्ति या संस्था पर प्रतिबंध लगाया गया हो उसे आदेश के 15 दिन के भीतर जिला न्यायाधीश के न्यायालय में आवेदन करने की अनुमति है. इसके अलावा, कोई व्यक्ति जो 'इस तरह के (गैरकानूनी) संगठन का सदस्य है और उसकी बैठकों में भाग लेता है. या सहयोग करता है तो ये दंडनीय अपराध है. उसे दो साल की सजा और जुर्माना हो सकता है.
किसी गैरकानूनी संगठन को कैसे परिभाषित किया जाता है? : यूएपीए की धारा 2(1) (पी) इसे 'गैरकानूनी संस्था' के रूप में परिभाषित करती है जिसका उद्देश्य भारतीय दंड संहिता की धारा 153ए या 153बी के तहत परिभाषित कोई भी गैरकानूनी गतिविधि या अपराध है - यानी विभिन्न समूहों के बीच दुश्मनी को बढ़ावा देना और आरोप लगाना, ऐसा दावा करना, जो राष्ट्रीय एकता के प्रतिकूल है इसके दायरे में आते हैं. एक गैरकानूनी संस्था या संगठन वह भी है जो 'किसी गैरकानूनी गतिविधि को करने के लिए व्यक्तियों को प्रोत्साहित करता है या सहायता करता है, या जिसके सदस्य ऐसी गतिविधि करते हैं.'
संगठन को गैरकानूनी घोषित करने की प्रक्रिया क्या है? यूएपीए की धारा 4 के तहत सरकार को प्रतिबंध की पुष्टि के लिए गजट अधिसूचना जारी करने के 30 दिनों के भीतर गैरकानूनी गतिविधि रोकथाम न्यायाधिकरण को अधिसूचना भेजने का अधिकार है. मंत्रालय को देश भर में ऐसे संगठन और उसके कैडरों के खिलाफ राष्ट्रीय जांच एजेंसी, प्रवर्तन निदेशालय और राज्य पुलिस बलों द्वारा दर्ज मामलों के विवरण के साथ न्यायाधिकरण को जानकारी देनी होती है.
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