हैदराबाद : 20 जून 1958 को ओडिशा में एक साधारण संथाल आदिवासी परिवार में जन्मीं द्रौपदी मुर्मू (Droupadi Murmu) ने देश के सर्वोच्च पद की शपथ लेकर ये साबित कर दिया कि परिस्थितियां कैसी भी हों लेकिन जीवन में ऊंचाइयां हासिल की जा सकती हैं. वह जिन परिस्थितियो से निकलकर यहां तक पहुंचीं, राह आसान नहीं थी, इसे वह खुद भी स्वीकार करती हैं. शपथ लेने के बाद अपने पहले संबोधन में उन्होंने इसका जिक्र भी किया. मुर्मू ने कहा कि 'राष्ट्रपति के पद तक पहुंचना, मेरी व्यक्तिगत उपलब्धि नहीं है, ये भारत के प्रत्येक गरीब की उपलब्धि है. मेरा निर्वाचन इस बात का सबूत है कि भारत में गरीब सपने देख भी सकता है और उन्हें पूरा भी कर सकता है.'
पहले संबोधन में वह हर बात जो दिल को छू गई : राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने अपने पहले संबोधन की शुरुआत जोहार ! नमस्कार ! से की. उन्होंने कहा,'अनेक बाधाओं के बावजूद मेरा संकल्प दृढ़ रहा और मैं कॉलेज जाने वाली अपने गांव की पहली बेटी बनी. मैं जनजातीय समाज से हूं और वार्ड पार्षद से लेकर भारत की राष्ट्रपति बनने तक का अवसर मुझे मिला है. यह लोकतंत्र की जननी भारतवर्ष की महानता है.'
मुर्मू ने कहा,'मेरे लिए बहुत संतोष की बात है कि जो सदियों से वंचित रहे, जो विकास के लाभ से दूर रहे, वे गरीब, दलित, पिछड़े तथा आदिवासी मुझ में अपना प्रतिबिंब देख रहे हैं.' उन्होंने कहा कि उनके इस निर्वाचन में देश के गरीब का आशीर्वाद शामिल है और यह देश की करोड़ों महिलाओं और बेटियों के सपनों और सामर्थ्य की झलक है.
जगन्नाथ का नाम लेकर किया सेवा का वादा : राष्ट्रपति ने कहा कि जगन्नाथ क्षेत्र के एक प्रख्यात कवि भीम भोई की कविता की एक पंक्ति है: 'मो जीवन पछे नर्के पड़ी थाउ, जगत उद्धार हेउ.' अर्थात, अपने जीवन के हित-अहित से बड़ा जगत कल्याण के लिए कार्य करना होता है. उन्होंने कहा, 'जगत कल्याण की भावना के साथ, मैं आप सब के विश्वास पर खरा उतरने के लिए पूरी निष्ठा व लगन से काम करने के लिए सदैव तत्पर रहूंगी.' उन्होंने कहा,'मैं आज समस्त देशवासियों को, विशेषकर भारत के युवाओं को तथा भारत की महिलाओं को ये विश्वास दिलाती हूं कि इस पद पर कार्य करते हुए मेरे लिए उनके हित सर्वोपरि होंगे.'
राजनीतिक सफर पर एक नजर : 20 जून 1958 को ओडिशा में संथाल आदिवासी परिवार में जन्म लेने वाली द्रौपदी मुर्मू ने 1997 में अपने राजनीतिक जीवन की शुरुआत की थी. वह 1997 में ओडिशा के रायरंगपुर में जिला बोर्ड की पार्षद चुनी गई थीं. राजनीति में आने के पहले वह श्री अरबिंदो इंटीग्रल एजुकेशन एंड रिसर्च, रायरंगपुर में मानद सहायक शिक्षक और सिंचाई विभाग में कनिष्ठ सहायक के रूप में काम किया.वह ओडिशा में दो बार विधायक रहीं. उन्हें नवीन पटनायक सरकार में मंत्री पद पर भी काम करने का मौका मिला.ओडिशा विधानसभा ने द्रौपदी मुर्मू को सर्वश्रेष्ठ विधायक के लिए नीलकंठ पुरस्कार से भी नवाजा था.
झारखंड की राज्यपाल थीं मुर्मू : द्रौपदी मुर्मू झारखंड की राज्यपाल भी रही हैं. उन्होंने 18 मई 2015 को झारखंड की राज्यपाल के रूप में शपथ ली थी. उससे पहले वह ओडिशा में दो बार विधायक और एक बार राज्यमंत्री के रूप में काम कर चुकी हैं. अपने पूरे कार्यकाल में वह कभी विवादों में नहीं रहीं. झारखंड के जनजातीय मामलों, शिक्षा, कानून व्यवस्था, स्वास्थ्य से जुड़े मुद्दों पर वह हमेशा सजग रहीं. कई मौकों पर उन्होंने राज्य सरकारों के निर्णयों में संवैधानिक गरिमा और शालीनता के साथ हस्तक्षेप किया.
सादा जीवन जीने की आदी हैं मुर्मू : मुर्मू की पूरी जिंदगी खुली किताब की तरह है. वह बिल्कुल ही सादा जीवन जीती हैं. कई उच्च पदों पर आसीन होने के बाद राष्ट्रपति बनने वाली द्रौपदी मुर्मू की जीवनशैली में कोई बदलाव नहीं आया. मुर्मू का देश और दुनिया में अध्यात्म का अलख जगा रही प्रजापिता ब्रह्माकुमारी आध्यात्मिक संस्थान से गहरा जुड़ाव रहा है. 2009 में वह इस आध्यात्मिक संस्थान से जुड़ीं और ब्रह्माकुमारी बहनों ने उन्हें राजयोग मेडिटेशन सिखाया था. कहा जाता है कि 2009 से ही उन्होंने प्याज और लहसुन का भी त्याग कर दिया था. मुर्मू का कहना है कि राजयोग मेडिटेशन और संस्था के ज्ञान ने उनके जीवन में सकारात्मक परिवर्तन लाने में बहुत मदद की है.
जब अपने स्कूल जाकर भावुक हुईं राष्ट्रपति : बीते महीने राष्ट्रपति अपने गृह क्षेत्र पहुंचीं तो पुरानी बातें याद कर भावुक हो गईं. मुर्मू अपने स्कूल तथा कुंतला कुमारी साबत आदिवासी हॉस्टल गईं, जहां अपने स्कूली दिनों के दौरान वह रहती थीं. जब उनको उनका कमरा और वह चारपाई दिखाई गई जिस पर वह छात्र जीवन के दौरान सोया करती थीं तो वह भावुक हो गईं. कुछ देर के लिए उसी बिस्तर पर बैठ गईं. बाद में उन्होंने 13 सहपाठियों से भी मुलाकात की. अपने स्कूली दिनों को याद करते हुए मुर्मू ने कहा, 'मैंने अपने उपरबेड़ा गांव से पढ़ाई शुरू की थी. गांव में कोई स्कूली इमारत नहीं थी बल्कि फूस की एक झोपड़ी थी जहां हम पढ़ाई करते थे. हम कक्षाओं में झाडू लगाते थे, स्कूल परिसर को गाय के गोबर से लीपते थे. हमारे वक्त में छात्र खुले दिमाग से पढ़ते थे. मैं आपसे कड़ी मेहनत करने तथा अपनी पढ़ाई पर ध्यान लगाने की अपील करती हूं.'
विवादित टिप्पणियों ने किया आहत : राष्ट्रपति चुनाव में एनडीए का उम्मीदवार घोषित किए जाने पर कुछ नेताओं ने उन्हें 'रबर स्टैंप' करार दिया था. यही नहीं सर्वोच्च पद पर पहुंचने पर भी कुछ टिप्पणियां ऐसी आईं, जिनसे उनका मन आहत हुआ. लोकसभा में कांग्रेस के नेता अधीर रंजन चौधरी ने राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को 'राष्ट्रपत्नी' कहकर संबोधित किया. हालांकि आलोचनाओं से घिरने के बाद उन्होंने माफी मांगी. इसी तरह के एक अन्य मामले में पश्चिम बंगाल के नंदीग्राम में टीएमसी नेता एवं मंत्री अखिल गिरी ने एक जनसभा में राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू के खिलाफ 'आपत्तिजनक टिप्पणी' की थी.
उन्होंने कहा,'हम किसी को उसके रूप-रंग से नहीं आंकते, हम राष्ट्रपति (भारत के) के पद का सम्मान करते हैं. लेकिन हमारी राष्ट्रपति कैसी दिखती हैं? इसका वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल होने पर कई जगह विरोध प्रदर्शन हुए. हालांकि अखिल गिरी ने ट्वीट कर कहा, 'मैंने कहा 'प्रेसिडेंट', मैंने किसी का नाम नहीं लिया. अगर भारत की राष्ट्रपति अपमानित महसूस करती हैं, तो मुझे खेद है और मैंने जो कहा, उस पर मुझे खेद है.'
पढ़ें- पर्यावरण सहेजकर हम कई मानवाधिकारों की रक्षा कर सकते हैं: राष्ट्रपति