पटना: टेलीविजन तकनीक के इस दौर में क्रांतिकारी परिवर्तन आ चुके हैं. आज की तारीख में 4K टेक्नोलॉजी की बात होती है और कोई भी चैनल ट्यून करना पल भर का खेल रह गया है. एक जमाना था जब टेलीविजन रखने की आवाज में लोगों को टैक्स चुकाने होते थे.
80 से 90 के दशक में टीवी का विस्तार: तकनीक ने दुनिया बदल कर रख दी है. हर हाथ में मोबाइल है और 5G के सहारे पल भर में लोग किसी भी चीज को आसानी से एक्सेस कर सकते हैं. बात अगर टेलीविजन की करें तो आज टेलीविजन अलग रूप में आ चुका है. 4K और ओएलईडी तकनीक के सहारे टेलीविजन निर्माण कार्य चल रहा है. पहले जितने छोटे टेलीविजन हुआ करते थे अब उतना ही बड़ा आकार टेलीविजन ले चुका है.
टैक्स चुकाना पड़ता था: 15 सितंबर 1959 को पहली बार एक कंपनी ने ब्लैक एंड व्हाइट टीवी भारत में लॉन्च किया था. उसके बाद फिर 1980 के दशक में कलर टेलीविजन का लोगों ने पहली बार लुत्फ उठाया. यह वह दौर था जब टेलीविजन रखने की आवाज में लोगों को सरकार को टैक्स चुकाने होते थे.
50 साल पुरानी टीवी की यादें: आज भी ऐसे लोग हैं जिन्होंने 50 साल पुरानी टीवी को संजोकर रखा है. फ़िल्म समीक्षक विनोद अनुपम के पास 1980 के दशक की पोर्टेबल टीवी है. मोबाइल के आकार की पोर्टेबल टीवी लोगों के लिए आकर्षण का केंद्र है. खास बात यह है कि टेलीविजन आज भी चलती है और बहुत मशक्कत करने के बाद आप पोर्टेबल टेलीविजन पर गीत संगीत का आनंद उठा सकते हैं .
आज के दौर में क्रेज कम: विनोद अनुपम बताते हैं कि 1976 के इर्द-गिर्द उनके पिताजी ने घर में पोर्टेबल टेलीविजन लाया था. उस समय टेलीविजन की कीमत लगभग 2000 हुआ करती थी. टेलीविजन डे के मौके पर वैसे टेलीविजन को याद करना भी लाजमी है. विनोद अनुपम बताते हैं कि अब टीवी का वह क्रेज नहीं रह गया है जो पहले हुआ करता था.
"टीवी ने एक दर्शक वर्ग तैयार किया था. सामाजिकता को बढ़ाने में अपना योगदान दिया था. रामायण देखने के लिए पूरे मोहल्ले से लोग हमारे घर पहुंचते थे. रामायण महाभारत के मौके पर घरों में भारी भीड़ जमा हो जाती थी."- विनोद अनुपम, फिल्म समीक्षक
घर में लोगों की उमड़ पड़ी थी भीड़: 1984 में इंदिरा गांधी की जब मृत्यु हुई थी तो पहली बार लोगों ने टीवी पर समाचार देखा था उस समय विनोद अनुपम के घर पर भारी भीड़ लगी थी. विनोद अनुपम के पास जो टीवी है वह बैटरी पर भी चलती थी. साथ ही उसमें रेडियो भी है. सिग्नल पकड़ने पर आज भी टीवी चलती है.
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