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विश्व जनसंख्या दिवस: आबादी के आंकड़ों से जुड़े रोचक तथ्य आपको हैरान कर देंगे - आबादी के मुद्दों के बारे में जागरूकता

आज (शनिवार) 11 जुलाई को (World Population Day- वर्ल्ड पॉपुलेशन डे) यानी विश्व जनसंख्या दिवस मनाया जा रहा है. विश्व जनसंख्या दिवस की स्थापना 1989 में संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम की गवर्निंग काउंसिल- यूएनडीपी द्वारा की गई थी.

World Population day
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Published : Jul 11, 2021, 4:01 AM IST

Updated : Jul 13, 2021, 1:13 PM IST

हैदराबाद : पृथ्वी इंसान के रहने के लिए सबसे सर्वश्रेष्ठ जगह है लेकिन यहां इंसानों की आबादी लागातार बढ़ती जा रही है. जिसके चलते इसपर नियंत्रण बहुत जरूरी हो गया है. कई देशों में इसकी जरूरत लंबे वक्त से महसूस हो रही है तो कुछ देशों ने इस ओर कदम भी उठाए हैं. दुनिया की जनसंख्या करीब 8 अरब पहुंचने वाली है और सबसे ज्यादा आबादी वाले दो देश इस समय एशिया में हैं. पहले नंबर पर चीन और दूसरे नंबर पर भारत हैं. चीन ने इसे लेकर कुछ साल पहले कदम उठाए थे लेकिन भारत में इसे लेकर अब मंथन जोरों से हो रहा है. इसलिये आज विश्व जनसंख्या दिवस के दिन इस मुद्दे पर चर्चा बहुत जरूरी हो जाती है. जनसंख्या के आंकड़ों को लेकर कुछ रोचक तथ्य आपको बताएंगे, जिन्हें जानकर आप हैरान हो जाएंगे और तब समझ पाएंगे की बढ़ती आबादी क्यों भारत जैसे कई देशों और दुनिया के लिए चिंता का सबब है.

क्या आप जनते हैं...

-दुनिया की जनसंख्या में हर सेकेंड 2.5 लोगों का इजाफा होता है.

- दुनिया में चीन और भारत के बाद सबसे ज्यादा आबादी अमेरिका की है. जिसकी कुल आबादी 33 करोड़ के करीब है, जो भारत की 25 फीसदी आबादी से भी कम है.

-इस वक्त दुनिया की आबादी करीब 7.8 अरब है. दुनिया की आबादी का आधा हिस्सा सिर्फ चीन, भारत, पाकिस्तान, ब्राजील, अमेरिका और इंडोनेशिया में है.

-दुनिया की कुल आबादी में करीब 19 फीसदी हिस्सेदारी चीन और करीब 18 फीसदी हिस्सेदारी भारत की है. इस लिहाज से आने वाले करीब 5 साल में भारत जनसंख्या के मामले में चीन को पछाड़ देगा. संयुक्त राष्ट्र के मुताबिक साल 2030 तक भारत की आबादी 1.5 अरब होने की संभावना है

- भारत की आबादी इस वक्त करीब 1 अरब 37 करोड़ के आस-पास है. जबकि पूरे यूरोप महाद्वीप की आबादी करीब 75 करोड़ है.

-एक अध्ययन के मुताबिक 1000 AD में दुनिया की आबादी सिर्फ 40 करोड़ थी. साल 1750 में दुनिया की आबादी बढ़कर 80 करोड़ हो गई. यानि दुनिया की आबादी को दोगुना होने में 750 साल लग गए.

-दुनिया की बढ़ती आबादी का लाइव अपडेट देने वाली वेबसाइट worldometers.info के मुताबिक साल 1804 में पहली बार दुनिया की आबादी 1 अरब पहुंची थी. साल 1960 में ये 3 अरब पहुंची. जबकि अगले 40 साल में ये दोगुनी हो गई और साल 2000 में 6 अरब हो गई.

-संयुक्त राष्ट्र का अनुमान है कि साल 2023 तक दुनिया की आबादी 8 अरब 2056 तक 10 अरब को पार कर जाएगी.

-यूथ इन इंडिया, 2017 की रिपोर्ट बताती है कि भारत में साल 1971 से 2011 के बीच युवाओं की आबादी 16.8 करोड़ से बढ़कर करीब 42 करोड़ हो गई, जो कि कुल आबादी का करीब 35 फीसदी थी. भारत में साल 2030 तक युवाओं की आबादी करीब 33 फीसदी होगी जो चीन के युवाओं की आबादी (करीब 23%) से 10 फीसदी ज्यादा होगी.

-यूएन के आंकड़ों के मुताबिक दुनिया की आबादी में हर साल करीब 8 करोड़ से ज्यादा लोग जुड़ते हैं. ध्यान देने वाली बात ये है कि फर्टिलिटी रेट लगातार गिर रही है.

-अगर फेसबुक एक देश होता तो ये दुनिया की सबसे अधिक आबादी वाला देश होता. दुनियाभर में इस वक्त 2.7 अरब फेसबुक यूजर्स हैं.

- कोरोना काल से पहले दिल्ली मेट्रो में रोजाना औसतन 55 से 57 लाख लोग सफर करते थे. जो कि न्यूजीलैंड की आबादी (करीब 50 लाख) से अधिक है. मुंबई लोकल से सफर करने वालों का सिर्फ अंदाजा लगा सकते हैं.

-भारत के सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश की कुल आबादी 22 करोड़ से अधिक है. ये आबादी नाइजीरिया, ब्राजील, बांग्लादेश, रूस और मैक्सिको से अधिक है. जो कि सर्वाधिक आबादी वाले देशों में क्रमश: छठे, सातवें, आठवें, नौवें और दसवें नंबर पर हैं.

भारत में आबादी घटेगी लेकिन रहेगा नंबर वन

जाने-माने मेडिकल जर्नल लैंसेट की एक रिपोर्ट के मुताबिक भारत की आबादी इस सदी के अंत होते-होते घटेगी और करीब एक अरब पहुंच जाएगी. लेकिन तब भी भारत दुनिया में सबसे ज्यादा आबादी वाला देश रहेगा. हालांकि सदी के अंत तक दुनिया की आबादी अनुमान से दो अरब कम रहेगी. हालांकि दुनिया में सबसे अधिक आबादी वाले पांच देशों में भारत के बाद नाइजीरिया, चीन, अमेरिका और पाकिस्तान होंगे.

रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत की जनसंख्या वृद्धि दर में साल 2047 के बाद कमी आएगी. 2047 में उच्चतम स्तर पर पहुंचने पर भारत की आबादी करीब 1.61 अरब होगी. उसके बाद आबादी घटने का दौर शुरू होगा जो इस सदी के अंत तक एक अरब तक पहुंच जाएगी.

जनसंख्या कम होने की क्या है वजह ?

प्रजनन दर में गिरावट- भारत के अधिकांश राज्यों में प्रजनन दर में गिरावट आई है. ये गिरावट अनुमान से भी ज्यादा तेज है. दरअसल शादी की उम्र बढ़ने के साथ-साथ दो बच्चों के बीच अंतराल रखने और परिवार नियोजन के प्रति जागरुकता भी इसकी वजह है. शिक्षा का भी इसमें बहुत महत्व है, शिक्षित समाज छोटे परिवार की अहमियत को जानते हैं. बच्चों को शिक्षा से लेकर स्वास्थ्य समेत हर तरह से बेहतर भविष्य देने के लिए वो कम बच्चे पैदा करते हैं.

बुजुर्गों की बढ़ेगी तादाद- मौजूदा वक्त में भले भारत युवाओं का देश है लेकिन करीब 2 दशक बाद देश की आबादी का एक बड़ा हिस्सा बुजुर्ग होने लगेगा. तब तक परिवार नियोजन, शिक्षा, जनसंख्या नियंत्रण कानून का और भी असर देश की आबादी पर देखने को मिलेगा. इसी तरह का संकट एक बार चीन भी झेल चुका है जहां जनसंख्या नियंत्रण कानूनों और जागरुकता अभियानों के चलते वहां बुजुर्गों की तादाद बढ़ी और आबादी में तेजी से गिरावट दर्ज की गई. जिसके बाद चीन ने इन कानूनों में थोड़ी ढील दी थी.

भारत और जनसंख्या नियंत्रण

भारत की आबादी 1.35 अरब का आंकड़ा पार कर चुकी है. ऐसे में कई सालों से देश में जनसंख्या नियंत्रण की आवाजें उठती रही हैं. इस बीच भारत के सबसे बड़े राज्य और आबादी वाले राज्य उत्तर प्रदेश (22 करोड़) में जनसंख्या कानून लागू करने की तैयारी लगभग पूरी हो चुकी है. यूपी की योगी सरकार ने इसका खाका भी तैयार कर लिया है. नई नीति के हिसाब से 2 से ज्यादा बच्चों वाले परिवारों की सुविधाओं में कटौती की तैयारी है. यान बच्चे दो ही अच्छे, छोटा परिवार - सुखी परिवार, हम दो और हमारे दो जैसे नारे अब कानूनी रूप ले लेंगे.

इसके अलावा इस नीति में नवजात शिशु और मातृ मृत्युदर कम करने पर जोर होगा. हालांकि इससे पहले सरकार प्रदेशभर में जागरुकता अभियान चलाएगी. इस कानून को लेकर अल्पसंख्यक समुदाय के मन में कई तरह के सवाल भी हैं, जिन्हें दूर करने की चुनौती सरकार के सामने होगी. वैसे इस तरह की चुनौतियां पूरे देश में देखने को मिलेंगी. लेकिन जानकार मानते हैं कि स्वास्थ्य, शिक्षा जैसी मूलभूत सुविधाओं को ध्यान में रखते हुए जनसंख्या नियंत्रण कानून बहुत जरूरी है. माना जा रहा है कि केंद्र सरकार इस ओर जल्द ही बड़ा कदम उठा सकती है.

आज विश्व जनसंख्या दिवस है

11 जुलाई 1987 तक विश्व में जनसंख्या का आंकड़ा पांच अरब के पार पहुंच चुका था. तब दुनिया भर के लोगों को बढ़ती आबादी के प्रति जागरूक करने के लिए इस दिन को संयुक्त राष्ट्र महासभा द्वारा 'विश्व जनसंख्या दिवस' के रूप में निर्धारित करने का निर्णय लिया गया. विश्व जनसंख्या दिवस को मनाने का मुख्य उद्देश्य उन मुद्दों पर प्रकाश डालना है. विश्व जनसंख्या दिवस की स्थापना 1989 में संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम की गवर्निंग काउंसिल - यूएनडीपी द्वारा की गई थी.

विश्व जनसंख्या दिवस का इतिहास
1968 में मानवाधिकारों पर अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन (International Conference) आयोजित किया गया था. पहली बार परिवार नियोजन (family planning) को मानव अधिकार (human right) के रूप में मान्यता दी गई थी.

वर्ल्ड पॉपुलेशन डे मनाने का फैसला
यूनाइटेड नेशन (united nation) ने 11 जुलाई 1989 को आम सभा में विश्व जनसंख्या दिवस (World Population Day) मनाने का फैसला लिया था. दरअसल 11 जुलाई 1987 तक वर्ल्ड पॉपुलेशन का आंकड़ा पांच अरब के भी पार पहुंच चुका था. तब दुनिया भर के लोगों को बढ़ती आबादी के प्रति जागरूक करने के लिए इसे वैश्विक स्तर पर मनाने का फैसला लिया गया था.

आबादी के मुद्दों के बारे में जागरूकता
संयुक्त राष्ट्र महासभा (United Nations General Assembly) द्वारा दिसंबर 1990 में अपनाए गए 45/216 प्रस्ताव (resolution 45/216) के बाद विश्व जनसंख्या दिवस (World Population Day) को मनाए जाने का निर्णय लिया गया, जो पर्यावरण और विकास के लिए अपने संबंधों की तरह आबादी के मुद्दों के बारे में जागरूकता बढ़ाता है.

90 से अधिक देश चिह्नित
इस दिन को पहली बार 11 जुलाई 1990 को 90 से अधिक देशों में चिह्नित किया गया था. तब से, कई UNFPA देश (UNFPA country ) के कार्यालयों और अन्य संगठनों (organizations and institutions commemorate) व संस्थाओं ने सरकारों तथा नागरिक समाज (governments and civil society) के साथ साझेदारी में विश्व जनसंख्या दिवस (World Population Day) मनाया जाता रहा है.

वर्ल्ड पॉपुलेशन डे की थीम
विश्व जनसंख्या दिवस 2021 (world population day 2021) की थीम (Theme 2021) है- अधिकार और विकल्प उत्तर हैं (Rights and choices are the answer) : चाहे बेबी बूम हो या बस्ट, प्रजनन दर में बदलाव का समाधान सभी लोगों के प्रजनन स्वास्थ्य (reproductive health) और अधिकारों को प्राथमिकता (rights of all people) देना है.

परिवार नियोजन के मानव अधिकार को बनाए रखने के लिए नौ मानक
संयुक्त राष्ट्र जनसंख्या निधि (UNFPA) और विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) ने नौ मानकों को मान्यता दी है, जो कि हर समुदाय और हर व्यक्ति को मिलने चाहिए.

  • गैर-भेदभाव (Non-discrimination) : पारिवारिक नियोजन की जानकारी (Family planning information) और सेवाओं (services ) को जाति, लिंग, भाषा, धर्म, राजनीतिक संबद्धता, राष्ट्रीय मूल, आयु, आर्थिक स्थिति, निवास स्थान, विकलांगता की स्थिति, वैवाहिक स्थिति, यौन आकांक्षा या लिंग (किसी भी भेदभाव के आधार पर) पहचान के आधार पर प्रतिबंधित नहीं किया जा सकता है.
  • उपलब्धता (Available) : देशों को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि परिवार नियोजन वस्तुएं (family planning commodities) और सेवाएं सभी के लिए सुलभ हों (services are accessible to everyone) यानि हर किसी के लिए परिवार नियोजन की सामग्री और सेवाएं उपलब्ध होनी चाहिए.
  • सुलभता (Accessible) : हर किसी के लिए परिवार नियोजन (family planning) की जानकारी और सेवाओं की पहुंचनीयता/सुलभता होनी चाहिए.
  • स्वीकार्यता (Acceptable) : गर्भ निरोधक सेवाओं और जानकारियों को गरिमामय तरीके (dignified manner) से प्रदान किया जाना चाहिए तथा आधुनिक चिकित्सा पद्यति व मध्यस्थ संस्कृति दोनों का सम्मान किया जाना चाहिए.
  • अच्छी गुणवत्ता (Good quality) : गर्भनिरोधक सेवाएं सुरक्षित और स्वच्छतापूर्ण वातावरण (clearly communicated) में पेशेवर स्वास्थ्य कर्मियों द्वारा प्रदान की जानी चाहिए.
  • सूचित निर्णय-निर्धारण (Informed decision) : हर व्यक्ति को पूर्ण स्वायत्तता, बिना दबाव, जबरदस्ती या गलतफहमी के साथ प्रजनन विकल्प चयन करने के लिए सशक्त किया जाना चाहिए.
  • गोपनीयता और विश्वसनीता : सभी व्यक्तियों को गोपनीयता के अधिकार का आनंद लेना चाहिए, जब वे परिवार नियोजन की जानकारी और सेवाएं खोज रहे है.
  • भागीदारी (Participation) : स्वास्थ्य मुद्दों सहित प्रभावित करने वाले निर्णयों में व्यक्तियों की सक्रियता और सूचित भागीदारी सुनिश्चित करना देशों की ज़िम्मेदारी है.
  • उत्तरदायित्व (Accountability) : स्वास्थ्य प्रणाली, शिक्षा प्रणाली, नेताओं और नीति निर्माताओं को परिवार नियोजन के मानव अधिकार सेवाएं प्रदान किए जाने वाले लोगों के प्रति उत्तरदायी होना चाहिए.

संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट
संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट के अनुसार, वर्ष 2011 में विश्व की वर्तमान जनसंख्या सात बिलियन तक पहुंच गई थी और आज यह लगभग 7.7 बिलियन है. वर्ष 2030 में 8.5 बिलियन और 2050 तक ये आंकड़ा 8.5 बिलियन व 2100 तक 10.9 बिलियन तक बढ़ने की उम्मीद है.

12 साल में 1 बिलियन लोगों को जोड़ा गया
1950 में संयुक्त राष्ट्र की स्थापना के पांच साल बाद, दुनिया की आबादी लगभग 2.6 बिलियन लोगों की अनुमानित थी, जो 1987 में पांच बिलियन और 1999 में छह बिलियन तक पहुंच गई. अक्टूबर 2011 में वैश्विक आबादी सात अरब होने का अनुमान लगाया गया था. इस मील के पत्थर को चिह्नित करने के लिए एक वैश्विक आंदोलन '7 बिलियन एक्शन' शुरू किया गया था और 2015 के मध्य तक दुनिया की आबादी 7.3 बिलियन तक पहुंच गई, जिसका अर्थ है कि दुनिया ने बारह साल की अवधि में लगभग एक बिलियन लोगों को जोड़ा है. 2030 में वैश्विक जनसंख्या 8.6 बिलियन, 2050 में 9.8 बिलियन और 2100 में 11 बिलियन तक पहुंचने की उम्मीद है.

जनसंख्या और कोविड (Population and Covid19)

  • लॉकडाउन के संयोजन में गर्भ निरोधकों की आपूर्ति में व्यवधान के परिणामस्वरूप सबसे कमजोर लोगों के लिए अनियोजित गर्भधारण में तेज वृद्धि का अनुमान है.
  • मार्च में UNFPF के शोध के अनुसार, अनुमानित 1.2 करोड़ महिलाओं ने परिवार नियोजन सेवाओं में व्यवधान का अनुभव किया.
  • महामारी ने विशेष रूप से यौन और प्रजनन स्वास्थ्य के क्षेत्र में स्वास्थ्य देखभाल प्रणालियों से समझौता किया है, जबकि यौन और प्रजनन स्वास्थ्य सेवाओं तक पहुंच वाले लोग राजकोषीय अनिश्चितता या संकट के समय में ऐतिहासिक रूप से प्रसव में देरी करते हैं.
  • लॉकडाउन के तहत लिंग-आधारित हिंसा में वृद्धि हुई, साथ ही बाल विवाह और महिला जननांग विकृति के जोखिम के रूप में हानिकारक प्रथाओं को समाप्त करने के कार्यक्रमों को बाधित किया गया.
  • महिलाओं की महत्वपूर्ण संख्या ने श्रम शक्ति को छोड़ दिया- उनकी अक्सर कम वेतन वाली नौकरियों को समाप्त कर दिया गया. दूर से सीखने वाले बच्चों के लिए या घर में रहने वाले वृद्ध लोगों के लिए देखभाल की जिम्मेदारियां बढ़ गईं- न केवल अभी के लिए बल्कि लंबे समय में उनके वित्त को अस्थिर करना. इस स्थिति के खिलाफ, कई देश प्रजनन दर में बदलाव पर बढ़ती चिंता व्यक्त कर रहे हैं. ऐतिहासिक रूप से प्रजनन दर पर चिंता के कारण मानव अधिकारों का हनन हुआ है.

5 सबसे बड़ी जनसंख्या वाले देश (फरवरी 2021 तक)

देश (Countries) जनसंख्या का आंकड़ा (Population in Numbers)
चीन (China) 1397897720
भारत (India) 1339330514
संयुक्त राज्य अमेरिका (United States) 332475723
(इंडोनेशिया) Indonesia 275122131
पाकिस्तान (Pakistan) 238181034

हैदराबाद : पृथ्वी इंसान के रहने के लिए सबसे सर्वश्रेष्ठ जगह है लेकिन यहां इंसानों की आबादी लागातार बढ़ती जा रही है. जिसके चलते इसपर नियंत्रण बहुत जरूरी हो गया है. कई देशों में इसकी जरूरत लंबे वक्त से महसूस हो रही है तो कुछ देशों ने इस ओर कदम भी उठाए हैं. दुनिया की जनसंख्या करीब 8 अरब पहुंचने वाली है और सबसे ज्यादा आबादी वाले दो देश इस समय एशिया में हैं. पहले नंबर पर चीन और दूसरे नंबर पर भारत हैं. चीन ने इसे लेकर कुछ साल पहले कदम उठाए थे लेकिन भारत में इसे लेकर अब मंथन जोरों से हो रहा है. इसलिये आज विश्व जनसंख्या दिवस के दिन इस मुद्दे पर चर्चा बहुत जरूरी हो जाती है. जनसंख्या के आंकड़ों को लेकर कुछ रोचक तथ्य आपको बताएंगे, जिन्हें जानकर आप हैरान हो जाएंगे और तब समझ पाएंगे की बढ़ती आबादी क्यों भारत जैसे कई देशों और दुनिया के लिए चिंता का सबब है.

क्या आप जनते हैं...

-दुनिया की जनसंख्या में हर सेकेंड 2.5 लोगों का इजाफा होता है.

- दुनिया में चीन और भारत के बाद सबसे ज्यादा आबादी अमेरिका की है. जिसकी कुल आबादी 33 करोड़ के करीब है, जो भारत की 25 फीसदी आबादी से भी कम है.

-इस वक्त दुनिया की आबादी करीब 7.8 अरब है. दुनिया की आबादी का आधा हिस्सा सिर्फ चीन, भारत, पाकिस्तान, ब्राजील, अमेरिका और इंडोनेशिया में है.

-दुनिया की कुल आबादी में करीब 19 फीसदी हिस्सेदारी चीन और करीब 18 फीसदी हिस्सेदारी भारत की है. इस लिहाज से आने वाले करीब 5 साल में भारत जनसंख्या के मामले में चीन को पछाड़ देगा. संयुक्त राष्ट्र के मुताबिक साल 2030 तक भारत की आबादी 1.5 अरब होने की संभावना है

- भारत की आबादी इस वक्त करीब 1 अरब 37 करोड़ के आस-पास है. जबकि पूरे यूरोप महाद्वीप की आबादी करीब 75 करोड़ है.

-एक अध्ययन के मुताबिक 1000 AD में दुनिया की आबादी सिर्फ 40 करोड़ थी. साल 1750 में दुनिया की आबादी बढ़कर 80 करोड़ हो गई. यानि दुनिया की आबादी को दोगुना होने में 750 साल लग गए.

-दुनिया की बढ़ती आबादी का लाइव अपडेट देने वाली वेबसाइट worldometers.info के मुताबिक साल 1804 में पहली बार दुनिया की आबादी 1 अरब पहुंची थी. साल 1960 में ये 3 अरब पहुंची. जबकि अगले 40 साल में ये दोगुनी हो गई और साल 2000 में 6 अरब हो गई.

-संयुक्त राष्ट्र का अनुमान है कि साल 2023 तक दुनिया की आबादी 8 अरब 2056 तक 10 अरब को पार कर जाएगी.

-यूथ इन इंडिया, 2017 की रिपोर्ट बताती है कि भारत में साल 1971 से 2011 के बीच युवाओं की आबादी 16.8 करोड़ से बढ़कर करीब 42 करोड़ हो गई, जो कि कुल आबादी का करीब 35 फीसदी थी. भारत में साल 2030 तक युवाओं की आबादी करीब 33 फीसदी होगी जो चीन के युवाओं की आबादी (करीब 23%) से 10 फीसदी ज्यादा होगी.

-यूएन के आंकड़ों के मुताबिक दुनिया की आबादी में हर साल करीब 8 करोड़ से ज्यादा लोग जुड़ते हैं. ध्यान देने वाली बात ये है कि फर्टिलिटी रेट लगातार गिर रही है.

-अगर फेसबुक एक देश होता तो ये दुनिया की सबसे अधिक आबादी वाला देश होता. दुनियाभर में इस वक्त 2.7 अरब फेसबुक यूजर्स हैं.

- कोरोना काल से पहले दिल्ली मेट्रो में रोजाना औसतन 55 से 57 लाख लोग सफर करते थे. जो कि न्यूजीलैंड की आबादी (करीब 50 लाख) से अधिक है. मुंबई लोकल से सफर करने वालों का सिर्फ अंदाजा लगा सकते हैं.

-भारत के सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश की कुल आबादी 22 करोड़ से अधिक है. ये आबादी नाइजीरिया, ब्राजील, बांग्लादेश, रूस और मैक्सिको से अधिक है. जो कि सर्वाधिक आबादी वाले देशों में क्रमश: छठे, सातवें, आठवें, नौवें और दसवें नंबर पर हैं.

भारत में आबादी घटेगी लेकिन रहेगा नंबर वन

जाने-माने मेडिकल जर्नल लैंसेट की एक रिपोर्ट के मुताबिक भारत की आबादी इस सदी के अंत होते-होते घटेगी और करीब एक अरब पहुंच जाएगी. लेकिन तब भी भारत दुनिया में सबसे ज्यादा आबादी वाला देश रहेगा. हालांकि सदी के अंत तक दुनिया की आबादी अनुमान से दो अरब कम रहेगी. हालांकि दुनिया में सबसे अधिक आबादी वाले पांच देशों में भारत के बाद नाइजीरिया, चीन, अमेरिका और पाकिस्तान होंगे.

रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत की जनसंख्या वृद्धि दर में साल 2047 के बाद कमी आएगी. 2047 में उच्चतम स्तर पर पहुंचने पर भारत की आबादी करीब 1.61 अरब होगी. उसके बाद आबादी घटने का दौर शुरू होगा जो इस सदी के अंत तक एक अरब तक पहुंच जाएगी.

जनसंख्या कम होने की क्या है वजह ?

प्रजनन दर में गिरावट- भारत के अधिकांश राज्यों में प्रजनन दर में गिरावट आई है. ये गिरावट अनुमान से भी ज्यादा तेज है. दरअसल शादी की उम्र बढ़ने के साथ-साथ दो बच्चों के बीच अंतराल रखने और परिवार नियोजन के प्रति जागरुकता भी इसकी वजह है. शिक्षा का भी इसमें बहुत महत्व है, शिक्षित समाज छोटे परिवार की अहमियत को जानते हैं. बच्चों को शिक्षा से लेकर स्वास्थ्य समेत हर तरह से बेहतर भविष्य देने के लिए वो कम बच्चे पैदा करते हैं.

बुजुर्गों की बढ़ेगी तादाद- मौजूदा वक्त में भले भारत युवाओं का देश है लेकिन करीब 2 दशक बाद देश की आबादी का एक बड़ा हिस्सा बुजुर्ग होने लगेगा. तब तक परिवार नियोजन, शिक्षा, जनसंख्या नियंत्रण कानून का और भी असर देश की आबादी पर देखने को मिलेगा. इसी तरह का संकट एक बार चीन भी झेल चुका है जहां जनसंख्या नियंत्रण कानूनों और जागरुकता अभियानों के चलते वहां बुजुर्गों की तादाद बढ़ी और आबादी में तेजी से गिरावट दर्ज की गई. जिसके बाद चीन ने इन कानूनों में थोड़ी ढील दी थी.

भारत और जनसंख्या नियंत्रण

भारत की आबादी 1.35 अरब का आंकड़ा पार कर चुकी है. ऐसे में कई सालों से देश में जनसंख्या नियंत्रण की आवाजें उठती रही हैं. इस बीच भारत के सबसे बड़े राज्य और आबादी वाले राज्य उत्तर प्रदेश (22 करोड़) में जनसंख्या कानून लागू करने की तैयारी लगभग पूरी हो चुकी है. यूपी की योगी सरकार ने इसका खाका भी तैयार कर लिया है. नई नीति के हिसाब से 2 से ज्यादा बच्चों वाले परिवारों की सुविधाओं में कटौती की तैयारी है. यान बच्चे दो ही अच्छे, छोटा परिवार - सुखी परिवार, हम दो और हमारे दो जैसे नारे अब कानूनी रूप ले लेंगे.

इसके अलावा इस नीति में नवजात शिशु और मातृ मृत्युदर कम करने पर जोर होगा. हालांकि इससे पहले सरकार प्रदेशभर में जागरुकता अभियान चलाएगी. इस कानून को लेकर अल्पसंख्यक समुदाय के मन में कई तरह के सवाल भी हैं, जिन्हें दूर करने की चुनौती सरकार के सामने होगी. वैसे इस तरह की चुनौतियां पूरे देश में देखने को मिलेंगी. लेकिन जानकार मानते हैं कि स्वास्थ्य, शिक्षा जैसी मूलभूत सुविधाओं को ध्यान में रखते हुए जनसंख्या नियंत्रण कानून बहुत जरूरी है. माना जा रहा है कि केंद्र सरकार इस ओर जल्द ही बड़ा कदम उठा सकती है.

आज विश्व जनसंख्या दिवस है

11 जुलाई 1987 तक विश्व में जनसंख्या का आंकड़ा पांच अरब के पार पहुंच चुका था. तब दुनिया भर के लोगों को बढ़ती आबादी के प्रति जागरूक करने के लिए इस दिन को संयुक्त राष्ट्र महासभा द्वारा 'विश्व जनसंख्या दिवस' के रूप में निर्धारित करने का निर्णय लिया गया. विश्व जनसंख्या दिवस को मनाने का मुख्य उद्देश्य उन मुद्दों पर प्रकाश डालना है. विश्व जनसंख्या दिवस की स्थापना 1989 में संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम की गवर्निंग काउंसिल - यूएनडीपी द्वारा की गई थी.

विश्व जनसंख्या दिवस का इतिहास
1968 में मानवाधिकारों पर अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन (International Conference) आयोजित किया गया था. पहली बार परिवार नियोजन (family planning) को मानव अधिकार (human right) के रूप में मान्यता दी गई थी.

वर्ल्ड पॉपुलेशन डे मनाने का फैसला
यूनाइटेड नेशन (united nation) ने 11 जुलाई 1989 को आम सभा में विश्व जनसंख्या दिवस (World Population Day) मनाने का फैसला लिया था. दरअसल 11 जुलाई 1987 तक वर्ल्ड पॉपुलेशन का आंकड़ा पांच अरब के भी पार पहुंच चुका था. तब दुनिया भर के लोगों को बढ़ती आबादी के प्रति जागरूक करने के लिए इसे वैश्विक स्तर पर मनाने का फैसला लिया गया था.

आबादी के मुद्दों के बारे में जागरूकता
संयुक्त राष्ट्र महासभा (United Nations General Assembly) द्वारा दिसंबर 1990 में अपनाए गए 45/216 प्रस्ताव (resolution 45/216) के बाद विश्व जनसंख्या दिवस (World Population Day) को मनाए जाने का निर्णय लिया गया, जो पर्यावरण और विकास के लिए अपने संबंधों की तरह आबादी के मुद्दों के बारे में जागरूकता बढ़ाता है.

90 से अधिक देश चिह्नित
इस दिन को पहली बार 11 जुलाई 1990 को 90 से अधिक देशों में चिह्नित किया गया था. तब से, कई UNFPA देश (UNFPA country ) के कार्यालयों और अन्य संगठनों (organizations and institutions commemorate) व संस्थाओं ने सरकारों तथा नागरिक समाज (governments and civil society) के साथ साझेदारी में विश्व जनसंख्या दिवस (World Population Day) मनाया जाता रहा है.

वर्ल्ड पॉपुलेशन डे की थीम
विश्व जनसंख्या दिवस 2021 (world population day 2021) की थीम (Theme 2021) है- अधिकार और विकल्प उत्तर हैं (Rights and choices are the answer) : चाहे बेबी बूम हो या बस्ट, प्रजनन दर में बदलाव का समाधान सभी लोगों के प्रजनन स्वास्थ्य (reproductive health) और अधिकारों को प्राथमिकता (rights of all people) देना है.

परिवार नियोजन के मानव अधिकार को बनाए रखने के लिए नौ मानक
संयुक्त राष्ट्र जनसंख्या निधि (UNFPA) और विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) ने नौ मानकों को मान्यता दी है, जो कि हर समुदाय और हर व्यक्ति को मिलने चाहिए.

  • गैर-भेदभाव (Non-discrimination) : पारिवारिक नियोजन की जानकारी (Family planning information) और सेवाओं (services ) को जाति, लिंग, भाषा, धर्म, राजनीतिक संबद्धता, राष्ट्रीय मूल, आयु, आर्थिक स्थिति, निवास स्थान, विकलांगता की स्थिति, वैवाहिक स्थिति, यौन आकांक्षा या लिंग (किसी भी भेदभाव के आधार पर) पहचान के आधार पर प्रतिबंधित नहीं किया जा सकता है.
  • उपलब्धता (Available) : देशों को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि परिवार नियोजन वस्तुएं (family planning commodities) और सेवाएं सभी के लिए सुलभ हों (services are accessible to everyone) यानि हर किसी के लिए परिवार नियोजन की सामग्री और सेवाएं उपलब्ध होनी चाहिए.
  • सुलभता (Accessible) : हर किसी के लिए परिवार नियोजन (family planning) की जानकारी और सेवाओं की पहुंचनीयता/सुलभता होनी चाहिए.
  • स्वीकार्यता (Acceptable) : गर्भ निरोधक सेवाओं और जानकारियों को गरिमामय तरीके (dignified manner) से प्रदान किया जाना चाहिए तथा आधुनिक चिकित्सा पद्यति व मध्यस्थ संस्कृति दोनों का सम्मान किया जाना चाहिए.
  • अच्छी गुणवत्ता (Good quality) : गर्भनिरोधक सेवाएं सुरक्षित और स्वच्छतापूर्ण वातावरण (clearly communicated) में पेशेवर स्वास्थ्य कर्मियों द्वारा प्रदान की जानी चाहिए.
  • सूचित निर्णय-निर्धारण (Informed decision) : हर व्यक्ति को पूर्ण स्वायत्तता, बिना दबाव, जबरदस्ती या गलतफहमी के साथ प्रजनन विकल्प चयन करने के लिए सशक्त किया जाना चाहिए.
  • गोपनीयता और विश्वसनीता : सभी व्यक्तियों को गोपनीयता के अधिकार का आनंद लेना चाहिए, जब वे परिवार नियोजन की जानकारी और सेवाएं खोज रहे है.
  • भागीदारी (Participation) : स्वास्थ्य मुद्दों सहित प्रभावित करने वाले निर्णयों में व्यक्तियों की सक्रियता और सूचित भागीदारी सुनिश्चित करना देशों की ज़िम्मेदारी है.
  • उत्तरदायित्व (Accountability) : स्वास्थ्य प्रणाली, शिक्षा प्रणाली, नेताओं और नीति निर्माताओं को परिवार नियोजन के मानव अधिकार सेवाएं प्रदान किए जाने वाले लोगों के प्रति उत्तरदायी होना चाहिए.

संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट
संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट के अनुसार, वर्ष 2011 में विश्व की वर्तमान जनसंख्या सात बिलियन तक पहुंच गई थी और आज यह लगभग 7.7 बिलियन है. वर्ष 2030 में 8.5 बिलियन और 2050 तक ये आंकड़ा 8.5 बिलियन व 2100 तक 10.9 बिलियन तक बढ़ने की उम्मीद है.

12 साल में 1 बिलियन लोगों को जोड़ा गया
1950 में संयुक्त राष्ट्र की स्थापना के पांच साल बाद, दुनिया की आबादी लगभग 2.6 बिलियन लोगों की अनुमानित थी, जो 1987 में पांच बिलियन और 1999 में छह बिलियन तक पहुंच गई. अक्टूबर 2011 में वैश्विक आबादी सात अरब होने का अनुमान लगाया गया था. इस मील के पत्थर को चिह्नित करने के लिए एक वैश्विक आंदोलन '7 बिलियन एक्शन' शुरू किया गया था और 2015 के मध्य तक दुनिया की आबादी 7.3 बिलियन तक पहुंच गई, जिसका अर्थ है कि दुनिया ने बारह साल की अवधि में लगभग एक बिलियन लोगों को जोड़ा है. 2030 में वैश्विक जनसंख्या 8.6 बिलियन, 2050 में 9.8 बिलियन और 2100 में 11 बिलियन तक पहुंचने की उम्मीद है.

जनसंख्या और कोविड (Population and Covid19)

  • लॉकडाउन के संयोजन में गर्भ निरोधकों की आपूर्ति में व्यवधान के परिणामस्वरूप सबसे कमजोर लोगों के लिए अनियोजित गर्भधारण में तेज वृद्धि का अनुमान है.
  • मार्च में UNFPF के शोध के अनुसार, अनुमानित 1.2 करोड़ महिलाओं ने परिवार नियोजन सेवाओं में व्यवधान का अनुभव किया.
  • महामारी ने विशेष रूप से यौन और प्रजनन स्वास्थ्य के क्षेत्र में स्वास्थ्य देखभाल प्रणालियों से समझौता किया है, जबकि यौन और प्रजनन स्वास्थ्य सेवाओं तक पहुंच वाले लोग राजकोषीय अनिश्चितता या संकट के समय में ऐतिहासिक रूप से प्रसव में देरी करते हैं.
  • लॉकडाउन के तहत लिंग-आधारित हिंसा में वृद्धि हुई, साथ ही बाल विवाह और महिला जननांग विकृति के जोखिम के रूप में हानिकारक प्रथाओं को समाप्त करने के कार्यक्रमों को बाधित किया गया.
  • महिलाओं की महत्वपूर्ण संख्या ने श्रम शक्ति को छोड़ दिया- उनकी अक्सर कम वेतन वाली नौकरियों को समाप्त कर दिया गया. दूर से सीखने वाले बच्चों के लिए या घर में रहने वाले वृद्ध लोगों के लिए देखभाल की जिम्मेदारियां बढ़ गईं- न केवल अभी के लिए बल्कि लंबे समय में उनके वित्त को अस्थिर करना. इस स्थिति के खिलाफ, कई देश प्रजनन दर में बदलाव पर बढ़ती चिंता व्यक्त कर रहे हैं. ऐतिहासिक रूप से प्रजनन दर पर चिंता के कारण मानव अधिकारों का हनन हुआ है.

5 सबसे बड़ी जनसंख्या वाले देश (फरवरी 2021 तक)

देश (Countries) जनसंख्या का आंकड़ा (Population in Numbers)
चीन (China) 1397897720
भारत (India) 1339330514
संयुक्त राज्य अमेरिका (United States) 332475723
(इंडोनेशिया) Indonesia 275122131
पाकिस्तान (Pakistan) 238181034
Last Updated : Jul 13, 2021, 1:13 PM IST
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