ETV Bharat / bharat

विश्व मरुस्थलीकरण और सूखा रोकथाम दिवस : इस साल बंजर भूमि को उपजाऊ में बदलना लक्ष्य - विश्व मरुस्थलीकरण और सूखा रोकथाम दिवस

विश्व मरुस्थलीकरण और सूखा रोकथाम दिवस (World Desertification and Drought Prevention Day) 17 जून को मनाया जाता है. इस साल यह खराब भूमि को स्वस्थ भूमि में बदलने पर केंद्रित होगा. पढ़िए पूरी रिपोर्ट..

विश्व मरुस्थलीकरण
विश्व मरुस्थलीकरण
author img

By

Published : Jun 17, 2021, 6:05 AM IST

हैदराबाद : विश्व मरुस्थलीकरण और सूखा रोकथाम दिवस (World Desertification and Drought Prevention Day) हर साल 17 जून को मनाया जाता है. इस साल यह खराब भूमि को स्वस्थ भूमि में बदलने पर केंद्रित होगा. इतना ही नहीं इस तरह की भूमि को पुनर्स्थापित करने से न केवल रोजगार सृजित होते हैं, बल्कि आय और खाद्य सुरक्षा में वृद्धि होती है.

इसकी रोकथाम से जैव विविधता को पुनर्प्राप्त करने में मदद करने के साथ वायुमंडलीय कार्बन को पृथ्वी को गर्म करने, जलवायु परिवर्तन को धीमा करने से रोका जा सकता है. यह जलवायु परिवर्तन के प्रभावों के अलावा कोविड-19 महामारी को भी कम करने में अपनी अहम भूमिका निभा सकते हैं. हालांकि इस साल के मरुस्थलीकरण और सूखा दिवस को भूमि की बहाली, कोविड-19 व आर्थिक सुधार के बाद योगदान की थीम पर आधारित होगा.

मरुस्थलीकरण क्या है?

मरुस्थलीकरण शुष्क, अर्ध-शुष्क और शुष्क उप-आर्द्र क्षेत्रों में भूमि का क्षरण है. यह मुख्य रूप से मानव गतिविधियों और जलवायु परिवर्तनों के कारण होता है. मरुस्थलीकरण में मौजूदा रेगिस्तानों के विस्तार का उल्लेख नहीं है.

यह शुष्क भूमि परिवेश के कारण होता है, जो विश्व के भू- क्षेत्र के एक तिहाई हिस्से को कवर करता है, अत्यधिक दोहन और अनुपयुक्त भूमि, उपयोग के लिए बेहद असुरक्षित हैं. गरीबी, राजनीतिक अस्थिरता, वनों की कटाई, अतिवृष्टि और सिंचाई के खराब तरीके भूमि की उत्पादकता को कम कर सकते हैं.

मरुस्थलीकरण और सूखा दिवस क्या है?

  • मरुस्थलीकरण और सूखा दिवस को आधिकारिक तौर पर संयुक्त राष्ट्र महासभा द्वारा 'विश्व मरुस्थलीकरण और सूखे से निपटने के लिए विश्व दिवस' के रूप में घोषित किया गया था. मरुस्थलीकरण तब होता है जब उपजाऊ भूमि मानव गतिविधि के माध्यम से मिट्टी के अत्यधिक दोहन के कारण शुष्क हो जाती है.
  • किसी ग्रह के जीवन चक्र के दौरान मरुस्थल स्वाभाविक रूप से बनते हैं, लेकिन जब मानव उपयोग के कारण मिट्टी में पोषक तत्वों की भारी और अनियंत्रित कमी होती है, तो यह मरुस्थलीकरण की ओर ले जाता है.
  • वहीं बढ़ती विश्व जनसंख्या के कारण रहने के लिए अधिक भूमि की आवश्यकता होती है. साथ ही मनुष्यों और जानवरों दोनों के लिए भोजन की मांग बढ़ जाती है. इन मांगों और आवश्यकताओं को पूरा करने का मतलब है कि अच्छी उपजाऊ भूमि का दुरुपयोग. फलस्वरुप वह भूमि रेगिस्तान में बदलती जा रही है.

मरुस्थलीकरण और सूखा दिवस का उद्देश्य

इस दिवस को मनाने का उद्देश्य लोगों को यह बताने के लिए कि मरुस्थलीकरण और सूखे से प्रभावी ढंग से निपटा जा सकता है. उसके प्रति लोगों में जागरुकता को बढ़ावा देकर उसका समाधान किया जा सकता है. हालांकि, इसका उद्देश्य सभी स्तरों पर मजबूत व सामुदायिक भागीदारी और सहयोग में निहित है.

इसमें विशेष रूप से अफ्रीका में गंभीर सूखे या मरुस्थलीकरण का सामना कर रहे देशों में मरुस्थलीकरण का मुकाबला करने के लिए संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन के कार्यान्वयन को मजबूत करना भी शामिल है.

हम मरुस्थलीकरण और सूखा दिवस क्यों मनाते हैं?

मरुस्थलीकरण का मुकाबला करने के लिए संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन के बाद 30 जनवरी, 1995 को संयुक्त राष्ट्र महासभा के प्रस्ताव में मरुस्थलीकरण और सूखे का मुकाबला करने के लिए विश्व दिवस घोषित किया गया था.

यह दिन मरुस्थलीकरण, भूमि क्षरण और सूखे के मुद्दों और इससे निपटने के तरीके के बारे में सभी को जागरूक करने के लिए आयोजित किया जाता है. इसका उद्देश्य सभी स्तरों पर सामुदायिक भागीदारी के बारे में व्यक्तियों को जागरूक करना और मरुस्थलीकरण से निपटने के लिए संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन के निष्पादन को मजबूत करना है. विश्व स्तर पर, 23 फीसद भूमि अब उत्पादक नहीं है. वहीं 75 फीसद में ज्यादातर भूमि को कृषि के लिए उसकी प्राकृतिक अवस्था से बदल दिया गया है.

हालांकि, भूमि उपयोग में यह परिवर्तन मानव इतिहास में किसी भी समय की तुलना में काफी तेज गति से हो रहा है, और पिछले 50 वर्षों में इसमें तेजी आई है. वैज्ञानिकों का कहना है कि एक राज्य से दूसरे राज्य में विकास इतनी तेजी से होता है कि उसके मुकाबले यह प्रक्रिया बहुत कम समय में ही देखी जा सकती है.

हर किसी को यह जानने की जरूरत है कि मरुस्थलीकरण, भूमि क्षरण और सूखा (DLDD) का उनके दैनिक जीवन पर सीधा प्रभाव पड़ता है. इसके लिए सभी के दैनिक कार्य इसके खिलाफ लड़ने में योगदान दे सकते हैं या मदद कर सकते हैं.

भूमि और सूखा एक जटिल और व्यापक सामाजिक-आर्थिक और पर्यावरणीय प्रभावों के साथ प्राकृतिक खतरे के अतिक्रमण के अलावा किसी भी अन्य प्राकृतिक आपदा की तुलना में अधिक लोगों की मृत्यु और अधिक लोगों को विस्थापित करने के लिए जाना जाता है.

इससे अनुमान लगाया जा सकता है कि 2025 तक, 1.8 बिलियन लोग पूर्ण रूप से पानी की कमी का अनुभव करेंगे, और दुनिया के 2/3 लोगों को पानी की कमी की स्थिति का सामना करना पड़ेगा.

भूमि और जैव विविधताभूमि उपयोग का परिवर्तन सबसे बड़े सापेक्ष वैश्विक प्रभाव के साथ जैव विविधता के नुकसान का सबसे बड़ा प्रत्यक्ष कारण है. भूमि क्षरण ने वैश्विक भूमि की सतह के 23 फीसद की उत्पादकता को कम कर दिया है, और वार्षिक वैश्विक फसलों में 577 अरब अमेरिकी डॉलर तक हानि से जोखिम में हैं.

भूमि और जलवायु परिवर्तन, जलवायु के लिए भूमि काफी मायने रखती है. इसका पुनर्वास और टिकाऊ प्रबंधन उत्सर्जन अंतर को पाटने और लक्ष्य पर बने रहने के लिए बेहद महत्वपूर्ण है. क्योंकि बिगड़े हुए पारिस्थितिक तंत्र की मिट्टी को बहाल करने से सालाना तीन अरब टन कार्बन पैदा होगा.

भूमि और युवा

आज दुनिया में 1.8 अरब लोग 15 से 35 की उम्र के बीच हैं, जो वैश्विक आबादी का एक चौथाई और युवाओं की सबसे बड़ी पीढ़ी है. दूसरी तरफ अफ्रीका में, युवा आबादी तेजी से बढ़ रही है और 2050 तक इसके दोगुना होकर 830 मिलियन से अधिक होने की उम्मीद है.

जब मिट्टी मदद मांगती है

मरुस्थलीकरण शुष्क, अर्ध-शुष्क और शुष्क उप-आर्द्र क्षेत्रों में भूमि का क्षरण है. यह मुख्य रूप से मानवीय गतिविधियों और जलवायु परिवर्तन के कारण होता है. मरुस्थलीकरण का तात्पर्य मौजूदा रेगिस्तानों के विस्तार से नहीं है. ऐसा इसलिए होता है क्योंकि शुष्क भूमि पारिस्थितिक तंत्र, जो दुनिया के एक तिहाई भूमि क्षेत्र को कवर करते हैं, अतिदोहन और अनुचित भूमि उपयोग के लिए बेहद संवेदनशील हैं.

इसके अलावा गरीबी, राजनीतिक अस्थिरता, वनों की कटाई, अत्यधिक चराई और खराब सिंचाई प्रथाएं भी भूमि की उत्पादकता को कम कर सकती हैं. मरुस्थलीकरण से निपटने के लिए अंतरराष्ट्रीय प्रयासों के बारे में जन जागरूकता को बढ़ावा देने के लिए हर साल मरुस्थलीकरण और सूखे का मुकाबला करने के लिए विश्व दिवस मनाया जाता है.

यह दिन सभी को यह याद दिलाने के लिए एक अनूठा क्षण है कि समस्या समाधान, मजबूत सामुदायिक भागीदारी और सभी स्तरों पर सहयोग के माध्यम से भूमि क्षरण को कम किया जा सकता है. इस मामले पर अभी और ध्यान देने की जरूरत है. क्योंकि जब भूमि का क्षरण होता है और उत्पादन बंद हो जाता है तो प्राकृतिक स्थान बिगड़ जाने के साथ बदल जाते हैं.

इस प्रकार, ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन बढ़ने के साथ जैव विविधता भी घटती है. इसका मतलब यह भी है कि कम जंगली स्थान हैं जो हमें अत्यधिक मौसम की घटनाओं, सूखा, बाढ़ और रेत और धूल भरी आंधी के साथ कोविड-19 आदि से बचाते हैं.

इसलिए यूएनसीसीडी (Convention to Combet Desertification) द्वारा वैश्विक समुदाय के सभी सदस्यों से भूमि को एक सीमित और कीमती प्राकृतिक पूंजी के रूप में मानने, महामारी से उबरने में इसके स्वास्थ्य को प्राथमिकता देने और संयुक्त राष्ट्र के पारिस्थितिकी तंत्र की बहाली के दौरान भूमि को बहाल करने के लिए कड़ी मेहनत करने का आह्वान किया जा रहा है.

फिलहाल हर किसी को एक भूमिका निभानी होगी, क्योंकि इसमें हर किसी की भागीदारी होती है.

हैदराबाद : विश्व मरुस्थलीकरण और सूखा रोकथाम दिवस (World Desertification and Drought Prevention Day) हर साल 17 जून को मनाया जाता है. इस साल यह खराब भूमि को स्वस्थ भूमि में बदलने पर केंद्रित होगा. इतना ही नहीं इस तरह की भूमि को पुनर्स्थापित करने से न केवल रोजगार सृजित होते हैं, बल्कि आय और खाद्य सुरक्षा में वृद्धि होती है.

इसकी रोकथाम से जैव विविधता को पुनर्प्राप्त करने में मदद करने के साथ वायुमंडलीय कार्बन को पृथ्वी को गर्म करने, जलवायु परिवर्तन को धीमा करने से रोका जा सकता है. यह जलवायु परिवर्तन के प्रभावों के अलावा कोविड-19 महामारी को भी कम करने में अपनी अहम भूमिका निभा सकते हैं. हालांकि इस साल के मरुस्थलीकरण और सूखा दिवस को भूमि की बहाली, कोविड-19 व आर्थिक सुधार के बाद योगदान की थीम पर आधारित होगा.

मरुस्थलीकरण क्या है?

मरुस्थलीकरण शुष्क, अर्ध-शुष्क और शुष्क उप-आर्द्र क्षेत्रों में भूमि का क्षरण है. यह मुख्य रूप से मानव गतिविधियों और जलवायु परिवर्तनों के कारण होता है. मरुस्थलीकरण में मौजूदा रेगिस्तानों के विस्तार का उल्लेख नहीं है.

यह शुष्क भूमि परिवेश के कारण होता है, जो विश्व के भू- क्षेत्र के एक तिहाई हिस्से को कवर करता है, अत्यधिक दोहन और अनुपयुक्त भूमि, उपयोग के लिए बेहद असुरक्षित हैं. गरीबी, राजनीतिक अस्थिरता, वनों की कटाई, अतिवृष्टि और सिंचाई के खराब तरीके भूमि की उत्पादकता को कम कर सकते हैं.

मरुस्थलीकरण और सूखा दिवस क्या है?

  • मरुस्थलीकरण और सूखा दिवस को आधिकारिक तौर पर संयुक्त राष्ट्र महासभा द्वारा 'विश्व मरुस्थलीकरण और सूखे से निपटने के लिए विश्व दिवस' के रूप में घोषित किया गया था. मरुस्थलीकरण तब होता है जब उपजाऊ भूमि मानव गतिविधि के माध्यम से मिट्टी के अत्यधिक दोहन के कारण शुष्क हो जाती है.
  • किसी ग्रह के जीवन चक्र के दौरान मरुस्थल स्वाभाविक रूप से बनते हैं, लेकिन जब मानव उपयोग के कारण मिट्टी में पोषक तत्वों की भारी और अनियंत्रित कमी होती है, तो यह मरुस्थलीकरण की ओर ले जाता है.
  • वहीं बढ़ती विश्व जनसंख्या के कारण रहने के लिए अधिक भूमि की आवश्यकता होती है. साथ ही मनुष्यों और जानवरों दोनों के लिए भोजन की मांग बढ़ जाती है. इन मांगों और आवश्यकताओं को पूरा करने का मतलब है कि अच्छी उपजाऊ भूमि का दुरुपयोग. फलस्वरुप वह भूमि रेगिस्तान में बदलती जा रही है.

मरुस्थलीकरण और सूखा दिवस का उद्देश्य

इस दिवस को मनाने का उद्देश्य लोगों को यह बताने के लिए कि मरुस्थलीकरण और सूखे से प्रभावी ढंग से निपटा जा सकता है. उसके प्रति लोगों में जागरुकता को बढ़ावा देकर उसका समाधान किया जा सकता है. हालांकि, इसका उद्देश्य सभी स्तरों पर मजबूत व सामुदायिक भागीदारी और सहयोग में निहित है.

इसमें विशेष रूप से अफ्रीका में गंभीर सूखे या मरुस्थलीकरण का सामना कर रहे देशों में मरुस्थलीकरण का मुकाबला करने के लिए संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन के कार्यान्वयन को मजबूत करना भी शामिल है.

हम मरुस्थलीकरण और सूखा दिवस क्यों मनाते हैं?

मरुस्थलीकरण का मुकाबला करने के लिए संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन के बाद 30 जनवरी, 1995 को संयुक्त राष्ट्र महासभा के प्रस्ताव में मरुस्थलीकरण और सूखे का मुकाबला करने के लिए विश्व दिवस घोषित किया गया था.

यह दिन मरुस्थलीकरण, भूमि क्षरण और सूखे के मुद्दों और इससे निपटने के तरीके के बारे में सभी को जागरूक करने के लिए आयोजित किया जाता है. इसका उद्देश्य सभी स्तरों पर सामुदायिक भागीदारी के बारे में व्यक्तियों को जागरूक करना और मरुस्थलीकरण से निपटने के लिए संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन के निष्पादन को मजबूत करना है. विश्व स्तर पर, 23 फीसद भूमि अब उत्पादक नहीं है. वहीं 75 फीसद में ज्यादातर भूमि को कृषि के लिए उसकी प्राकृतिक अवस्था से बदल दिया गया है.

हालांकि, भूमि उपयोग में यह परिवर्तन मानव इतिहास में किसी भी समय की तुलना में काफी तेज गति से हो रहा है, और पिछले 50 वर्षों में इसमें तेजी आई है. वैज्ञानिकों का कहना है कि एक राज्य से दूसरे राज्य में विकास इतनी तेजी से होता है कि उसके मुकाबले यह प्रक्रिया बहुत कम समय में ही देखी जा सकती है.

हर किसी को यह जानने की जरूरत है कि मरुस्थलीकरण, भूमि क्षरण और सूखा (DLDD) का उनके दैनिक जीवन पर सीधा प्रभाव पड़ता है. इसके लिए सभी के दैनिक कार्य इसके खिलाफ लड़ने में योगदान दे सकते हैं या मदद कर सकते हैं.

भूमि और सूखा एक जटिल और व्यापक सामाजिक-आर्थिक और पर्यावरणीय प्रभावों के साथ प्राकृतिक खतरे के अतिक्रमण के अलावा किसी भी अन्य प्राकृतिक आपदा की तुलना में अधिक लोगों की मृत्यु और अधिक लोगों को विस्थापित करने के लिए जाना जाता है.

इससे अनुमान लगाया जा सकता है कि 2025 तक, 1.8 बिलियन लोग पूर्ण रूप से पानी की कमी का अनुभव करेंगे, और दुनिया के 2/3 लोगों को पानी की कमी की स्थिति का सामना करना पड़ेगा.

भूमि और जैव विविधताभूमि उपयोग का परिवर्तन सबसे बड़े सापेक्ष वैश्विक प्रभाव के साथ जैव विविधता के नुकसान का सबसे बड़ा प्रत्यक्ष कारण है. भूमि क्षरण ने वैश्विक भूमि की सतह के 23 फीसद की उत्पादकता को कम कर दिया है, और वार्षिक वैश्विक फसलों में 577 अरब अमेरिकी डॉलर तक हानि से जोखिम में हैं.

भूमि और जलवायु परिवर्तन, जलवायु के लिए भूमि काफी मायने रखती है. इसका पुनर्वास और टिकाऊ प्रबंधन उत्सर्जन अंतर को पाटने और लक्ष्य पर बने रहने के लिए बेहद महत्वपूर्ण है. क्योंकि बिगड़े हुए पारिस्थितिक तंत्र की मिट्टी को बहाल करने से सालाना तीन अरब टन कार्बन पैदा होगा.

भूमि और युवा

आज दुनिया में 1.8 अरब लोग 15 से 35 की उम्र के बीच हैं, जो वैश्विक आबादी का एक चौथाई और युवाओं की सबसे बड़ी पीढ़ी है. दूसरी तरफ अफ्रीका में, युवा आबादी तेजी से बढ़ रही है और 2050 तक इसके दोगुना होकर 830 मिलियन से अधिक होने की उम्मीद है.

जब मिट्टी मदद मांगती है

मरुस्थलीकरण शुष्क, अर्ध-शुष्क और शुष्क उप-आर्द्र क्षेत्रों में भूमि का क्षरण है. यह मुख्य रूप से मानवीय गतिविधियों और जलवायु परिवर्तन के कारण होता है. मरुस्थलीकरण का तात्पर्य मौजूदा रेगिस्तानों के विस्तार से नहीं है. ऐसा इसलिए होता है क्योंकि शुष्क भूमि पारिस्थितिक तंत्र, जो दुनिया के एक तिहाई भूमि क्षेत्र को कवर करते हैं, अतिदोहन और अनुचित भूमि उपयोग के लिए बेहद संवेदनशील हैं.

इसके अलावा गरीबी, राजनीतिक अस्थिरता, वनों की कटाई, अत्यधिक चराई और खराब सिंचाई प्रथाएं भी भूमि की उत्पादकता को कम कर सकती हैं. मरुस्थलीकरण से निपटने के लिए अंतरराष्ट्रीय प्रयासों के बारे में जन जागरूकता को बढ़ावा देने के लिए हर साल मरुस्थलीकरण और सूखे का मुकाबला करने के लिए विश्व दिवस मनाया जाता है.

यह दिन सभी को यह याद दिलाने के लिए एक अनूठा क्षण है कि समस्या समाधान, मजबूत सामुदायिक भागीदारी और सभी स्तरों पर सहयोग के माध्यम से भूमि क्षरण को कम किया जा सकता है. इस मामले पर अभी और ध्यान देने की जरूरत है. क्योंकि जब भूमि का क्षरण होता है और उत्पादन बंद हो जाता है तो प्राकृतिक स्थान बिगड़ जाने के साथ बदल जाते हैं.

इस प्रकार, ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन बढ़ने के साथ जैव विविधता भी घटती है. इसका मतलब यह भी है कि कम जंगली स्थान हैं जो हमें अत्यधिक मौसम की घटनाओं, सूखा, बाढ़ और रेत और धूल भरी आंधी के साथ कोविड-19 आदि से बचाते हैं.

इसलिए यूएनसीसीडी (Convention to Combet Desertification) द्वारा वैश्विक समुदाय के सभी सदस्यों से भूमि को एक सीमित और कीमती प्राकृतिक पूंजी के रूप में मानने, महामारी से उबरने में इसके स्वास्थ्य को प्राथमिकता देने और संयुक्त राष्ट्र के पारिस्थितिकी तंत्र की बहाली के दौरान भूमि को बहाल करने के लिए कड़ी मेहनत करने का आह्वान किया जा रहा है.

फिलहाल हर किसी को एक भूमिका निभानी होगी, क्योंकि इसमें हर किसी की भागीदारी होती है.

ETV Bharat Logo

Copyright © 2025 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.