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किन्नौर में आज भी लकड़ी के 'उर्च' में अनाज रखते हैं लोग, जानें वजह - how people keep safe ration in kinnaur

किन्नौर एक विषम भौगोलिक परिस्थितियों (Harsh geographical conditions) वाला दूरदराज का इलाका है. सर्दियों में बर्फबारी (snowfall) के कारण छह महीने तक पूरा इलाका देश दुनिया से कट जाता है. इस दौरान घर से बाहर निकलना मुश्किल होता है. इसलिए लोग महीनों का राशन एक साथ खरीदकर 'उर्च' में स्टोर कर लेते थे, क्योंकि भारी बर्फबारी और बारिश में भी इसके अंदर रखा सामान कभी खराब नहीं होता है.

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Published : Nov 13, 2021, 5:43 PM IST

किन्नौर : किन्नौर जिला आज हर क्षेत्र में प्रगति की राह पर है. चाहे विकास की दृष्टि से हो या यहां की संस्कृति की बात हो. वैज्ञानिक दृष्टि से तो किन्नौर ने आजादी के बाद काफी तरक्की कर ली है, लेकिन यहां प्राकृतिक आपदाओं की घटनाएं (incidents of natural disasters) जिस प्रकार से बढ़ रही है वह पहले इतने बड़े स्तर पर नहीं होती थी. आज लैंडस्लाइड, चट्टानों का खिसकना इत्यादि घटनाएं किन्नौर के लोगों को प्रभावित कर रही है और इन सब घटनाओं का सामना करना किसी चुनौती से कम नहीं है.

किन्नौर में आज भी लकड़ी के 'उर्च' में अनाज रखते हैं लोग

किन्नौर जिला सैकड़ों वर्ष पूर्व से ही आपदाओं (Disaster) से निपटने के लिए कई पारंपरिक व वैज्ञानिक तरीके (Traditional and Scientific Methods) अपनाता रहा है. यहां की सर्दियां जो यहां के लिए छह माह की सबसे बड़ी आपदाओं जैसी परिस्थितियां पैदा कर देती हैं. बर्फबारी में जिले के कई दुर्गम क्षेत्रों में सड़क मार्ग बंद हो जाते हैं. कई ऐसे क्षेत्र हैं जहां महीनों भर बिजली गुल हो जाती है, पीने के पानी की समस्या बढ़ जाती है. ऐसे में यहां के लोग इन आपदाओं से निपटने के लिए अपने पारम्परिक तौर तरीकों से अपना संरक्षण करने में हमेशा से सक्षम रहे हैं.

किन्नौर में आज भी लकड़ी के 'उर्च' में अनाज रखते हैं लोग

जिला किन्नौर के लोग बर्फबारी से पूर्व ही करीब छह माह तक का राशन लकड़ी के घर (wooden house) यानी 'उर्च' में स्टोर कर देते हैं ताकि बर्फबारी के दौरान ऐसी कोई भी चीज जिसकी उन्हें जरूरत हो वह सब घर के अंदर ही मिल सके. इतना ही नहीं चावल और आटा के अलावा यहां के लोग चीनी, मसाले, खाने के तेल, साबुन, पेस्ट, इत्यादि का भी स्टॉक रखते हैं ताकि उन्हें किसी प्रकार की परेशानी न उठानी पड़े. 'उर्च' को लकड़ी से बनाया जाता है. इसे हमेशा घर से करीब 100 मीटर की दूरी पर ही तैयार किया जाता है.

'उर्च' की दीवारों को देवदार-अखरोट की लकड़ी से तैयार किया जाता है. इसके अंदर 8 से 10 छोटे-छोटे संदूक के आकार के डब्बे होते हैं. इन्हीं डब्बों के अंदर चावल, आटा, दालें, चीनी के साथ-साथ हर दूसरी वो चीज रखी जाती है जो किचन में पूरा साल इस्तेमाल होती है. इसके अलावा इसमे सेब, सूखे अंगूर, अखरोट,चिलगोजा, मेवे रखे जाते हैं. 'उर्च' के अंदर रखा सामान 2 से 3 साल तक बिल्कुल खराब नहीं होता. ना ही इसके अंदर रखे आनाज में नमी और ना ही कीड़े लगते हैं.

सर्दियों में राशन एकत्रीकरण (ration collection) की यह व्यवस्था समूचे परिवार की सुरक्षा व आपदा से निपटने की सबसे बेहतरीन व्यवस्था है. आज जिले के अंदर हजारों लोग आपदा से निपटने के लिए पहले से ही जागरुक हैं और अपने घर पर हर आवश्यक वस्तु का स्टॉक रखते हैं ताकि किसी भी आपात स्थिति में कोई परेशानी न हो.

उदाहरण के तौर पर वर्ष 2000 में जब सतलुज में भयंकर बाढ़ आई थी तो किन्नौर जिले का संपर्क देश दुनिया से करीब 8 महीनों के लिए कट गया था. ऐसे में जिले की राशन एकत्रीकरण व्यवस्था ने यहां के लोगों को करीब 6 से 7 महीनों तक दिक्कतें आने नहीं दी थी. बता दें कि जिले का वातावरण ही ऐसा है कि यहां पर कोई भी खाद्य सामग्री वर्षों तक खराब नहीं होती. शायद कुदरत ने आपदाओं के साथ यहां पर बचाव के लिए व्यवस्थाओं को भी सही तरीके से संजोने का काम किया है.

वहीं, जिस प्रकार से आज जिले में आए दिन भूस्खलन के मामले आ रहे हैं, जिस कारण कई सड़क मार्ग अवरुद्ध हो जाते हैं इस बीच भी राशन एकत्रीकरण (ration collection) व्यवस्था बेहद कारगर साबित हो रही है. भूस्खलन के कारण सड़क मार्गों में वाहनों की आवाजाही बंद होने से लोग अपने घरों से बाहर नहीं जा सकते ऐसे में पहले से ही घरों में राशन एकत्रीकरण होगा तो उन्हें किसी प्रकार की दिक्कतों का सामना नहीं करना पड़ेगा.

पढ़ें : किन्नौर की पहाड़ियों पर जाने की मनाही, नियम तोड़ने वालों पर होगी सख्त कार्रवाई

किन्नौर : किन्नौर जिला आज हर क्षेत्र में प्रगति की राह पर है. चाहे विकास की दृष्टि से हो या यहां की संस्कृति की बात हो. वैज्ञानिक दृष्टि से तो किन्नौर ने आजादी के बाद काफी तरक्की कर ली है, लेकिन यहां प्राकृतिक आपदाओं की घटनाएं (incidents of natural disasters) जिस प्रकार से बढ़ रही है वह पहले इतने बड़े स्तर पर नहीं होती थी. आज लैंडस्लाइड, चट्टानों का खिसकना इत्यादि घटनाएं किन्नौर के लोगों को प्रभावित कर रही है और इन सब घटनाओं का सामना करना किसी चुनौती से कम नहीं है.

किन्नौर में आज भी लकड़ी के 'उर्च' में अनाज रखते हैं लोग

किन्नौर जिला सैकड़ों वर्ष पूर्व से ही आपदाओं (Disaster) से निपटने के लिए कई पारंपरिक व वैज्ञानिक तरीके (Traditional and Scientific Methods) अपनाता रहा है. यहां की सर्दियां जो यहां के लिए छह माह की सबसे बड़ी आपदाओं जैसी परिस्थितियां पैदा कर देती हैं. बर्फबारी में जिले के कई दुर्गम क्षेत्रों में सड़क मार्ग बंद हो जाते हैं. कई ऐसे क्षेत्र हैं जहां महीनों भर बिजली गुल हो जाती है, पीने के पानी की समस्या बढ़ जाती है. ऐसे में यहां के लोग इन आपदाओं से निपटने के लिए अपने पारम्परिक तौर तरीकों से अपना संरक्षण करने में हमेशा से सक्षम रहे हैं.

किन्नौर में आज भी लकड़ी के 'उर्च' में अनाज रखते हैं लोग

जिला किन्नौर के लोग बर्फबारी से पूर्व ही करीब छह माह तक का राशन लकड़ी के घर (wooden house) यानी 'उर्च' में स्टोर कर देते हैं ताकि बर्फबारी के दौरान ऐसी कोई भी चीज जिसकी उन्हें जरूरत हो वह सब घर के अंदर ही मिल सके. इतना ही नहीं चावल और आटा के अलावा यहां के लोग चीनी, मसाले, खाने के तेल, साबुन, पेस्ट, इत्यादि का भी स्टॉक रखते हैं ताकि उन्हें किसी प्रकार की परेशानी न उठानी पड़े. 'उर्च' को लकड़ी से बनाया जाता है. इसे हमेशा घर से करीब 100 मीटर की दूरी पर ही तैयार किया जाता है.

'उर्च' की दीवारों को देवदार-अखरोट की लकड़ी से तैयार किया जाता है. इसके अंदर 8 से 10 छोटे-छोटे संदूक के आकार के डब्बे होते हैं. इन्हीं डब्बों के अंदर चावल, आटा, दालें, चीनी के साथ-साथ हर दूसरी वो चीज रखी जाती है जो किचन में पूरा साल इस्तेमाल होती है. इसके अलावा इसमे सेब, सूखे अंगूर, अखरोट,चिलगोजा, मेवे रखे जाते हैं. 'उर्च' के अंदर रखा सामान 2 से 3 साल तक बिल्कुल खराब नहीं होता. ना ही इसके अंदर रखे आनाज में नमी और ना ही कीड़े लगते हैं.

सर्दियों में राशन एकत्रीकरण (ration collection) की यह व्यवस्था समूचे परिवार की सुरक्षा व आपदा से निपटने की सबसे बेहतरीन व्यवस्था है. आज जिले के अंदर हजारों लोग आपदा से निपटने के लिए पहले से ही जागरुक हैं और अपने घर पर हर आवश्यक वस्तु का स्टॉक रखते हैं ताकि किसी भी आपात स्थिति में कोई परेशानी न हो.

उदाहरण के तौर पर वर्ष 2000 में जब सतलुज में भयंकर बाढ़ आई थी तो किन्नौर जिले का संपर्क देश दुनिया से करीब 8 महीनों के लिए कट गया था. ऐसे में जिले की राशन एकत्रीकरण व्यवस्था ने यहां के लोगों को करीब 6 से 7 महीनों तक दिक्कतें आने नहीं दी थी. बता दें कि जिले का वातावरण ही ऐसा है कि यहां पर कोई भी खाद्य सामग्री वर्षों तक खराब नहीं होती. शायद कुदरत ने आपदाओं के साथ यहां पर बचाव के लिए व्यवस्थाओं को भी सही तरीके से संजोने का काम किया है.

वहीं, जिस प्रकार से आज जिले में आए दिन भूस्खलन के मामले आ रहे हैं, जिस कारण कई सड़क मार्ग अवरुद्ध हो जाते हैं इस बीच भी राशन एकत्रीकरण (ration collection) व्यवस्था बेहद कारगर साबित हो रही है. भूस्खलन के कारण सड़क मार्गों में वाहनों की आवाजाही बंद होने से लोग अपने घरों से बाहर नहीं जा सकते ऐसे में पहले से ही घरों में राशन एकत्रीकरण होगा तो उन्हें किसी प्रकार की दिक्कतों का सामना नहीं करना पड़ेगा.

पढ़ें : किन्नौर की पहाड़ियों पर जाने की मनाही, नियम तोड़ने वालों पर होगी सख्त कार्रवाई

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