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महिला दिवस विशेष : रोज 16 किमी पैदल चलकर आदिवासी बच्चों को पढ़ातीं हैं मिनी - केरल की टीचर रोजाना 16 किमी यात्रा कर पढ़ाती है

केरल में मिनी टीचर के सामने राह आसान नहीं है. उन्हें नदियों, ढलानों और जंगलों से जूझना पड़ता है क्योंकि वह हर दिन 16 किलोमीटर पैदल चलकर अपने गंतव्य तक जाती हैं और फिर वापस लौटती हैं.

Women's Day special: Mini teacher walks 16 km a day to teach 10 tribal children
महिला दिवस विशेष : 10 आदिवासी बच्चों को पढ़ाने के लिए मिनी टीचर रोज 16 किमी पैदल चलती हैं
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Published : Mar 8, 2022, 9:43 AM IST

Updated : Mar 8, 2022, 7:10 PM IST

कोझिकोड : मिनी टीचर के सामने राह आसान नहीं है. उसे नदियों, ढलानों और जंगलों से जूझना पड़ता है क्योंकि वह रोजाना स्कूल आने जाने में 16 किलोमीटर की यात्रा तय करती है. मिनी केरल के कोझिकोड स्थित अंबुमाला आदिवासी कॉलोनी में एकल-शिक्षक प्राथमिक शिक्षा सुविधा में एक शिक्षिका हैं, जहां बच्चे और माता-पिता उनसे नई जानकारी और ज्ञान की दुनिया में ले जाने के लिए बेसब्री से इंतजार करते हैं.

महिला दिवस विशेष में मिनी टीचर

मिनी कोझीकोड जिले के चालियार पंचायत के वेन्दतु पोयिल की रहने वाली है. वह अंबुमाला के एक सरकारी स्कूल की अकेली शिक्षिका हैं. मिनी इस स्कूल में तब शामिल हुई जब पूर्व शिक्षक ने इस्तीफा दे दिया क्योंकि वह हर दिन 16 किलोमीटर की दूरी तय करके स्कूल आने जाने में असमर्थ था. मिनी ने इस स्कूल में आदिवासी बच्चों को पढ़ाने के लिए शिक्षा विभाग से संपर्क किया था और उन्हें नियुक्ति मिल गई थी.

वह 2015 से हर दिन 16 किलोमीटर की यात्रा कर रही है और वह अब अंबुमाला में रहने वाले पूरे आदिवासी समुदाय के लिए पसंदीदा मिनी शिक्षक है. वह न केवल समुदाय के लिए एक शिक्षिका हैं बल्कि एक स्वयंसेवक हैं जो आदिवासियों की सभी जरूरतों में मदद करती हैं. मिनी के अथक प्रयासों के कारण आधार कार्ड, राशन कार्ड और यहां तक ​​कि कोविड के खिलाफ टीकाकरण भी इस आदिवासी बस्ती तक पहुंच गया. लेकिन उनका संघर्ष सिर्फ दैनिक आने-जाने तक ही खत्म नहीं हो जाता. मिनी को पिछले पांच माह से वेतन नहीं मिला है. बच्चों के लिए दोपहर भोजन योजना का फंड भी कई महीनों से नहीं बांटा गया है. इस आदिवासी बस्ती तक पहुंचने के लिए कोई उचित सड़क नहीं है और स्कूल के रास्ते में जंगली जानवरों का खतरा भी रहता है.

ये भी पढ़ें- विश्व महिला दिवस 2022 : महिलाओं का सम्मान सर्वोपरि है, 'जेंडर इक्वालिटी टुडे फॉर ए सस्टेनेबल टुमारो'

लेकिन मिनी इन सब बाधाओं से बेफिक्र है. वह 6 से 10 वर्ष की आयु के 10 आदिवासी बच्चों को पढ़ाने के लिए प्रतिबद्ध हैं. जब तक वह कॉलोनी से लौटती, तब तक अरब सागर के ऊपर सूर्य अस्त हो चुका होता है. इस कठिन सैर के दर्द के साथ, वह फिर से अपने घर के कामों में लग जाती हैं. अगले दिन, वह फिर से आदिवासी बच्चों के जीवन में प्रकाश लाने के लिए अपने चेहरे पर मुस्कान के साथ जागती है, जो अन्यथा पूर्ण उपेक्षा में रहते हैं.

कोझिकोड : मिनी टीचर के सामने राह आसान नहीं है. उसे नदियों, ढलानों और जंगलों से जूझना पड़ता है क्योंकि वह रोजाना स्कूल आने जाने में 16 किलोमीटर की यात्रा तय करती है. मिनी केरल के कोझिकोड स्थित अंबुमाला आदिवासी कॉलोनी में एकल-शिक्षक प्राथमिक शिक्षा सुविधा में एक शिक्षिका हैं, जहां बच्चे और माता-पिता उनसे नई जानकारी और ज्ञान की दुनिया में ले जाने के लिए बेसब्री से इंतजार करते हैं.

महिला दिवस विशेष में मिनी टीचर

मिनी कोझीकोड जिले के चालियार पंचायत के वेन्दतु पोयिल की रहने वाली है. वह अंबुमाला के एक सरकारी स्कूल की अकेली शिक्षिका हैं. मिनी इस स्कूल में तब शामिल हुई जब पूर्व शिक्षक ने इस्तीफा दे दिया क्योंकि वह हर दिन 16 किलोमीटर की दूरी तय करके स्कूल आने जाने में असमर्थ था. मिनी ने इस स्कूल में आदिवासी बच्चों को पढ़ाने के लिए शिक्षा विभाग से संपर्क किया था और उन्हें नियुक्ति मिल गई थी.

वह 2015 से हर दिन 16 किलोमीटर की यात्रा कर रही है और वह अब अंबुमाला में रहने वाले पूरे आदिवासी समुदाय के लिए पसंदीदा मिनी शिक्षक है. वह न केवल समुदाय के लिए एक शिक्षिका हैं बल्कि एक स्वयंसेवक हैं जो आदिवासियों की सभी जरूरतों में मदद करती हैं. मिनी के अथक प्रयासों के कारण आधार कार्ड, राशन कार्ड और यहां तक ​​कि कोविड के खिलाफ टीकाकरण भी इस आदिवासी बस्ती तक पहुंच गया. लेकिन उनका संघर्ष सिर्फ दैनिक आने-जाने तक ही खत्म नहीं हो जाता. मिनी को पिछले पांच माह से वेतन नहीं मिला है. बच्चों के लिए दोपहर भोजन योजना का फंड भी कई महीनों से नहीं बांटा गया है. इस आदिवासी बस्ती तक पहुंचने के लिए कोई उचित सड़क नहीं है और स्कूल के रास्ते में जंगली जानवरों का खतरा भी रहता है.

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लेकिन मिनी इन सब बाधाओं से बेफिक्र है. वह 6 से 10 वर्ष की आयु के 10 आदिवासी बच्चों को पढ़ाने के लिए प्रतिबद्ध हैं. जब तक वह कॉलोनी से लौटती, तब तक अरब सागर के ऊपर सूर्य अस्त हो चुका होता है. इस कठिन सैर के दर्द के साथ, वह फिर से अपने घर के कामों में लग जाती हैं. अगले दिन, वह फिर से आदिवासी बच्चों के जीवन में प्रकाश लाने के लिए अपने चेहरे पर मुस्कान के साथ जागती है, जो अन्यथा पूर्ण उपेक्षा में रहते हैं.

Last Updated : Mar 8, 2022, 7:10 PM IST
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